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Synopsis / शोध प्रारूपिका (लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु)
किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक तूफ़ान एक हलचल महसूस होती है, शोध परिक्षेत्र की तलाश प्रारम्भ होती है, विषय की तलाश से लेकर परिणति तक का आयाम मुखर होने लगता है और इसी मनोवेग वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है एवं अस्तित्व में आता है शोध प्रोपोज़ल या शोध प्रारूपिका। हमारे शोधार्थियों में इसके लिए शब्द प्रचलन में है: —- Synopsis.
शोध को क्रमबद्ध वैज्ञानिक स्वरुप देने हेतु लघुशोध व शोध के विद्यार्थी सरलता से कार्य कर सहजता से इस परिणति तक ले जा सकते हैं, Synopsis के चरणों(Steps) को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –
1. प्रस्तावना 2. आवश्यकता क्यों? 3. समस्या 4.उद्देश्य 5.परिकल्पना 6. प्रतिदर्श 7. शोध विधि 8. शोध उपकरण 9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि 10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव 11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)
1. प्रस्तावना(Introduction)-
जिस तरह रत्नगर्भा पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त अयस्क परिशोधन से शुद्ध धात्वीय स्वरुप प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते तथ्य प्रगटन के लिए अपने परिशुद्ध स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और हम अपनी क्षमता के अनुसार उसे बोधगम्य बनाकर उसका प्रारम्भिक स्वरुप प्रस्तुत करते हैं जो मूलतः हमारे विषय से सम्बन्ध रखता है, शीर्षक से जुड़ाव का यह मुखड़ा, भूमिका या प्रस्तावना का स्वरुप लेता है इसके शब्द हमारी क्षमता अधिगम स्तर और प्रस्तुति कौशल के अनुसार अलग-अलग परिलक्षित होता है इसमें वह आलोक होता है जो हमारे शोध का उद्गार बनने की क्षमता रखता है।
2. आवश्यकता क्यों?(Importance)-
यह बिंदु विषय-वस्तु के महत्त्व को प्रतिपादित करता है और उस पर कार्य करने के औचित्य को सिद्ध करता है कि आखिर अमुक चर को या अमुक पात्र या विषय वस्तु को ही हमने अपने अध्ययन का आधार क्यों बनाया? हमें देश, काल, परिस्थितियों के आलोक में अपने विषय और उसी परिक्षेत्र पर कार्य करने की तीव्रता का परिचय कराना होता है इसे ऐसे शब्दों में लिखा जाना चाहिए कि पढ़ने वाला उसकी तीव्रता को महसूस कर सके और उसका मानस सहज रूप से आपके तर्कों का कायल हो जाए।
3. समस्या(Problem)-
यहाँ समस्या या समस्या कथन से आशय शोध के ‘शीर्षक’ से है। शीर्षक संक्षिप्त, सरल, सहज बोधगम्य व सार्थक भाव युक्त होना चाहिए अनावश्यक विस्तार या अत्यधिक कठिन शब्दों के प्रयोग से बचकर उसे अधिक पाठकों की बोधगम्यता परिधि में लाया जा सकता है यह शुद्ध व भाव स्पष्ट करने में समर्थ होना चाहिए। शोध स्वरूपानुसार इसका उपयुक्त चयन व शुद्ध निरूपण होना चाहिए।
4. उद्देश्य(Objectives)-
उद्देश्य बहुत सधे शब्दों में बिन्दुवार दिए जाने चाहिए। तुलनात्मक अध्ययन में निर्धारित चर के आधार पर न्यादर्श के प्रत्येक वर्ग का दुसरे से तुलनात्मक अध्ययन करना, उद्देश्य का अभीप्सित होगा यह शोधानुसार क्रमिक रूप से व्यवस्थित किए जा सकते हैं।
5. परिकल्पनाएं(Hypothesis)-
परिकल्पनाओं का स्वरुप शोध के स्वरुप पर अवलम्बित होता है। सकारात्मक, नकारात्मक और शून्य परिकल्पना अस्तित्व में है लेकिन शोध हेतु शून्य परिकल्पना सर्वाधिक उत्तम रहती है, इसको भी क्रमवार तुलना के स्वरुप के आधार पर व्यवस्थित करते हैं। यदि ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों की ‘कम्प्यूटर के प्रति भय’ के आधार पर तुलना करनी हो तो इसे इस प्रकार लिखेंगे :
ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों में कम्प्यूटर के प्रति भय के आधार पर कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
6. प्रतिदर्श(Sample)-
प्रतिदर्श या न्यादर्श शोध की प्रतिनिधिकारी जनसंख्या होती है यह समस्या के स्वरुप, शोधार्थी की क्षमता, समय व साधनों द्वारा निर्धारित होती है। शोध हेतु चयनित जनसंख्या का शोध स्वरूपानुसार विभिन्न वर्गों में वितरण कर लेते हैं जिससे परस्पर तुलना सुगम हो जाती है यह भी परिकल्पना निर्धारण में सहायक होती है।
7. शोध विधि(Research Method)-
इसका निर्धारण शोध शीर्षक के स्वरुप पर अवलम्बित होता है हिस्टॉरिकल रिसर्च या सर्वेक्षण आधारित शोध Synopsis के पूरे स्वरुप को प्रभावित करते हैं। शोध विधि, शोध की दिशा तय करने में सक्षम है।
8. शोध उपकरण(Research Tools)-
शोध स्वरूपानुसार ही इसकी आवश्यकता होती है कुछ प्रामाणिक शोध उपकरण मौजूद हैं एवं कभी आवश्यकता अनुसार खुद भी स्व आवाश्यक्तानुसार शोध उपकरण विकसित करना होता है। वर्णनात्मक शोध प्रबन्ध में इसकी आवश्यकता नहीं होती।
9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि(Used Statistical Method)-
जिन शोध के प्राप्य समंक होते हैं उनसे किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में शोध की प्रवृत्ति के अनुसार सांख्यिकी का प्रयोग करना होता है यहां केवल प्रयुक्त सूत्र एवं उसमे प्रयुक्त अक्षर का आशय लिखना समीचीन होगा।
10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव(Result, Outcome & Suggestion)-
इस भाग में केवल इतना लिखना पर्याप्त होगा कि ‘प्रदत्तों का सांख्यकीय विश्लेषण से प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जायेगा एवं भविष्य हेतु सुझाव सुनिश्चित किए जाएंगे।
11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)(Proposed Framework)-
- सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
- अध्ययन की योजना का प्रारूप
- आकङों का विश्लेषण एवं विवेचन
- शोध निष्कर्ष एवं सुझाव
जहां सांख्यिकीय विश्लेषण आवश्यक नहीं है उन वर्णनात्मक, ऐतिहासिक या विवेकनात्मक शोध में चतुर्थ अध्याय आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय होगा।
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कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें
इस आर्टिकल के सहायक लेखक (co-author) हमारी बहुत ही अनुभवी एडिटर और रिसर्चर्स (researchers) टीम से हैं जो इस आर्टिकल में शामिल प्रत्येक जानकारी की सटीकता और व्यापकता की अच्छी तरह से जाँच करते हैं। wikiHow's Content Management Team बहुत ही सावधानी से हमारे एडिटोरियल स्टाफ (editorial staff) द्वारा किये गए कार्य को मॉनिटर करती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आर्टिकल्स में दी गई जानकारी उच्च गुणवत्ता की है कि नहीं। यहाँ पर 8 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल १,३६,२५९ बार देखा गया है।
स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।
अपने विषयवस्तु का चयन
- आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
- अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।
- ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२] X रिसर्च सोर्स
- पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
- अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।
एक रूपरेखा का निर्माण
- रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
- जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।
- हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
- अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।
- एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
- एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।
- थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
- शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!
- जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
- सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।
- अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
- अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
- बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
- अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।
- आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
- कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।
- MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
- APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
- शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७] X रिसर्च सोर्स
- अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
- दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८] X रिसर्च सोर्स
- रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
- यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
- ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
- अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।
संबंधित लेखों
- ↑ http://www.infoplease.com/homework/t3sourcesofinfo.html
- ↑ http://www.ebscohost.com/academic
- ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/552/03/
- ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/544/02/
- ↑ http://www.indiana.edu/~wts/pamphlets/thesis_statement.shtml
- ↑ http://libguides.jcu.edu.au/content.php?pid=83923&sid=3619280
- ↑ http://writing.yalecollege.yale.edu/why-are-there-different-citation-styles
- ↑ http://professionalonlineediting.com/how-to-edit-your-essay-or-research-paper-fast.asp
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