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income tax essay in hindi

New Tax Rule From 1st April: 1 अप्रैल से बदल रहे इनकम टैक्स से जुड़े 12 नियम, जानिए आपको कितना फायदा होगा

New tax rules implemented from 1st april 2023 full list : नए वित्त विर्ष 2023-24 की शुरुआत 1 अप्रैल से हो रही है और इसके साथ ही इनकम टैक्स संबंधी 12 नियमों में बड़े बदलाव लागू हो जाएंगे..

These 12 Income Tax rule changes from April 1, 2023,

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Bcom 2nd basic concepts income tax study material notes in hindi.

Table of Contents

BCom 2nd Basic Concepts Income Tax Study Material Notes in Hindi : Definitions of Important Terms Related to Income Tax Determination of Assessment Year Income Tax is Payable on Incomes and Note on Receipts Main features of Income Provisions related to income Under Income Tax Act

Basic Concepts Income

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आय – कर की आधारभूत अवधारणाएँ

( ba.sic concepts of income-tax).

आय-कर अधिनियम, 1961 के विभिन्न प्रावधानों एवं नियमों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए इस अधिनियम में प्रयुक्त किये गये महत्त्वपूर्ण शब्दों का स्पष्ट अर्थ समझना परमावश्यक है, ताकि कोई भ्रम उत्पन्न न हो। यद्यपि आय-कर अधिनियम की धारा 2 एवं 3 में कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित किया गया है, परन्त कछ शब्दों के अर्थ अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों में। निहित उद्देश्यों के आधार पर तय किये गये हैं।

BCom 2nd Basic Concepts

आय – कर से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएँ, (definitions of important terms related to income-tax).

1 करदाता ( Assessee )-आय-कर अधिनियम की धारा 2(7) के अनुसार, ‘करदाता’ के अन्तर्गत निम्नांकित को सम्मिलित किया जाता है

( त ) वह व्यक्ति जो कर चुकाने के लिए उत्तरदायी है।

( ii) वह व्यक्ति जो कर के अतिरिक्त अन्य राशि (अर्थदण्ड, ब्याज) देने के लिए उत्तरदायी है।

( iii) ऐसा व्यक्ति जिसकी आय पर आय-कर लगाने की कार्यवाही आरंभ कर दी गई है।

( iv) ‘माना हुआ करदाता’ (Deemed Assessee) भी करदाता की श्रेणी में शामिल किया जाता है। यदि एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति की आय के लिए करदाता माना जाए तो उसे ‘माना गया करदाता’ कहा जाता है। उदाहरण के लिए

( a) किसी करदाता की मृत्यु के पश्चात् उसके वैधानिक उत्तराधिकारी को मृतक करदाता की आय पर कर देने के लिए करदाता माना जाता है।

( b) अवयस्क, पागल तथा विदेशी व्यक्ति के प्रतिनिधियों को ऐसे व्यक्तियों की आय के सम्बन्ध में करदाता समझा जाता है।

( v) ऐसा व्यक्ति जिसे चूक में करदाता (Assessee in Default) मान लिया गया हो। जिन्हें किसी गलती या चक के कारण करदाता माना जाता है, उन्हें ‘दोषी करदाता’ या ‘चूक के कारण करदाता’ कहते हैं।

उदाहरणार्थ -लाभांश, बीमा कमीशन, वेतन आदि का भुगतान करते समय भुगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था का यह दायित्व है कि वह आय-कर की निर्धारित दर से कटौती करके शेष राशि का ही भुगतान करें, परन्तु यदि भुगतान करने वाला व्यक्ति या संस्था बिना कर की कटौती किये हुए भुगतान कर देती है तो ऐसी स्थिति में भगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था को ‘दोषी करदाता’ या ‘चूक के कारण करदाता’ माना जायेगा अर्थात् यह उसकी जिम्मेदारी बन गई। कि इस प्रकार न काटी गई कर की रकम को स्वयं अपने पास से सरकारी कोष में जमा कराये।

( vi) उस व्यक्ति द्वारा स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाये गये कर की वापसी या हानि निर्धारण के लिए कार्यवाही आरंभ कर दी गई हो। संक्षेप में, करदाता में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनकी आय गतवर्ष में आय-कर अधिनियम के अनुसार कर देने योग्य होती है।

2. व्यक्ति ( Person) सामान्य भाषा में व्यक्ति से आशय मनुष्य से होता है, परन्तु आय-कर अधिनियम की धारा 2(81) के अनुसार व्यक्ति में निम्नांकित शामिल किये जाते हैं-(i) एक व्यक्ति (an individual), (ii) हिन्दू अविभाजित परिवार, (iii) कम्पनी या निगम, (iv) फर्म, (v) व्यक्तियों का समूह या समुदाय (AOP/BOI) (vi) स्थानीय सत्ता और (vii) प्रत्येक कृत्रिम व्यक्ति (Artificial Person) जो उपर्युक्त वर्गों में नहीं आता।

व्यक्ति ( An Individual) से अभिप्राय एक प्राकृतिक व्यक्ति से है जो पुरुष, स्त्री, अवयस्क अथवा पागल व्यक्ति भी हो सकता है।

हिन्दू अविभाजित परिवार ( HUF ) की परिभाषा आय-कर अधिनियम में नहीं दी गई है। हिन्दू अविभाजित परिवार से अभिप्राय उन सभी व्यक्तियों से है जो एक ही परिवार के वंशज होते हैं। कम्पनी से आशय कम्पनी अधिनियम द्वारा निर्मित एक ऐसी संस्था से है जिसकी एक अलग सार्वमुद्रा, अविच्छिन्न उत्तराधिकार और सीमित दायित्व होता है।

एक फर्म से आशय एक ऐसी साझेदारी फर्म से है जिसमें सभी साझेदार लाभ कमाने के उद्देश्य से गठित होते हैं। यह व्यवसाय उन सबके द्वारा या उनमें से किसी एक के द्वारा सभी के लिए चलाया जाता है।

व्यक्तियों के संघ ( A .O.P) से अभिप्राय दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा संघ है जिसमें व्यक्ति अपने सामान्य उद्देश्य पूरा करने के लिए शामिल होते हैं।

स्थानीय सत्ता में नगरपालिका, नगर महापालिका एवं जिला परिषद आदि को शामिल किया जायेगा। कृत्रिम व्यक्ति में वैधानिक निगम, विश्वविद्यालय एवं भगवान देवता जैसे तिरूपति बाला जी आदि को शामिल किया जायेगा।

स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 1

निम्नलिखित व्यक्तियों की स्थिति निर्धारित कीजिए

Determine the status of the following persons :

(i) मेरठ विश्वविद्यालय (Meerut University)

(ii) इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank)

(iii) लखनऊ नगर निगम (Municipal Corporation of Lucknow)

(iv) श्री कृष्ण एण्टरप्राइजेज जिसमें ‘एस’ व ‘के’ साझेदार हैं (Shri Krishna Enterprises consisting ‘S’ and  ‘K’ partners)

(v) एक संयुक्त हिन्दू परिवार जिसमें मि० ‘एम’, उनकी पत्नी तथा उनके पत्र ‘पी’ शामिल हैं (A Joint Hindu Family consisting of Mr. M, Mrs. M and their son P).

(i) मेरठ विश्वविद्यालय एक वैधानिक कृत्रिम व्यक्ति है। (Meerut University is an Artificial Juridical Person)

(ii) इलाहाबाद बैंक एक कम्पनी है। (Allahabad Bank is a company) .

(iii) लखनऊ नगर निगम एक स्थानीय सत्ता है। (Municipal Corporation of Lucknow is a ‘Local Authority’.)

(iv) श्री कृष्ण एण्टरप्राइजेज एक फर्म है। (Shri Krishna Enterprises is a Firm).

(v) एक हिन्दू अविभाजित परिवार की स्थिति है। (A Hindu Undivided Family)

3. कर – निर्धारण वर्ष ( Assessment Year)-आय-कर अधिनियम की धारा 2 (9) के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष का अभिप्राय 12 माह की उस अवधि से है जो कि 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर आगामी वर्ष की 31 मार्च को समाप्त होती है। प्रत्येक करदाता को कर-निर्धारण वर्ष में अपनी गत वर्ष (Previous year) की कमाई हुई आय पर आय-कर का भुगतान करना होता है। वर्तमान कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 है जो 1 अप्रैल 2018 को प्रारम्भ हुआ है एवं 31 मार्च, 2019 को समाप्त होगा ।

Illustration 3

एक करदाता की विभिन्न स्रोतों से आय है। ज्ञात कीजिये कि उनकी कौन-कौन सी आयें कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 में कर-योग्य होंगी

An assessee is having income from various sources. Find out the previous years of such incomes which shall be taxable in the assessment year 2018-19.

(i) 1-9-2017 को ज्वाइन की गई नौकरी का वेतन।

(Salary income for job joined on 1-9-2017)

(ii) दिवाली 2017 में स्थापित नया व्यापार।

(Newly set up business on Diwali 2017)

(iii) 1-12-2017 को नये मकान का निर्माण समाप्त हुआ एवं इसी तिथि से किराये पर उठा दिया गया।

(New house completed on and let out from 1-12-2017) अपनी पुत्री का विवाह 1-11-2017 को सम्पन्न हुआ जिसमें 9,00,000₹ खर्च हुए किन्तु वह केवल 5,00,000₹ के खर्च के सम्बन्ध में ही संतोषजनक उत्तर दे सका।

(Expenditure incurred on marriage of daughter held on 1-11-2017 ? 9,00,000 but he

could give satisfactory explanation only for ₹ 5,00,000)

(v) अप्रैल 2017 में विश्वविद्यालय से परीक्षक के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त हुआ।

(Income from examinership fee from university in April 2017)

Assessee is liable for all sources of income for the previous year relevant to assessment year 2018-19 and income for following previous years shall be aggregated

4. गत वर्ष ( Previous Year)- सरल शब्दों में, जिस वर्ष में आय कमाई या प्राप्त की जाती है उसे गत वर्ष कहते हैं। गत वर्ष को वित्तीय वर्ष (Financial Year) या लेखांकन या हिसाबी वर्ष (Accounting Year) के नाम से भी जाना जाता है।

आय – कर अधिनियम की धारा 3 के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष के ठीक पूर्व वाले वित्तीय वर्ष को गत वर्ष कहा जाता है। चूंकि कर-निर्धारण वर्ष प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल से प्रारम्भ होता है, अत: इसके ठीक पूर्व की तिथि अर्थात 31 मार्च तक की 12 माह की अवधि को गत वर्ष कहते हैं। उदाहरणार्थ, कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 से सम्बन्धित गत वर्ष का अभिप्राय 1 अप्रैल, 2017 से 31 मार्च, 2018 तक की 12 माह की अवधि से है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि आय के सभी स्रोतों के लिए एक ही गत वर्ष माना जाता है।

यद्यपि करदाता अपनी सुविधानुसार वित्तीय वर्ष, दीवाली वर्ष, दशहरा वर्ष, कैलेंडर वर्ष आदि के अनुसार अपना हिसाब-किताब रख सकते हैं, परन्तु सभी करदाताओं को आय-कर हेतु अपना हिसाब-किताब 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि का ही तैयार करना पड़ेगा। नये व्यापार की स्थिति में, या आय का नया साधन अस्तित्व में आने की स्थिति में, जिस तिथि को नया व्यापार प्रारम्भ किया जाता है या जिस तिथि को आय का नया साधन अस्तित्व में आता है, उस तिथि से वित्तीय वर्ष के समाप्त होने तक की तिथि की अवधि को ही गत वर्ष माना जायेगा। उदाहरणार्थ, करदाता अपना व्यवसाय 1 अक्टूबर, 2017 को प्रारम्भ करता है तो उसका गत वर्ष 1 अक्टूबर, 2017 से 31 मार्च, 2018 तक की अवधि ही होगी।

सामान्य नियम – “ गत वर्ष की आय पर सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष में ही कर लगता है।”

सामान्य नियम के अपवाद-सामान्यतया कर गत वर्ष की आय पर कर-निर्धारण वर्ष में ही लगता है, परन्तु इस नियम के कुछ अपवाद भी हैं। निम्नलिखित स्थितियों में करदाता पर आय कमाने वाले वर्ष में ही कर लग जाता है अर्थात् गतवर्ष एवं। कर-निर्धारण वर्ष एक ही होते हैं

1 अनिवासियों की समुद्री जहाज द्वारा व्यापार से आय (धारा 172) अनिवासी करदाताओं को भारतीय बन्दरगाह से सामान, पशु, डाक, यात्री आदि को ले जाने से ऐसे माल के लिए प्राप्त या प्राप्य राशि का 7.5% जहाज के मालिक की कर योग्य आय। मानी जाती है, और उसी पर कर लगता है, जिस वर्ष वह उपार्जित की गई हो, बशर्ते कि जहाज मालिक का कोई एजेन्ट भारत में न हो। जहाज रवाना होने से पूर्व ही जहाज का मालिक ऐसा प्रबन्ध करे जिससे कर का भुगतान एवं आय विवरणी 30 दिन के अन्दर-अन्दर सरकार को जमा हो जाए। वित्त अधिनियम, 2008 से ऐसी व्यवस्था की गयी है कि ऐसे व्यक्ति का कर निर्धारण गत वर्ष की समाप्ति के 9 माह के भीतर सम्पन्न हो जाना चाहिए।

2. भारत को छोड़ कर जाने वाले व्यक्तियों की आय (धारा 174)–यदि कर निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है। कि कोई व्यक्ति चालू कर निर्धारण वर्ष (जिसे गत वर्ष कहा जाता है) में या इसके समाप्त होने पर या उससे पहले भारत छोड़कर जा सकता है तथा उसका दोबारा भारत लौटने का इरादा नहीं है तो इस तरह के व्यक्ति की कुल आय पर उसी गत वर्ष में जब वह भारत छोड़कर जा रहा है, आय-कर वसूल कर लिया जाता है।

3. किसी विशिष्ट उद्देश्य या घटना के लिए व्यक्तियों का संघ (A.O.P.) या व्यक्तियों का समूह (Body of Individual : B.O.I.) या कृत्रिम व्यक्ति का बनाया जाना (धारा 174A)-यह नियम कर-निर्धारण वर्ष 2004-05 से लागू किया गया है। यदि कर-निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि कोई व्यक्तियों का संघ, व्यक्तियों का समूह अथवा कृत्रिम व्यक्ति किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए बनाया गया है एवं चाल गत वर्ष में ही उसको समाप्त कर दिया जायेगा तो कर निर्धारण अधिकारी विघटन की तिथि तक की कुल आय पर चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर देता है।

4. कर बचाने के उद्देश्य से सम्पत्ति का हस्तान्तरण (धारा 175)-यदि कोई व्यक्ति कर बचाने के उद्देश्य से अपनी सम्पत्ति का हस्तान्तरण किसी दूसरे व्यक्ति को करता है तो ऐसी स्थिति में चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर दिया जाता है।

5. बन्द किये गये व्यापार की आय-धारा 176 के अनुसार, जब कोई व्यापार अथवा पेशा किसी कर-निर्धारण वर्ष में बन्द कर दिया जाता है तो उसे बन्द करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह 15 दिन के भीतर आय-कर अधिकारी को इस सम्बन्ध में सूचित कर दे। आय-कर अधिकारी पिछले गतवर्ष से व्यापार बन्द किये जाने की तिथि तक के लाभ पर उसी कर-निर्धारण वर्ष में कर निर्धारित कर देता है।

Illustration 4

एक करदाता अपना व्यापार निम्नलिखित तिथियों को प्रारम्भ करता है(i) 1 सितम्बर, 2016, (ii) 24 दिसम्बर, 2015, (iii) 1 फरवरी, 2017 उपर्युक्त प्रत्येक दशा में उसका कर-निर्धारण वर्ष क्या होगा और सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष के लिए उसके गत वर्ष की अवधि क्या होगी?

An assessee starts his business on the following dates. In each case, what will be his assessment year and what period will be treated as his previous year for the concerned assessment year ?

( i ) 1st September, 2016; (ii) 24th December, 2015; (iii) 1st February, 2017.

Illustration 5

निम्नलिखित दशाओं में कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 हेतु गत वर्ष ज्ञात कीजिये

Find out the previous year in following cases for the assessment year 2018-19

(i) एक व्यापार जो 1-1-2018 को प्रारम्भ हआ हो और लेखा पुस्तकें कैलेंडर वर्ष के अनुसार रखी जाती ह।।

(For a business commencing on 1-1-2018 and books of account are maintained on calendar year basis).

(ii) एक कर्मचारी अपनी नौकरी 15 सितम्बर 2017 को प्रारम्भ करता है।

(An employee joins his job on 15th September 2017).

(iii) एक नया व्यापार 21 मई 2017 को स्थापित होता है।

(A new business is set up on 21st May 2017).

(iv) एक व्यापार में लेखा पुस्तकें दिवाली से दिवाली के हिसाब से रखी जाती हैं।

(A business man maintains his accounts on Diwali to Diwali Basis).

(v) एक व्यक्ति को 2017-18 में लाटरी का इनाम मिला।

(A person wins a lottery prize during 2017-18)

Determination of Previous Year

for the Assessment Year 2018-19 Income

Previous Year

(i) For a business commencing on 1.1.2018 books of account are maintained on calendar year basis 1-1-2018 to 31-3-2018

(ii) An employee joins his job on 15th September 2017 15-9-2017 to 31-3-2018

(iii) A new business is set up on 21st May 2017

21-5-2017 to 31-3-2018

(iv) A business maintains his accounts on Diwali to Diwali basis 1-4-2017 to 31-3-2018 (v) A person wins a lottery prize during 2017-18 1-4-2017 to 31-3-2018

5. आय ( Income) [ धारा 2 (24)]-‘आय’ शब्द आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत रीढ़ की हड्डी (Back bone) के समान है, क्योकि आय-कर आय पर ही लगता है परन्तु आय-कर अधिनियम में इस शब्द को कहीं पर भी परिभाषित नहीं किया गया है। आय-कर अधिनियम की धारा 2 (24) में इतना अवश्य बताया गया है कि आय में क्या-क्या शामिल हैं, अर्थात् कौन-कौन सी प्राप्तियाँ या आमदनियाँ आय (Income) के अन्तर्गत शामिल की जायेंगी। संक्षेप में, आय-कर अधिनियम की धारा 2 (24) के अनुसार निम्नलिखित को आय के अन्तर्गत शामिल किया गया है

(i) लाभ तथा प्राप्ति (Profits and gains);

(ii) लाभांश (Dividend);

(iii) पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थापित ट्रस्ट अथवा संस्था, वैज्ञानिक शोध संघ, खेलकूद संघ, पुण्यार्थ फण्ड एव सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा स्वेच्छा से प्राप्त किये गये चन्दों से आय। संक्षेप में, टस्टों, फंडों, एसोसिएशनों, निकायों आदि के द्वारा प्राप्त किये गये निम्नलिखित चन्दे उनकी आय में शामिल किये जाते हैं

( अ ) किसी ट्रस्ट के द्वारा जिसका उद्देश्य पूर्णत: या अशंत: पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिए हो, के द्वारा प्राप्त किए गए चन्दे,

( ब ) किसी वैज्ञानिक अनुसंधान एसोसिएशन के द्वारा प्राप्त किये गये चन्दे,

( स ) पुण्यार्थ उद्देश्यों के हेतु स्थापित किसी संस्था अथवा फण्ड जिसके सम्बन्ध में धारा 10(23C) (iv) (v) के अन्तर्गत अधिसूचना जारी की गई हो, के द्वारा प्राप्त किये गये चन्दे,

( द ) धारा 10(23C) में दर्शाई गई किसी विश्वविद्यालय अथवा अन्य शिक्षण संस्था, अस्पताल के द्वारा प्राप्त किये गए। चन्दे।

(iv) धारा ( 17(2) और (3) के अन्तर्गत किसी कर्मचारी करदाता को प्राप्त अनुलाभ अथवा वेतन के स्थान पर प्राप्त लाभ का मूल्य जो वेतन शीर्षक में कर-योग्य है।

( v) किसी कर्मचारी करदाता को पूर्णतः अपने नौकरी सम्बन्धी आवश्यक कार्यों को पूरा करने हेतु दिया गया अन्य कोई विशेष भत्ता अथवा लाभ जो उपधारा (iii) में शामिल किए गए अनुलाभों के अतिरिक्त हो;

( vi) सेवा स्थल या निवास स्थल पर कर्त्तव्य पालन हेत किये गये निजी व्ययों की पूर्ति हेतु करदाता को प्राप्त कोई भत्ता या जीवन-निर्वाह की बढ़ी हुई लागत की पूर्ति के लिए प्राप्त क्षतिपूरक भत्ताः

( vii) प्रतिनिधि करदाता या लाभ प्राप्तकर्ता द्वारा प्राप्त किसी लाभ या अनुलाभ का मूल्य;

(viii) वह धन जो व्यापार अथवा पेशे के शीर्षक में कर योग्य है।

( ix) धारा 45 के अन्तर्गत कर योग्य पूँजी लाभ।

( x) बीमा व्यवसाय के लाभ जो कि पारस्परिक बीमा कम्पनी या सहकारी समिति के द्वारा चलाया जा रहा हो।

( xi) लॉटरी, वर्ग पहेली, दौड़ (पुड़दौड़ सहित), ताश के खेल या जुए या शर्त की प्रकृति के खेल से जीती गई राशि। ( xii) करदाता द्वारा अपने कर्मचारियों से किसी प्रॉविडेण्ट फण्ड या सुपरएनुएशन फण्ड या कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम,1948 या कर्मचारियों के कल्याण हेत स्थापित अन्य किसी कोष में प्राप्त अंशदान की राशि

( xiii) प्रमुख व्यक्ति बीमा पॉलिसी (Keyman Insurance Policy) के अन्तर्गत पॉलिसी धारक को परिपक्वता पर बोनस  सहित प्राप्त राशि। कीमैन (Keyman) बीमा पॉलिसी का अर्थ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के जीवन पर ली गई जीवन बीमा पॉलिसी से है। दूसरा व्यक्ति प्रथम व्यक्ति का कर्मचारी हो सकता है अथवा ऐसा व्यक्ति हो सकता है जो प्रथम व्यक्ति के व्यवसाय से किसी प्रकार सम्बन्धित हो।

1 यदि ऐसी पॉलिसी नियोक्ता ने अपने कर्मचारी के लिए ली है तो कर्मचारी को प्राप्त राशि धारा 17(3) के अ न्तर्गत वेतन शीर्षक से आय के अन्तर्गत कर-योग्य होगी।

2. यदि ऐसी पॉलिसी ऐसे व्यक्ति के लिए ली गयी है जो व्यापार या पेशा चलाता है तो ऐसी पॉलिसी पर प्राप्त राशि व्यापार तथा पेशे से आय शीर्षक के अन्तर्गत कर-योग्य होगी।

3. यदि पॉलिसी उक्त दो के अतिरिक्त अन्य किसी बीमा योग्य हित (Insurble Interest) के कारण ली गयी है तो पॉलिसी की प्राप्त राशि अन्य साधन से आय शीर्षक में करयोग्य होगी।

( xiv) किसी व्यक्ति या हिन्दू अविभाजित परिवार करदाता को रिश्तेदारों के अलावा अन्य किसी व्यक्ति या व्यक्तियों से वित्तीय वर्ष में बिना प्रतिफल 50,000₹ से अधिक राशि उपहार (नकद या सम्पत्ति के रूप में) में प्राप्त होने पर सम्पूर्ण राशि आय की श्रेणी में आएगी। कम प्रतिफल की दशा में अन्तर की राशि करयोग्य होगी। (विस्तृत अध्ययन हेतु ‘अन्य साधनों से आय’ वाला अध्याय देखें)

( xiva) किसी फर्म या ऐसी कम्पनी जिसमें जनता का सारवान हित नहीं है को 31-5-2010 के पश्चात किसी गत वर्ष में किसी व्यक्ति (person) या व्यक्तियों से बिना प्रतिफल या अपूर्ण प्रतिफल के बदले में प्राप्त कम्पनी के अंश। (विस्तृत अध्ययन हेतु ‘अन्य साधनों से आय’ वाला अध्याय देखें) (xv) सहकारी समिति के द्वारा अपने सदस्यों के साथ किए गए बैंकिंग व्यापार (जिसमें ऋण देने की सुविधायें भी शामिल हैं) का लाभ और आय;

(xvi) धारा 56 ( 2) (vii b) में संदर्भित अंशों के निर्गमन पर उनके उचित बाजार मूल्य से अधिक राशि का प्राप्त प्रतिफल अर्थात् ऐसे अंशों को निर्गमित करने पर प्राप्त प्रतिफल एवं अंशों के उचित बाजार मूल्य का अन्तर (कर निर्धारण वर्ष 2013-14 से प्रभावी)।

( xvii) धारा 56 (2) (ix) में संदर्भित यदि किसी पूँजी सम्पत्ति के हस्तान्तरण हेतु करदाता ने कोई पेशगी रकम प्राप्त की हो जिसे हस्तान्तरण की शर्ते पूरी न होने पर सम्बन्धित पूँजी सम्पत्ति का हस्तान्तरण नहीं हुआ हो एवं प्राप्त पेशगी रकम को जब्त कर लिया गया हो तो जब्त की गई रकम अन्य साधनों से आय मानी जाएगी। (कर निर्धारण वर्ष 2015-16 से प्रभावी)।

आय के मुख्य लक्षण अथवा आय – कर अधिनियम में आय से सम्बन्धित प्रावधान

( main features of income/provisions related to income under income-tax act).

1 वैध व अवैध दोनों आयों पर आय-कर लगता है।

2. यह आवश्यक नहीं कि आय मुद्रा के रूप में ही प्राप्त की गई हो। मुद्रा तुल्य वस्तु या सेवा के रूप में प्राप्ति भी आय मानी जाती है।

3. आय के कर योग्य होने के लिये आय के साधन का होना आवश्यक है।

4. आय एक साथ या किस्तों (Instalment) में प्राप्त हो सकती है अर्थात् यह आवश्यक नहीं है कि आय नियमित रूप से ही प्राप्त हो।

5. खर्चों की क्षतिपूर्ति आय नहीं मानी जाती है। उदाहरणार्थ-वास्तविक यात्रा व्यय की क्षतिपूर्ति आय नहीं मानी जायेगी आय-कर की आधारभूत अवधारणाएँ

6. कोई प्राप्त धन आय है अथवा नहीं, इसका निश्चय प्राप्ति के समय से होता है। यदि प्रथम प्राप्ति के समय वह आय नहीं है परन्तु बाद में आय हुई है तो वह कर योग्य नहीं हो सकती।

7. आय की प्राप्ति बाहरी साधन से होनी चाहिये। यदि किसी संघ को अपने सदस्यों से प्राप्त चन्दा उसके खर्च से आधिक है तो वह आधिक्य कर योग्य आय नहीं माना जायेगा।

8. यदि किसी व्यक्ति की आय पर कानूनी रूप से किसी दायित्व का भार (Charge) लगा दिया जाये तो इतनी राशि उसकी आय नहीं मानी जायेगी।

9. व्यक्तिगत उपहारों को आय नहीं माना जाता।

10. कमायी गयी तथा प्राप्त की गयी दोनों ही आयें कर-योग्य होती हैं।

11. धर्मादा, गऊशाला, आदि के सम्बन्ध में प्राप्तियाँ आय नहीं होती हैं।

12. बचत आय नहीं होती है। पति द्वारा पत्नी को घर खर्च के लिए दी गयी धनराशि अथवा उसके निजी व्ययों के लिए दी गई धनराशि में से यदि पत्नी कुछ बचत कर लेती है तो वह पत्नी की आय नहीं मानी जायेगी।

13. यदि किसी आय के सम्बन्ध में यह विवादास्पद है कि यह आय किसकी है तो यह आय उस व्यक्ति की मानी जायेगी जिसने उसे प्राप्त किया है।

14. आय ऋणात्मक हो सकती है।

आय – कर आय पर लगने वाला कर है न कि प्राप्तियों पर लगने वाला कर

(income-tax is payable on incomes and not on receipts).

आय-कर आय पर लगने वाला कर है, प्राप्तियों पर लगने वाला नहीं।” यह कथन बिल्कुल सत्य है। उदाहरणतया, यदि एक पत्नी को अपने पति से कोई धनराशि घर-खर्च के लिए प्राप्त होती है तो यह पत्नी के हाथ में कर-योग्य नहीं है क्योंकि यह पत्नी की आय नहीं है। इस कथन की निम्नलिखित तरीके से भी व्याख्या की जा सकती है

1 व्यवसाय से प्राप्तियाँ ( Business Receipts)- आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत यह प्रावधान है कि व्यवसाय की कुल बिक्री पर आय-कर नहीं लगेगा बल्कि इस बिक्री की राशि में से माल की लागत एवं अन्य अप्रत्यक्ष खर्चे घटाने के बाद अगर कोई राशि शेष बचती है, तो उस शेष राशि पर ही आय-कर लगाया जा सकता है। अगर लागत एवं खर्चे घटाने के बाद कोई भी राशि शेष नहीं बचती है, तो आय-कर देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उदाहरणतया, यदि एक व्यवसाय की बिक्री 3,00,000 ₹ है तथा माल की लागत एवं अप्रत्यक्ष खर्चे इत्यादि 80,000₹ है तो यहाँ 2,20,000₹ पर ही आय-कर लगाया जा सकता है न कि 3,00,000 ₹पर इसी प्रकार पेशे से होने वाली प्राप्तियों में से भी सर्वप्रथम पेशे से सम्बन्धित खर्चों को घटाया जाएगा और तदुपरान्त यदि कोई राशि शेष बचेगी तो उस पर ही आय-कर लगेगा।

2. पूँजी सम्पत्तियों की बिक्री ( Sale of Capital Assets )-यदि गत वर्ष में कोई पूँजी सम्पत्ति बेची जाती है तो इससे प्राप्त होने वाले सम्पूर्ण प्रतिफल पर आय-कर नहीं लगेगा बल्कि इस प्रतिफल की राशि में पूंजी सम्पत्ति की प्राप्ति लागत एवं हस्तांतरण से सम्बन्धित खर्चों को घटाने के बाद अगर कोई राशि शेष बचती है तो इस प्रकार बची हुई शेष राशि पर ही आय-कर लगेगा। उदाहरणतया, एक भवन 4.00.000₹ में बेचा गया। इसकी प्राप्ति लागत 2,00,000₹ थी एवं मकान बेचने से सम्बन्धित दलाली पर 20,000₹ व्यय हुए हैं, तो यहाँ (4,00,000-2,20,000)= 1,80,000₹ ही आय मानी जायेगी एवं आय-कर की गणना भी 1,80,000 ₹ पर ही की जायेगी न कि 4,00,000 ₹ पर।

3. ब्याज की प्राप्ति ( Receipts of Interest)- यदि करदाता को गत वर्ष में कुछ राशि ब्याज के रूप में प्राप्त हई है तो इस राशि में से ब्याज को संग्रह करने के खर्चे घटाए जाएंगे। यदि जिन प्रतिभूतियों पर ब्याज प्राप्त हुआ है उन्हें खरीदने के लिए ऋण लिया गया था एवं इस ऋण पर ब्याज का भुगतान किया जाता है, तो इस ब्याज की राशि को भी प्राप्त ब्याज की राशि में से घटाया जायेगा एवं इसके बाद अगर कोई राशि शेष बचती है तो उस राशि पर ही आय-कर की गणना की जायेगी। ।

संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि आय-कर प्राप्तियों पर लगने वाला कर नहीं बल्कि इसकी गणना आय के आधार पर की जाती है। आय-कर अधिनियम में एक करदाता की आय ज्ञात करने के लिए विभिन्न प्रावधान बनाए गए हैं। इन प्रावधानों का पालन करने पर ही कर-योग्य आय का निर्धारण सम्भव है।

4. आकस्मिक आय ( Casual Income) आकस्मिक आय से आशय ऐसी प्राप्तियों से है, जो संयोगवश एवं बिना आशा के प्राप्त हुई हों तथा बार-बार न मिलने वाली प्रकृति की हों। लॉटरी की जीत से आय, घुड़दौड़ से आय, वर्ग-पहेली, ताश के खेल, शर्त लगाने से आय, रास्ते में रुपयों से भरा बैग या पर्स मिल जाना, टी०वी० गेम्स एवं प्रतियोगिताओं से जीती गई राशि आकस्मिक आय के प्रमुख उदाहरण हैं।

कर-निर्धारण वर्ष 2002-03 तक आकस्मिक आयें धारा 10(3) के अन्तर्गत एक निश्चित सीमा तक कर-मक्त थीं, परन्त कर-निर्धारण वर्ष 2008-04 से यह कर-मुक्ति समाप्त कर दी गई है। अब आकस्मिक आय पूर्णत: कर योग्य आय है।

आकस्मिक आयों पर 30% की विशिष्ट दर से कर लगता है तथा ऐसी आयों के सम्बन्ध में न तो कोई हानि समायोजित की जा सकती है एवं न ही आकस्मिक आय को प्राप्त करने के सम्बन्ध में किये गये किसी व्यय की कोई कटौती स्वीकृत होती है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि निम्नलिखित आयों को आकस्मिक आय में शामिल नहीं किया जाता है

( अ ) कर-योग्य पूँजी लाभ, अथवा (ब) व्यापार अथवा पेशे से उदय हुई प्राप्तियाँ, अथवा (स) एक कर्मचारी के । पारिश्रमिक में जुड़ने वाली अन्य प्राप्तियाँ; जैसे बोनस, ग्रेच्युटी, अनुलाभ, आदि।

(ii) उपहार आकस्मिक आय नहीं-पारिवारिक स्नेह एवं प्रेम के कारण प्राप्त हुई भेंट या उपहार को आकस्मिक आय नहीं। माना जाता। किसी रिश्तेदार से व्यक्तिगत भेंट (जैसे, जन्म-दिवस या विवाह की वर्षगांठ पर प्राप्त भेंट) बार-बार (प्रति वर्ष) प्राप्त । होने पर भी कर-योग्य नहीं होती है। यह भेंट पारिवारिक प्रेम के कारण दी जाती है। उदाहरणार्थ, एक पिता द्वारा पुत्र को, एक पति । द्वारा पत्नी को तथा एक रिश्तेदार द्वारा दूसरे रिश्तेदार को प्रति वर्ष कोई राशि भेंट के रूप में दिया जाना केवल भेंट माना जाता है।। इसे किसी भी रूप में आय नहीं कहा जा सकता।

(iii) सेवा के लिए प्राप्त उपहार-बख्शीस, टीप आदि आकस्मिक आयें नहीं मानी जाती हैं। बैरा, टैक्सी डाइवर आदि को प्राप्त बख्शीसें आकस्मिक आय नहीं मानी जाती हैं। बैरा, टैक्सी ड्राइवर आदि को प्राप्त बख्शीस व्यापार अथवा पेशे की आय मानी जाती है।

(iv) पेशे के उपहार-डॉक्टर को रोगी से उपहार या वकील को अपने मुवक्किल से प्राप्त उपहार भी आकस्मिक आय नहीं मानी जाती है, क्योंकि ये प्राप्तियाँ पेशे के कारण प्राप्त हुई हैं। ।

(v) सट्टे के व्यापार से आय-सट्टे के व्यापार से आय आकस्मिक आय नहीं मानी जाती, लेकिन जुए से प्राप्त आय आकस्मिक आय की श्रेणी में आएगी।

उद्गम स्थान पर कर की कटौती ( Deduction of Tax at Source)-(i) यदि घुड़दौड़ से जीत की राशि 2,500₹ से अधिक है तो उद्गम स्थान पर निर्धारित दर से कर की कटौती करने के उपरान्त शेष राशि ही विजेता को भुगतान की जायेगी। (ii) यदि लाटरी, वर्ग पहेली, ताश के खेल एवं अन्य खेलों में जीत अथवा जुए या शर्त (दाँव) से जीत की राशि 5,000₹ से अधिक है तो उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने के उपरान्त शेष राशि ही विजेता को भुगतान की जायेगी।

Illustration 6

बताइए कि क्या निम्नलिखित प्राप्तियाँ आकस्मिक आयें हैं

( i) मिस्टर ‘विभव’ को पंच का कार्य करने के लिए 12,000₹ प्राप्त हुए जबकि पारिश्रमिक के लिए कोई प्रावधान नहीं था।

( ii) मिस्टर ‘आयुष’ को पंच का कार्य करने के लिए 10,000 ₹ प्राप्त हुए जिस पर पारिश्रमिक के लिए स्पष्ट तथा निश्चित प्रावधान था।

( iii) न्यायालय के आदेशानुसार ऋणी मिस्टर ‘आयुष’ पर डिक्री को कार्यान्वित करने से रोकने के लिए डिक्रीधारी मिस्टर ‘विभव’ को 1,600₹ ब्याज के प्राप्त हुए।

( iv) मिस्टर ‘एक्स’ मिस्टर ‘वाई’ के यहां सेवा कर रहा है। मिस्टर ‘वाई’ का पुत्र खो गया और मिस्टर ‘एक्स’ ने बिना पारिश्रमिक के प्रावधान के उसे खोज निकाला, परन्तु मिस्टर ‘वाई’ ने उसे 1,000 ₹ इनाम के दिये।

State whether the following receipts are casual incomes :

(i) Mr . Vibhav received ₹ 12,000 for acting as an arbitrator without any stipulation as to remuneration.

(ii) Mr. Ayush received 10,000 for acting as an arbitrator with a clear and definite stipulation for the said remuneration.

(ii i ) Mr . Vibhav a decreeholder received interest of ₹1,600 under an order of court granting stay of execution of the decree on judgment debtor Mr. Ayush. Giy) Mr. x is in the service of Mr. Y. Mr. Y’s son was lost and Mr. X traced him out without any stipulation of reward but Mr. Y gave him a reward of ₹ 1,000.

(i) विभव को हुई 12,000 ₹ प्राप्ति आकस्मिक तथा बार-बार न होने वाली प्रकृति की है क्योंकि पारिश्रमिक देने का कोई  प्रावधान नहीं था, अत: यह आकस्मिक आय है।

(ii) मिस्टर आयुष को पंच के कार्य करने के लिए निश्चित पारिश्रमिक देने का स्पष्ट प्रावधान था और उसने इस पारिश्रमिक __पर कार्य करना स्वीकार कर लिया था, अत: यह प्राप्ति आकस्मिक आय नहीं है। (iii) डिक्रीदार मिस्टर विभव द्वारा 1,600 ₹ ब्याज की प्राप्ति आकस्मिक आय नहीं है। (iv) मिस्टर वाई को ईनाम के रूप में 1,000₹ की प्राप्ति आकस्मिक तथा बारम्बार न होने वाली प्रकृति की है क्योकि  पारिश्रमिक देने का कोई प्रावधान नहीं था, अत: यह आकस्मिक आय है।

सकल कुल आय ( Gross Total Income)- स कल कुल आय से अभिप्राय विभिन्न शीर्षकों की कर योग्य आयों के योग । से है एवं जिसमें से धारा 80 C से लेकर 80 U तक की कटौतियाँ नहीं घटाई गई हैं। यदि किसी व्यक्ति को सभी शीर्षकों से। आय प्राप्त नही होती है तो उसे जिन शीर्षकों से भी आय प्राप्त होगी उन सभी शीर्षकों की आय का योग ही सकल कुल आय होगी। उदाहरण के लिए-यदि किसी व्यक्ति को केवल वेतन शीर्षक से ही आय प्राप्त होती है तो उसके लिए वेतन शीर्षक की आय ही सकल कुल आय होगी।

कुल आय ( Total Income)- सकल कुल आय में से धारा 80C से 80 U तक की कटौतियाँ घटाने के बाद जो राशि शेष बचती है, उसे कुल आय या शुद्ध कर-योग्य आय कहते हैं। आय-कर की रकम की गणना इसी आय पर की जाती है। आय-कर के लिए कुल आय को 10₹ के निकटतम गुणक (in multiple of 10) तक पूर्ण (round-off) किया जायेगा।

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Home » Do You Know » इनकम टैक्स क्या है? What Is Income Tax In Hindi

इनकम टैक्स क्या है? What Is Income Tax In Hindi

आयकर क्या है What Is Income Tax In Hindi  पर यह आर्टिकल आधारित है। इनकम टैक्स एक निश्चित सीमा से ज्यादा आय पर लगता है। आयकर (Income Tax) की निश्चित सीमा केंद्र सरकार तय करती है। इनकम टैक्स की वैल्यू हर देश मे अलग अलग होती है। इस टैक्स को इसके दायरे में आने वाला हर नागरिक भरता है। टैक्स देना हर नागरिक का कर्तव्य और जिम्मेदारी है।

इनकम टैक्स क्या है? What Is Income Tax In Hindi –

अगर आप इनकम टैक्स Income Tax भरते है तो इसके लिए एक बेहतर प्लानिंग होना जरूरी है। इससे आप टैक्स में अच्छी खासी बचत कर सकते है। इनकम टैक्स का अर्थ आयकर होता है। इसका मतलब व्यक्ति की आमदनी पर लगने वाला “कर” होता है। यह “कर” (Tax) निर्धारित होता है जो हर साल देना होता है।

आयरकर या इनकम टैक्स को केंद्र सरकार वसूलती है। भारतीय संविधान में “अनुसूची 7” में केंद्र सरकार को टैक्स वसूलने का अधिकार मिला हुआ है। सरकार नागरिकों को कई तरह की सुविधाएं देती है। किसी भी देश मे एडमिनिस्ट्रेशन, डेवलपमेंट और सिक्योरिटी पर हर वर्ष खर्चा होता है। इस खर्चे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार टैक्स वसूलती है। एक तरह से सरकार नागरिकों को जो सुविधाएं देती है, उसे टैक्स के रूप में वापस वसुल लेती है।

सड़क मार्ग, रेलवे, बिजली, पानी की समुचित व्यवस्था नागरिकों को देने के लिए सरकार इनकम टैक्स को वसूलती है। विभिन उत्पादों और आय पर Tax लगाकर सरकार इन परियोजनाओं में लगने वाले खर्चे को निकालती है।

  • यह पोस्ट भी पढ़िए – शेयर मार्केट क्या है और इसकी जानकारी

इनकम टैक्स क्या है? Income Tax Kya Hai

इनकम टैक्स क्या होता है और इसकी प्रोसेस क्या है? इस पर चर्चा करने से पहले यह जान लो कि टैक्स दो प्रकार का होता है। पहला होता है डायरेक्ट टैक्स जिसे इनकम टैक्स कहते है। दूसरा होता है इनडाइरेक्ट टैक्स जिसमे सर्विस टैक्स और उत्पाद शुल्क आता है।

इनकम टैक्स Income Tax के अंतर्गत आने वाला हर नागरिक इनकम टैक्स रिटर्न (I.T.R.) फ़ाइल करता है। इनकम टैक्स के दायरे में व्यक्तिगत करदाता, कम्पनी, फर्म, संस्था आदि आते है। कृषि का सेक्टर इसके अंतर्गत नही आता है। इनकम टैक्स की रिटर्न फ़ाइल एक फॉर्म की सहायता से की जाती है। यह फॉर्म एक स्टेटमेंट होता है जिसमे सरकार को यह बताना होता है कि आपने सालभर में कितनी कमाई की है। यही ITR कहलाती है।

यह टैक्स आमदनी के हिसाब से अलग अलग वसूला जाता है। एक निश्चित आय या इनकम के बाद ही टैक्स लगता है। आयकर लगने की तय सीमा बदलती रहती है। सरकार अपने वार्षिक बजट में इसमे रियायत भी देती रहती है।

आयकर क्या है? What Is Income Tax In Hindi –

इनकम टैक्स Income Tax के कुछ नियम और शर्ते होती है जिनके अनुसार टैक्स को वसूला जाता है। “इनकम टैक्स कानून 1961 और 1962” में इन नियमो और शर्तों की विस्तृत जानकारी दी गयी है। केंद्र सरकार की संस्था “Central Board Of Direct Taxation (C.B.D.T.)” टैक्स सम्बन्धी दिशा निर्देश जारी करती है। टैक्स रिटर्न फाइल भी “CBDT” ही करवाती है।

इनकम टैक्स भरने के लिए पैन कार्ड नम्बर होना आवश्यक है। इसके साथ ही पेन कार्ड से आपका आधार भी लिंक होना अनिवार्य है। इनकम टैक्स भरने के लिए सरकार की अधिकृत ऑनलाइन वेबसाइट Incometaxindiaefiling.gov.in है। यहां जाकर आपको रेजिस्ट्रेशन करना होता है जहां आपसे बेसिक जानकारी मांगी जाती है।

इनकम टैक्स विभिन्न प्रकार की आय पर लगता है। नौकरी पेशा लोग सालाना वेतन में से इनकम टैक्स को चुकाते है। मकान या किसी भी तरह की सम्पति को बेचने से होनी वाली आय पर भी इनकम टैक्स लगता है। बिज़नेस करने से होने वाली आय भी इनकम टैक्स के दायरे में आती है।

Income Tax Ki Jankari – Income Tax Kya Hai

इनकम टैक्स भरने से पहले इसके दिशा निर्देश अवश्य जान ले। इससे आप इनकम टैक्स में बचत भी कर सकते है। इसके लिए टैक्स प्लानिंग की जरूरत होती है। यह नियमो के दायरे में होनी चाहिए। टैक्स की बेहतर प्लानिंग के लिए आप सीए की भी सलाह ले सकते है।

इनकम टैक्स देना हमारा कर्तव्य और जिम्मेदारी दोनों ही है। कई लोगो को इनकम टैक्स भरने से डर भी लगता है। इसकी मुख्य वजह इनकम टैक्स के बारे में जानकारी का अभाव है। कुछ लोग लालच में आकर टैक्स की चोरी भी करते है। यह गलत है, देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक टैक्स पर निर्भर करती है। सरकार को देश के विकास कार्यो के लिए पेसो की आवश्यकता होती है। यह पैसा इन्ही टैक्स की वजह से आता है।

Note:- इनकम टैक्स क्या है What Is Income Tax In Hindi और “आयकर क्या है” पर यह आर्टिकल Income Tax Information In Hindi आपको कैसा लगा। इस पोस्ट “Income Tax Kya Hai और Income Tax Ki Jankari” को फेसबुक या ट्विटर पर शेयर भी करे।

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Tax System in India Posted by Nitin Kumar on Feb 19, 2012 in Hindi Language

In many countries, this is the time for accounting and filing your tax return and you might be interested on how the taxation system works in India.

Let me show you some of the details of various taxes and taxation system as whole.

The taxation system in India is very well structured. It started in the year of 1860. The taxation system has always reformed over time. Every individual or firm has to file his or its tax return by the end of 31st March.The Department of Revenues (कर विभाग) under the Ministry of Finance (वित्य मंत्रालय – Vitya Mantraley) is responsible for making policies and slabs for various taxes. There are various taxes that are levied by the central government and other by state governments. The taxes could be direct taxes or indirect taxes.

The taxes are levied by the central government (केंद्र सरकार – Kendra Sarkar) of India are:

Direct Taxes

Banking Cash Transaction Tax (बैंक नकद लेन-देन कर) Capital Gains Tax (पूंजी लाभ कर) Corporate Income Tax (निगम आयकर) Fringe Benefit Tax (फ्रिंज बेनिफिट कर) Personal Income Tax (व्यक्तिगत आयकर) Securities Transaction Tax (प्रतिभूति लेनदेन कर)

Indirect Taxes

Customs Duty (सीमा – शुल्क) Excise Duty (उत्पाद शुल्क) Service Tax (सेवा कर)

The taxes levied by the state governments (राज्य सरकार – Rajya Sarkar) are:

Dividend Tax (लाभांश कर) Endowment Tax (दान कर) Estate Tax (संपदा कर) Gift Tax (उपहार कर) Flat Rate Tax or Flat Tax (सपाट दर कर या सपाट कर) Fuel Tax (ईंधन कर) Inheritance Tax (उत्तराधिकार कर) Transfer Tax (स्थानांतरण कर) Payroll Tax (वेतन कर) Poll Tax or Capitation tax (व्यक्ति कर) S. E. T. or Self Employment Tax (एस ई. टी. या स्व-रोजगार कर) Social Security Tax (सामाजिक सुरक्षा कर) Usage Tax (उपयोग कर) Value Added Tax or Sales Tax (वैट या बिक्री कर) Wealth Tax (धन कर)

There are some details which must be observed which includes that the filing of tax return even if the individual doesn’t fall in any tax paying packet.

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About the Author: Nitin Kumar

Nitin Kumar is a native Hindi speaker from New Delhi, India. His education qualification include Masters in Robotics and Bachelors in Mechanical Engineering. Currently, he is working in the Research and Development in Robotics in Germany. He is avid language learner with varied level of proficiency in English, German, Spanish, and Japanese. He wish to learn French one day. His passion for languages motivated him to share his mother tongue, Hindi, and culture and traditions associated with its speakers. He has been working with Transparent Language since 2010 and has written over 430 blogs on various topics on Hindi language and India, its culture and traditions. He is also the Administrator for Hindi Facebook page which has a community of over 330,000 members.

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thanku brother …..

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value added tax or sales tax

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PANKAJ KUMAR:

Sir jee mai koi purchage karta hu aur pfir sale karta hu to vat phir lagega

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Sir Who Will Be Paid This Types Of Vat 1%,4%2% Like Ext So please Give me Details Information

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CHANDAN KUMAR:

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Manish Rathore:

Minimum tex kis par lagu hota hai sir…agar apna business chota hai to..

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जी एस टी(GST) या वस्तु एवं सेवा कर : एक आसान व्याख्या | GST in Hindi

Updated on : Jan 12th, 2022

16 min read

वस्तु एवं सेवा कर या जी एस टी भारत सरकार की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जो  1 जुलाई 2017 से लागू हो रही है | लेकिन जी एस टी क्या है और यह वर्तमान टैक्स संरचना को कैसे सुधार देगा? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत को एक नए टैक्स सिस्टम की आवश्यकता क्यों है? हम इन सवालों के जवाब इस विस्तृत लेख में करेंगे |

जी एस टी (GST) गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स है। भारत में जीएसटी लागू करने का इरादा व्यापार के लिए अनुपालन को आसान बनाना था। इस लेख में जी एस टी (GST),  उसकी प्रमुख अवधारणाओं और जहां यह वर्तमान में है, उसका पूरा अवलोकन दिया गया है।

जी एस टी क्या है?

वस्तु एवं सेवा कर या जी एस टी एक व्यापक, बहु-स्तरीय, गंतव्य-आधारित कर है जो प्रत्येक मूल्य में जोड़ पर लगाया जाएगा। इसे समझने के लिए, हमें इस परिभाषा के तहत शब्दों को समझना होगा। आइए हम ‘बहु-स्तरीय’ शब्द के साथ शुरू करें | कोई भी वस्तु निर्माण से लेकर अंतिम उपभोग तक कई चरणों के माध्यम से गुजरता है | पहला चरण है कच्चे माल की खरीदना | दूसरा चरण उत्पादन या निर्माण होता है | फिर, सामग्रियों के भंडारण या वेर्हाउस में डालने की व्यवस्था है | इसके बाद, उत्पाद रीटैलर या फुटकर विक्रेता के पास आता है | और अंतिम चरण में, रिटेलर आपको या अंतिम उपभोक्ता को अंतिम माल बेचता है | यदि हम विभिन्न चरणों का एक सचित्र विवरण देखें, तो ऐसा दिखेगा:

gst

इन चरणों में जी एस टी लगाया जाएगा, और यह एक बहु-स्तरीय टैक्स होगा। कैसे? हम शीघ्र ही देखेंगे, लेकिन इससे पहले, आइए हम ‘वैल्यू ऐडिशन‘ के बारे में बात करें। मान लें कि निर्माता एक शर्ट बनाना चाहता है | इसके लिए उसे धागा खरीदना होगा। यह धागा निर्माण के बाद एक शर्ट बन जाएगा | तो इसका मतलब है, जब यह एक शर्ट में बुना जाता है, धागे का मूल्य बढ़ जाता है। फिर, निर्माता इसे वेयरहाउसिंग एजेंट को बेचता है जो प्रत्येक शर्ट में लेबल और टैग जोड़ता है | यह मूल्य का एक और संवर्धन हो जाता है | इसके बाद वेयरहाउस उसे रिटेलर को बेचता है जो प्रत्येक शर्ट को अलग से पैकेज करता है और शर्ट के विपणन में निवेश करता है। इस प्रकार निवेश करने से प्रत्येक शर्ट के मूल्य में बढ़ौती होती है |

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इस तरह से प्रत्येक चरण में मौद्रिक मूल्य जोड़ दिया जाता है जो मूल रूप से मूल्य संवर्धन होता है। इस मूल्य संवर्धन पर जी एस टी लगाया जाएगा | परिभाषा में एक और शब्द है जिसके बारे में हमें बात करने की आवश्यकता है – गंतव्य-आधारित। पूरे विनिर्माण श्रृंखला के दौरान होने वाले सभी लेनदेन पर जी एस टी लगाया जाएगा। इससे पहले, जब एक उत्पाद का निर्माण किया जाता था, तो केंद्र ने विनिर्माण पर उत्पाद शुल्क या एक्साइस ड्यूटी लगाता था | अगले चरण में, जब आइटम बेचा जाता है तो राज्य वैट जोड़ता है। फिर बिक्री के अगले स्तर पर एक वैट होगा। तो, पहले टैक्स लेवी का स्वरूप इस तरह था:

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अब, बिक्री के हर स्तर पर जीएसटी लगाया जाएगा। मान लें कि पूरे निर्माण प्रक्रिया राजस्थान में हो रही है और कर्नाटक में अंतिम बिक्री हो रही है। चूंकि जी एस टी खपत के समय लगाया जाता है, इसलिए राजस्थान राज्य को उत्पादन और वेयरहाउसिंग के चरणों में राजस्व मिलेगा | लेकिन जब उत्पाद राजस्थान से बाहर हो जाता है और कर्नाटक में अंतिम उपभोक्ता तक पहुंच जाता है तो राजस्थान को राजस्व नहीं मिलेगा | इसका मतलब यह है कि कर्नाटक अंतिम बिक्री पर राजस्व अर्जित करेगा, क्योंकि यह गंतव्य-आधारित कर है | इसका मतलब यह है कि कर्नाटक अंतिम बिक्री पर राजस्व अर्जित करेगा, क्योंकि यह गंतव्य-आधारित कर है और यह राजस्व बिक्री के अंतिम गंतव्य पर एकत्र किया जाएगा जो कि कर्नाटक है।

वस्तु एवं सेवा कर इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

अब हम जी एस टी समझ गए हैं तो हम देखते हैं कि यह वर्तमान टैक्स संरचना को और अर्थव्यवस्था को बदलने में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका क्यों निभाएगा। वर्तमान में, भारतीय कर संरचना दो करों में विभाजित है – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर | प्रत्यक्ष कर या डायरेक्ट टैक्स वह हैं जिसमें देनदारी किसी और को नहीं दी जा सकती। इसका एक उदाहरण आयकर है, जहां आप आय अर्जित करते हैं और केवल आप उस पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। अप्रत्यक्ष करों के मामले में, टैक्स का भार किसी अन्य व्यक्ति को दिया जा सकता है।  भूतपूर्व कर प्रणाली को ध्यान में रखते हुए, इसका मतलब यह है कि जब दुकानदार अपनी बिक्री पर वैट देता है तो वह अपने ग्राहक पर कर का भार ट्रान्सफर सकता है |उसके अनुसार, भूतपूर्व कर प्रणाली के तहत, ग्राहक आइटम की कीमत और वैट का भुगतान किया करते थे ताकि दुकानदार वैट को एकत्र कर सरकार को भुगतान कर सके। मतलब ग्राहक न केवल उत्पाद की कीमत का भुगतान करता है, बल्कि उसे कर भी देना पड़ता है, और इसलिए, जब वह किसी आइटम को खरीदता है तो उसे अधिक कीमत देनी पड़ती है। यह इसलिए होता है क्योंकि दुकानदार ने जब वह आइटम थोक व्यापारी से खरीदा था तब उसे कर का भुगतान करना पड़ा था। वह राशि वसूल करने के लिए और साथ ही सरकार को भुगतान किए गए वैट की भरपाई के लिए, वह अपने ग्राहक को टैक्स का भार दे देता है जिसकी वजह से ग्राहक को अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ता है।लेन-देन के दौरान दुकानदार अपनी जेब से जो भी भुगतान करता है, उसके लिए रिफंड का दावा करने का कोई दूसरा तरीका नहीं है और इसलिए, उसके पास ग्राहक को टैक्स का भार देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

जी एस टी कैसे काम करेगी?

सख्त निर्देशों और प्रावधानों के बिना एक देशव्यापी कर सुधार काम नहीं कर सकता है। जी एस टी कौंसिल ने इस नए कर व्यवस्था को तीन श्रेणियों में विभाजित करके, इसे लागू करने का एक नियम तैयार किया है। 

जी एस टी में 3 प्रकार के टैक्स हैं :

  सीजीएसटी: जहां केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा 

एसजीएसटी : राज्य में बिक्री के लिए राज्य सरकारों द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा  आईजीएसटी : जहां अंतरराज्यीय बिक्री के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा ज्यादातर मामलों में, नए शासन के तहत कर संरचना निम्नानुसार होगी:

उदाहरण महाराष्ट्र में एक व्यापारी ने 10,000 रुपये में उस राज्य में उपभोक्ता को माल बेच दिया। जीएसटी की दर 18% है जिसमें सीजीएसटी 9% की दर और 9% एसजीएसटी दर शामिल है।ऐसे मामलों में डीलर 1800 रूपए जमा करता है और इस राशि में 900 रुपए केंद्र सरकार के पास जाएंगे और 900 रुपए महाराष्ट्र सरकार के पास जाएंगे। इसलिए अब डीलर को आईजीएसटी के रूप में 1800 रूपये चार्ज करना होगा। अब सीजीएसटी और एसजीएसटी को भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी।

भारत और आम आदमी की मदद जी एस टी कैसे करेगा?

जीएसटी इनपुट टैक्स क्रेडिट मूल्य संयोजन श्रृंखला के एक सहज प्रवाह पर आधारित है।विनिर्माण प्रक्रिया के हर चरण में, व्यवसायों को पिछले लेनदेन में पहले से ही चुकाए गए टैक्स का दावा करने का विकल्प होगा। इस प्रक्रिया को समझना व्यवसायों के लिए महत्वपूर्ण है | यहां विस्तृत विवरण दिया गया है।

इसे समझने के लिए, पहले समझ लें कि इनपुट टैक्स क्रेडिट क्या है।यह वह क्रेडिट है जो निर्माता को उत्पाद के निर्माण में इस्तेमाल किए गए इनपुट पर दिया गया कर के लिए प्राप्त होता है।इसके बाद शेष राशि सरकार को जमा करनी होगी | हम इसे एक काल्पनिक संख्यात्मक उदाहरण के साथ समझते हैं। एक शर्ट निर्माता कच्चे माल खरीदने के लिए 100 रुपये का भुगतान करता है। यदि करों की दर 10% पर निर्धारित है, और इसमें कोई लाभ या नुकसान नहीं है, तो उसे कर के रूप में 10 रूपये का भुगतान करना होगा। तो, शर्ट की अंतिम लागत अब (100 + 10 =) 100 रुपये हो जाती है | अगले चरण में, थोक व्यापारी 110 रुपये में निर्माता से शर्ट खरीदता है, और उस पर लेबल जोड़ता है। जब वह लेबल जोड़ रहा है, वह मूल्य जोड़ रहा है। इसलिए, उसकी लागत 40 रुपए (अनुमानित) से बढ़ जाती है | इसके ऊपर, उसे 10% कर का भुगतान करना पड़ता है, और अंतिम लागत इसलिए हो जाती है (110 + 40 =) 150 + 10% कर = 165 रूपये | 

अब, फुटकर विक्रेता या रिटेलर थोक व्यापारी से शर्ट खरीदने के लिए 165 रुपये का भुगतान करता है क्योंकि कर दायित्व उसके पास आया था। उसे शर्ट पैकेज करना पड़ता है, और जब वह ऐसा करता है, तो वह फिर से मूल्य जोड़ रहा है। इस बार, मान लें कि उनका मूल्य अतिरिक्त 30 रूपये है। अब जब वह शर्ट बेचता है, तो वह इस मूल्य को अंतिम लागत (और वैट जिसे वह सरकार को देना होगा) में जोड़ता है | इसके साथ ही उसे सरकार को देय वैट जोड़ना होगा | तो, शर्ट की लागत 214.5 रुपए हो जाती है | इस का एक ब्रेक अप देखते हैं: लागत = रु 165 + मान जोड़ = रु 30 + 10% कर = रु 195 + 19.5 =  214.5 रुपये इसलिए, ग्राहक एक शर्ट के लिए 214.5 रुपये का भुगतान करता है, जिसकी कीमत मूल रूप से केवल 170 रुपये (110 + 40 + 30 रुपये) थी। 

ऐसा होने के लिए, कर दायित्व हर बिक्री पर पारित किया गया था और अंतिम दायित्व ग्राहक के पास आ गया। इसे करों का व्यापक प्रभाव कहा जाता है जहां टैक्स के ऊपर टैक्स का भुगतान किया जाता है और आइटम का मूल्य हर बार बढ़ता रहता है।

जीएसटी के तहत, इनपुट टैक्स क्रेडिट भुगतान किए गए कर के लिए क्रेडिट का दावा करने का एक तरीका है। इसमें, जिस व्यक्ति ने कर चुकाया है, वह व्यक्ति अपने करों को जमा करते समय,  भुगतान किये हुए कर के क्रेडिट का दावा कर सकता है। हमारे उदाहरण में, जब थोक व्यापारी उत्पादक से खरीदता है, तो वह अपनी लागत क़ीमत पर 10% कर देता है क्योंकि उसके पास एक देय राशि है | फिर उन्होंने 100 रुपये की लागत मूल्य में 40 रुपये का मूल्य जोड़ा और इससे उनकी आइटम क़ी क़ीमत  140 रुपये हो गई। अब उसे इस कीमत का 10% सरकार को  कर के रूप में देना होगा। लेकिन उन्होंने पहले ही निर्माता को एक कर का भुगतान किया है। इसलिए, इस बार वह क्या करता है, सरकार को टैक्स के रूप में (140% के 10% = 14) का भुगतान करने की बजाय वह पहले से भुगतान की गई राशि को घटा देता है | इसलिए उसकी 14 रुपए की नई  देय राशि से वह 10 रुपए कटौती करता है और सरकार को केवल 4 रुपए का भुगतान करता है | तो 10 रुपए उसका इनपुट क्रेडिट हो जाता है। जब वह सरकार को 4 रुपये का भुगतान करता है, तो वह रिटेलर को 14 रुपए का देय राशि ट्रांसफर करता है, ।अगले चरण में, रिटेलर ने अपने लागत मूल्य में 30 रुपये का मूल्य जोड़ा और सरकार को इस पर 10% कर का भुगतान किया। जब वह मूल्य जोड़ता है, तो उसकी कीमत 170 रुपये हो जाती है | अब, अगर उसे उस पर 10% कर देना पड़ता है, तो वह वह अपने ग्राहक को टैक्स का भार दे देता है। लेकिन रिटेलर के पास इनपुट क्रेडिट है क्योंकि उसने थोक व्यापारी को टैक्स के रूप में 14 रुपये में भुगतान किया है। इसलिए, अब वह अपनी कर देय राशि को  (170% = 170) = 17 रूपए से 14 रुपए तक  कम कर देता है और उसे सरकार को केवल 3 रुपए का भुगतान करना पड़ता है।और इसलिए, वह अब ग्राहक को यह शर्ट (140 + 30 + 17 =) 187 रुपये में बेच सकता है।

अंत में, हर बार जब कोई व्यक्ति इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने में सक्षम होता है, तो उसके लिए बिक्री मूल्य कम हो जाता है | और उसके उत्पाद पर कम कर दायित्व के कारण  लागत मूल्य भी कम हो जाता है। शर्ट का अंतिम मूल्य भी 214.5 रुपये से 187 रुपये कम हो गया, इस प्रकार अंतिम ग्राहक पर कर का बोझ कम हो गया। इसलिए अनिवार्य रूप से, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स में दो तरह से लाभ होता है। पहला, यह करों के व्यापक प्रभाव को कम करेगा और दूसरा, इनपुट कर क्रेडिट की अनुमति के द्वारा, यह कर के बोझ को कम करेगा और, उम्मीद है, कीमतें भी कम हो जाएंगी |

क्या आपको जीएसटी पंजीकरण की आवश्यकता है?

gst

जीएसटी सभी व्यवसायों पर लागू होगा |   व्यवसायों में शामिल हैं – व्यापार, वाणिज्य, निर्माण, पेशे, व्यवसाय या किसी अन्य समान कार्यवाही, इसकी पसार या प्रायिकता के बावजूद। इसमें व्यवसाय शुरू करने या बंद करने के लिए माल / सेवाओं की आपूर्ति भी शामिल है। सेवाओं का मतलब वस्तु के अलावा कुछ भी है | यह संभावना है कि सेवाएं और सामान एक अलग जीएसटी दर होगी। 

जीएसटी सभी व्यक्तियों पर लागू होगा | व्यक्तियों में शामिल हैं – व्यक्तियों, एचयूएफ (हिंदू अविभाजित परिवार) , कंपनी, फर्म, एलएलपी (सीमित दायित्व भागीदारी), एओपी, सहकारी सोसायटी, सोसाइटी, ट्रस्ट आदि। हालांकि, जीएसटी कृषक विशेषज्ञों पर लागू नहीं होगी। कृषि में फूलों की खेती, बागवानी, रेशम उत्पादन, फसलों, घास या बगीचे के उत्पादन शामिल हैं। लेकिन डेयरी फार्मिंग (दूध का व्यापार), मुर्गी पालन, स्टॉक प्रजनन (पशु-अभिजननक्षेत्र), फल या संगमरमर या पौधों के पालन में शामिल नहीं है। जीएसटी पंजीकरण की आवश्यकता कब होगी जीएसटी पंजीकरण प्राप्त करने के लिए पैन अनिवार्य है। हालांकि, अनिवासी व्यक्ति सरकार द्वारा अनिवार्य अन्य दस्तावेजों के आधार पर जीएसटी पंजीकरण प्राप्त कर सकता है एक पंजीकरण प्रत्येक राज्य के लिए आवश्यक होगा। करदाता राज्य में अपने अलग-अलग बिजनेस वर्टिकल (व्यापार ऊर्ध्वाधर) के लिए अलग-अलग पंजीयन प्राप्त कर सकते हैं। 

निम्नलिखित मामलों में जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य है – कारोबार आधार वित्तीय वर्ष में आपके कारोबार की सीमा 20 लाख रुपए (कुछ मामलों में रु. 40 लाख) से अधिक होने पर जीएसटी एकत्र करना और भुगतान करना होगा। [कुछ विशेष श्रेणी राज्यों के लिए सीमा 10 लाख है] यह सीमा जीएसटी के भुगतान के लिए लागू होती है। “कुल कारोबार” का मतलब सभी कर योग्य आपूर्ति, मुक्ति की आपूर्ति, वस्तुओं के निर्यात और / या सेवाओं और एक समान पैन वाले व्यक्ति की अंतर-राज्य की आपूर्ति को सभी भारत के आधार पर गणना करने और करों को शामिल करने के लिए (यदि कोई हो) सीजीएसटी अधिनियम, एसजीएसटी अधिनियम और आईजीएसटी अधिनियम के तहत देय होगा। अन्य मामले [कारोबार के बावजूद जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य है]

  • माल / सेवाओं की अंतर-राज्य आपूर्ति करने वाले
  • कोई भी व्यक्ति जो एक कर योग्य क्षेत्र में माल / सेवाओं की आपूर्ति करता है और इसमें व्यवसाय का कोई निश्चित स्थान नहीं है – जिसे आकस्मिक कर योग्य व्यक्तियों के रूप में संदर्भित किया जाता है | ऐसे व्यक्ति को जारी किए गए पंजीकरण 90 दिनों की अवधि के लिए वैध है।
  • कोई भी व्यक्ति जो माल / सेवाओं की आपूर्ति करता है और भारत में व्यापार का कोई निश्चित स्थान नहीं है – जिसे अनिवासी कर योग्य व्यक्ति कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति को जारी किए गए पंजीकरण 90 दिनों की अवधि के लिए वैध है।
  • रिवर्स प्रभारी तंत्र के तहत कर का भुगतान करने वाले व्यक्ति को | रिवर्स चार्ज तंत्र का मतलब है कि जहां सामान / सेवाओं को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को आपूर्तिकर्ता के बजाय कर का भुगतान करना पड़ता है।
  • एजेंट या किसी अन्य व्यक्ति जो अन्य पंजीकृत कर योग्य व्यक्तियों की ओर से आपूर्ति करता है
  • वितरक या इनपुट सेवा वितरक | इस व्यक्ति के पास आपूर्तिकर्ता के कार्यालय के रूप में एक ही पैन है। यह व्यक्ति आपूर्तिकर्ता के एक अधिकारी है, वह सीजीएसटी / एसजीएसटी / आईजीएसटी के ऋण को वितरित करने के लिए आपूर्ति और टैक्स चालान को प्राप्त करता है।
  • ई-कॉमर्स ऑपरेटर (इ-व्यवसाय)
  • ई-कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से आपूर्ति करने वाले व्यक्ति (ब्रांडेड सेवाएं को छोड़कर)
  • एग्रीगेटर जो अपने ब्रांड नाम के तहत सेवाएं प्रदान करता है
  • भारत में एक व्यक्ति को भारत से बाहर एक जगह से ऑनलाइन सूचना और डेटाबेस पहुंच या पुनर्प्राप्ति सेवाओं की आपूर्ति करने वाले व्यक्ति (एक पंजीकृत कर योग्य व्यक्ति के अलावा)

जीएसटी के लिए पंजीकरण कैसे करें

वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के लिए पंजीकरण एक काफी आसान प्रक्रिया है। नीचे इन्फोग्राफिक में जीएसटी के लिए पंजीकरण करने की प्रक्रिया की बारे में बताया गया है |

gst

जीएसटी पंजीकरण करने के लिए आवश्यक दस्तावेज हैं:

  • करदाता का संविधान
  • व्यापार स्थान के सबूत
  • बैंक खाता विवरण
  • प्राधिकरण फार्म

जीएसटी के तहत पंजीकृत नहीं होने के लिए दंड

कोई भी अपराधी जो टैक्स का भुगतान नहीं कर रहा है या कम भुगतान करता है, उसे देय कर राशि का 10%  (जिसमें से 10000 न्यूनतम राशि है) जुर्माना देना होगा | जहां एक संकल्पित करवंचन देखा गया  वहां अपराधी को देय कर राशि का 100% जुर्माना देना होगा | हालांकि, अन्य वास्तविक त्रुटियों के लिए, जुर्माना कर का 10% है।

GST के तहत नए अनुपालन क्या हैं?

जीएसटी रिटर्न के ऑनलाइन फाइलिंग के अलावा, जीएसटी शासन ने इसके साथ कई नई प्रणालियों को पेश किया है।

ई-वे (e-Way) बिल

जीएसटी ने “ई-वे बिल” की शुरुआत के द्वारा एक तरह से केंद्रीकृत प्रणाली शुरू की।  इस प्रणाली को 1 अप्रैल 2018 को सामान की अंतर-राज्य आवाजाही के लिए और 15 अप्रैल 2018 को सामान की अंतर-राज्य आवाजाही के लिए शुरू किया गया था।

ई-वे बिल प्रणाली के तहत, निर्माता, व्यापारी और ट्रांसपोर्टर्स प्लेस ऑफ़ ओरिजिन से डेस्टिनेशन तक ले जाने वाले सामान के लिए ई-वे बिल जेनरेट कर सकते हैं जो कि एक आम पोर्टल पर आसानी से उपलब्ध हैं। कर अधिकारियों को भी इससे लाभ होता है क्योंकि इस प्रणाली से चेकपोस्ट पर कम समय लगता है और कर चोरी को कम करने में मदद मिलती है।

ई- इनवॉइसिंग (e-Invoicing)

ई-इनवॉइसिंग प्रणाली को 1 अक्टूबर 2020 से उन व्यवसायों के लिए लागू किया गया था, जिनका किसी भी पिछले वित्तीय वर्ष (2017-18 से) में 500 करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक कुल कारोबार है। इसके अलावा, 1 जनवरी 2021 से, इस प्रणाली को उन लोगों के लिए बढ़ा दिया गया, जिनका वार्षिक कुल कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक है। वर्तमान में, इसे 1 अप्रैल 2021 से 50 करोड़ रुपये से लेकर 100 करोड़ रुपये तक के वार्षिक कुल कारोबार वाले लोगों के लिए बढ़ाया गया है।

इन व्यवसायों को GSTN के चालान रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर अपलोड करके प्रत्येक बिज़नेस-to-बिज़नेस चालान के लिए एक यूनिक इनवॉइस रिफरेन्स नंबर प्राप्त करनी चाहिए। पोर्टल चालान की सत्यता और वास्तविकता की पुष्टि करता है। इसके बाद, यह एक क्यू आर कोड के साथ डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग करने को अधिकृत करता है।

ई-इनवॉइसिंग इनवॉइस की इंटरऑपरेबिलिटी की अनुमति देता है और डाटा एंट्री एरर्स को कम करने में मदद करता है। इसे आईआरपी से सीधे जीएसटी पोर्टल और ई-वे बिल पोर्टल पर चालान की जानकारी ट्रांसफर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसलिए, यह GSTR-1 दाखिल करते समय मैन्युअल डाटा एंट्री की आवश्यकता को समाप्त कर देगा और ई-वे बिल के निर्माण में भी मदद करेगा।

आगे पढ़ने और समझने के लिए, हमारे लेख देखें:

Gst.gov.in के बारे में जानें

जीएसटी कौंसिल

नियमों के लिए EWay बिल गाइड

GSTN पर लॉगिन करने के लिए गाइड

जी एस टी रजिस्ट्रेशन

भारत में बेस्ट जीएसटी सॉफ्टवेयर

जी एस टी रिटर्न

नया जी एस टी रिटर्न

ई-इनवॉइसिंग

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I preach the words, “Learning never exhausts the mind.” An aspiring CA and a passionate content writer having 4+ years of hands-on experience in deciphering jargon in Indian GST, Income Tax, off late also into the much larger Indian finance ecosystem, I love curating content in various forms to the interest of tax professionals, and enterprises, both big and small. While not writing, you can catch me singing Shāstriya Sangeetha and tuning my violin ;). Read more

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