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महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा का स्मरण होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोङा। महात्मा गाँधी महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक थे, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी से संबंधित तथ्य:

पूरा नाम – मोहनदास करमचन्द गाँधी अन्य नाम – बापू, महात्मा, राष्ट्र-पिता जन्म-तिथि व स्थान – 2 अक्टूबर 1869, पोरबन्दर (गुजरात) माता-पिता का नाम – पुतलीबाई, करमचंद गाँधी पत्नी – कस्तूरबा गाँधी शिक्षा – 1887 मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की,

  • विद्यालय – बंबई यूनिवर्सिटी, सामलदास कॉलेज
  • इंग्लैण्ड यात्रा – 1888-91, बैरिस्टर की पढाई, लंदन युनिवर्सिटी

बच्चों के नाम (संतान) – हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास प्रसिद्धि का कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस स्मारक – राजघाट, बिरला हाऊस (दिल्ली) मृत्यु – 30 जनवरी 1948, नई दिल्ली मृत्यु का कारण – हत्या

महात्मा गाँधी की जीवनी (जीवन-परिचय)

महात्मा गाँधी (2 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948)

जन्म, जन्म-स्थान व प्रारम्भिक जीवन

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर, गुजरात में करमचंद गाँधी के घर पर हुआ था। यह स्थान (पोरबंदर) पश्चिमी भारत में गुजरात राज्य का एक तटीय शहर है। ये अपनी माता पुतलीबाई के अन्तिम संतान थे, जो करमचंद गाँधी की चौथी पत्नी थी। करमचंद गाँधी की पहली तीन पत्नियों की मृत्यु प्रसव के दौरान हो गई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान इनके पिता पहले पोरबंदर और बाद में क्रमशः राजकोट व बांकानेर के दीवान रहें।

महात्मा गाँधी जी का असली नाम मोहनदास था और इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी। इसी कारण इनका नाम पूरा नाम मोहन दास करमचंद गाँधी पङा। ये अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे। इनकी माता पुतलीबाई, बहुत ही धार्मिक महिला थी, जिस का गाँधी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पङा। जिसे उन्होंने स्वंय पुणे की यरवदा जेल में अपने मित्र और सचिव महादेव देसाई को कहा था, ‘‘तुम्हें मेरे अंदर जो भी शुद्धता दिखाई देती हो वह मैंने अपने पिता से नहीं, अपनी माता से पाई है…उन्होंने मेरे मन पर जो एकमात्र प्रभाव छोड़ा वह साधुता का प्रभाव था।’’

गाँधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पङा। यही कारण है कि वे सत्य और अहिंसा में बहुत विश्वास करते थे और उनका अनुसरण अपने पूरे जीवन काल में किया।

गाँधी जी का विवाह (शादी)/ गाँधी जी का वैवाहिक जीवन

गाँधी जी की शादी सन् 1883, मई में 13 वर्ष की आयु पूरी करते ही 14 साल की कस्तूरबा माखन जी से हुई। गाँधी जी ने इनका नाम छोटा करके कस्तूरबा रख दिया और बाद में लोग उन्हें प्यार से बा कहने लगे। कस्तूरबा गाँधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गाँधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। शादी के बाद गाँधीजी ने उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया। ये एक आदर्श पत्नी थी और गाँधी जी के हर कार्य में दृढता से उनके साथ खङी रही। इन्होंने गाँधी जी के सभी कार्यों में उनका साथ दिया।

1885 में गाँधी जी जब 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया। लेकिन वह कुछ ही समय जीवित रहीं। इसी वर्ष इनके पिताजी करमचंद गाँधी की भी मृत्यु हो गयी। गाँधी जी के 4 सन्तानें थी और सभी पुत्र थे:- हरीलाल गाँधी (1888), मणिलाल गाँधी (1892), रामदास गाँधी (1897) और देवदास गाँधी (1900)।

गाँधी जी की शिक्षा- दीक्षा

प्रारम्भिक शिक्षा

गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। इनके पिता की बदली राजकोट होने के कारण गाँधी जी की आगे की शिक्षा राजकोट में हुई। गाँधी जी अपने विद्यार्थी जीवन में सर्वश्रेष्ठ स्तर के विद्यार्थी नहीं थे। इनकी पढाई में कोई विशेष रुचि नहीं थी। हालांकि गाँधी जी एक एक औसत दर्जें के विद्यार्थी रहे, किन्तु किसी किसी प्रतियोगिता और खेल में उन्होंने पुरुस्कार और छात्रवृतियॉ भी जीती। 21 जनवरी 1879 में राजकोट के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने अंकगणित, इतिहास और गुजराती भाषा का अध्यन किया।

साल 1887 में जैसे-तैसे उन्होंने राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। घर से दूर रहने के कारण वे पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाये और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट आये। यदि आगे की पढ़ाई का निर्णय गाँधी जी पर छोड़ा जाता तो वह डॉक्टरी की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना चाहते थे, किन्तु उन्हें घर से इसकी अनुमति नहीं मिली।

इंग्लैण्ड में उच्च स्तर की पढाई

गाँधी जी के पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार के एक करीबी मित्र भावजी दवे ने उन्हें वकालत करने की सलाह दी और कहा कि बैरिस्टर की पढ़ाई करने के बाद उन्हें अपने पिता का उत्तराधिकारी होने के कारण उनका दीवानी का पद मिल जायेगा।

उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के कुछ सदस्यों ने उनके विदेश जाने के फैसले का विरोध किया, किन्तु गाँधी जी ने अपनी माँ से वादा किया कि वे शाकाहारी भोजन करेगें। इस प्रकार अपनी माँ को आश्वस्त करने के बाद उन्हें इंग्लैण्ड जाने की आज्ञा मिली।

4 सितम्बर 1888 को गाँधी जी इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुये। यहाँ आने के बाद इन्होंने पढ़ाई को गम्भीरता से लिया और मन लगाकर अध्ययन करने लगे। हालांकि, इंग्लैण्ड में गाँधी जी का शुरुआती जीवन परेशानियों से भरा हुआ था। उन्हें अपने खान-पान और पहनावे के कारण कई बार शर्मिदा भी होना पड़ा। किन्तु उन्होंने हर एक परिस्थिति में अपनी माँ को दिये वचन का पालन किया।

बाद में इन्होंने लंदन शाकाहारी समाज (लंदन वेजीटेरियन सोसायटी) की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये। यहाँ इनकी मुलाकात थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ लोगों से हुई जिन्होंने गाँधी जी को भगवत् गीता पढ़ने को दी। गाँधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और उसकी पत्रिका में लेख लिखने लगे। यहाँ तीन वर्षों (1888-1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में ये भारत लौट आये।

गाँधी जी का 1891-1893 तक का समय

1891 में जब गाँधी जी भारत लौटकर आये तो उन्हें अपनी माँ की मृत्यु का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि वकालत एक स्थिर व्यवसायी जीवन का आधार नहीं है। गाँधी जी ने बंबई जाकर वकालत का अभ्यास किया किन्तु स्वंय को स्थापित नहीं कर पाये और वापस राजकोट आ गये। यहाँ इन्होंने लागों की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरु कर दिया। एक ब्रिटिश अधिकारी को नाराज कर देने के कारण इनका यह काम भी बन्द हो गया।

गाँधी जी की अफ्रीका यात्रा

एक वर्ष के कानून के असफल अभ्यास के बाद, गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के व्यापारी दादा अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 1883 में गाँधी जी ने अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान किया। इस यात्रा और वहाँ के अनुभवों ने गाँधी जी के जीवन को एक महत्वपूर्ण मोङ दिया। इस यात्रा के दौरान गाँधी जी को भारतियों के साथ हो रहें भेदभाव को देखा।

ऐसी कुछ घटनाऐं उनके साथ घटित हुई जिससे उन्हें भारतियों और अश्वेतों के साथ हो रहे अत्याचारों का अनुभव हुआ जैसे: 31 मई 1883 को प्रिटोरिया जाने के दौरान प्रथम श्रेणी की टिकट के बावजूद उन्हें एक श्वेत अधिकारी ने गाडी से धक्का दे दिया और उन्होंने ठिठुरते हुये रात बिताई क्योंकि वे किसी से पुनः अपमानित होने के डर से कुछ पूछ नहीं सकते थे, एक अन्य घटना में एक घोङा चालक ने उन्हें पीटा क्योंकि उन्होंने एक श्वेत अंग्रेज को सीट देकर पायदान पर बैठकर यात्रा करने से इंकार कर दिया था, यूरोपियों के लिये सुरक्षित होटलों पर जाने से रोक आदि कुछ ऐसी घटनाऐं थी जिन्होंने गाँधी जी के जीवन का रुख ही बदल दिया।

नटाल (अफ्रीका) में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिये यह अपमान आम बात थी और गाँधी जी के लिये एक नया अनुभव। यहीं से गाँधी जी के जीवन में एक नये अध्याय की शुरुआत हुई। गाँधी जी ने सोचा कि यहाँ से भारत वापस लौटना कायरता होगी अतः वहीं रह कर इस अन्याय का विरोध करने का निश्चय किया। इस संकल्प के बाद वे अगले 20 वर्षों (1893-1894) तक दक्षिण अफ्रीका में ही रहें और भारतियों के अधिकारों और सम्मान के लिये संघर्ष किया।

दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष का प्रथम चरण (1884-1904) –

  • संघर्ष के इस प्रथम चरण के दौरान गाँधी जी की राजनैतिक गतिविधियाँ नरम रही। इस दौरान उन्होंने केवल सरकार को अपनी समस्याओं और कार्यों से संबंधित याचिकाएँ भेजते थे।
  • भारतियों को एक सूत्र में बाँधने के लिये 22 अगस्त 1894 में “नेटाल भारतीय काग्रेंस का” गठन किया।
  • “इण्डियन ओपिनियन” नामक अखबार के प्रकाशन की प्रक्रिया शुरु की।
  • इस संघर्ष को व्यापारियों और वकीलों के आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

संघर्ष का दूसरा चरण –

  • अफ्रीका में संघर्ष के दूसरे चरण की शुरुआत 1906 में हुई।
  • इस समय उपनिवेशों की राजनीतिक स्थिति में परिवर्तन हो चुका था, तो गाँधी जी ने नये स्तर से आन्दोलन को प्रारम्भ किया। यहीं से मूल गाँधीवादी प्राणाली की शुरुआत मानी जाती है।
  • 30 मई 1910 में जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।
  • काग्रेंस के कार्यकर्ताओं को अहिंसा और सत्याग्रह का प्रशिक्षण।

महात्मा गाँधी का भारत आगमन

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी भारत लौट आये, और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले (गाँधी जी के राजनीतिक गुरु) की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका

चम्पारण और खेडा आन्दोलन (1917-1918)

साल 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले किसानों के हक के लिये गाँधी जी ने आन्दोलन किया। यह गाँधी जी का भारत में प्रथम सक्रिय आन्दोलन था, जिसनें गाँधी जी को पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। इस आन्दोलन में उन्होंने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और इस प्रयोग में प्रत्याशित सफलता भी अर्जित की।

19 वीं शताब्दी के अन्त में गुजरात के खेड़ा जिले के किसान अकाल पड़ने के कारण असहाय हो गये और उस समय उपभोग की वस्तुओं के भी दाम बहुत बढ़ गये थे। ऐसे में किसान करों का भुगतान करने में बिल्कुल असमर्थ थे। इस मामले को गाँधी जी ने अपने हाथ में लिया और सर्वेंट ऑफ इण्डिया सोसायटी के सदस्यों के साथ पूरी जाँच-पड़ताल के बाद अंग्रेज सरकार से बात की और कहा कि जो किसान लगान देने की स्थिति में है वे स्वतः ही दे देंगे बशर्तें सरकार गरीब किसानों का लगान माफ कर दें। ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों का लगान माफ कर दिया।

1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरों के हक के लिये भूख हङताल

1918 में अहमदाबाद के मिल मालिक कीमत बढने के बाद भी 1917 से दिये जाने वाले बोनस को कम बंद कर करना चाहते थे। मजदूरों ने माँग की बोनस के स्थान पर मजदूरी में 35% की वृद्धि की जाये, जबकि मिल मालिक 20% से अधिक वृद्धि करना नहीं चाहते थे। गाँधी जी ने इस मामले को सौंपने की माँग की। किन्तु मिल मालिकों ने वादा खिलाफी करते हुये 20% वृद्धि की। जिसके खिलाफ गाँधी जी नें पहली बार भूख हङताल की। यह इस हङताल की सबसे खास बात थी। भूख हङताल के कारण मिल मालिकों को मजदूरों की माँग माननी पङी।

इन आन्दोलनों ने गँधी जी को जनप्रिय नेता तथा भारतीय राजनीति के प्रमुख स्तम्भ के रुप में स्थापित कर दिया।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924)

तुर्की के खलीफा के पद की दोबारा स्थापना करने के लिये देश भर में मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। यह एक राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था, जो अंग्रेजों पर दबाव डालने के लिये चलाया गया था। गाँधी जी ने इस आन्दोलन का समर्थन किया। इस आन्दोलन का समर्थन करने का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन में मुसलिमों का सहयोग प्राप्त करना था।

असहयोग आन्दोलन (1919-1920)

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान प्रेस पर लगे प्रतिबंधों और बिना जाँच के गिरफ्तारी वे आदेश को सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता वाली समिति ने इन कडे नियमों को जारी रखा। जिसे रोलेट एक्ट के नाम से जाना गया। जिसका पूरे भारत में व्यापक स्तर पर विरोध हुआ। उस विरोधी आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन का नाम दिया गया। असहयोग आन्दोलन के जन्म का मुख्य कारण रोलट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (1919) था।

गाँघी जी अध्यक्षता में 30 मार्च 1919 और 6 अप्रैल 1919 को देश व्यापी हङताल का आयोजन किया गया। चारों तरफ देखते ही देखते सभी सरकारी कार्य ठप्प हो गये। अंग्रेज अधिकारी इस असहयोग के हथियार के आगे बेवस हो गये। 1920 में गाँधी जी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और इस आन्दोलन में भाग लेने के लिये भारतीय जनमानस को प्रेरित किया। गाँधी जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रत्येक भारतीय ने इसमें बढ-चढ कर भाग लिया।

इस आन्दोलन को और अधिक प्रभावी करने के लिये और हिन्दू- मुसलिम एकता को मजबूती देने के उद्देश्य से गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को खिलाफत आन्दोलन से जोङ दिया।

सरकारी आकडों के अनुसार साल 1921 में 396 हडतालें आयोजित की गयी जिसमें 6 लाख श्रमिकों ने भाग लिया था और इस दौरान लगभग 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ था। विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कालेजों में जाना बन्द कर दिया, वकीलों ने वकालात करने से मना कर दिया और श्रमिक वर्ग हङताल पर चला गया। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अपने अपने ढंग से गाँधी जी के इस आन्दोलन को सफल बनाने में सहयोग किया। 1857 की क्रान्ति के बाद यह सबसे बङा आन्दोलन था जिसने भारत में ब्रिटिश शासन के अस्तित्व को खतरें में डाल दिया था।

चौरी-चौरा काण्ड (1922)

1922 तक आते आते यह देश का सबसे बङा आन्दोलन बन गया था। एक हङताल की शान्तिपूर्ण विरोध रैली के दौरान यह अचानक हिंसात्मक रुप में परिणित हो गया। विरोध रैली के दौरान पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करके जेल में डालने से भीङ आक्रोशित हो गयी। और किसानों के एक समूह ने फरवरी 1922 में चौरी-चौरा नामक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना में कई निहत्थे पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गयी।

इस घटना से गाँधी जी बहुत आहत हुये और उन्होंने इस आन्दोलन को वापस ले लिया। गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”

सविनय अवज्ञा आन्दोलन (12 मार्च 1930)

इस आनदोलन का उद्देश्य पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना था। गाँधी जी और अन्य अग्रणी नेताओं को अंग्रेजों के इरादों पर शक होने लगा था कि वे अपनी औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की घोषणा को पूरी करेगें भी या नहीं। गाँधी जी ने अपनी इसी माँग का दबाव अंग्रेजी सरकार पर डालने के लिये 6 अप्रैल 1930 को एक और आन्दोलन का नेतृत्व किया जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।

इसे दांङी मार्च या नमक कानून भी कहा जाता है। यह दांङी मार्च गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से निकाली। इस आन्दोलन का उद्देश्य सामूहिक रुप से कुछ विशिष्ट गैर-कानूनी कार्यों को करके सरकार को झुकाना था। इस आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुये सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिये भेजा। गाँधी जी ने यह समझौता स्वीकार कर लिया और आन्दोलन वापस ले लिया।

भारत छोडो आन्दोलन (अगस्त 1942)

क्रिप्श मिशन की विफलता के बाद गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपना तीसरा बङा आन्दोलन छेङने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन का उद्देश्य तुरन्त स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 8 अगस्त 1942 काग्रेंस के बम्बई अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोङों का नारा दिया गया और 9 अगस्त 1942 को गाँधी जी के कहने पर पूरा देश आन्दोलन में शामिल हो गया। ब्रिटिश सरकार ने इस आन्दोलन के खिलाफ काफी सख्त रवैया अपनाया। इस आन्दोलन को दबाने में सरकार को एक वर्ष से अधिक समय लगा।

भारत का विभाजन और आजादी

अंग्रेजों ने जाते जाते भी भारत को दो टुकङों में बाँट दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की स्थिति बहुत कमजोर हो गयी थी। उन्होंने भारत को आजाद करने के संकेत दे दिये थे। भारत की आजादी के साथ ही जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग राज्य पाकिस्तान की भी माँग होने लगी। गाँधी जी देश का बँटवारा नहीं होने देना चाहते थे। किन्तु उस समय परिस्थितियों के प्रतिकूल होने के कारण देश दो भागों में बँट गया।

महात्मा गाँधी की मृत्यु (30 जनवरी 1948)

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर बिरला हाउस में गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। जवाहर लाल नेहरु ने गाँधी जी की हत्या की सूचना इन शब्दों में दी, ‘हमारे जीवन से प्रकाश चला गया और आज चारों तरफ़ अंधकार छा गया है। मैं नहीं जानता कि मैं आपको क्या बताऊँ और कैसे बताऊँ। हमारे प्यारे नेता, राष्ट्रपिता बापू अब नहीं रहे।’

गाँधी जी का जीवन-चक्र (टाईम-लाइन) एक नजर मेः-

1879 – जन्म – 2 अक्टूबर, पोरबंदर (गुजरात)।

1876 – गाँधी जी के पिता करमचंद गाँधी की राजकोट में बदली, परिवार सहित राजकोट आना और कस्तूरबा माखन जी से सगाई।

1879 – 21 जनवरी 1879 को राजकोट के स्थानीय स्कूल में दाखिला।

1881 – राजकोट हाई स्कूल में पढाई।

1883 – कस्तूरबा माखन जी से विवाह।

1885 – गाँधी जी के पिता की मृत्यु, इसी वर्ष इनके पहले पुत्र का जन्म और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु।

1887 – राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, सामलदास कॉलेज (भावनगर) में प्रवेश।

1888 – पहले पुत्र हरीलाल का जन्म, बैरिस्टर की पढाई के लिये इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान।

1891 – बैरिस्टर की पढाई करके भारत लौटे, अपनी अनुपस्थिति में माता पुतलीबाई के निधन का समाचार, पहले बम्बई बाद में राजकोट में वकालात की असफल शुरुआत।

1892 – दूसरे पुत्र मणिलाल गाँधी का जन्म।

1893 – अफ्रीकी व्यापारी दादा अब्दुला के कानूनी सलाहकार का प्रस्ताव को स्वीकार कर अफ्रीका (डरबन) के लिये प्रस्थान, 31 मई 1893 को प्रिटोरिया रेल हादसा, रंग-भेद का सामना।

1894 – दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष के प्रथम चरण का प्रारम्भ, नेटाल इण्डियन कांग्रेस की स्थापना।

1896 – भारत आगमन (6 महीने के लिये) और पत्नी और एक पुत्र को लेकर अफ्रीका वापस गये।

1897 – तीसरे पुत्र रामदास का जन्म।

1899 – बोअर युद्ध में ब्रिटिश की मदद के लिये भारतीय एम्बुलेंस सेवा प्रदान की।

1900 – चौथे और अन्तिम पुत्र देवदास का जन्म।

1901 – अफ्रीकी भारतियों को आवश्यकता के समय मदद करने के लिये वापस आने का आश्वासन देकर परिवार सहित स्वदेश आगमन, भारत का दौरा, कांग्रेस अधिवेशन में भाग और बबंई में वकालात का दफ्तर खोला।

1902 – अफ्रीका में भारतियों द्वारा बुलाये जाने पर अफ्रीका के लिये प्रस्थान।

1903 – जोहान्सवर्ग में वकालात दफ्तर खोला।

1904 – इण्डियन ओपिनियन सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1906 – जुल्लु युद्ध के दौरान भारतियों को मदद के लिये प्रोत्साहन, आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प, एशियाटिक ऑर्डिनेन्स के विरोध में प्रथम सत्याग्रह।

1907 – ब्लैक एक्ट (भारतियों और अन्य एशियाई लोगों का जबरदस्ती पंजीयन) के विरोध में सत्याग्रह।

1908 – दक्षिण अफ्रीका (जोहान्सवर्ग) में पहली जेल यात्रा, दूसरा सत्याग्रह (पुनः जेल यात्रा)।

1909 – दक्षिण अफ्रीकी भारतियों की ओर से पक्ष रखने के इंग्लैण्ड यात्रा, नवम्बर (13-22 तारीख के बीच) में वापसी के दौरान हिन्द स्वराज पुस्तक की रचना।

1910 – 30 मई को जोहान्सवर्ग में टाल्सटाय और फिनिक्स सेंटमेंट की स्थापना।

1913 – द ग्रेट मार्च का नेतृत्व, 2000 भारतीय खदान कर्मियों की न्युकासल से नेटाल तक की पदयात्रा।

1915 – 21 वर्ष बाद भारत वापसी।

1916 – साबरमती नदी के किनारे (अहमदाबाद में) आश्रम की स्थापना, बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय की स्थापना पर प्रथम बार गाँधी जी का मंच से भाषण।

1917 – बिहार के चम्पारन जिले में नील किसानों के हक के लिये सत्याग्रह आन्दोलन।

1918 – अहमदाबाद में मिल मजदूरों की हक की लङाई में मध्यस्था

1919 – रोलेट एक्ट और जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में सत्याग्रह छेङा, जो आगे चलकर असहयोग आन्दोलन (1920) के नाम से प्रसिद्ध हुआ, यंग इण्डिया (अंग्रेजी) और नवजीवन (गुजराती) सप्ताहिक पत्रिका का संपादन।

1920 – जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में केसर-ए-हिन्द की उपाधि वापस की, होमरुल लीग के अध्यक्ष निर्वाचित हुये।

1921 – असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत बंबई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में 5 दिन का उपवास।

1922 – चौरी-चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लिया, राजद्रोह का मुकदमा और 6 वर्ष का कारावास।

1924 – बेलगाम कांग्रेस अधिवेसन में अध्यक्ष चुने गये, साम्प्रदायिक एकता के लिये 21 दिन का उपवास।

1928 – कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में भाग, पूर्ण स्वराज का आह्वान।

1929 – कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस घोषित करके राष्ट्रव्यापी आन्दोलन आरम्भ।

1930 – नमक कानून तोङने के लिये साबरमती आश्रम से दांङी यात्रा जिसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन का नाम दिया।

1931 – गाँधी इरविन समझौता, गाँधी जी ने दूसरे गोलमाज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार।

1932 – यरवदा पैक्ट को ब्रिटिश स्वीकृति।

1933 – साबरमती तट पर बने आश्रम का नाम हरिजन आश्रम रखकर देश में अस्पृश्यता विरोधी आन्दोलन छेङा, हरिजन नामक सप्ताहिक पत्र का प्रकाशन।

1934 – अखिल भारतीय ग्रामोद्योग की स्थापना।

1936 – वर्धा में सेवाश्रम की स्थापना।

1937 – दक्षिण भारत की यात्रा।

1940 – विनोबा भावे को पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही के रुप में चुना गया।

1942 – क्रिप्स मिशन की असफलता, भारत छोङो अभियान की शुरुआत, सचिव मित्र महादेव देसाई का निधन।

1944 – 22 फरवरी को गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी जी की मृत्यु।

1946 – बंगाल के साम्प्रदायिक दंगो के संबंध में कैबिनेट मिशन से भेंट।

1947 – साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा, जिन्ना और गवर्नल जनरल माउन्टबैटेन से भेंट, देश विभाजन का विरोध।

1948 – बिङला हाउस में जीवन का अन्तिम 5 दिन का उपवास, 20 जनवरी को प्रार्थना सभा में विस्फोट, 30 जनवरी को प्रार्थना के लिये जाते समय नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या।

गाँधी जी के अनमोल वचन

  • “पाप से घृणा करो, पापी से नहीं”।
  • “जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते है, वह पहले स्वंय में लाये।”
  • “वास्तविक सौन्दर्य ह्रदय की पवित्रता में है|”
  • “अहिंसा ही धर्म है, वही जिंदगी का एक रास्ता है|”
  • “गरीबी दैवी अभिशाप नहीं बल्कि मानवरचित षडयन्त्र है।”
  • “चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्येय होनी चाहिए|”
  • “जो लोग अपनी प्रशंसा के भूखे होते हैं, वे साबित करते हैं कि उनमें योग्यता नहीं है|”
  • “जब भी आप एक प्रतिद्वंद्वी के साथ सामना कर रहे हैं। प्यार के साथ उसे जीतना।”
  • “अहिंसा, किसी भी प्राणी को विचार, शब्द या कर्म से चोट नहीं पहुंचाना है, यहाँ तक कि किसी प्राणी के लाभ के लिए भी नहीं।”
  • “जहाँ प्यार है, वहाँ जीवन है।”
  • “मैं आपके मसीहा (ईशा) को पसन्द करता हूँ, मैं आपके ईसाइयों को पसंद नहीं करता। आपके ईसाई आपके मसीहा (ईशा) के बहुत विपरीत हैं।”
  • “सबसे पहले आपकी उपेक्षा करते है, तब वे आप पर हंसते हैं, तब वे आप से लड़ते हैं, तब आप जीतते है।”
  • “मैं खुद के लिए कोई पूर्णता का दावा नहीं करता। लेकिन मैं सच्चाई के पीछे एक भावुक साधक का दावा करता हूँ, जो भगवान का दूसरा नाम हैं।”
  • “मेरे पास दुनिया को पढ़ाने के लिए कोई नई बात नहीं है। सत्य और अहिंसा पहाड़ियों के जैसे पुराने हैं। मैंनें पूर्ण प्रयास के साथ विशाल पैमाने पर दोनों में प्रयोगों की कोशिश है, जितना मैं कर सकता था।”
  • “कमज़ोर कभी माफ नहीं कर सकते। क्षमा ताकतवर की विशेषता है।”
  • “आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी।”
  • “खुशी जब मिलेगी जब जो आप सोचते है, कहते है, और जो करते है, सामंजस्य में हों।”
  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम कल मरने वाले हो। ऐसे सीखो की तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो।”
  • “किसी राष्ट्र की संस्कृति उसके लोगों के दिलों और आत्माओं में बसती है|”
  • “कुछ लोग सफलता के सपने देखते हैं जबकि अन्य व्यक्ति जागते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं|”
  • “जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता | दुःख के बिना सुख नहीं होता|”
  • “विश्वास करना एक गुण है, अविश्वास दुर्बलता कि जननी है|”
  • “यदि मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है।”
  • “राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है|”
  • “चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए।”
  • “हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है|”
  • “काम की अधिकता नहीं, अनियमितता आदमी को मार डालती है|”
  • “लम्बे-लम्बे भाषणों से कहीं अधिक मूल्यवान इंच भर कदम उठाना है।”
  • “आपका कोई काम महत्वहीन हो सकता है, किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें।”
  • “मेरी आज्ञा के बिना मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचा करता।”
  • “क्रोध एक किस्म का क्षणिक पागलपन है।”
  • “क्षणभर भी बिना काम के रहना ईश्वर से चोरी समझो। मैं आन्तरिक और बाहरी सुख का दूसरा कोई भी रास्ता नहीं जानता।”
  • “अहिंसा में इतनी ताकत है कि वह विरोधियों को भी अपना मित्र बना लेती है और उनका प्रेम प्राप्त कर लेती है।”
  • “मैं हिन्दी के जरिये प्रांतीय भाषाओं को दबाना नहीं चाहता बल्कि उनके साथ हिन्दी को भी मिला देना चाहता हूँ।”
  • “एक धर्म सभी भाषणों से परे है।”
  • “किसी में विश्वास करना और उसे ना जीना बेईमानी है।”
  • “बिना उपवास के कोई प्रार्थना नहीं और बिना प्रार्थना के कोई उपवास नहीं।”
  • “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।”
  • “मानवता का सबसे बङा हथियार शान्ति है।”

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Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी सम्पूर्ण जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – महात्मा गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक महान और प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) जगह पर हुआ था, इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो सनातन धर्म की पंसारी जाति से संबध रखते थे, और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

इनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय की थीं। जो करमचन्द की चौथी पत्नी थी। करमचन्द की पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और प्रभाव के कारण गाँधी जी जैन परम्पराओं के प्रभाव में रहे और बाद में चलकर वही मोहनदास महात्मा गाँधी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात हो गए। दुर्बलों में जोश की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्मशुद्धि के लिये उपवास तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच सहिष्णुता ये महात्मा गाँधी के कुछ अच्छे विचार थे जिनको वो सभी का बताया करते थे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – संछिप्त परिचय – 1869-1948

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

पूरा नाम – मोहन दास करमचंद गाँधी अन्य नाम – राष्ट्रपिता, महात्मा, बापू जन्म – 2 अक्टूबर, 1869, को पोरबंदर, काठियावाड़ (भारत के प्रान्त गुजरात) पिता – करमचन्द गाँधी माता – पुतलीबाई परनामी स्कूली शिक्षा – पोरबंदर और राजकोट कॉलेज – शामलदास कॉलेज, यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन, कैरियर – दक्षिण अफ्रीका, प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में आंदोलन – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, स्वराज और नमक सत्याग्रह (नमक मार्च), भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भी बहुत सारे आंदोंलन में गाँधी जी ने भाग लिया।

कम उम्र में शादी विवाह –

1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही गाँधी जी का विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब गाँधी जी 15 साल के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया, जिसके बाद कुछ ही दिनों में उनकी पत्नी चल बसी उसी साल गाँधी जी के पिता जी भी चल बसे। बाद में गाँधी जी की चार संताने और हुई जिनके बारे में जानकारी हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900) इस प्रकार है।

महात्मा गाँधी की शिक्षा दीक्षा –

गाँधी जी ने स्कूली शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में पूरी की, उसके बाद वो भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिए गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा सन 1887 में अहमदाबाद से उत्तीर्ण की थी। ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत –

गाँधी जी अपने परिवारक मित्र मावजी दवे की सलाह पर लन्दन से बैरिस्टर की पढाई करने का फैसला किया और वो वर्ष 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। वहां गाँधी जी को शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मांसाहार पसंद करते थे ऐसे में गाँधी जी को कई दिन भूखे सोना पड़ जाता था। धीरे – धीरे गाँधी जी वहां पर शाकाहारी भोजनालय के बारे में पता किया उसके बाद उनकी खाने पीने की समस्या का समाधान हो पाया। बाद में उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। जून 1891 में गाँधी भारत लौट आये। उसी समय उनकी माँ का स्वर्गवास हुआ था बाद में गाँधी जी बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की मगर उसमे उनको कुछ खास सफलता नहीं मिली, इसके बाद वो राजकोट वापस आ गए। जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का काम किया मगर उसमे भी उनको सफलता नहीं मिली उसके बाद गाँधी जी को सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत करने का मौका मिला।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका गए। पहली बार वो प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के सलाहकार के रूप में उनका चयन किया गया। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये, वहां उन्होंने अपने जीवन में राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल को विकसित किया वहां उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना भी करना पड़ा एक बार Gandhi Ji ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार कर दिया था जिसके बाद उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। यह सब बातें उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ ले ली उसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता के लिए काम करने का फैसला लेने का मन बना लिया फिर वे दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए कुछ अच्छे कदम उठाने और उनको न्याय दिलाने के बारे में सोचने लगे।

भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के बारे में गाँधी को वहीँ से बिचार आने लगा उस समय हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था गाँधी जी साउथ अफ्रीका में ही मन बना लिए थे की वो अब अपने देश जाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे और अपने देश को आजाद करवाएंगे।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

1914 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। वहां से वापस आने के बाद गाँधी जी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। उस समय कांग्रेस के एक नेता हुआ करते थे जिनका नाम गोपाल कृष्ण गोखले था, उन्हीं के कहने पर गाँधी जी साउथ अफ्रीका से वापस आये थे। दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गाँधी जी ने सबसे पहले देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

Sabarmati-Ashram

साबरमती आश्रम: गुजरात में गांधी का घर जैसा 

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह –

गांधी जी बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। बिहार के चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की जगह नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे, और सस्ते मूल्य पर उनसे फसल खरीद लेते थे, जिससे किसानों की हालत दिन बा दिन बिगड़ती जा रही थी, कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। उसी समय एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

1918 में गुजरात की एक जगह खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसानों की हालत बहुत ख़राब हो गयी थी, लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श करने के लिए गए, अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर खूब फैली और गाँधी के महान नेता के रूप में पूरे भारत में प्रचलित होने लगे।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi – खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। यह एक विश्वव्यापी आन्दोलन था, जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया गया।

असहयोग आन्दोलन –

असहयोग आन्दोलन में गाँधी जी ने अनेकों कार्य किये जिसके बारे में अधिक जानकारी के लिए आप mahatma gandhi in hindi wikipedia पर जाकर पूरी जानकारी ले सकते है।

स्वराज और नमक सत्याग्रह –

असहयोग आन्दोलन के समय गिरफ्तार गाँधी जी वर्ष 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मन मुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे। दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजी हुकुमत से कोई जबाब न मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया।

बाद में गाँधी जी ने सरकार के खिलाफ नमक पर कर लगाने के कारण नमक सत्याग्रह चलाया उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। जिसका उद्देश्य था स्वयं द्वारा नमक बनाना जिसके चलते उस समय सरकार ने 60 हजार से अधिक लोगों को गिरप्तार कर लिया। बाद में लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया, फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। इस संधि से ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने पर सहमति जता दी उसके बाद सबको रिहा कर दिया।

उसके बाद कांग्रेस का एक प्रतिनिधि लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन इसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए, सरकार फिर से राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की। 1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया उसके बाद गाँधी जी ने भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन –

दलित नेता बी आर अम्बेडकर के अथक प्रयासों के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन कराने को मंजूरी दे दी जिसके खिलाफ येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसका विरोध किया 1932 की सुबह से छ: दिन का उपवास गाँधी जी ने किया। सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। 8 May 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए फिर से 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अम्बेडकर जैसे नेता इस आंदोलन से खुश नहीं थे

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ –

अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी समय उनकी पत्नी का देहांत 22 फरवरी 1944 को हो गया। उसके बाद गाँधी जी को मलेरिया हो गया, ऐसे में अंग्रेजी हुकूमत उनको जेल में नहीं रखी और रिहा कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी।

उसके बाद गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन ख़तम कर दिया और सरकार ने लाखों कैदियों को रिहा कर दिया। उस समय से अंग्रेजों को लगने लगा था की अब भारत को छोड़ देना चाहिए उनके कुछ अफसर और जर्नल ने भारतियों को बताया था की बहुत जल्द भारत को आजादी मिलने वाली है।

देश का विभाजन और आजादी –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 2nd World War के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी में साथ – साथ योग्यदान देने वाले मुस्लिम नेता जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग करने लगे जिसको आप आज पाकिस्तान के नाम से जानतें है गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे पर ऐसा हो न सका। और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या –

Mahatma Gandhi Biography In Hindi, 30 Jan 1948 को महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘ बिरला हाउस ’ में शाम के समय 5:17 पर हत्या कर दी गयी। उस समय गाँधी जी एक सभा को सम्बोधित करने जा रहे थे। उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। इस तरह एक महान नेता का अंत हो गया ऐसा माना जाता है की गाँधी जी में मुख से अंतिम समय में ‘हे राम’ शब्द निकला था। महात्मा गाँधी की मौत के बाद नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया गया बाद में 1949 में में उनको फांसी की सजा सुनाई गयी।

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biography about mahatma gandhi in hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे

“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो!”

और उनका ये भी मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत ने राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम था ‘मोहनदास करमचंद गांधी’।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography

मोहनदास करमचंद गांधी
2 अक्तुंबर 1869 ( )
पोरबंदर (गुजरात)
करमचंद
पुतली बाई
 ( कस्तूरबा – 
,
सत्या और अहिंसा का महत्व बताकर इसको लोगों तक पहुंचाया,
छुआ-छूत जैसी बुराइयों को दूर किया

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  ने अपने अथक प्रयासों के बल पर अंग्रेजो से भारत को आजाद कराया यही नहीं इस महापुरुष ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में लगा दिया। महात्मा गांधी की कुर्बानी की मिसाल आज भी दी जाती है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पास सत्य और अहिंसा दो हथियार थे जिन्होनें इसे भयावह और बेहद कठिन परिस्थितयों में अपनाया शांति के मार्ग पर चलकर इन्होनें न सिर्फ बड़े से बड़े आंदोलनों में आसानी से जीत हासिल की बल्कि बाकी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता और बापू जी के नामों से भी पुकारा जाता है। वे सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाली शख्सियत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार में गुजारा और अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्रहित में कुर्बान कर दी। उन्होनें अपने व्यक्तित्व का प्रभाव न सिर्फ भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में डाला।

महात्मा गांधी महानायक थे जिनके कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। महात्मा गांधी कोई भी फॉर्मुला पहले खुद पर अपनाते थे और फिर अपनी गलतियों से सीख लेने की कोशिश करते थे।

जन्म, बचपन, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन –

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश हुकूमत के समय राजकोट के ‘दीवान’ थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली एक कर्तव्यपरायण महिला थी, उनके महान विचारों का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

विवाह एवं बच्चे – 

महात्मा गांधी जी जब 13 साल के थे, तब बाल विवाह की कुप्रथा के तहत उनका विवाह एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा मनकजी के साथ कर दिया गया था। कस्तूरबा जी भी एक बेहद शांत और सौम्य स्वभाव की महिला थी। शादी के बाद उन दोनो को चार पुत्र हुए थे, जिनका नाम हरिलाल गांधी , रामदास गांधी, देवदास गांधी एवं मणिलाल गांधी था।

शिक्षा –

महात्मा गांधी जी शुरु से ही एक अनुशासित छात्र थे, जिनकी शुरुआती शिक्षा गुजरात के राजकोट में ही हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1887 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। फिर अपने परिवार वालों के कहने पर वे अपने बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

इसके करीब चार साल बाद 1891 में वे अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने स्वदेश भारत वापस लौट आए। इसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया था, हालांकि उन्होंने इस दुख की घड़ी में भी हिम्मत नहीं हारी और वकालत का काम शुरु किया। वकालत के क्षेत्र में उन्हें कुछ ज्यादा कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन जब वे एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा।

इस दौरान उनके साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसके बाद गांधी जी ने रंगभेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और इससे लड़ने के लिए 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। इस तरह गांधी जी ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेदभाव के मुद्दे को उठाया।

जब इंग्लेंड से वापस लौटे – 

साल 1891 में गांधी जी बरिस्ट्रर होकर भारत वापस लौटे इसी समय उन्होनें अपनी मां को भी खो दिया था लेकिन इस कठिन समय का भी गांधी जी ने हिम्मत से सामना किया और गांधी जी ने इसके बाद वकालत का काम शुरु किया लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा – 

महात्मा गांधी जी को वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला एण्ड अब्दुल्ला नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस यात्रा में गांधी जी का भेदभाव और रंगभेद की भावना से सामना हुआ। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचने वाले पहले भारतीय महामानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर उतार दिया गया। इसके साथ ही वहां की ब्रिटिश उनके साथ बहुत भेदभाव करती थी यहां उनके साथ अश्वेत नीति के तहत बेहद बुरा बर्ताव भी किया गया था।

जिसके बाद गांधी जी के सब्र की सीमा टूट गई और उन्होनें इस रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का फैसला लिया।

जब गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ लिया संघर्ष का संकल्प –

रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ गांधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर 1894 में नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरु किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

दक्षिणा अफ्रीका से वापस भारत लौटने पर स्वागत –

1915 में दक्षिण अफ्रीका में तमाम संघर्षों के बाद वे वापस भारत लौटे इस दौरान भारत अंग्रेजो की गुलामी का दंश सह रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार से यहां की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी। यहां हो रहे अत्याचारों को देख गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

स्वतंत्रता सेनानी के रुप में – 

महात्मा गांधी जी ने जब अपनी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटने के बाद क्रूर ब्रिटिश शासकों द्धारा भारतवासियों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को देखा, तब उन्होंने देश से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ने का संकल्प लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र करवाने के उद्देश्य से खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया।

उन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम संघर्ष और लड़ाईयां लड़ी एवं सत्य और अहिंसा को अपना सशक्त हथियार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन लड़े और अंतत: अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सूत्रधार थे, बल्कि उन्हें आजादी के महानायक के तौर पर भी जाना जाता है।

हमारा पूरा भारत देश आज भी उनके द्धारा आजादी की लड़ाई में दिए गए  त्याग, बलिदान की गाथा गाता है एवं उनके प्रति सम्मान प्रकट करता है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन –

  • चंपारण और खेड़ा आंदोलन –

चम्पारण और खेडा में जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। तब जमीदार किसानों से ज्यादा कर लेकर उनका शोषण कर रहे थे। ऐसे में यहां भूखमरी और गरीबी के हालात पैदा हो गए थे। जिसके बाद गांधी जी ने चंपारण के रहने वाले किसानों के हक के लिए आंदोलन किया। जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में किसानों को 25 फीसदी से धनराशि वापस दिलाने में कामयाब रही।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और वे जीत गए। इससे लोगों के बीच उनकी एक अलग छवि बन गई।

इसके बाद खेड़ा के किसानों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा जिसके चलते किसान अपनों करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। इस मामले को गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के सामने रखा और गरीब किसानों का लगान माफ करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रखर और तेजस्वी गांधी जी का ये प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों की लगान को माफ कर दिया।

  • खिलाफत आंदोलन (1919-1924) –

गरीब, मजदूरों के बाद गांधी जी ने मुसलमानों द्दारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया था। ये आंदोलन तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन के बाद गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का भरोसा भी जीत लिया था। वहीं ये आगे चलकर गांधी जी के असहयोग आंदोलन की नींव बना।

  • असहयोग आंदोलन (1919-1920) – 

रोलेक्ट एक्ट के विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियां वाला बाग में सभा के दौरान ब्रिटिश ऑफिस ने बिना वजह निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें वहां मौजूद 1000 लोग मारे गए थे जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना से महात्मा गांधी को काफी आघात पहुंचा था जिसके बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलकर आंदोलन करने का फैसला लिया था। इसके तहत गांधी जी ने ब्रिटिश भारत में राजनैतिक, समाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करने की मांग की।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने प्रस्ताव की रुप रेखा तैयार की वो इस प्रकार है –

  • सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार
  • सरकारी अदालतों का बहिष्कार
  • विदेशी मॉल का बहिष्कार
  • 1919 अधिनियम के तहत होने वाले चुनाव का बहिष्कार
  • चौरी-चौरा काण्ड (1922) – 

5 फरवरी को चौरा-चौरी गांव में कांग्रेस ने जुलूस निकाला था जिसमें हिंसा भड़क गई थी दरअसल इस जुलूस को पुलिस ने रोकने की कोशिश की थी लेकिन भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बंद कर आग लगा ली। इस आग में झुलसकर सभी लोगों की मौत हो गई थी इस घटना से महात्मा गांधी का ह्रद्य कांप उठा था। इसके बाद यंग इंडिया अखबार में उन्होनें लिखा था कि,

“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मै हर एक अपमान, यातनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं”
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक आंदोलन (1930) – 

Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी ने ये आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया था इसके तहत ब्रिटिश सरकार ने जो भी नियम लागू किए थे उन्हें नहीं मानना का फैसला लिया गया था अथवा इन नियमों की खिलाफत करने का भी निर्णय लिया था। आपको बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई अन्य व्यक्ति या फिर कंपनी नमक नहीं बनाएगी।

12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्धारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था उन्होनें दांडी नामक स्थान पर पहुंचकर नमक बनाया था और कानून की अवहेलना की थी।

गांधी जी की दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चली। दांडी यात्रा साबरमति आश्रम से निकाली गई। वहीं इस आंदोलन को बढ़ते देख सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिए भेजा था जिसके बाद गांधी जी ने समझौता स्वीकार कर लिया था।

  • भारत छोड़ो आंदोलन- (1942) –

ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने तीसरा सबसे बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नाम दिया गया था।

हालांकि इस आंदोलन में गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के माध्यम से इस आंदोलन को चलाते रहे उस समय देश का बच्चा-बच्चा गुलाम भारत से परेशान हो चुका था और आजाद भारत में जीना चाहता था। हालांकि ये आंदोलन असफल रहा था।

आंदोलन के असफल होने की कुथ मुख्य वजह नीचे दी गई हैं –

ये आंदोलन एक साथ पूरे देश में शुरु नहीं किया गया। अलग-अलग तारीख में ये आंदोलन शुरु किया गया था जिससे इसका प्रभाव कम हो गया हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर किसानों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारत छोड़ों आंदोलन में बहुत से भारतीय यह सोच रहे थे कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्हें आजादी मिल ही जाएगी इसलिए भी ये आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन सफल जरूर नहीं हुआ था लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासकों को इस बात का एहसास जरूर दिला दिया था कि अब और भारत उनका शासन अब और नहीं चल पाएगा और उन्हें भारत छोड़ कर जाना ही होगा।

गांधी जी के शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।

आंदोलनों की खास बातें –

महात्मा गांधी की तरफ से चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ चीजें एक सामान थी जो कि निम्न प्रकार हैं –

  • गांधी जी के सभी आंदोलन शांति से चलाए गए।
  • आंदोलन के दौरान किसी की तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने की वजह से ये आंदोलन रद्द कर दिए जाते थे।
  • आंदोलन सत्य और अहिंसा के बल पर चलाए जाते थे।

समाजसेवक के रुप में –

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता होने के साथ-साथ एक महान समाज सेवक भी थे। जिन्होंने देश में जातिवाद, छूआछूत जैसी तमाम कुरोतियों को दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सभी जाति, धर्म, वर्ग एवं लिंग के लोगों के प्रति एक नजरिया था।

उन्होंने जातिगत भेदभाव से आजाद भारत का सपना देखा था। गांधी जी ने निम्न, पिछड़ी एवं दलित वर्ग को ईश्वर के नाम पर ”हरि”जन कहा था और समाज में उन्हें बराबरी का हक दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए थे।  

”राष्ट्रपिता” (फादर ऑफ नेशन) के रुप में – 

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि भी दी गई थी। उनके आदर्शों और महान व्यक्तित्व के चलते नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वप्रथम 4 जून, 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक प्रसारण के दौरान गांधी जी को ”देश का पिता” कहकर संबोधित किया था।

इसके बाद नेता जी ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।  वहीं 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने भारतवासियों को रेडियो पर उनकी मौत का दुखद समाचार देते हुए कहा था कि ”भारत के राष्ट्रपिता अब नहीं रहे”।

शिक्षा मे योगदान –

महात्मा गांधी के शिक्षा मे योगदान को समझने से पहले उनके शिक्षा के प्रती विचार को समझना अत्यंत आवश्यक है, जैसा के;

१. ६ साल से १४ साल तक के बच्चो को अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी। २. शिल्प केंद्रित शिक्षा दी जायेगी। ३. शिक्षा का माध्यम केवल मातृभाषा होगी, अंग्रेजी नही। ४. करघा उद्योग, हस्तकला इत्यादी की शिक्षा दी जायेगी, जिसमे कृषी, लकडी का काम, कताई, बुनाई, ,मछली पालन, उद्यान कार्य, मिट्टी का कार्य, चरखा इत्यादी शामिल होगा।

गांधीजी ने आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, जिससे व्यक्ती का सर्वांगीण विकास हो और खुद्के बलबुते इंसान जीवन मे आगे बढ पाये। इसिलिये उन्हे मुलभूत शिक्षा प्रणाली के जनक के तौर पर देखा जाता है।

शिक्षा संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य गांधीजी ने सबके सामने रखे,जैसा के ;

१. स्वयं के अनुभव से सिखना और करके देखना: – किसी भी चीज को सिखने के साथ खुद्से करके देखने पर गांधीजी का ज्यादा झुकाव था, उनका मानना था स्वयं से करके देखकर सिखना ही उत्तम शिक्षा होती है।आपस मे चर्चा एवं प्रश्न उत्तर के माध्यम को उनके नजर मे काफी सराहनिय माना गया है, वे किताबी शिक्षा से ज्यादा क्राफ्ट/शिल्प इत्यादी को अधिक महत्व देते थे

२. शारीरिक क्रियाकलाप द्वारा शिक्षा पर गांधीजी ने अधिक बल दिया जिसमे सभी आयु वर्ग के बच्चो को उनके क्षमता अनुसार कार्य दिया जाये।जिससे वो जीवन मे आगे बढते समय अधिक मजबूत विचार और शारीरिक बल अर्जित कर सके।

३. सिखने की अनेक क्रिया और प्रकार का समन्वय कर शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक झुकाव था, जैसे के चित्रकला, हस्तकला और शिल्पकला इनका एक दुसरे से नजदिकी संबंध आता है।तो इस तरह से विभिन्न कलाओ का आपस मे तालमेल साध कर शिक्षा दी जाये।

१४ साल से उपर के आयु के बच्चो को पूर्णतः रोजगार पूरक शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक बल था, जिससे वो बच्चे आगे चलकर रोजगार हेतू सक्षम बन पाये।

गांधीजी ने शिक्षा पद्धती मे सहयोगी क्रिया पर पहल तथा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व पर अधिक कार्य किया, ये निष्कर्ष शिक्षा के लिये स्थापित “झाकीर हुसैन समिति” द्वारा दिया गया है।

गांधीजी शिक्षा मे अनुशासन को बहूत अधिक महत्व देते थे, इसके अलावा छात्रो को आत्मबल अधिक बढाने के साथ, वो अध्यापक वर्ग को ब्रह्मचर्य एवं संयमित जीवन जिने की सलाह देते थे।जिससे के छात्रो के सामने आदर्श एवं उच्च आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके।

गांधीजी छात्रो मे एवं अध्यापको मे सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, प्रेम, न्याय और परिश्रम इत्यादी गुणो को विकसित करने पर अधिक बल देते थे।

किताबें –

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी, अच्छे राजनेता ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखन कौशल से देश के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के संघर्ष का बेहद शानदार वर्णन किया है। उन्होंने अपनी किताबों में स्वास्थ्य, धर्म, समाजिक सुधार, ग्रामीण सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा है।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी ने  इंडियन ओपनियन, हरिजन, यंग इंडिया, नवजीवन आदि पत्रिकाओं में एडिटर के रुप में भी कार्य किया है। उनके द्धारा लिखी गईं कुछ प्रमुख किताबों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • हिन्दी स्वराज (1909)
  • मेरे सपनों का भारत (India of my Dreams)
  • ग्राम स्वराज (Village Swaraj by Mahatma Gandhi)
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagraha in South Africa)
  • एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी (An Autobiography or The Story of My Experiments with Truth (1927) 
  • स्वास्थ्य की कुंजी (Key To Health)
  • हे भगवान (My God)
  • मेरा धर्म(My Religion)
  • सच्चाई भगवान है( Truth is God)

इसके अलावा गांधी जी ने कई और किताबें लिखी हैं, जो न सिर्फ समाज की सच्चाई को बयां करती हैं, बल्कि उनकी दूरदर्शिता को भी प्रदर्शित करती हैं।

स्लोगन –

सादा जीवन, उच्च विचार वाले महान व्यक्तित्व महात्मा गांधी जी के ने अपने कुछ महान विचारों से प्रभावशाली स्लोगन दिए हैं। जिनसे देशवासियों के अंदर न सिर्फ देश-प्रेम की भावना विकिसत होती है, बल्कि उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलने की भी प्रेरणा मिलती है, महात्मा गांधी जी के कुछ लोकप्रिय स्लोगन इस प्रकार हैं-

  • आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आज आप क्या कर रहे हैं- महात्मा गांधी
  • करो या मरो- महात्मा गांधी
  • शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है, यह एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है- महात्मा गांधी
  • पहले वो आप पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हंसेगें, और फिर वो आपसे लड़ेंगे तब आप निश्चय ही जीत जाएंगे – महात्मा गांधी
  • अपना जीवन कुछ इस तरह जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो- महात्मा गांधी
  • कानों का दुरुपयोग मन को दूषित एवं अशांत करता है- महात्मा गांधी
  • सत्य कभी भी ऐसे कारण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता जो कि उचित हो-महात्मा गांधी
  • भगवान का कोई धर्म नहीं है- महात्मा गांधी
  • ख़ुशी तब ही मिलेगी जब आप, जो भी सोचते हैं, जो भी कहते हैं और जो भी करते हैं, वो सब एक सामंजस्य में हों- महात्मा गांधी

जयंती –

Mahatma Gandhi

2 अक्टूबर को पूरे देश में गांधी जयंती ( Gandhi Jayanti ) के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी 1869 में गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्में थे। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे, इसलिए 2 अक्टूबर के दिन को पूरे विश्व में विश्व अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

गांधी जयंती के मौके पर स्कूल, कॉलेजों में अन्य शैक्षणिक संस्थानों में तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई बड़े राजनेता दिल्ली के राजघाट पर बनी गांधी प्रतिमा पर सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। वहीं गांधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया गया है।

कुछ खास बातें – 

  • सादा जीवन, उच्च विचार –

राष्ट्रपति महात्मा गांधी सादा जीवन उच्च विचार में भरोसा रखते थे उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें ‘महात्मा’ कहकर बुलाते थे।

  • सत्य और अहिंसा –

महात्मा गांधी के जीवन के 2 हथियार थे सत्य और अहिंसा। इन्हीं के बल पर उन्होनें भारत को गुलामी से आजाद कराया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।

  • छूआछूत को दूर करना था गांधी जी का मकसद

महात्मा गांधी का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली छुआछूत जैसी कुरोतियों को दूर करना था इसके लिए उन्होनें काफी कोशिश की और पिछड़ी जातियों को उन्होनें ईश्वर के नाम पर हरि ‘जन’ नाम दिया।

मृत्यु – 

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

एक नजर में –

  • 1893 में दादा अब्दुला के कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। महात्मा गांधी जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगों को संघटित करके उन्होंने 1894 में “ नेशनल इंडियन कॉग्रेस ” की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना जरुरी था। इसके अलावा रंग भेद नीती के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
  • 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया। असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्षपद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुआ। नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1931 में राष्ट्रिय सभा के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधीजीने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की। हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः 15 अगस्त 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया।
  • 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था।

महात्मा गांधी महान पुरुष थे उन्होनें अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किए वहीं गांधी जी के आंदोलनों की सबसे खास बात यह रही कि उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सभी संघर्षों का डटकर सामना किया।

उन्होनें अपने जीवन में हिंदू-मुस्लिम को एक करने के भी कई कोशिश की। इसके साथ ही गांधी जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि हर कोई उनसे मिलने के लिए आतुर रहता था और उनसे मिलकर प्रभावित हो जाता था।

मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

फिल्में –

महात्मा गांधी जी आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलने वाले महानायक थे, उनके प्रेरणादायक जीवन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अन्य देशप्रेमियों और स्वतंत्रता सेनानियों पर भी बनी फिल्मों में गांधी जी का अहम किरदार दिखाया गया है। यहां हम आपको गांधी जी बनी कुछ प्रमुख फिल्मों की सूची उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि इस प्रकार है-

  • फिल्म- ‘गांधी’ (1982)

डायरेक्शन-   रिचर्ड एटनबरो

गांधी जी का किरदार निभाया- हॉलीवुड कलाकार बने किंस्ले

2- फिल्म- ”गांधी माइ फादर”(2007)

डायरेक्टर- फिरोज अब्बास मस्तान

गांधी जी का किरदार निभाया- दर्शन जरीवाला

3- फिल्म- ”हे राम” (2000)

डायरेक्टर-कमल हसन

गांधी जी का किरदार निभाया- नसीरुद्दीन शाह

4- फिल्म- ”लगे रहो मुन्नाभाई”

डायरेक्टर- राजकुमार हिरानी (2006)

गांधी जी का किरदार निभाया- दिलीप प्रभावलकर

5- फिल्म- ”द मेकिंग ऑफ गांधी”(1996)

डायरेक्टर- श्याम बेनेगल

गांधी जी का किरदार निभाया-रजित कपूर

6- फिल्म- ”मैंने गांधी को नहीं मारा”(2005)

डायरेक्शन- जहनु बरुआ

इसके अलावा भी कई अन्य फिल्में भी गांधी जी के जीवन पर प्रदर्शित की गई हैं।

भजन –

महात्मा गांधी जी के प्रिय भजन जिसे वह अक्सर गुनगुनाते थे-

भजन नंबर 1-

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।। जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।। मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।। राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।। वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।। भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी का यह भजन साल 2018 में वैश्विव हो गया था, इस भजन को 124 देशों के कलाकरों ने एक साथ गाकर बापू जी को श्रद्धांजली अर्पित की थी।

भजन नंबर 2-

रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

रघुपति राघव राजाराम ।।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान

रात का निंदिया दिन तो काम

कभी भजोगे प्रभु का नाम

करते रहिए अपने काम

लेते रहिए हरि का नाम

रघुपति राघव राजा राम ।।

इस भजन के अलावा भी गांधी जी ”साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।।।……..” आदि भजन भी गुनगुनाते थे ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जो हम आपको यहाँ बतायेंगे …

रोचक और अनसुने कुछ तथ्य –

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों। जिनके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख के द्धारा बताएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं –

1) गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, इनके पिता करम चंद गांधी कट्टर हिंदू थे और जाति से मोध बनिया थे। गांधी जी गुजारात की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे, इसके अलावा वे राजकोट और बांकानेर के दीवान भी रह चुके थे। उनकी मातृभाषा गुजराती थी।

2) आजादी के महानायक महात्मा गांधी को एक बहादुर, साहसी और बोल्ड नेता के रुप में तो सभी जानते हैं, लेकिन आपको बता दें कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह बचपन में काफी शर्मीलें स्वभाव के व्यक्ति थे, यहां तक कि वे अपने सहपाठियों से बात करने में भी हिचकिचाते थे।

3) 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व अंहिसा दिवस के रुप में घोषित किया है, इसलिए उनकी जन्मदिन को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

4) महात्मा गांधी, पुतलीबाई और करमचंद गाधी जी की सबसे छोटी संतान थे, उनके दो भाई और एक बहन भी थी।

Mahatma Gandhi old photo

5) ऐसा माना जाता है कि 12 अप्रैल साल 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था। हालांकि इसको लेकर भी विद्धानों के अलग-अलग मत हैं।

6) महात्मा गांधी के बारे मे यह भी काफी रोचक है कि, उन्हें 5 बार नोबल पीस प्राइज के लिए नोमिनेट किया गया, लेकिन यह पुरस्कार कभी वह हासिल नहीं कर सके। क्योंकि साल 1948 में यह पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी गोडसे द्दारा हत्या कर दी गई थी। हालांकि नोबल कमेटी ने यह पुरस्कार उस साल किसी को नहीं दिया था।

7) भारत के राष्ट्रपिता को अमेरिका की टाइम मैग्जीन द्धारा साल 1930 में “Man of the year” पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

8) महात्मा गांधी के बारे में यह अति रोचक तथ्य है कि वे अपने पूरे जीवनकाल में कभी अमेरिका नहीं गए और यह भी कहा जाता है कि 24 साल विदेश में रहने के बाद भी वह कभी एयर प्लेन में भी नहीं बैठे।

9) सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाले गांधी जी हर रोज 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, उनके जीवनकाल ने इस यात्रा के मुताबिक यह आकलन लगाया जाता है, उनकी पैदलयात्रा पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाने के बराबर थी। वहीं साल 1939 में 70 साल की आयु में भी गांधी जी का वजन 46 किलोग्राम था।

10) देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 6 साल 5 महीने जेल में बिताए थे। आपको बता दें कि कि गांधी जी को 13 बार गिरफ्तार किया गया था।

11) महात्मा गांधी के प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रभाव पूरी दुनिया में है, इसलिए उनके सम्मान में उनके नाम के 53 मुख्य मार्ग भारत में और 48 सड़कें विदेशों में है।

12) जब 15 अगस्त, 1947 को हमारा भारत देश आजाद हुआ तो उस रात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी का भाषण सुनने के लिए महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे, वे उस दिन उपवास पर थे। आपको बता दें कि 1921 में महात्मा गांधी से देश के आजादी तक हर सोमवार को व्रत रखने का संकल्प लिया था और उन्होंने अपने जीवन में करीब 1 हजार 41 दिन उपवास रखा।

13) आजादी के आदर्श महानायक गांधी जी ने देश के लिए कई आंदोलन किए, कई बार उन्हें राजनीतिक पद अपनाने के लिए भी प्रस्ताव रखा गया, लेकिन गांधी जी ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी राजनीति पद को नहीं अपनाया।

biography about mahatma gandhi in hindi

14) देश को आजादी करवाने के लिए गांधी जी ने तमाम आंदोलन किए और अंग्रेजी के खिलाफ कई सालों तक लड़ाई भी लड़ी, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने ही महात्मा की मौत के 21 साल बाद उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था, जो कि सराहनीय है।

15) महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में तमाम संघर्ष और आंदोलन किए और सफलता भी हासिल की। इसके अलावा वे 4 महाद्दीप और 12 देशों में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए भी जिम्मेदार थे।

16) गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने वकालत करना शुरु किया था तो, वे कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष भी नहीं रख पाते थे, यहां तक कि पहला केस लड़ते वक्त वह कांपने लगे और बहस बीच में ही छोड़कर बैठ गए, जिससे वह शुरुआती दौर में वकालत करने में फेल हो गए थे।

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हालांकि बाद में वह एक कुख्यात और सफल वकील भी बने। वहीं दक्षिण अफ्रीका में उन्हें वकालत के लिए 15 हजार डॉलर सालाना मिलते थे, जो आज के करीब 10 लाख रुपए के बराबर हैं, वहीं कई भारतीयों की सालाना आय आज भी इससे कम है।

17) गांधी जी के जीवन के आदर्शों और उनके महान विचारों की वजह से उनके तमाम प्रशंसक थे, लेकिन एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी महात्मा गांधी जी के सम्मान में गोल चश्मा पहनते थे।

18) महात्मा गांधी जी के बारे में एक अति रोचक तथ्य है कि वे नकली दांत लगाते थे, जिसे वह अपने कपड़े के बीच में रखते थे और इसका इस्तेमाल सिर्फ खाना खाते वक्त ही करते थे।

19) महात्मा गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्हें फोटो खिंचवाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान वह एक ऐसे महानायक थे, जिनकी सबसे ज्यादा फोटो खींची गई थी।

20) महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को गोडसे द्धारा बिरला भवन के बगीचे में कर दी गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में काफी लोगों का हुजुम उमड़ा था, उनकी शवयात्रा करीब 8 किलोमीटर लंबी थी, जिसमें पैदल चलने वालों की संख्या करीब 10 लाख थी, जबकि 15 लाख से भी ज्यादा लोग रास्ते में खड़े होकर उनके अंतिम दर्शन कर रहे थे।

आपको बता दें कि महापुरुष महात्मा गांधी जी की शवयात्रा को आजाद भारत की सबसे बड़ी शवयात्रा भी कहा गया है।

इनके अलावा भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो कि बेहद रोचक और महत्वपूर्ण है। हालांकि, महात्मा गांधी द्धारा राष्ट्र के लिए दिए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। महात्मा गांधी जैसे शख्सियत का भारतभूमि पर जन्म लेना गौरव की बात है।

अगले पेज पर पढ़िए…

165 thoughts on “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी”

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महात्मा गाँधी ने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर विवश कर दिया। बहुत ही अच्छा लेख लगा एक महान नेता को नमन, धन्यवाद।

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बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने थैंक यू

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gandhi ji ka sampoorn parichay hindi me

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महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi in Hindi / सत्य और अहिंसा के रास्ते चलते हुए उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो। और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत में राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम है ‘ मोहनदास करमचंद गांधी ‘ आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं।

गाँधी जी अबतक भारतीय राजनितिक के सबसे पावरफुल लीडर थे। उन्हें भारत में ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा प्राप्त हैं। ये नाम सबसे पहले सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से जारी प्रसारण में कहकर सम्बोधित किया था। गाँधी जी सत्‍य और अहिंसा के पुजारी थे। सफ़ेद धोती, चश्मा और हाथ में लाठी लिए गांधी ने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया था। महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उनके बताये सिद्धांत को मानने वाला इंसान कभी भी अपने रास्ते से भटक नहीं सकता है।

Mahatma Gandhi Biography In Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का संक्षिप्त परिचय – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi)
2 अक्टूबर, 1869
गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में
30 जनवरी 1948
गांधी जी की 30 जनवरी को प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्‍या कर दी। महात्‍मा गांधी की समाधि राजघाट दिल्‍ली पर बनी हुई है।
करमचंद गांधी
पुतलीबाई
कस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया [कस्तूरबा गांधी]
4 पुत्र -: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
बैरिस्टर
काँग्रेस
भारतीय

उन्‍होंने हमेशा सत्‍य और अहिंसा के लिए आंदोलन किए और इसी मार्ग मे चलने की सलाह दी। 24 साल की उम्र में गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे और 21 साल रहे। वहां अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्‍याचार देख बहुत दुखी हुए। उनके साथ भी दक्षिण अफ्रीका में नस्ली भेदभाव हुवा। इन सारी घटनाएं उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुवा। जिसके बाद वे अंग्रेजो से भारत की आजादी ठान ली थी।

महात्मा गाँधी की प्रारंभिक जीवन – Early Life Of Mahatma Gandhi in Hindi

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे।

उनकी माता वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और एक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका असर गाँधी जी पर भी हुआ। जिस घर में गाँधी पैदा हुवे थे आज उसे कीर्ति मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस घर का पुनर्निर्माण से तीन मंजिल का ईमारत बनाया गया हैं, जिसमे 22 कमरे हैं। इस घर में गांधीजी की यादें सहेजी गई हैं। पांच साल तक मोहनदास का बचपन इसी घर में बीता। हर दिन शाम पांच बजे यहां गांधीजी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो जेने कहिए रे…’ गाया जाता है। गांधीजी अंतिम बार 1928 में पोरबंदर आए थे।

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा – Gandhi ji Autobiography in Hindi

महात्‍मा गांधी की आत्‍मकथा में उल्‍लेख मिलता है कि वे पढाई- लिखाई में कोई विशेष अच्‍छे नहीं थे। केवल अपनी स्‍कूल की किताबें ठीक से पढ लें और अध्‍यापकों द्वारा याद करने के लिए दिए गए सबकों को याद कर लें, इतना भी उनसे ठीक से नहीं हो पाता था, इसलिए स्‍कूल के अलावा किसी अन्‍य किताब को पढने की उनकी कभी कोई इच्‍छा नहीं होती थी न ही कभी किसी अन्‍य पुस्‍तक को पढने का उन्‍होंने कोई प्रयास किया।

लेकिन एक बार उन्‍होंने  श्रृवण पितृ भक्ति नाटक  नाम की एक पुस्‍तक पढी जो कि उनके पिताजी की थी। वे उस पुस्‍तक से  श्रृवण  के पात्र से इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर श्रृवण की तरह मातृ-पितृ भक्‍त बनने की न केवल स्‍वयं कोशिश करते रहे, बल्कि अपने सम्‍पर्क में आने वाले सभी लोगों को ऐसा बनाने का भी प्रयास करते रहे। इसी प्रकार से बचपन में उन्‍होंने “ सत्‍यवादी राजा हरीशचन्‍द्र ” का भी एक दृश्‍य नाटक देखा और उस नाटक के राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से वे इतना प्रभावित हुए कि जिन्‍दगी भर राजा हरीशचन्‍द्र की तरह सत्‍य बोलने का व्रत ले लिया।

राजा हरीशचन्‍द्र के पात्र से उन्‍होंने बालकपन में ही अच्‍छी तरह से समझ लिया था कि सत्‍य के मार्ग पर चलने में हमेंशा तकलीफें आती ही हैं लेकिन फिर भी सत्‍य का मार्ग नहीं छोडना चाहिए और राजा हरीशचन्‍द्र के नाटक के इस पात्र ने ही गांधीजी के सत्‍यान्‍वेषी बनने की नींव रखी।

गांधीजी ने अपनी आत्‍मकथा में लिखा है कि यदि कोई उन्‍हें आत्‍महत्‍या करने की धमकी देता था, तो उन्‍हें उसकी धमकी पर कोई भरोसा नहीं होता था क्‍योंकि एक बार स्‍वयं गाधीजी आत्‍महत्‍या करने पर उतारू थे। उन्‍होंने कोशिश भी की लेकिन उन्‍होंने पाया कि आत्‍महत्‍या की बात कहना और आत्‍महत्‍या की कोशिश करना, दोनों में काफी अन्‍तर होता है।

गांधीजी इस सन्‍दर्भ में जिस घटना का उल्‍लेख करते हैं, उसके अनुसार एक बार गांधीजी को अपने एक रिश्‍तेदार के साथ बीडी पीने का शौक लग गया। क्‍योंकि उनके पास बीडी खरीदने के लिए पैसे तो होते नहीं थे, इसलिए उनके काकाजी बीडी पीकर जो ठूठ छोड दिया करते थे। गांधीजी उसी को चुरा लिया करते थे और अकेले में छिप-छिप कर अपने उस रिश्‍तेदार के साथ पिया करते थे। लेकिन बीडी की ठूठ हर समय तो मिल नहीं सकती थी, इसलिए उन्‍होंने उनके घर के नौकर की जेब से कुछ पैसे चुराने शुरू किए।

अब एक नई समस्‍या आने लगी कि चुराए गए पैसों से जो बीडी वे लाते थे, उसे छिपाऐं कहां। चुराए हुए पैसों से लाई गई बीडी भी कुछ ही दिन चली। फिर उन्‍हे पता चला कि एक ऐसा पौधा होता है, जिसके डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया जा सकता है। उन्‍हें बहुत खुशी हुई कि चलो अब न तो बीडी की ठूंठ उठानी पडेगी न ही किसी के पैसे चुराने पडेंगे। लेकिन जब उन्‍होंने उस डण्‍ठल को बीडी की तरह पिया, तो उन्‍हें कोई संतोष नहीं हुआ।

इसके बाद उन्‍हें अपनी पराधीनता अखरने लगी। उन्‍हें लगा कि उन्‍हें कुछ भी करना हो, उनके बडों की ईजाजत के बिना वे कुछ भी नहीं कर सकते। इसलिए उन दोनों ने सोंचा कि ऐसे पराधीन जीवन को जीने से कोई फायदा नहीं है, सो जहर खाकर आत्‍महत्‍या ही कर ली जाए। लेकिन फिर एक समस्‍या पैदा हो गई कि अब जहर खाकर आत्‍महत्‍या करने के लिए जहर कहां से लाया जाए? चूंकि उन्‍होंने कहीं सुना था कि धतूरे के बीज को ज्‍यादा मात्रा में खा लिया जाए, तो मृत्‍यु हो जाती है, सो एक दिन वे दोनों जंगल में गए और धतूरे के बीच ले आए और आत्‍महत्‍या करने के लिए शाम का समय निश्चित किया। मरने से पहले वे केदारनाथ जी के मंदिर गए और दीपमाला में घी चढाया, केदारनाथ जी के दर्शन किए और एकान्‍त खोज लिया लेकिन जहर खाने की हिम्‍मत न हुई। उनके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे:

¤    अगर तुरन्‍त ही मृत्‍यु न हुर्इ तो ? ¤    मरने से लाभ क्‍या है ? ¤    क्‍यों न पराधीनता ही सह ली जाए ?

आदि… आदि। लेकिन फिर भी दो-चार बीज खाए। अधिक खाने की हिम्‍मत न हुर्इ क्‍योंकि दोनों ही मौत से डरे हुए थे सो, दोनों ने निश्‍चय किया कि रामजी के मन्दिर जाकर दर्शन करके मन शान्‍त करें और आत्‍महत्‍या की बात भूल जाए।

गांधीजी के जीवन की इसी घटना जिसे स्‍वयं गांधीजी ने अनुभव किया था, के कारण ही उन्‍होंने जाना कि आत्‍महत्‍या करना सरल नहीं है और इसीलिए किसी के आत्‍महत्‍या करने की धमकी देने का उन पर कोई प्रभाव नहीं पडता था क्‍योंकि उन्‍हें अपने आत्‍महत्‍या करने की पूरी घटना याद आ जाती थी। आत्‍महत्‍या से सम्‍बंधित इस पूरी घटना का परिणाम ये हुआ कि दोनों जूठी बीडी चुराकर पीने अथवा नौकर के पैसे चुराकर बीडी खरीदने व फूंकने की आदत हमेंशा के लिए भूल गए।

इस घटना के संदर्भ में गांधीजी का अनुभव ये रहा कि नशा कई अन्‍य अपराधों का कारण बनता है। यदि गांधीजी को बीडी पीने की इच्‍छा न होती, तो न तो उन्‍हें काकाजी की बीडी की ठूंठ चुरानी पडती न ही वे कभी बीडी के लिए नौकर की जेब से पैसे चुराते। उनकी नजर में बीडी पीने से ज्‍यादा बुरा उनका चोरी करना था जो कि उन्‍हें नैतिक रूप से नीचे गिरा रहा था।

इसी तरह से गांधीजी के जीवन में चोरी करने की एक और घटना है, जिसके अन्‍तर्गत 15 साल की उम्र में उन पर कुछ कर्जा हो गया था, जिसे चुकाने के लिए उन्‍होंने अपने भाई के हाथ में पहने हुए सोने के कडे से 1 तोला सोना कटवाकर सुनार को बेचकर अपना कर्जा चुकाया था। इस बात का किसी को कोई पता नहीं था, लेकिन ये बात उनके लिए असह्य हो गई। उन्‍हें लगा कि यदि पिताजी के सामने अपनी इस चोरी की बात को बता देंगे, तो ही उनका मन शान्‍त होगा।

लेकिन पिता के सामने ये बात स्‍वीकार करने की उनकी हिम्‍मत न हुई। सो उन्‍होंने एक पत्र लिखा, जिसमें सम्‍पूर्ण घटना का उल्‍लेख था और अपने किए गए कार्य का पछतावा व किए गए अपराध के बदले सजा देने का आग्रह था। वह पत्र अपने पिता को देकर वे उनके सामने बैठ गए। पिता ने पत्र पढा और पढते-पढते उनकी आंखें नम हो गईं। उन्‍होंने गांधीजी को कुछ नहीं कहा। पत्र को फाड़ दिया और फिर से लौट गए।

उसी दिन गांधीजी को पहली बार अहिंसा की ताकत का अहसास हुआ क्‍योंकि यद्धपि उनके पिता ने उन्‍हें उनकी गलती के लिए कुछ भी नहीं कहा न ही कोई दण्‍ड दिया, बल्कि केवल अपने आंसुओं से उस पत्र को गीला कर दिया, जिसे गांधीजी ने लिखा था, और इसी एक घटना ने गांधीजी पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्‍होंने ऐसा कोई अपराध दुबारा नहीं करने की प्रतिज्ञा ले ली। यदि उस दिन, उस घटना के लिए गांधीजी के पिताजी ने गांधीजी के साथ मारपीट, डांट-डपट जैसी कोई हिंसा की होती, तो शायद हम आज उस गांधी को याद नहीं कर रहे होते, जिसे याद कर रहे हैं।

महात्मा गाँधी की विवाह – Mahatma Gandhi Married 

मई 1883 में साढे 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की  कस्तूरबा माखनजी  से कर दिया गया। पत्नी का पहला नाम छोटा करके  कस्तूरबा  कर दिया गया और उसे लोग प्यार से  बा  कहते थे। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। लेकिन उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 1885 में जब गान्धी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी साल उनके पिता करमचन्द गन्धी भी चल बसे। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गान्धी 1888 में, मणिलाल गान्धी 1892 में, रामदास गान्धी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे।

महात्मा गाँधी की शिक्षा और कार्य – Mahatma Gandhi Career History in Hindi

पोरबंदर से उन्होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रिक के बाद की परीक्षा उन्होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था। बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे, लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला, वहा महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक रहे।

वहा भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। अफ्रीका में उस समय बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था, उसके बारे में एक किस्सा भी है, जब गांधीजी अग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े उन्हें गाँधीजी को बहुत बेईजत कर के ढकेल दिया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में अन्य भी कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं।

दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये। वहा उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया. वे एक अमेरिकन लेखक हेनरी डेविड थोरो लेखो से और निबंधो से बेहद प्रभावित थे। आखिर उन्होंने अनेक विचारो ओर अनुभवों से सत्याग्रह का मार्ग चुना, जिस पर गाँधीजी पूरी जिंदगी चले, पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में ‘होम रुल’ का अभियान तेज हो गया, 1919 में रौलेट एक्ट पास करके ब्रिटिश संसद ने भारतीय उपनिवेश के अधिकारियों को कुछ आपातकालींन अधिकार दिये तो गांधीजीने लाखो लोगो के साथ सत्याग्रह आंदोलन किया।

उसी समय एक और चंद्रशेखर आज़ाद और  भगत सिंह  क्रांतिकारी देश की स्वतंत्रता के लिए हिंसक आंदोलन कर रहे थे। लेकीन गांधीजी का अपने पूर्ण विश्वास अहिंसा के मार्ग पर चलने पर था। और वो पूरी जिंदगी अहिंसा का संदेश देते रहे।

महात्मा गांधी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

मृत्यु : 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी। महात्मा गांधी जी 79 साल की उम्र में वे सभी देश वासियों को अलविदा कहकर चले गए।

महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गये आंदोलन – Mahatma Gandhi ke Andolan

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945) – bhartiya swatantrata sangram.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष 1916 से 1945 तक चला। यह संघर्ष भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। जब गाँधी जी अफ्रीका से लौटे थे उस समय तक वे राष्ट्रवादी नेता के तौर पर प्रचलित हो चुके थे। उन्होंने इस आंदोलन में किसानों, मजदूरों, शहरी श्रमिकों को एकजुट किया।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह (1918-1919) – Champaran Satyagraha in Hindi

गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1918 में एक सत्याग्रह हुआ। यह गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। यह आंदोलन किसानो पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था। खेड़ा सत्याग्रह भी गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध आंदोलन था।

खिलाफत आन्दोलन (1919-1924) – Khilafat Andolan in Hindi

ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। गाँधी जी इस आंदोलन में भाग लिए और मुस्लिम-हिन्दू को एकजुट करने में सहयोग किये।

असहयोग आन्दोलन – Asahyog Andolan in Hindi

गांधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी के नेतृत्व मे चलाया जाने वाला यह प्रथम जन आंदोलन था। इस आंदोलन का मकशद था अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना।

स्वराज और नमक सत्याग्रह – Namak Satyagrah

गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाये गये नमक कर के विरोध में 1930 में नमक सत्याग्रह जिसे दांडी मार्च भी कहा जाता हैं। ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी समेत 78 लोगों के द्वारा अहमदाबाद साबरमती आश्रम से समुद्रतटीय गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके 12 मार्च 1930 को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का भंग किया गया था।

  • हरिजन आंदोलन
  • द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’
  • देश का विभाजन और भारत की आजादी

महात्मा गांधीजी की जीवन कार्य – Mahatma Gandhi History

  • 1893 में उन्हें दादा अब्दुला इनका व्यापार कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगोंका संघटित करके उन्होंने 1894 में ‘नेशनल इंडियन कॉग्रेस की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना सक्त किया था। इसके अलावा रंग भेद नीती के विरोध में उन्होंने ब्रिटिश शासन विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती यहा सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की.तथा 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन में शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  •  1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में के नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया. असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्ष पद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुवा. नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये. ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधी जी ने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की. हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी विधायक कार्यक्रम करके उन्होंने प्रयास किया।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था, जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली. अंततः 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया, 1948 मेंनाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था. वर्ष 1999 में बी.बी.सी. द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में गांधी जी को बीते मिलेनियम का सर्वश्रेष्ट पुरुष घोषित किया गया।
  • गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

महात्मा गांधी की पुस्तकों के नाम – Mahatma Gandhi Book’s –

  • माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ ( My Experiment With Truth ).
  • हिन्द स्वराज – सन 1909 में
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह – सन 1924 में
  • मेरे सपनों का भारत
  • ग्राम स्वराज
  • ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ एक आत्मकथा
  • रचनात्मक कार्यक्रम – इसका अर्थ और स्थान

Mahatma Gandhi – मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले, विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

गांधीजी ने समाज में फैली छुआछूत की भावना को दूर करने के लिए बहुत प्रयास किये। उन्होंने पिछड़ी जातियों को ईश्वर के नाम पर ‘हरि – जन’ नाम दिया और जीवन पर्यन्त उनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहें।

गाँधी जी की आलोचना 

गांधी के सिद्धान्तों और करनी को लेकर प्रयः उनकी आलोचना भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिन्दु हैं-

  • दोनो विश्वयुद्धों में अंग्रेजों का साथ देना ।
  • खिलाफत आन्दोलनजैसे साम्प्रदायिक आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन बनाना।
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों के अंग्रेजों के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों की निन्दा करना।
  • गांधी-इरविन समझौता- जिससे भारतीय क्रन्तिकारी आन्दोलन को बहुत धक्का लगा।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष पद पर  सुभाष चन्द्र बोस  के चुनाव पर नाखुश होना।
  • चौरी चौरा काण्ड के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना।
  • भारत की स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू  को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना।
  • स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना।

Ans : 2 अक्टूबर 1869 को

Ans : गुजराती

Q : महात्मा गांधी किस धर्म के थे?

Ans : गान्धी सनातन धर्म की  पंसारी  जाति से सम्बन्ध रखते थे।

Ans : श्रीमद राजचंद्र जी

Ans : राजकुमारी अमृत

Ans : भारत को आजादी दिलाने में विशेष योगदान रहा था।

Ans : गुजरात के पोरबंदर में हुआ था।

Ans : 30 जनवरी 1948 को

Q : गांधी जी भारत कब वापस आये?

Ans : गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आए।

Ans : हिन्द स्वराज : सन 1909 में, माय एक्सपेरिमेंट वुईथ ट्रुथ

Ans : सत्य से संयोग नामक आत्मकथा महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई है।

Q : गांधी जी के पत्नी का क्या नाम था?

Ans : कस्तूरबा गांधी

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9 thoughts on “महात्मा गाँधी की प्रेरणादायी जीवनी | mahatma gandhi biography in hindi”.

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आपने महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है। कृपया आगे भी ऐसे ही जानकारी देते रहिएगा। धन्यवाद

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गाँधी जी के विचार में ताकत थी. उनकी जीवनी हमें स्कूल के जीवन की याद दिलाती है. आपके लेख का मै बहुत ही अभारी हूँ. धन्यवाद

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pagal aashu roy

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बहुत ही शानदार लेख है हमें बहुत अच्छी लगी |

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Very bad information.Mahatma Gandhi ne afrika men to kale gore ke bhed bhav ko door krne ka pryas kiya lekin bharat me nahin.

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय | Mahatma gandhi history in hindi

महात्मा गांधी की जीवनी .

महात्मा गांधी (मोहनदास करमचंद गांधी) अपने कई अनुयायियों के लिए महात्मा, या “महान आत्मा वाले” के रूप में जाने जाते है । उन्होंने 1900 के दशक की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय अप्रवासी के रूप में अपनी सक्रियता शुरू की, और प्रथम विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में ग्रेट ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारत के संघर्ष में अग्रणी व्यक्ति बन गए। अपनी तपस्वी जीवन शैली के लिए जाने जाते हैं – वे अक्सर केवल एक लंगोटी और शॉल पहनते हैं – और हिंदू धर्म के प्रति आस्था रखते हैं, गांधी को असहयोग की खोज के दौरान कई बार कैद किया गया था, और भारत के सबसे गरीब वर्गों के उत्पीड़न का विरोध करने के लिए कई भूख हड़ताल की, अन्य अन्याय के बीच। 1947 में विभाजन के बाद, उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांति की दिशा में काम करना जारी रखा। गांधी की जनवरी 1948 में दिल्ली में एक हिंदू कट्टरपंथी ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।

प्रारंभिक जीवन

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, वर्तमान भारतीय राज्य गुजरात में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे. उनकी गहरी धार्मिक मां वैष्णव (हिंदू भगवान विष्णु की पूजा) की पूजा के लिए समर्पित थे. जो जैन धर्म से प्रभावित थीं, आत्म-अनुशासन और अहिंसा के सिद्धांतों द्वारा शासित एक तपस्वी धर्म। 19 साल की उम्र में, मोहनदास ने शहर के चार लॉ कॉलेजों में से एक, इनर टेम्पल में लंदन में कानून की पढ़ाई के लिए घर छोड़ दिया। १८९१ के मध्य में भारत लौटने पर, उन्होंने बंबई में एक कानून अभ्यास की स्थापना की, लेकिन उन्हें बहुत कम सफलता मिली। उन्होंने जल्द ही एक भारतीय फर्म के साथ एक पद स्वीकार कर लिया जिसने उन्हें दक्षिण अफ्रीका में अपने कार्यालय में भेज दिया। गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबाई और उनके बच्चों के साथ लगभग 20 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।

क्या तुम्हें पता था? अप्रैल-मई 1930 के प्रसिद्ध नमक मार्च में, अहमदाबाद से अरब सागर तक हजारों भारतीयों ने गांधी का अनुसरण किया। मार्च के परिणामस्वरूप लगभग 60,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें स्वयं गांधी भी शामिल थे।

दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय अप्रवासी के रूप में उनके द्वारा अनुभव किए गए भेदभाव से गांधी स्तब्ध थे। जब डरबन में एक यूरोपीय मजिस्ट्रेट ने उसे अपनी पगड़ी उतारने के लिए कहा, तो उसने मना कर दिया और अदालत कक्ष से निकल गया। प्रिटोरिया के लिए एक ट्रेन यात्रा पर, उन्हें प्रथम श्रेणी के रेलवे डिब्बे से बाहर निकाल दिया गया था और एक यूरोपीय यात्री के लिए अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के बाद एक सफेद स्टेजकोच चालक द्वारा पीटा गया था। उस ट्रेन यात्रा ने गांधी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में कार्य किया, और उन्होंने जल्द ही सत्याग्रह (“सत्य और दृढ़ता”), या निष्क्रिय प्रतिरोध की अवधारणा को अधिकारियों के साथ असहयोग के तरीके के रूप में विकसित करना और पढ़ाना शुरू कर दिया।

निष्क्रिय प्रतिरोध का जन्म

1906 में, ट्रांसवाल सरकार द्वारा  भारतियों के पंजीकरण के संबंध में एक अध्यादेश पारित करने के बाद, गांधी ने सविनयअवज्ञा के एक अभियान का नेतृत्व किया जो अगले आठ वर्षों तक चला । 1913 में अपने अंतिम चरण के दौरान, महिलाओं सहित दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले सैकड़ों भारतीय जेल गए, और हजारों हड़ताली भारतीय खनिकों को कैद किया गया, कोड़े मारे गए और यहां तक ​​कि गोली मार दी गई। अंत में, ब्रिटिश और भारतीय सरकारों के दबाव में, दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने गांधी और जनरल जेन क्रिश्चियन स्मट्स द्वारा किए गए समझौते को स्वीकार कर लिया, जिसमें भारतीय विवाहों की मान्यता और भारतीयों के लिए मौजूदा  टैक्स को खत्म  करने जैसी महत्वपूर्ण बाते शामिल थीं।

जुलाई 1914 में महात्मा गांधी, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट गए। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का समर्थन किया, लेकिन उन उपायों के लिए औपनिवेशिक अधिकारियों की आलोचना की जो उन्हें अन्यायपूर्ण लगे। 1919 में, महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियमों के संसद के पारित होने के जवाब में निष्क्रिय प्रतिरोध का एक संगठित अभियान शुरू किया, जिसने औपनिवेशिक अधिकारियों को विध्वंसक गतिविधियों को दबाने के लिए आपातकालीन शक्तियां दीं। अमृतसर में एक बैठक में भाग लेने वाले लगभग 400 भारतीयों के ब्रिटिश नेतृत्व वाले सैनिकों द्वारा नरसंहार सहित हिंसा शुरू होने के बाद वह पीछे हट गये, लेकिन केवल अस्थायी रूप से, और 1920 तक वह भारतीय स्वतंत्रता के आंदोलन में सबसे अधिक कार्य करने वाले व्यक्ति थे ।

गृह शासन के लिए अपने अहिंसक असहयोग अभियान के हिस्से के रूप में, महात्मा गांधी ने भारत के लिए आर्थिक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने ब्रिटेन से आयातित वस्त्रों को बदलने के लिए विशेष रूप से खादर, या होमस्पून कपड़े के निर्माण की वकालत की। गांधी की वाक्पटुता और प्रार्थना, उपवास और ध्यान पर आधारित एक तपस्वी जीवन शैली के आलिंगन ने उन्हें उनके अनुयायियों का सम्मान दिलाया, जिन्होंने उन्हें महात्मा (“महान आत्मा वाला” के लिए संस्कृत) कहा।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC या कांग्रेस पार्टी) के सभी अधिकार के साथ निवेशित, गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक विशाल संगठन में बदल दिया, जिससे ब्रिटिश निर्माताओं और संस्थानों का बहिष्कार किया गया, जो भारत में ब्रिटिश प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते थे, जिसमें विधायिका और स्कूल भी शामिल थे।

छिटपुट हिंसा भड़कने के बाद, गांधी ने अपने अनुयायियों को निराश करते हुए, प्रतिरोध आंदोलन की समाप्ति की घोषणा की। ब्रिटिश अधिकारियों ने मार्च 1922 में गांधी को गिरफ्तार कर लिया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया; उन्हें छह साल जेल की सजा सुनाई गई थी लेकिन 1924 में एपेंडिसाइटिस के ऑपरेशन के बाद रिहा कर दिया गया था। उन्होंने अगली सेवा के लिए राजनीति में सक्रिय भागीदारी से परहेज किया.

पुराने वर्षों में, लेकिन 1930 में नमक पर औपनिवेशिक सरकार के कर के खिलाफ एक नया सविनय अवज्ञा अभियान शुरू किया, जिसने भारत के सबसे गरीब नागरिकों को बहुत प्रभावित किया।एक विभाजित आंदोलन 1931 में, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा कुछ रियायतें दिए जाने के बाद, गांधी ने फिर से प्रतिरोध आंदोलन को बंद कर दिया और लंदन में गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सहमत हो गए।

इस बीच, उनकी पार्टी के कुछ सहयोगी-विशेषकर मोहम्मद अली जिन्ना, जो भारत के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए एक प्रमुख आवाज थे- महात्मा गांधी के तरीकों से निराश हो गए, और उन्होंने इसे ठोस लाभ की कमी के रूप में देखा। एक नई आक्रामक औपनिवेशिक सरकार द्वारा उनकी वापसी पर गिरफ्तार, गांधी ने भारत के तथाकथित “अछूतों” (गरीब वर्गों) के इलाज के विरोध में भूख हड़ताल की एक श्रृंखला शुरू की, जिसका नाम उन्होंने हरिजन, या “भगवान के बच्चे” रखा। उपवास के कारण उनके अनुयायियों में हड़कंप मच गया और परिणामस्वरूप हिंदू समुदाय और सरकार द्वारा तेजी से सुधार किए गए।

1934 में, महात्मा गांधी ने ग्रामीण समुदायों के भीतर काम करने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, कांग्रेस पार्टी से अपने इस्तीफे के साथ-साथ राजनीति से अपनी सेवानिवृत्ति की घोषणा की। द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने से राजनीतिक मैदान में वापस आ गए, गांधी ने फिर से आईएनसी पर नियंत्रण कर लिया, युद्ध के प्रयासों के साथ भारतीय सहयोग के बदले में भारत से ब्रिटिश वापसी की मांग की। इसके बजाय, ब्रिटिश सेना ने पूरे कांग्रेस नेतृत्व को बंदी बना लिया, जिससे आंग्ल-भारतीय संबंधों को एक नए निम्न स्तर पर लाया गया।

विभाजन और मृत्यु

1947 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद, ब्रिटिश, कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग (अब जिन्ना के नेतृत्व में) के बीच भारतीय गृह शासन पर बातचीत शुरू हुई। उस वर्ष बाद में, ब्रिटेन ने भारत को अपनी स्वतंत्रता प्रदान की लेकिन देश को दो प्रभुत्वों में विभाजित कर दिया: भारत और पाकिस्तान। गांधी ने विभाजन का कड़ा विरोध किया, लेकिन वे इस उम्मीद में सहमत हुए कि स्वतंत्रता के बाद हिंदू और मुसलमान आंतरिक रूप से शांति प्राप्त कर सकते हैं। विभाजन के बाद हुए बड़े दंगों के बीच, गांधी ने हिंदुओं और मुसलमानों से एक साथ शांति से रहने का आग्रह किया, और कलकत्ता में दंगे बंद होने तक भूख हड़ताल की।

जनवरी 1948 में, महात्मा गांधी ने एक और उपवास किया, इस बार दिल्ली शहर में शांति लाने के लिए। 30 जनवरी को, उपवास समाप्त होने के 12 दिन बाद, गांधी दिल्ली में एक शाम की प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे, जब उन्हें नाथूराम गोडसे ने गोली मार दी थी, जो महात्मा के जिन्ना और अन्य मुसलमानों के साथ बातचीत करने के प्रयासों से क्रोधित हिंदू कट्टरपंथी थे। अगले दिन, लगभग 1 मिलियन लोगों ने जुलूस का अनुसरण किया क्योंकि गांधी के शरीर को शहर की सड़कों के माध्यम से राज्य में ले जाया गया और पवित्र जमुना नदी के तट पर अंतिम संस्कार किया गया।

It's Hindi

महात्मा गांधी.

जन्म : 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, काठियावाड़ एजेंसी (अब गुजरात)

मृत्यु : 30 जनवरी 1948, दिल्ली

कार्य/उपलब्धियां: सतंत्रता आन्दोलन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

महात्मा गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धान्तो पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गान्धी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित किया था।

महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए मिशाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिये कहा। उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा। वह सदैव परम्परागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनते थे। सदैव शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिये कई बार लम्बे उपवास भी रक्खे।

सन 1915 में भारत वापस आने से पहले गान्धी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिये संघर्ष किया। भारत आकर उन्होंने समूचे देश का भ्रमण किया और  किसानों, मजदूरों और श्रमिकों को भारी भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये एकजुट किया। सन 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कार्यों से देश के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने सन 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन से खासी प्रसिद्धि प्राप्त की। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौकों पर गाँधी जी कई वर्षों तक उन्हें जेल में भी रहे।

प्रारंभिक जीवन

मोहनदास करमचन्द गान्धी का जन्म भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वह नियमित रूप से व्रत रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। इस प्रकार मोहनदास ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा,  शाकाहार,  आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।

सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। शैक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह अप्रसन्न ही रहे और कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए।

विदेश में शिक्षा और वकालत

मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान) बन सकते थे। उनके एक परिवारक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी कि एक बार मोहनदास लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के अन्य सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आस्वासन पर राज़ी हो गए। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। अपने माँ को दिए गए वचन के अनुसार ही उन्होंने लन्दन में अपना वक़्त गुजारा। वहां उन्हें शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई और शुरूआती दिनो में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले रेस्टोरेंट्स के बारे में पता लगा लिया। इसके बाद उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया।

जून 1891 में गाँधी भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी मां के मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरू कर दिया परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

आख़िरकार सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य  स्वीकार कर लिया।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893-1914)

गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे।

दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के ज़ुलु युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गाँधी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)

वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे। प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह

बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी।  इस कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। कुल मिलाकर  स्थिति बहुत निराशाजनक थी। गांधीजी ने गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति बद्तर हो गयी और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे। खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।

खिलाफत आन्दोलन

कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला। खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी। भारत में खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए। भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया। इसके बाद गाँधी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर था।

असहयोग आन्दोलन

गाँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें। इसी बीच जलियावांला नरसंहार ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी।

गांधी जी ने स्वदेशी नीति का आह्वान किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। उन्होंने पुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।

असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया। इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाई गयी। ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया।

स्वराज और नमक सत्याग्रह

असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ़्तारी के बाद गांधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे।

इसी समय अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया पर उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसके कारण भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया। इसके पश्चात दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा। अंग्रेजों द्वारा कोई जवाब नहीं मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसके पश्चात गांधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा।

इसके बाद लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गांधी-इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमति दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रहा। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।

1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।

हरिजन आंदोलन

दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अँगरेज़ सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए अभियान की यह शुरूआत थी। 8 मई 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अमबेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की।

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’

द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ में गांधी जी अंग्रेजों को ‘अहिंसात्मक नैतिक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गांधी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजादी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी  तरफ लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था। जैसे-जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया।

‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई। इस संघर्ष में हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए। गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।

जैसा कि सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।

देश का विभाजन और आजादी

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आज़ाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ, जिन्ना के नेतृत्व में एक ‘अलग मुसलमान बाहुल्य देश’ (पाकिस्तान) की भी मांग तीव्र हो गयी थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र  ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग था पर ऐसा हो न पाया और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधी जी की हत्या

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी।

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महात्मा गांधी जीवनी - Mahatma Gandhi biography in hindi

Mahatma Gandhi – The Father of The Nation / महात्मा गांधी

महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi biography in hindi – 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ ।परंतु देश को आजाद करने में, ना जाने कितने लोगों ने अपना जीवन निछावर कर दिया ।यहां आजादी के लिए लड़ने वाले दो अलग-अलग विचारधाराओं में बटे  हुए थे —

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गांधी: मोहनदास से महात्मा बनने का सफर.

  • 01 Oct, 2022 | विमल कुमार

biography about mahatma gandhi in hindi

2 अक्तूबर को महात्मा गांधी की जयंती है। आज गांधी होते तो 153 वर्ष के हो गए होते। इतने लंबे वक्त तक जिंदा रहना तो बेहद कठिन है लेकिन जन के मन में गांधी आज भी जिंदा हैं। 30 जनवरी 1948 को शारीरिक प्रस्थान से गांधी का अंत नहीं हुआ। शारीरिक प्रस्थान से किसी का अंत होता भी नहीं है। अपनी मौत के बाद भी सभी जीते हैं, हाँ कोई कम और कोई ज्यादा। गांधी शारीरिक रूप से 125 वर्ष तक जीने की इच्छा रखते थे लेकिन तत्कालीन हिंदुस्तान की हालत को देखते हुए 79 वर्ष की उम्र में उन्होंने कहा कि “मैं अब जिंदा रह कर क्या करूँगा, अब मैं और नहीं जीना चाहता।” गांधी हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके विचारों का प्रसार लगातार होता रहा और होता रहेगा। ‛हरिजन’ में उन्होंने लिखा भी था कि, “उम्र से बूढ़ा होने पर भी मुझे नहीं लगता कि मेरा आंतरिक विकास रुक गया है या काया के विसर्जन के बाद रुक जाएगा।” आज गांधी संपूर्ण विश्व में एक गतिमान विचार के रूप में मौजूद हैं। निर्मल वर्मा ने गांधी के बारे में ठीक ही कहा है, “गांधी दुनिया में सबसे कम जगह घेरने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने जगह घेरी तो दिल और दिमाग में।”

2 अक्तूबर को पूरी दुनिया में “अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 जून, 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर दुनिया से यह आग्रह किया कि वे शांति और अहिंसा के विचार पर अमल करें और महात्मा गांधी के जन्मदिवस को "अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस" के रूप में मनाएँ। इस दिवस का उद्देश्य है, सम्पूर्ण विश्व में शांति स्थापित करना और अहिंसा का मार्ग अपनाना। इसके अतिरिक्त शांति, सहिष्णुता, समझ और अहिंसा की संस्कृति को बढ़ावा देना। संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के अनुसार यह दिन "शिक्षा और जन जागरूकता सहित अहिंसा के संदेश को प्रसारित करने" का एक अवसर है।

व्यक्तित्व और कृतित्व-

गांधी के मोहनदास से महात्मा बनने का सफर इतना आसान नहीं है। इस सफर को मात्र कुछ शब्दों में समेटा भी नहीं जा सकता। आइंस्टाइन का यह कथन गांधी की महत्ता बताने के लिये पर्याप्त है कि “आने वाली पीढ़ियाँ विश्वास नहीं करेंगी कि इस धरती पर गांधी जैसा कोई हाँड-माँस का शरीर रहा होगा।”

रामचंद्र गुहा ठीक कहते हैं कि, “गांधी ने जो दो दशक दक्षिण अफ्रीका में बिताए वे गांधी को महात्मा बनने की राह पर ले गए।” गांधी के व्यक्तित्व को उनके पारिवारिक संस्कारों ने जरूर गढ़ा था लेकिन गांधी के मुखर व्यक्तित्व की निर्मिती में दक्षिण अफ्रीका प्रवास का महत्वपूर्ण योगदान है। दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के 21 वर्षों में गांधी का जीवन और विचार कई महत्त्वपूर्ण बदलावों से गुजरे।

दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान गांधी को कई प्रकार के अपमानजनक अनुभव मिले। उन्होंने इस अपमान के विरुद्ध संघर्ष की राह का चुनाव किया। दक्षिण अफ्रीका में ही उन्होंने सार्वजनिक जीवन में पदार्पण किया और लगातार विस्तार करते गए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका तथा भारत में संगठित प्रयास के लिये ‘नटाल इंडियन कांग्रेस' (1894), ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन(1902), हरिजन सेवक संघ (1933) जैसे संगठनों का निर्माण किया।

अपने विचारों के प्रसार के लिये उन्होंने इंडियन ओपिनियन, ग्रीन पम्फलेट, नवजीवन, यंग इंडिया, हरिजन जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया। अपने विचारों को मूर्त रूप देने के लिये फिनिक्स आश्रम, टॉलस्टॉय फॉर्म, साबरमती तथा सेवाग्राम जैसे महत्वपूर्ण आश्रमों की स्थापना भी की। जो कि स्वराज्य प्राप्ति में सहायक साबित हुए।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एवं गांधी-

दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटते समय गांधी के पास एक सुस्पष्ट कार्यपद्धती और भारत के पुनरुत्थान के लिये एक सुविचारित कार्यक्रम था। चंपारण आंदोलन(1917), खेड़ा सत्याग्रह(1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल(1918) में सफल नेतृत्व की बदौलत गांधी भारत आगमन के चार सालों के अंदर ही प्रभावशाली राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरे। उनकी नैतिकतावादी भाषा, जटिल व्यक्तित्व, स्पष्ट दृष्टि, सांस्कृतिक प्रतीकों का इस्तेमाल, आचरण और असाधारण आत्मविश्वास ने देशवासियों को प्रभावित किया। असहयोग आंदोलन(1920) सविनय अवज्ञा आंदोलन(1930) और भारत छोड़ो आंदोलन(1942) गांधी के प्रयोगों के माध्यम से भारतीय जनमानस का ब्रिटिश उपनिवेशवादी सत्ता के प्रति आक्रोश को अभिव्यक्त करने का माध्यम बना। जिससे स्वाधीनता की राह आसान हुई। गांधी की अनुपस्थिति में हम भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की कल्पना नहीं कर सकते हैं।

गांधी को समझने हेतु उनके चिंतन को समझना बेहद जरूरी है। उनका चिंतन बहुआयामी है। इसका मुख्य कारण गांधी बहुत सारे विचारों से प्रभावित थे और अनुभव के आधार पर उनमें स्वीकारोक्ति का भी भाव था। गांधी हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों मुख्य रूप से गीता और रामायण से प्रभावित थे। अहिंसा और शांति का विचार उन्होंने बौद्ध धर्म से लिया था। अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का विचार उन्होंने जैन धर्म से स्वीकार किया था। इस्लाम की बंधुता और ईसाईयत का दया भाव उनको प्रभावित करता था। इसके अतिरिक्त गांधी टॉलस्टॉय, थोरो और रस्किन के विचारों से भी प्रभावित थे।

गांधी ने अपने मत के पक्ष में सदैव वाद-विवाद और संवाद किया। स्वाधीनता संग्राम के दौरान गांधी ने जितने भी कदम उठाए, उनका यही उद्देश्य था कि अपने विचारों को जमीन पर उतारा जा सके। उनके लिये वे विचार निरर्थक थे जिन्हें जिया न जा सके। जहाँ ज़रूरी लगा गांधी अपना मत परिवर्तन करने से हिचके भी नहीं। गांधी सदैव सिद्धांत निर्माण के बजाय कर्म में विश्वास करते रहे।

गांधी के जीवन और चिंतन का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष साध्य और साधन की पवित्रता रही। गांधी यहीं पर पश्चिम के मैकियावेली जैसे विचारकों से अलग दिखते हैं। गांधी के भीतर आजीवन एक नैतिक संघर्ष चलता रहा। इसे वे आत्मपरीक्षण कहते थे। गांधी एक-एक भाव की जाँच करते थे। जो ग्रहण करने योग्य होता था उसके अनुरूप आचरण करते थे। गांधी धर्म को भी नैतिक अनुशासन की व्यवस्था मानते थे। गांधी के संपूर्ण चिंतन का अवलोकन करने के पश्चात हम कह सकते हैं कि वह एक ‛नैतिक आदर्शवादी’ हैं। उनके राजनीतिक विचारों के आलोक में उन्हें ‛दार्शनिक अराजकतावादी’ भी कहा जाता है।

गांधी के महत्त्वपूर्ण विचारों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत समझा जा सकता है-

सत्य और अहिंसा-

गांधी के लिये अहिंसा साधन है और सत्य साध्य है। उनका मानना था कि उन्होंने सत्य की अपनी खोज में अहिंसा को प्राप्त किया है। वे कहते हैं, “मेरे लिये अहिंसा का स्थान स्वराज से पहले है।” गांधी के लिये सत्य कोई अंतिम दावा नहीं था। सत्य उनके लिये प्रयोग का विषय था। उनका मानना था सत्य अपने-अपने अनुभव और विवेक की प्रयोगशाला में स्वयं को परखने की चीज है। वे कहते हैं, “मेरे निरंतर अनुभव ने यह विश्वास दिला दिया है कि सत्य से अलग कोई ईश्वर नहीं है।” इसलिये उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम भी “सत्य के साथ मेरे प्रयोग” रखा।

गांधी के लिये सत्याग्रह, स्वराज प्राप्ति का साधन है। जिसके लिये वे असहयोग और सविनय अवज्ञा जैसी नैतिक दबाव वाली तकनीकों का प्रयोग करते हैं। वे सत्य पर अडिग रहते हुए हृदय परिवर्तन पर बल देते हैं। हम कह सकते हैं कि सत्याग्रह एक प्रकार से सामाजिक क्रांति का गांधीवादी तरीका है। के. एल. श्रीधरानी ने इसे ‛हिंसाविहीन युद्ध’ भी कहा है।

गांधी के लिये स्वराज प्राप्ति का अर्थ सिर्फ राजनीति स्वतंत्रता प्राप्त करना नहीं है बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक स्वाधीनता है। व्यक्ति के लिये वह इसे स्वनियंत्रण से जोड़ते हैं। गांधी कहते हैं- “मैं ऐसे भारत के निर्माण का प्रयत्न करूँगा जिसमें निर्धन से निर्धन मनुष्य भी यह अनुभव करेगा कि यह मेरा अपना देश है और इसके निर्माण में मेरा पूरा अपना हाथ है।”

गांधी औद्योगीकरण का विरोध करते हुए आत्मनिर्भरता हेतु स्वदेशी पर बल देते हैं। औद्योगिक सभ्यता के इस दौर में गांधी का स्वदेशी से संबंधित विचार देश के आर्थिक निर्माण का मार्गदर्शक सिद्धांत है। उन्होंने भारतीय समाज की संस्कृति का स्मरण कराने वाले प्रतीकों का समूह बनाया। जिसमें चरखा, खादी, गाय एवं गांधी टोपी शामिल था।

सर्वोदय का अर्थ है सबका उदय। यह एक प्रकार से गांधीवादी समाजवाद है। सर्वोदय ऊपर से नीचे नहीं नीचे से ऊपर जाने वाला रास्ता है। समाज की बुनियाद इकाइयों और संरचनाओं से इसकी शुरुआत होती है। गांधी ने सभी वर्गों मुख्य रूप से अछूतों, महिलाओं, कामगारों एवं किसानों के उत्थान के लिये रचनात्मक कार्यक्रमों का भी संचालन किया। सर्वोदय की अवधारणा से ही भूदान आंदोलन का जन्म हुआ।

आधुनिकता सभ्यता और गांधी-

महात्मा गांधी राष्ट्र उत्थान के लिये सभी प्रकार के विचारों का स्वागत करते थे लेकिन किसी भी देश की उन्नति के लिये उस देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को सिर्फ पश्चिमी सभ्यता में ढालने के पक्षधर नहीं थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि पश्चिमी सभ्यता मनुष्य को उपभोक्तावाद का रास्ता दिखा कर नैतिक पतन की ओर ले जाती है; नैतिक उत्थान का रास्ता आत्मसंयम और त्याग की भावना की मांग करता है। गांधी जी ने पश्चिमी सभ्यता और आधुनिक सभ्यता को समवर्ती मानते हुए उसकी विस्तृत समीक्षा की। वर्ष 1927 में 'यंग इंडिया' के अंतर्गत उन्होंने लिखा कि, “ मैं यह नहीं मानता कि इच्छाओं को बढ़ाने, उनकी पूर्ति के साधन जुटाने से संसार अपने लक्ष्य की ओर एक कदम भी बढ़ पाएगा। आज की दुनिया में दूरी और समय के अंतराल को कम करने, भौतिक इच्छाओं को बढ़ाने और उनकी तृप्ति के लिये धरती का कोना-कोना छान मारने की अंधी दौड़ चल रही है, वह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। यदि आधुनिक सभ्यता के यही सब लक्षण हैं और मुझे इसके यही लक्षण समझ आते हैं तो मैं इसे शैतानी सभ्यता कहता हूँ।”

गांधी जी ने 'हिंद स्वराज' के अंतर्गत लिखा है कि, “आधुनिक सभ्यता दिखावटी तौर पर समानता के सिद्धांत को सम्मान देती है, परंतु यथार्थ के धरातल पर यह प्रजातिवाद को बढ़ावा देती है। इसमें अश्वेत जातियों को मानवीय गरिमा से वंचित रखा जाता है और उनका भरपूर शोषण किया जाता है। कहीं उन्हें दास बनाकर तो कहीं बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता है।” गांधीजी के अनुसार, “आधुनिक सभ्यता के अंतर्गत चेतन की तुलना में जड़ को, प्राकृतिक जीवन की तुलना में यांत्रिक जीवन को और नैतिकता की तुलना में राजनीति और अर्थशास्त्र को ऊँचा स्थान दिया जाता है।”

गांधी की प्रासंगिकता-

गांधी बीसवीं सदी के सबसे सार्थक, सक्रिय और सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्तित्व रहे। आज 21वीं सदी के दो दशक बाद भी गांधी और उनके विचार संपूर्ण विश्व के लिये जरूरी प्रतीत होते हैं। वैश्वीकृत, समकालीन आधुनिक भौतिकतावादी समाज में जहाँ असंतोष ,अवसाद, असमानता व असंवेदनशीलता जैसी समस्याएँ हावी हैं वहाँ विकास से जुड़ी समस्याओं के संदर्भ में गांधीवादी चिंतन ना सिर्फ प्रासंगिक है बल्कि इसमें विशेष अभिरुचि भी ली जा रही है। गांधी के विचारों को आधार बनाकर कई देशों ने स्वाधीनता हासिल की।

चूँकि गांधी सदैव विकेंद्रीकरण के समर्थक रहे इसलिये गांधी का चिंतन वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिये बेहद उपयोगी है। गांधी ने श्रम की गरिमा को मानव गरिमा से जोड़ा। पूंजीवाद और मानव मूल्यों के क्षरण के इस दौर में मानव गरिमा को बचाए रखने हेतु गांधी का चिंतन बेहद जरूरी है। विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय संकट से जूझ रहे संपूर्ण विश्व के समक्ष गांधी का चिंतन ना सिर्फ धारणीय विकास के अनुकूल है बल्कि सामाजिक समावेशन को बढ़ाने वाला है।

आज गांधी की बहुत मूर्तियाँ बनवाई जा चुकी हैं लेकिन असल प्रश्न यह है कि विचार और आचरण रूप में वह हमारी चेतना और व्यवहार में हैं और रहेंगे कि नहीं?

गांधी जयंती के अवसर पर आज हमें गांधी को महज रस्म अदायगी तक याद करने से बचना होगा। गांधी का व्यक्तित्व और चिंतन न सिर्फ भारत बल्कि संपूर्ण विश्व के लिये एक धरोहर है वर्तमान में इसे संरक्षित और संवर्द्धित करने की आवश्यकता है।

विमल कुमार

विमल कुमार, राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अध्ययन-अध्यापन के साथ विमल विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में समसामयिक सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर स्वतंत्र लेखन और व्याख्यान के लिए चर्चित हैं। इनकी अभिरुचियाँ पढ़ना, लिखना और यात्राएं करना है।

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biography about mahatma gandhi in hindi

महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi): भारत महान व्यक्ति की महान भूमि है. भारत की भूमि ऋषियों, संतों, कवियों, लेखकों, दार्शनिकों, सुधारकों, परोपकारियों और योग महापुरुषों को युगों-युगों तक लाभान्वित करके धन्य रही है. इस भूमि के बुरे समय में कई सारे महान व्यक्तियों का जन्म हुआ है. उन महापुरुषों में से एक अमर, परोपकारी, युग-निर्माता महात्मा गांधी हैं. तो चलिए महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma gandhi in Hindi) के बारे में विस्तार रूप से जानते हैं.

प्रस्तावना     

देश और राष्ट्र के बुरे समय में महापुरुष प्रकट होते हैं. व्यक्तिगत सुख और आत्मग्लानि को अनदेखा करते हुए, वे सभी महापुरुष मानव समाज के हित के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं. कई प्रतिकूल वातावरण और स्थितियों में, वे अपने जीवन के साथ आगे बढ़ते हैं. निस्वार्थ सेवा, बलिदान और समर्पित जीवन के लिए, उन्हें सार्वजनिक रूप से महापुरुष कहा जाता है. अपने स्वयं के सिद्धांतों और आदर्शों के आधार पर, वे जन-कल्याण को जीवन के संकल्प के रूप में लेते हैं. लंबे समय तक विदेशी शासन में रहे भारतीयों का सार्वजनिक जीवन बाधित हो गया था. भारत के इतने बुरे समय में एक महान व्यक्ति का जन्म हुआ. वे भारतमाता के एक योग्य संतान, जो सत्य और अहिंसा के संरक्षक, शांति और दोस्ती के सर्वोच्च साधक और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता महामहिम महात्मा गांधी थे. यह आदर्श पुरुष पूरे भारत में ‘राष्ट्रपिता’ के रूप में प्रतिष्ठित है. वह उसी समय एक ईमानदार राजनीतिज्ञ, प्रख्यात समाज सुधारक, प्रख्यात लोक सेवक, कुशल वकील और मजबूत मानवतावादी नेता थे.

संक्षिप्त जीवनी

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था. उनका असली नाम मोहनदास करमचंद गांधी था. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान, उन्हें ‘महात्मा गांधी’ के रूप में जाना जाता था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और  माता का नाम पुतुलीबाई गांधी था. उनका परिवार वैष्णव धर्म का अनुसरण करता था. गांधी कम उम्र से ही अपने धार्मिक माता-पिता से प्रभावित थे. वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे. इसलिए उनका बचपन काफी आनंद में बीता था. उस समय समाज में बाल विवाह का प्रचलन था. महज तेरह साल की उम्र में उन्होंने कस्तूरबा से शादी कर ली. राजकोट में स्कूल से शिक्षा समाप्त करने के बाद, उन्होंने सत्रह वर्ष की आयु में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद वह लंदन चले गए, जहाँ उन्होंने अपनी कानून की शिक्षा पूरी की और भारत लौट आए. भारत में कुछ दिनों की वकालत करके, वह दक्षिण अफ्रीका चले गए. वह दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे कर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए. आजादी के कुछ महीने बाद 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे नाम के एक व्यक्ति ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी. इस प्रकार 79 वर्ष की आयु में उनका जीवन समाप्त हो गया था.

mahatma gandhi ki jivani

दक्षिण अफ्रीका में गांधी   

उस समय, बहुत सारे भारतीय दक्षिण अफ्रीका में रह रहे थे. गांधीजी ने 1893 में दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले एक भारतीय व्यापारी के पक्ष में मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की. अपने प्रवास के दौरान, उन्होंने देखा कि गोरे लोग अश्वेत अफ्रीकियों और भारतीयों से घृणा कर रहे थे. उनकी नस्लवादी नीतियों ने गांधीजी को बहुत परेशान किया था. अफ्रीकियों के खिलाफ श्वेत सरकार का उत्पीड़न और दुराचार धीरे धीरे बढ़ने लगा था. इसलिए अफ्रीकियों और भारतीयों को संगठित करके, गांधीजी ने सत्य और अहिंसा के माध्यम से गोरों के खिलाफ एक आंदोलन चलाया. गांधीजी द्वारा इस तरह के आंदोलन को उस दिन के बाद से ‘सत्याग्रह’ के रूप में जाना जाता है. गांधीजी इस आंदोलन में सफल रहे. तब भारतीयों ने उन्हें “महात्मा” का ताज पहनाया. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह ने बाद में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया. इससे दुनिया के राजनीतिक इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई.

स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे आगे

गांधीजी के भारत लौटने से बहुत पहले, अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अन्याय और अत्याचार के कारण भारतीय बहुत दयनीय जीवन जी रहे थे. इसलिए गांधीजी ने भारतीय लोगों का प्रतिनिधित्व किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. बिहार के चंपारण में उत्पीड़ित किसानों का आंदोलन, अहमदाबाद में मजदूर आंदोलन, पंजाब के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और गांधीजी ने इन सभी आंदोलनों का नेतृत्व किया था. उन्होंने अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के पास एक आश्रम स्थापित किये और उस ‘साबरमती’ आश्रम से सत्याग्रह की रूपरेखा तैयार की. उनके मजबूत नेतृत्व में, 1921 में असहयोग आंदोलन, 1930 में नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का गठन किया गया. उन्हें इसके लिए बार-बार कैद किया गया, लेकिन वह निराश नहीं हुए और न ही अपने रास्ते से भटक गए. अपने दुःख-दर्द से भरे शरीर और अपनी पत्नी के खोने के दुःख के बावजूद, वह अपने मार्ग में बने रहे. जब उन्हें कैद किया गया था, तब भी उनके इशारे और प्रेरणा पर सत्याग्रह जारी रहा. आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार की नींव कमजोर पड़ने लगी. आखिरकार, 15 अगस्त 1947, को भारत को स्वतंत्रता मिली.

जीवन के सिद्धांत और आदर्श

महात्मा गांधी का जीवन दर्शन उच्चतम क्रम का था. वह सत्य और अहिंसा के पुजारी थे,  बलिदान और निस्वार्थता के प्रतीक थे. चरित्र निर्माण उनके जीवन की कुंजी थी. समानता और दोस्ती के साथ वह जीवन के लिए प्रसिद्ध थे, उनकी राय में, सभी मानव जाति, धर्म या रंग की परवाह किए बिना समान हैं. वह कर्म में विश्वास करते थे. इसलिए, उन्हें एक कार्यकर्ता के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है. उनके आदर्श कुटीर उद्योग के विकास और आत्मनिर्भरता थे. वह बड़े या छोटे, अमीर या गरीब, के साथ भेदभाव से दूर थे. धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव उनके जीवन के अंतिम लक्ष्य थे. गांधीजी के सरल और सहज जीवन यात्रा, निर्भरता और चरित्र के लिए हमेशा याद किया जाता है.

महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद, भारत ने एक नि: स्वार्थ लोक सेवक को खो दिया. हम आज भी उनके योजनाबद्ध राम राज्य  से बहुत दूर हैं. हालांकि महात्मा गांधी के भौतिक शरीर नहीं है फिर भी उनके आदर्श भारतीय लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं. उनकी अहिंसक सोच और सिद्धांत, यथार्थवादी विचार और न्यायसंगत निर्णय आज भी भारत के लोगों को प्रेरित कर रहा है. अतिवादी राष्ट्रवाद और निम्न नस्लीय दृष्टिकोण गांधीवाद के विपरीत हैं. यदि हम सभी भारतीय सत्य और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, तो गांधीजी की आत्मा को शांति मिलेगी.

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ये था हमारा लेख महात्मा गांधी की जीवनी (Biography of mahatma Gandhi in Hindi ). उम्मीद करता हूँ की आपको पसंद आया होगा. अगर आपको गांधीजी की बारे में और कुछ पता है, तो हमे comment करके बताएं. मिलते हैं.

1 thought on “महात्मा गांधी की जीवनी – Biography of mahatma Gandhi in Hindi”

Bohot lamba tha agee se please thora chota likhiyega .by the way thanks for your essay.

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hindi parichay

महात्मा गांधी की जीवनी: Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

Information About Mahatma Gandhi in Hindi:  श्री मोहनदास करमचंद गांधी जी (महात्मा गांधी) – (02 अक्टूबर 1869 – 30 जनवरी 1948) – महात्मा गांधी का जीवन परिचय आपको नीचे पढ़ने को मिलेगा।⇓

महात्मा गांधी जी को राष्ट्रीय पिता, बापू जी, महात्मा गांधी भी कहा जाता है। पूरे भारत वर्ष में महात्मा गांधी जी को सुपर फाइटर के नाम से भी जाना जाता है। जिन्होंने कई आंदोलन किये और जीते भी। इन्हे कौन नहीं जानता? पूरे भारत वर्ष में शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इन्हे नहीं जानता होगा। आज के इस लेख में हम बात केवल  महात्मा गांधी की जीवनी की ही नहीं उनसे जुड़ी घटनाओं की भी बात करेंगे।

जन्म तिथि 02 अक्टूबर 1869 , पोरबंदर (गुजरात) (समुन्द्रिय तट)
मृत्यु 30 जनवरी 1948, रात के समय बिड़ला भवन (नई दिल्ली) में हत्या की गयी थी (नाथूराम गोडसे द्वारा)
राष्ट्रीयता भारतीय (भारत में जन्म हुआ)
प्रसिद्ध नाम महात्मा गांधी जी, बापू जी, गाँधी जी
की जाती (CAST) गुजराती
शिक्षा प्राप्त की अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट, इनर यूनिवर्सिटी कॉलेज, लन्दन
पिता का नाम करमचंद गांधी, कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात मे पोरबंदर रियासत के प्रधानमंत्री थे।
माता का नाम पुतलीबाई
पत्नी का नाम कस्तूरबा गांधी

मैं आपको कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहा हूँ जिन्हें आपको जानने में बहुत आनंद आयेगा।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय पर निबंध

महात्मा गांधी जी भारत के मात्र एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे सम्पूर्ण भारत “बापू जी” के नाम से बुलाता है। बापू जी ने हमेशा एक सदाचार जीवन व्यतीत किया था। महात्मा गांधी जी एक साधारण परिवार में जन्मे थे और उन्होने अपना जीवन अपनी जनता के लिए बिताया। साधारण जीवन जीना बेहद ही मुश्किल होता है और ऐसे साधारण जीवन में बड़े बड़े काम कर देना भी कोई आसान काम नहीं है।

अगर मैं बात करू की गांधी जी ने ऐसा किया क्या जिसकी वजह से भारत की सम्पूर्ण जनसंख्या उन्हे “बापू जी” के नाम से बुलाते है। तो इसे जानने के लिए सम्पूर्ण लेख पढ़ना होगा। बेहद ही आसान शब्दों में  महात्मा गांधी का जीवन परिचय लिखा गया है कृपया ध्यानपूर्वक पढ़ें।

About Gandhiji in Hindi ( Short Bio )

महात्मा गांधी जी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर जिला में 02 अक्तूबर 1869 को एक साधारण से परिवार में उनका जन्म हुआ था। गांधी जी के पिता करमचंद गांधी , कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में पोरबंदर रियासत के प्रधानमंत्री थे। गांधी जी की माता अत्यधिक धार्मिक महिला थी, अत: उनका पालन पोषण वैष्णव माता को मानने वाले परिवार में हुआ और उन पर जैन धर्म का भी अधिक गहरा प्रभाव रहा। जिसकी वजह से इसके मुख्य सिद्धांतों जैसे- अहिंसा, आत्म शुद्धि और शाकाहार को उन्होंने अपने जीवन में उतारा था और गांधी जी भी इस नियम को मानते थे।

गांधी जी की शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट , यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन से पूरी हुई। पढ़ाई के बाद वो अपने देश भारत वापस लौट आए। गांधी जी का विवाह 13 वर्ष की आयु में ही कर दिया गया। विद्यालय में पढ़ने वाले गांधी जी का विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया था। अब हम Mahatma Gandhi Ke Bare Mein (महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी) विस्तार से जानते हैं।

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Essay on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी निबंध

गांधी जी का जन्म पश्चिमी भारत में गुजरात के एक तटीय पोरबंदर नामक स्थान पर 02 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी जी कट्टर हिन्दू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की छोटी रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे। बाद में वो उनके पिता जी सनातन धर्म की पंसारी जाती से सम्बन्ध रखते थे। वैसे गुजराती भाषा में गांधी का मतलब पंसारी से होता है। इसका मतलब इत्र (perfume) बेचने वाला भी होता है।

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महात्मा गांधी की माता का नाम पुतलीबाई था और वो परनामी वैश्य समुदाय की थी। महात्मा गांधी जी के पिता की पहले तीन पत्नियां थी और प्रसव पीड़ा के कारण उनकी मृत्यु हुई थी जिस कारण करमचंद गांधी जी का चौथा विवाह करना पड़ा था। उनकी माता पहले से ही भगवान की पूजा पाठ में व्यस्त रहती थी तो उनका ये सकारात्मक प्रभाव गांधी जी पर भी पड़ा। जिसकी वजह से गांधी जी हमेशा कमजोरों में ताकत व ऊर्जा की भावना जगाते रहते थे, शाकाहारी खाना, आत्मा की शुद्धि के लिए व्रत भी किया करते थे।

महात्मा गांधी की शिक्षा: Mahatma Gandhi Education in Hindi

बम्बई यूनिवर्सिटी से मेट्रिक 1887 ई में पास किया और उसके आगे की शिक्षा भावनगर के शामलदास स्कूल से ग्रहण की। दोनों ही परीक्षाओं में वह शैक्षणिक स्तर वह एक औसत छात्र रहे। उनका परिवार उन्हें बैरिस्टरी बनाना चाहता था। 4 सितम्बर 1888 ई, को गांधी जी बैरिस्टरी की शिक्षा के लिए लंदन गए जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लंदन ( University College London ) में दाखिला (ADMISSION) लिया।

गांधी जी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी इस नियम को बनाए रखा। जिस रवैये ने गांधी जी के व्यक्तित्व को लंदन में एक अलग छवि प्रदान की। गांधी जी ने शाकाहारी मित्रों की खोज की और थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के कुछ मुख्य सदस्यों से मिले। इस सोसाइटी की स्थापना विश्व बंधुत्व (संपूर्ण एकता) के लिए 1875 ई में हुई थी और तो और इसमें बोध धर्म सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

About Mahatma Gandhi in Hindi | ( वकालत का आरम्भ )

  • 👉 इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाये जाने पर गांधी जी वापस मुंबई लौट आये और यहां अपनी वकालत शुरू की।
  • 👉 मुंबई (बम्बई) में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी को अंशकालिक शिक्षक के पद पर काम करने के लिए अर्जी दाखिल की किन्तु वो भी अस्वीकार हो गयी।
  • 👉 जीविका के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जियां लिखने का कार्य आरम्भ करना पड़ा। परन्तु कुछ कारणवश उनको यह काम भी छोड़ना पड़ा।
  • 👉 1893 ई में गांधी जी एक वर्ष के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।
  • 👉 दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

Mahatma Gandhi Biography in Hindi Short

महात्मा गांधी जी का विवाह

महात्मा गांधी जी का विवाह कब और किसके साथ हुआ?

सन् 1883 में उनका विवाह कस्तूरबा माखनजी से हुआ। उस समय गांधी जी की उम्र केवल साढ़े तेरह वर्ष थी (13.5 years) और कस्तूरबा मखंजी जी 14 वर्ष की थी। गांधी जी, “कस्तूरबा”  जी को “बा” कह कर बुलाते थे। यह बाल विवाह उनके माता पिता द्वारा तय करा गया था| गाँधी जी और कस्तूरबा जी की उम्र कम थी और उस समय बाल किशोरी दुल्हन को अपने माता पिता के घर रहने का नियम था। कुछ 2 साल बाद सन् 1885 में गांधी जी 15 साल के हो गये थे और तभी उन्हें पहली संतान ने जन्म लिया था, लेकिन कुछ ही समय पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी और उसी वर्ष गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी की मृत्यु हो गयी।

महात्मा गांधी के बेटे का नाम क्या था

  • हरिलाल गांधी (1888 ई)
  • मणिलाल गांधी (1892 ई)
  • रामदास गांधी (1897 ई)
  • देवदास गांधी (1900 ई)

विदेश में वकालत व शिक्षा: महात्मा गांधी का जीवन परिचय

4 सितम्बर 1888 ई को गांधी जी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून (law) की शिक्षा ग्रहण करने व बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गये। भारत छोड़ते वक्त जैन भिक्षु बेचारजी की दी गयी।

सिख व अपनी माता को दिए गये वचन की “मास मदिरा” का सेवन न करने को लंदन में काफी सक्षम रखा।

हांलाकि, महात्मा गांधी जी ने लंदन में रह कर वहां की सभी रीति रिवाजों को अपनाया व अनुभव किया। उदाहरण के लिए गांधी जी वहां पर नृत्य कक्षाओं में भी जाया करते थे। मगर फिर भी उन्होंने कभी भी अपनी मकान मालकिन द्वारा बनाये मास एवं पत्ता गोभी को नहीं खाते थे। वे शाकाहारी भोजन खाने के लिए शाकाहारी भोजनालय जाते थे। उनकी माता से उन्हें काफी लगाव था वो अपनी माता की कही बातों पर बहुत अमल करते थे। इसी वजह से उन्होंने बौद्धिकता से शाकाहारी भोजन को ही अपनाया।

उन्होंने शाकाहारी समाज की सदस्यता अपनाई और इस कार्यकारी समिति के लिए उनका चयन भी हो गया। जहाँ उन्होंने एक स्थानीय अध्याय की नीव भी रखी। बाद में उन्होंने संस्थाए भी गठित की तभी उनकी मुलाकात कुछ शकाहारी लोगों से हुई जो थिओसोफिकल सोसाइटी के सदस्य थे। इस सोसाइटी की स्थापना 1875ई विश्व बंधुत्व को प्रबल करने के लिए बनाई गयी थी और बौध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्यन के लिए समर्पित किया गया था।

उन लोगों के विशेष रूप से कहे जाने पर गांधी जी ने श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ा और जाना। लेकिन गांधी जी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई में और अन्य प्रकार की जाती में विशेष रूचि नहीं रखते थे। इंग्लैंड और वेल्स एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद अंशकालिक नौकरी वो भी एक स्कूल में प्रार्थना पत्र भेजा वो भी आस्विकर हो गया जिसके कारण उन्हें जरूरतमंदों के लिए राजकोट को अपने मुकाम बना लिया। मगर एक अंग्रेज अधिकारी की बेवकूफी के कारण उन्हें यह पद भी छोड़ना पड़ा।

अपनी आत्मकथा में उन्होंने इस घटना का वर्णन अपने बड़े भाई की और से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है। इसी कारणवश उन्होंने 1893ई में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में, जो उन दिनों ब्रिटिश का भाग होता था, एक वर्ष के करार पर वकालत का कारोवार स्वीकार किया।

महात्मा गांधी पर निबंध 10 लाइन

Mahatma Gandhi History in Hindi

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा

  • महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका कब गए थे
  • दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के आश्रम का नाम
  • दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को क्या कहते हैं
  • दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास PDF

दक्षिण अफ्रिका में गांधीजी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

प्रथम श्रेणी कोच की वैध (VALID) टिकट होने के बाद भी उन्हें तीसरी श्रेणी (3rd category) के डिब्बे में भी जाने से मना कर दिया था और तो और पायदान पर बची हुई यात्रा पर एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक द्वारा मार भी खानी पड़ी। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई तरह की बेइज्जती सही और और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अफ्रीका के कई होटलों को उनके लिए बंद कर दिया गया।

इन घटनाओं में एक घटना ये भी थी जिसमें एक न्यायधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने के लिए भी कहा। दक्षिण में हो रहे अन्याय को गांधी जी दिल और दिमाग पर ले गये जिस कारण आगे गांधी जी ने अपना जीवन भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम उठाये।

भारत का स्वतंत्रता संघर्ष : महत्वपूर्ण तथ्य

सन् 1916 ई में गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आये और अपनी कोशिशों में लग गए।

कांग्रेस के लीडर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गयी थी। मगर पहले हम बात करेंगे चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन के बारें में।

चंपारण और खेड़ा आंदोलन | महात्मा गांधी का जीवन परिचय

1918 ई गांधी जी की पहली उपलब्धि चंपारण (CHAMPARAN) और खेडा सत्याग्रह आन्दोलन में मिली। नील की खेती जैसी खेती जिसे करने से किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा था। अपने खाने पीने तक का कोई खेती नहीं हो पा रही थी बस कुछ घर पर आता और बाकि पैसा कर्ज में काट लिया जाता था। कम पैसे कमाना और ज्यादा कर भरना किसानों पर जुल्म था जो की गांधी जी देखा नहीं गया।

गाँव में गंदगी, अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां भी फैलाने लगी थी। खेड़ा (KHEDA), गुजरात (GUJARAT) में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक आश्रम बनाया, वहां पर गांधी जी के सभी साथी और अपनी इच्छा से कई लोग आकर समर्थक के रूप में कार्य करने लगे। सबसे पहले तो गांधी जी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों में विश्वास उत्पन्न हुआ।

उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को पुलिस ने शोर शराबे से हुई परेशानी के कारण थाने में बंद कर दिया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया, बिना किसी कानूनी कारवाही के थाने से छुड़ाने को लेकर गांव वालों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया। गांधी जी ने अदालत में जमीदारों के खिलाफ टिप्पणी और हड़ताल का नेतृत्व भी किया और गांव के लोगों पर हुए कर वसूली व खेती पर नियंत्रण, राजस्व में बढ़ोतरी को रद्द करने जैसे कई मुद्दों पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाए।

Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay

महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

खिलाफत आंदोलन कब हुआ | महात्मा गांधी के आंदोलन के नाम

अब गांधी जी को ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं हिन्दू व मुस्लिम समाज में एकता की कमी की वजह से कमजोर पड़ रही हैं जो की कांग्रेस की नैया डूब भी सकती है तो गांधी जी ने दोनों समाजों हिन्दू व मुस्लिम समाज की एकता की ताकत के बल पर ब्रिटिश की सरकार को बाहर भगाने के प्रयास में जुट गए। इस उम्मीद में वे मुस्लिम समाज के पास गए और इस आन्दोलन को विश्वस्तरीय रूप में चलाया गया जो की मुस्लिम के कालिफ [CALIPH] के खिलाफ चलाया गया था।

गांधी जी सम्पूर्ण राष्ट्रीय के मुस्लिमों की कांफ्रेंस  [ALL INDIA MUSLIM CONFERENCE] रखी थी और वो खुद इस कॉन्फ्रेंस के प्रमुख व्यक्ति भी बने। गांधी जी की इस कोशिश ने उन्हें राष्ट्रीय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी एक खास जगह बन गयी। कुछ समय बाद ही गांधी जी की बनाई एकता की दीवार पर दरार पड़ने लग गई जिस कारण सन् 1922 ई में खिलाफत आन्दोलन पूरी तरह से बंद हो गया | गांधी जी सम्पूर्ण जीवन ‘हिन्दू मुस्लिम की एकता के लिए’, कार्य करते रहे मगर गांधी जी असफल रहे।

असहयोग आन्दोलन सन् 1920 ई | NON COOPERATION MOVEMENT IN HINDI

गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे और शांतिपूर्ण जीवन जीना पसंद करते थे। पंजाब में जब जलियांवाला नरसंहार जिसे सब अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता हैं। उस घटना ने लोगों के बीच काफी क्रोध और हिंसा की आग लगा दी थी।

दरअसल बात ये थी कि अंग्रेजी सरकार ने सन् 1919 ई रॉयल एक्ट लागू किया। उसी दौरान गांधी जी कुछ सभाएं भी आयोजित करते थे। एक दिन गांधी जी ने शांति पूर्ण एक सभा पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक आयोजित की थी और उस शांतिपूर्ण सभा को अंग्रेजों ने बहुत ही बुरी तरह रौंदा था जिसका वर्णन करते भी आंखों से आंसू आता है।

सन् 1920 ई में असहयोग आन्दोलन आरंभ किया गया । इस आन्दोलन का अर्थ था की किसी भी प्रकार से अंग्रेजों की सहायता न करना और किसी भी प्रकार की हिंसा का प्रयोग न की जाये। इस आन्दोलन को गांधी जी का प्रमुख आन्दोलन भी कहा जाता है।  असहयोग आन्दोलन सितम्बर 1920ई – फरवरी 1922 तक चला। गांधी जी को पता था कि ब्रिटिश सरकार भारत में राज करना चाहती है और वो भारत के सपोर्ट के बिना असंभव है। गांधी जी को ये भी पता था कि ब्रिटिश सरकार को कहीं न कहीं भारत के लोगों की सहायता ही पड़ती हैं यदि इस सहायता को बंद करा दिया जाये तो ब्रिटिश सरकार अपने आप ही वापस चली जायेगी या फिर भारतीयों पर जुल्म नहीं करेगी।

गांधी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने सभी भारतीयों को बुलाया और अपनी बात को स्पष्ट रूप से समझाया और सभी भारतीयों को गांधी जी की बात पर विश्वास भी हुआ और उन्होंने गांधी जी की कही हुई बातों को गांठ बांध ली, सभी लोग बड़ी मात्रा में शामिल हुए और इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया।

सभी भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की सहायता करने से मना कर दिया, उन्होंने अपनी नौकरी त्याग दी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल और कॉलेजों से निकाल लिया, सरकारी नौकरियां, फैक्ट्री, कार्यालय भी छोड़ दिया। लोगों के उस फैसले से कुछ लोग गरीबी व अनपड की मार से झुलसने लगे थे, स्थिति तो ऐसी उत्पन्न हो गयी थी की भारत तभी आजाद हो जाता परन्तु एक घटना जिसे हम चौरा-चौरी के नाम से जानते हैं। जिसकी वजह से गांधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा और आन्दोलन को वहीं समाप्त करना पड़ा।

चोरा चोरी की घटना कब हुई थी? चौरी चौरा की घटना का क्या महत्व था?

उत्तर प्रदेश के चौरा चौरी नामक स्थान पर जब भारतीय शांतिपूर्ण रूप से रैलियां निकाल रहे थे तब अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चला दी और कई भारतीयों की मृत्यु भी हो गयी, जिसके कारण भारतीयों ने गुस्से में पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और 22 पुलिस सैनिकों को मार दिया।

गांधी जी का कहना था की “ हमें सम्पूर्ण आन्दोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक प्रकिया का प्रयोग नहीं करना था और हम अभी किसी भी प्रकार से आज़ादी के लायक नहीं हैं “ जिस के कारण गांधी जी ने अपने आन्दोलन को वापस ले लिया था।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन/ डंडी यात्रा / नमक आन्दोलन सन् 1930 – CIVIL DISOBEDIENCE MOVEMENT / DANDI MARCH / SALT MOVEMENT

सविनय अवज्ञा का अर्थ होता है किसी भी बात को ना मानना और उस बात की अवहेलना करना। सविनय अवज्ञा आन्दोलन भी गांधी  जी ने लागू किया था| ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ये आन्दोलन था।

इस आन्दोलन में मुख्य कार्य यही था की ब्रिटिश सरकार जो भी नियम लागू करेगी उसे नहीं मानना और उसके खिलाफ जाना जैसे: ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई नहीं अन्य व्यक्ति या फिर कोई कंपनी नमक नहीं बनाएगी। तब 12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्वारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था। वे दांडी नामक स्थान पर पहुंच कर नमक बनाया था और कानून का उल्लंघन किया था।

गांधी जी ने साबरमती आश्रम जो की गुजरात के अहमदाबाद नामक शहर के पास ही है 12 मार्च, सन् 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक ये यात्रा चलती रही। 31 जनवरी 1929 को भारत का झंडा लाहौर में फहराया गया था। इस दिन को भारतीय नेशनल कांग्रेस ने आजादी का दिन समझ कर मनाया था। यह दिन लगभग सभी भारतीय संगठनों द्वारा भी माना गया था। इसके बाद ही नमक आन्दोलन हुआ था। 400 किलोमीटर (248 मील) तक का सफ़र अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया था।

गांधी जी सुभाष चन्द्र बोस और पंडित जवाहरलाल नेहरू के आजादी की मांग के विचारों को भी सिद्ध किया और अपने विचारों को 2 सालों की वजह 1 साल के लिए रोक दिया। इस आन्दोलन की वजह से 80000 लोगों को जेल जाना पड़ा। लार्ड एडवर्ड इरविन ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श किया। इस इरविन गांधी जी की संधि 1931 में हुई। सविनय अवज्ञा आन्दोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने अपनी रजामंदी दे दी थी।

गांधी जी को भारत के राष्ट्रीय कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। यह सम्मेलन निराशाजनक रहा। इस आयोजन का कारण भारतीय कीमतों व अल्पसंख्यकों पर केंद्रित होना था। लार्ड विलिंगटन ने भारतीय राष्ट्रवादियों को नियंत्रित और कुचलने के लिए नया अभियान आरम्भ किया और गांधी जी को फिर से गिरफ्तार भी कर लिया गया था और उनके अनुयायियों को उनसे मिलने तक भी नहीं जाने दिया। मगर ये युक्ति भी बेकार गयी।

Mahatma Gandhi History in Hindi | हरिजन आंदोलन और निश्चय दिवस क्या है?

1932, डा० बाबा साहेब आंबेडकर जी के चुनाव प्रचार के माध्यम से, सरकार ने अछूत लोगों को एक नए संविधान में अलग निर्वाचन दे दिया। इसके विरुद्ध गांधी जी ने 1932 में 6 दिन का अनशन ले लिया था जिसने सफलतापूर्वक दलित से राजनैतिक नेता पलवंकर बालू द्वारा की गयी। मध्यस्थता वाली एक सामान्य व्यवस्था को अपनाया गांधी जी ने अछूत लोगों को हरिजन का नाम दिया।

डॉ० बाबासाहेब आंबेडकर ने गांधी जी की हरिजान वाली बात की निंदा की और कहा की दलित अपरिपक्व है और सुविधासंपन्न जाती वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है।

अम्बेडकर और उनके सहयोगी दलों को महसूस हुआ की गांधी जी दलितों के अधिकार को समझ नहीं पा रहे हैं या फिर दलित अधिकार को कम आंक रहे हैं। गांधी जी ने ये भी बाते आंकी की वो दलितों के लिए आवाज उठा रहे हैं। पुन संधि में ये साबित हो गया की गांधी जी नहीं अम्बेडकर ही हैं दलितों के असली नेता। उस समय छुआछूत सबसे बड़ी समस्या थी। हरिजन लोगों को मंदिरों में जाने भी नहीं दिया जाता था। केरल राज्य का जनपद त्रिशूर दक्षिण भारत की एक प्रमुख नगरी है, जनपद में एक प्रतिष्ठित मंदिर भी हैं। गुरुवायुर मंदिर जिसमें  कृष्ण भगवान बल रूप के दर्शन कराती मूर्तियां है परंतु वहां पे भी हरिजन लोगों को जाने नहीं दिया जाता था।

भारत छोड़ो आन्दोलन कब शुरू हुआ | QUIT INDIA MOVEMENT IN HINDI

अभी तक के आंदोलनों में ये सबसे ज्यादा प्रभावी आन्दोलन था। सन् 1940 के दशक तक सभी लोग बड़े हो या फिर बच्चा सभी अपने देश की आजादी के लिए लड़ने मरने को तैयार थे। उनमें बहुत गुस्सा भरा था और ये गुस्सा सन् 1942ई में बहुत ही प्रभावशाली रहा, परंतु इस आंदोलन को संचालन करने में हुई कुछ गलतियों के कारण ये आन्दोलन भी असफल रहा। प्रमुख बात ये थी कुछ लोग अपने काम और विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में लगे रहे उस समय उन्हें लगा की अब तो भारत आजाद हो ही जायेगा तो उन्होंने अपने कदम धीरे कर लिए मगर यही बहुत बड़ी गलती थी। इस प्रयास से ब्रिटिश सरकार को ये तो पता चल ही गया था की अब भारत पर उनका राज नहीं चल सकता और भारत फिर आजाद होने के लिए फिर प्रयास करेगा।

महात्मा गांधी जी की मृत्यु कब और किस प्रकार हुई थी?

महात्मा गांधी जी की हत्या कब और कैसे हुई थी

Mahatma Gandhi Death Information in Hindi

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में चहलकदमी (walking) कर रहे थे और उनको गोली मार दी गयी थी।

गांधी जी के हत्यारे का नाम नाथूराम गोडसे था। ये राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टर पंथी हिन्दू महासभा के साथ सम्बन्ध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया। गौडसे और उनके सह् षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को केस चला कर जेल भेज कर सजा दी गयी थी। नाथूराम गोड से  को 15 नवम्बर 1949 को फांसी दी गयी थी।

राजघाट जो की NEW DELHI में है, यहां पर गांधी जी के स्मारक पर देवनागरी भाषा में हे राम लिखा हुआ है कहा जाता है की गांधी जी को जब गोली लगी थी तब उनके मुख से ‘हे राम’ निकला था। ऐसा जवाहर लाल नेहरू जी ने रेडियो के माध्यम से देश को बताया था।

गांधी जी की अस्थियों को रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद में पूरे देश में घुमाया गया। महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में संगम नदी में 12 फरवरी 1948 ई को जल में प्रवाह कर दिया था। शेष अस्थियों को 1997 में तुषार गांधी जी ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि – कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से इलाहबाद के संगम नामक नदी में प्रवाह कर दिया था। 30 जनवरी 2008 को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी ने गांधी जी के अर्थी वाले एक अन्य कलश को मुंबई संग्रहालय में भेजने के उपरांत उन्हें गिरगाम चौपाटी नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया।

एक अन्य अस्थि कलश आगा खान जो पुणे में है (जहाँ उन्होंने 1942 से कैद किया गया था 1944 तक) वहां समाप्त हो गया था और दूसरा आत्मबोध फेल्लोशीप झील में मंदिर में लॉस एंजिल्स रखा हुआ है। इस परिवार को पता था कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस पवित्र रख का दुरूपयोग भी हो सकता था लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती थी क्यूंकि इससे मंदिरों को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता था।

Recommended Books For Mahatma Gandhi Ji in Hindi and English

महात्मा गांधी का जीवन परिचय

महात्मा गांधी जी का जीवन बहुत ही सीधा और सरल था। उन्हे अहिंसा में विश्वास था उनका मानना था की अगर कोई गाल पर एक चांटा लगा दे तो उसके आगे दूसरा गाल भी कर दो जिससे मरने वाला शर्म के मारे मर जाए और आपसे माफी मांगे। अहिंसा परमों धर्मा गांधी जी का मानना था की अगर किसी समस्या का हल निकालना है तो उसे ठन्डे दिमाग से बिना क्रोध किए निकालने की कोशिश करनी चाहिए। अगर आप अपने गुस्से से किसी समस्या का हल निकलेंगे तो आप ओर भी ज्यादा उस समस्या में फंसते चले जाएंगे।

गांधी जी ने स्वतंत्रता की लड़ाई बिना किसी अस्त्र शस्त्र के जीत के दिखाई थी। अपनी बेइज्जती होने के बाद भी गुस्से में गलत कदम नहीं उठाया था उन्होने अपने शिष्यों को भी ऐसी ही सलाह दी थी की जिससे उनका जीवन सफल हो जाए। दोस्तों, गांधी जी के जीतने भी आंदोलन थे सब के सब बिना किसी हिंसा, बिना किसी शोर शराबे के चलाये गए थे।

महात्मा गांधी के अनमोल विचार

महात्मा गांधी का नारा था

“कारों या मारो”
“अहिंसा परमो धर्म”
“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, यतनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”
“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो”
“सादा जीवन उच्च विचार”
बनना है तो गांधी जी के जैसा बनने की कोशिश करो बिना लड़ाई झगड़े के अपने जीवन को बदल के रख दो.

Speech on Mahatma Gandhi in Hindi (महात्मा गांधी पर भाषण)

2 October Speech in Hindi: महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्टूबर सन् 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। महात्मा गांधी जी के पिता करमचंद गांधी जी राजकोट के दीवान हुआ करते थे। महात्मा गांधी जी की माता श्रीमती पुतलीबाई एक साधारण से जीवन को जीने वाली भारतीय नारी थी। महात्मा गांधी जी की माता बड़े ही सीधे स्वभाव की शांत रहने वाली महिला थी जिनकी वजह से महात्मा गांधी जी का स्वभाव भी ठीक उनकी ही तरह रहा। महात्मा गांधी जी के माता पिता बहुत साधारण व्यक्तित्व के लोग थे उनका जीवन साधारण लोगों की ही तरह था।

महात्मा गांधी जी की शुरुआती शिक्षा पोरबंदर में पूर्ण हुई थी जिसके बाद महात्मा गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अपनी वकालत की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए। जब महात्मा गांधी जी की वकालत की पढ़ाई पूरी हो गयी तो उन्होने भारत वापस आ कर अपनी वकालत शुरू की।

महात्मा गांधी जी को एक मुकदमे के चलते भारत छोड़ कर कुछ दिनों के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा और वहां उन्होंने भारतीय लोगों की दूरदसा देखी जिस पर उन्हे ये एहसास हुआ की ये बहुत ही गलत हो रहा है। हम भारतीय लोगों के साथ इसे बदला जाना चाहिए नहीं तो हमारे आने वाले वंश इसी तरह रंग भेद और छुआछूत की बीमारी से ग्रसित रहेंगे।

गांधी जी ने बड़े बड़े आंदोलन चलाए और जीते भी, इन आन्दोलन को जीतने की सबसे बड़ी वजह मानव कल्याण के हित में था। गांधी जी ने सब आंदोलन जीते बिना किसी हथियार के इस्तेमाल से और ना बिना किसी दुर्व्यवहार के ये युद्ध जीता। दोस्तों कहने वाली नहीं मानने वाली बात है की महात्मा गांधी जी ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने सादे व्यवहार के साथ ब्रिटिशों को भगाया था और भारत में आजादी का तिरंगा फहराया था।

भारत की आजादी के लिए बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने लोहे के चने चबाये थे। कहा जाए तो आज हिंदुस्तान आजाद हुआ है तो केवल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के चलते। देश की आजादी के लिए कभी अंग्रेजों की मार खानी पड़ी तो कभी उनकी divide and rule की वजह से अपने हिन्दू मुस्लिम भाइयों में लड़ाई दंगे होते देखे। गांधी जी को केवल अपने स्वतंत्र भारत की ही सूची है हमेशा।

गांधी जी ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। किसी वजह से इनको भारत के राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया हैं।

10 Lines on Mahatma Gandhi in Hindi

आप सभी की जरूरतों को समझते हुए महात्मा गांधी जी के जीवन परिचय में कम शब्दों में जानकारी दी गयी है।

गांधी जी सदा जीवन जीने में बहुत विश्वास करते थे। गांधी जी के जीवन में बहुत से संघर्षों से उनका सामना हुआ लेकिन वो बिना रुके आगे बढ़ते गए और आज उनको राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है।

गांधी जी अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा देना तो कोई बाबूजी से सीखें और उनके जीवन की तरह अपना जीवन जरूरत मंदों के नाम करें।

  • हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी हैं।
  • महात्मा गांधी जी का जन्म 02 अक्तूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक शहर में हुआ था।
  • महात्मा गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है।
  • महात्मा गांधी जी के माता पिता का नाम पुतलीबाई और करम चन्द्र गांधी था।
  • महात्मा गांधी जी को बापू और राष्ट्र पिता के नाम से जाना जाता है।
  • महात्मा गांधी जी को सदा जीवन उच्च विचार पसंद था।
  • महात्मा गांधी जी ने अन्य सभी क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर हमारे देश को ब्रिटिश शासन से छुटकारा दिलाया था।
  • महात्मा गांधी जी ने भारतीय लोगों को सादा जीवन और स्वदेशी अपनाने का विचार दिया था।
  • महात्मा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक आंदोलन,और दांडी मार्च जैसे कई महान कार्य किए।
  • महात्मा गांधी जी की हत्या 30 जनवरी, 1948 मे नाथूराम गोडसे द्वारा कर दी गयी थी।
महात्मा गांधी जी की मृत्यु के बाद उनकी याद में और राष्ट्रपिता होने की वजह से उनका चित्र भारत की मुद्रा में देखने को मिलता है।

10 Lines on Mahatma Gandhi in English for Class 1 to 12

Mahatma gandhi essay in english in 500 words: Realizing the needs of all of you, the life introduction of Mahatma Gandhi has given less information.

Gandhi always believed in living life. He faced many struggles in the life of Gandhi Ji, but he kept moving without stopping and today he has been given the status of Father of the Nation.

If you spend your whole life in the well-being of the people, then one should learn from Bapuji and like his life, make his life in the name of the needy.

  • Our Father of the Nation is Mahatma Gandhi.
  • Mahatma Gandhi was born on 02 October 1869 in a city called Porbandar in Gujarat.
  • Mahatma Gandhi’s full name is Mohandas Karamchand Gandhi.
  • Mahatma Gandhi’s parent’s names were Putlibai and Karam Chandra Gandhi.
  • Mahatma Gandhi is known as Bapu and Father of the Nation. Mahatma Gandhi always loved high thoughts.
  • Mahatma Gandhi along with all other revolutionary freedom fighters got rid of our country from British rule.
  • Mahatma Gandhi had given the idea to the Indian people to adopt a simple life and Swadeshi.
  • Mahatma Gandhi Ji did many great works like the Non-Cooperation Movement, Civil Disobedience Movement, Salt Movement, and Dandi March.
  • Mahatma Gandhi was assassinated on 30 January 1948 by Nathuram Godse.
After the death of Mahatma Gandhi, in the memory of him and being the father of the nation, his picture is seen in the currency of India.

Mahatma Gandhi Poem in Hindi for Students

ऊपर मैंने आपको महात्मा गांधी का जीवन परिचय बताया हैं, अब मैं आपके साथ महात्मा गांधी पर कविताएं  अपडेट करूँगा जो किसी ने ना सुनी हो वो में आपको देने वाला हूँ। कृपया करके इसे पढ़े और अपने मित्रों आदि में शेयर करना ना भूले।

Poem on Mahatma Gandhi in Hindi

महात्मा गांधी जी की वो कविता जिसे दुनिया सबसे ज्यादा प्रिय समझती है।

महात्मा गांधी पर कविता हिंदी में

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर हिन्दी कविता, महात्मा गांधी जयंती पर कविता, gandhi jayanti poem in hindi.

मैं उम्मीद करूंगा की आपको ये लेख अच्छा लगा होगा, अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो देरी ना कीजिए, इस लेख को इतना शेयर कर दीजिये की दुनिया 02 अक्टूबर गांधी जी के जन्मदिन कविताएं को पढ़ कर रो पड़े।

– धन्यवाद

महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Essay in Hindi) का यह लेख यही समाप्त होता है। मुझे उम्मीद है की आपको सभी जानकारी मिली होगी। अगर आपको लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें और कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ व्यक्त करें।

– Biography of Mahatma Gandhi in Hindi

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22 Comments

महात्मा गांधी के बारे में बहुत ही जबरदस्त जानकारी मिली आपकी वेबसाइट को धन्यवाद इतना विस्तार में गांधीजी के बारे में मैंने पहली बार पढ़ा है|

THANK YOU SIR

मुझे बहोत अच्छा लगा मय तुमको गांधी जैसा बनके दिकाउगा ये मेरा आपको वादा है कमसे कम हमारे गावमे तो जररूर बनुगा

अधिक जानकारी मिली। धन्यवाद। ।।।। रामराज सावन

कुछ सही लिखा है कुछ गलत लीखा गया है।

कृपया करके हमे बताये की क्या गलत लिखा है| हम उसको जल्द से जल्द ठीक करेंगे|

Very best news of

Thank-you so much

SAhi ha shaanu

Thank you SIR

Bahut vdia jivan parchey hai

nice blog sir, aapne bhut acha blog likha hai information sari sahi hai & kuch mujhe pata nahi ya bhul gaya tha but aapka blog padhkr aisa laga jaise fir se update ho gaya ho thank you sir kal mujhe apni branch me bolna hai some words about Gandhi g really this artical help me

मुझे ख़ुशी है की आपको जानकारी पसंद आई…!

महात्मागाँधी के जीवनपरिचय एवं सम्पुर्ण्ं ईतिहास सम्बन्धी पुस्तक चाईय

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"जीवनचरित- आपकी कहानी, हमारे अक्षरों में"

Mahatma Gandhi Biography I महात्मा गांधी की जीवनी

Mahatma Gandhi Biography: महात्मा गांधी की जीवनी- सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा गांधी ने पूरी दुनिया को इस मार्ग की ओर प्रोत्साहित किया। उनके विचारों और कार्यों के माध्यम से, गांधी ने मानवता को एक सजीव उदाहरण प्रस्तुत किया।

इसी संदर्भ में, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि “आने वाली पीढ़ियों को शायद यह अजीब लगेगा कि हमारे महात्मा गांधी जैसे महान आदमी ने इस प्राचीन दुनिया में अपने विचारों के साथ एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया।” आइंस्टीन की इस कथन में छिपी हुई बात सही साबित हो चुकी है, क्योंकि उनके बाद किसी और गांधी जैसा व्यक्ति का जन्म नहीं हुआ और आगामी में भी नहीं होगा।

Mahatma Gandhi During His Youth

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महात्मा गांधी की जीवनी – Biography Of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी के जीवन का सफर कठिनाइयों और संघर्षों से भरा था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ अपना जीवन समर्पित किया और भारतीय जनता को स्वतंत्रता प्राप्त कराने के लिए अनगिनत कठिनाइयों का सामना किया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था और उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की और असहमति के बावजूद अहिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता की ओर अग्रसर हुए।

उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले थे जिन्होंने महात्मा गांधी को गांधी जी के संघर्ष की ओर मार्गदर्शन किया। महात्मा गांधी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को हुई, जब उन्हें नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति द्वारा गोली मार दिया गया।

उनका जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं और वे आज भी हमारे दिलों में एक महान व्यक्ति के रूप में बसे हुए हैं।

महात्मा गांधी का परिचय : एक अद्वितीय जीवन की कहानी

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से अधिक जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्भुत नेता थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के छोटे से शहर पोरबंदर में हुआ था, और उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था, जबकि माता का नाम पुतलीबाई गांधी था।

महात्मा गांधी एक अद्भुत राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, भारतीय वकील, और लेखक थे। वे भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ देशव्यापी स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता बने। उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में सम्मानित किया जाता है, और उनकी जयंती को 2 अक्टूबर को मनाया जाता है, जिसे दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस और भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता हासिल करने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने सिखाया हैं कि समस्याओं का समाधान अहिंसा के माध्यम से, यानी शांति और समझदारी से किया जा सकता है। उनकी विचारधारा ने उन्हें एक श्रेष्ठ आदर्श बना दिया, जिसने लोगों को संघर्षों और समस्याओं के समाधान में अहिंसा के महत्व को समझाया।

महात्मा गांधी के जीवन और विचारों का प्रभाव दुनिया भर में फैला और उन्हें ‘महान आत्मा’ या ‘महात्मा’ के रूप में पुकारा जाता है। उनकी प्रसिद्धि उनके जीवनकाल में ही पूरी दुनिया में फैल गई और उनके निधन के बाद भी बढ़ गई। इस तरह, महात्मा गांधी पृथ्वी पर सबसे प्रसिद्ध व्यक्ति हैं।

महात्मा गांधी की शिक्षा- Education of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी की शैक्षिक यात्रा ने उन्हें इतिहास की सबसे उल्लेखनीय शख्सियतों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि शुरुआत में उन्होंने पोरबंदर के एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाई की, जहाँ उन्होंने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ अर्जित की, लेकिन शिक्षा के प्रति उनका प्रारंभिक दृष्टिकोण काफी सामान्य था।

1887 में बॉम्बे विश्वविद्यालय में अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, गांधी ने भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लेकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। हालाँकि, चिकित्सा में करियर बनाने की गांधी की मूल इच्छा के बावजूद, उनके पिता के वकील बनने के आग्रह के कारण उनकी शैक्षिक आकांक्षाओं में अप्रत्याशित मोड़ आ गया।

उस युग के दौरान, इंग्लैंड को ज्ञान का केंद्र माना जाता था, और अपने पिता की इच्छा का पालन करते हुए, गांधी ने सामलदास कॉलेज छोड़ने और इंग्लैंड की यात्रा करने का कठिन निर्णय लिया। उनके सीमित वित्तीय संसाधनों और उनकी मां की आपत्तियों ने इस विकल्प को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया था। बहरहाल, सितंबर 1888 में, गांधी ने इंग्लैंड की यात्रा शुरू की और चार प्रतिष्ठित लंदन लॉ स्कूलों में से एक, इनर टेम्पल में शामिल हो गए।

1890 में, उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में मैट्रिक की परीक्षा देकर शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाया। लंदन में अपने समय के दौरान, गांधी ने अपनी पढ़ाई के प्रति एक नया समर्पण प्रदर्शित किया और एक सार्वजनिक भाषण अभ्यास समूह में शामिल होकर अपने कौशल को निखारा। इस प्रयास ने न केवल उन्हें अपनी शुरुआती घबराहट से उबरने में मदद की बल्कि उन्हें कानून के क्षेत्र में भविष्य के लिए भी तैयार किया।

अपनी शैक्षिक यात्रा के दौरान, गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों की मदद करने का गांधी का जुनून निरंतर प्रेरक शक्ति बना रहा। सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और उनका अटूट दृढ़ संकल्प बाद में उनके शानदार जीवन और करियर की परिभाषित विशेषताएं बन गईं।

महात्मा गांधी अपनी युवावस्था के दौरान- Mahatma Gandhi During His Youth

गांधी जी अपने पिता की चौथी पत्नी की सबसे छोटी संतान थे। मोहनदास करमचंद गांधी के पिता ब्रिटिश निर्वाचन क्षेत्र के तहत पश्चिमी भारत (अब गुजरात राज्य) में एक छोटी नगर पालिका की पोरबंदर के दीवान और प्राचीन मुख्यमंत्री थे। गांधी की मां पुतलीबाई, एक धार्मिक और पवित्र महिला थीं।

मोहनदास वैष्णववाद में बड़े हुए, एक प्रथा इसके बाद हिंदू भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ जैन धर्म की मजबूत उपस्थिति भी हुई, जिसमें अहिंसा की एक मजबूत भावना है। इसलिए, उन्होंने अहिंसा (सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा) का अभ्यास किया, स्वयं के लिए उपवास किया। -शुद्धि, शाकाहार, और विभिन्न जातियों और रंगों के प्रतिबंधों के बीच पारस्परिक सहिष्णुता।

उनकी किशोरावस्था शायद उनकी उम्र और वर्ग के अधिकांश बच्चों की तुलना में अधिक तूफानी नहीं थी। 18 साल की उम्र तक गांधीजी ने एक भी अखबार नहीं पढ़ा था। न तो भारत में एक उभरते बैरिस्टर के रूप में, न इंग्लैंड में एक छात्र के रूप में और न ही उन्होंने राजनीति में अधिक रुचि दिखाई। वास्तव में, जब भी उन्होंने सभा में या अदालत में उच्चारण करते वक्त या किसी मुकदमेबाज के पक्षपात को दूर करते समय अगर वे मंच पर खड़े होते तो उन्हें भयानक डर महसूस होता।

लंदन में, गांधीजी का शाकाहार मिशन एक महत्त्वपूर्ण घटना था। वे लंदन वेजीटेरियन सोसाइटी के कार्यकारी सदस्य बने थे। उन्होंने कई सम्मेलनों में शामिल होकर इसके जर्नल में भी योगदान और पत्र प्रकाशित किये। इंग्लैंड में शाकाहारी रेस्तरां में भोजन करते समय गांधी की मुलाकात एडवर्ड कारपेंटर, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ और एनी बेसेंट जैसे प्रमुख समाजवादियों, फैबियन और थियोसोफिस्टों से हुई।

महात्मा गांधी का राजनीतिक करियर- Political Career of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी ने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में अपनी माता जी के वचनों का सम्मान किया, जिन्होंने उन्हें शाकाहारी भोजन पर आदान प्रदान करने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने इंग्लैंड में अपने अंग्रेजी रीति-रिवाजों का अनुभव किया और वहां के समाज में शाकाहार की सदस्यता ग्रहण की। वे भारत में वापस आकर न्याय के लिए संघर्ष किया, जो किसी अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण असफल हो गया। इसके बाद, उन्होंने वकीलत छोड़कर राजकोट में एक शिक्षक बनने का फैसला किया, लेकिन एक अधिकारी की गलती के कारण उन्हें यह नौकरी भी छोड़नी पड़ी।

उन्होंने फिर सन् 1893 में दक्षिण अफ्रीका जाकर वकीलत का कार्य शुरू किया, जहां उन्होंने नेतृत्व और समाजसेवा के माध्यम से अपने आपको साबित किया।

दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों की आन्दोलन यात्रा (1893-1914)

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने ट्रेन सफर के दौरान कई कठिनाइयों का सामना किया, जैसे कि तीसरी श्रेणी के डिब्बे में सफर करना और यूरोपियन यात्री के साथ यात्रा करते समय मार का सामना करना। उन्होंने अफ्रीका में भारतीयों के लिए अन्याय को देखा और इसके प्रति जागरूकता फैलाई, जिससे वह समाजिक सक्रियता में भी सहयोग कर सके।

ज़ुलु युद्ध में भागीदारी(1906)

गांधी जी ने 1906 में जूलू युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की अवधारणा प्रस्तुत की, जहां भारतीयों को सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सत्याग्रह की भावना को जगह दी और समाज में समानता की मांग की। इससे गांधी का समर्थन और भारतीयों के आत्मगौरव में वृद्धि हुई।

भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई (1916- 1945)

1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों में अपने विचार रखे, लेकिन उनके दृष्टिकोण उस समय के भारतीय राजनीतिक मुद्दों और कांग्रेस के मुख्य नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर आधारित थे। गोखले एक सम्मानित नेता थे जिनपर गांधी ने अपने विचार स्थापित किए थे।

चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह(1918)

गांधी की महत्वपूर्ण पहली उपलब्धि 1918 में हुई, जब उन्होंने चम्पारन और खेड़ा सत्याग्रह की शुरुआत की। वे नील (इंडिगो) की जगह नकद पैसे मांगने वाली खाद्य फसलों के खिलाफ सत्याग्रह की शुरुआत की। यह सत्याग्रह जमींदारों की अत्याचारी शासन से बचाव के लिए था। गाँवों में स्वच्छता और शिक्षा की व्यवस्था के लिए भी उन्होंने जोर दिया।

इसके परिणामस्वरूप, गांधी को जेल से रिहा करने की मांग में लोगों ने उनका साथ दिया। उन्होंने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिससे अंग्रेजों ने किसानों के हित में कई फैसले किए। गांधी की ख्याति इस संघर्ष से बढ़ी।

असहयोग आन्दोलन(अगस्त 1920)

गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के विरोध में असहयोग, अहिंसा, और शांतिपूर्ण प्रतिक्रिया का साथ दिया। जलियांवाला बाग नरसंहार ने लोगों में आक्रोश और हिंसा बढ़ाई। उन्होंने ब्रिटिश और भारतीय विरोधी रवैये का विरोध किया और शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाया। उन्होंने सभी हिंसा को न्यायाधीन नहीं ठहराने की बात की। उनका मकसद था कि स्वराज की प्राप्ति और सम्पूर्ण आज़ादी मिलनी चाहिए।

गांधी जी ने कांग्रेस को नया उद्देश्य दिया और संगठित किया और समाज में सहयोग और जोश फैलाया। उन्होंने भारतीय वस्त्रों का प्रचार किया, अंग्रेजी वस्त्रों का विरोध किया और सबको खादी पहनने का समर्थन किया। उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा और अदालतों का विरोध किया और सरकारी पदों को छोड़ने की अपील की। उनकी असहयोग आंदोलन में उन्हें व्यापक समर्थन मिला।

हिंसा और असहयोग के बाद वे अपने आंदोलन को वापस ले आए और जेल गए। कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में एकीकृत नहीं रही, लेकिन वे समस्याओं का समाधान ढूंढने में लगे रहे। गांधी जी ने अहिंसा की महत्ता को समझाने के लिए कई प्रयास किए और सफलता भी हासिल की।

स्वराज और नमक सत्याग्रह (नमक मार्च) के रूप में(मार्च 1930)

गांधी जी ने अपनी सक्रिय राजनीति से अलग रहकर 1920 तक स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया। 1928 में, उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सर जॉन साइमन के नेतृत्व में बनाए गए संविधान सुधार आयोग का विरोध किया और दिसम्बर 1928 में कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय स्वायत्तता के लिए असहयोग या संपूर्ण आजादी की मांग की।

उन्होंने मार्च 1930 में नमक पर कर लगाने के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया, जो एक सफल आंदोलन बना, जिससे ब्रिटिश सरकार ने 80,000 से अधिक लोगों को जेल भेजा। इसके बाद, 1931 में गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हस्ताक्षर होकर सविनय अवज्ञा आंदोलन को समाप्त किया गया। इसके परिणामस्वरूप, गांधी को लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधित्व के लिए आमंत्रित किया गया।

यह सम्मेलन भारतीय कीमतों और अल्पसंख्यकों को नजरअंदाज करके गांधी और राष्ट्रवादियों के लिए निराशाजनक रहा। ब्रिटिश सरकार ने गांधी और उनके अनुयाईयों को अलग रखने की कोशिश की, लेकिन यह युक्ति कारगर नहीं थी।

दलित आंदोलन और संकल्प दिवस(1932)

1932 में, डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर ने दलितों के लिए अलग निर्वाचन मंजूर करवाने के लिए संघर्ष किया। गांधीजी ने भी इन बदलावों का समर्थन किया, लेकिन अम्बेडकर को हरिजन शब्द का विरोध था। गांधीजी ने हरिजनों के लिए उपवास भी किया, लेकिन यह अभियान उन्हें पूरी तरह से पसंद नहीं आया। इसके बावजूद, यह उन्हें एक प्रमुख नेता बनाया। गांधीजी और अम्बेडकर के बीच राजनीतिक अधिकारों का मुद्दा भी था।

गुरुवायुर मंदिर में भी हरिजनों को प्रवेश मिलने का अभियान सफलतापूर्वक चलाया गया। गांधीजी ने अपनी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दिया ताकि वे राजनीतिक व्यवस्था को बदल सकें। उन्होंने नेहरू के नेतृत्व में भारत लौटने का निर्णय लिया।

अंततः, बोस के साथ मतभेदों के बाद वह पार्टी छोड़ दी। यह चुनौतीपूर्ण समय था, जहाँ गांधीजी ने अपने विचारों को संघर्षपूर्ण तरीके से साझा किया।

द्वितीय विश्व युद्ध(1939 – 1945) और भारत छोड़ो आन्दोलन(1942)

द्वितीय विश्व युद्ध, जिसे वर्ल्ड वॉर II कहा जाता है, 1939 से 1945 तक चला। इस युद्ध की मुख्य वजह थी नाजी जर्मनी की आक्रमण की कोशिश और उसके साथ में जापान, इटली, और अन्य देशों के साथ मिलकर युद्ध में शामिल होने की कोशिश।

इस युद्ध के दौरान, भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और विभिन्न स्वतंत्रता संगठनों ने द्वितीय विश्व युद्ध का लाभ उठाया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी मांगों को उजागर किया।

1942 में प्रारंभ हुआ ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता की मांग को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इस आंदोलन का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने की मांग थी, और यह सब गांधीजी के नेतृत्व में किया गया था। इस आन्दोलन के दौरान, भारतीय नागरिकों ने सिपाही आंदोलन, व्यापार बंद, और सड़क पर उतरकर विरोध किया, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।

यह आन्दोलन द्वितीय विश्व युद्ध के समय और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिशा में महत्वपूर्ण घटना थी, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण प्रेरणास्त्रोत बनी। इसके बाद, भारत स्वतंत्र हुआ और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत अलगाव का अधिकार प्राप्त किया।

आजादी और भारत का बंटवारा(अगस्त 1947)

गांधी जी ने 1946 में ब्रिटिश केबिनेट मिशन के प्रस्ताव को ठुकराया। उन्हें मुस्लिम बाहुलता वाले प्रांतों के लिए प्रस्तावित समूहीकरण पर गहन संदेह था। इसे विभाजन का पूर्वाभ्यास माना गया। गांधी जी के अनुमोदन के बिना सरकार का नियंत्रण मुस्लिम लीग के पास चला जाता। हिंसा के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई। गांधी जी भारत को दो अलग देशों में विभाजित करने के खिलाफ थे।

बहुमत के पक्ष में हिंदू, सिख और मुस्लिमों की बड़ी संख्या थी। मुस्लिम लीग के नेता ने व्यापक सहयोग का परिचय दिया। बंटवारे को रोकने के लिए कांग्रेस योजना को स्वीकार किया। गांधीजी को लगा कि यह एक उपाय हो सकता है ताकि साम्प्रदायिक हिंसा रुके। उन्होंने उत्तर भारत और बंगाल में समुदायों के बीच तनाव को दूर करने के लिए प्रयास किया।

माउंटबेटन योजना के आधार पर तैयार किया गया भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ने भारत का विभाजन किया। 14 अगस्त 1947 की रात को, भारत और पाकिस्तान दो अलग स्वतंत्र राष्ट्र बने।

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, हिंसा को रोकने और साम्प्रदायिक विवादों को दूर करने के लिए, गांधीजी ने दिल्ली में अपना पहला आमरण अनशन शुरू किया। उन्होंने इस अनशन में निर्णय लिया कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा ताकि हिंसा को रोका जा सके और शांति लाई जा सके। गांधीजी ने वादा किया था कि शांति की धारा को अपनाया जाएगा। गांधीजी ने अपना उपवास तब तोड़ा जब उन्हें विश्वास हुआ कि समुदायों ने एक साथ शांति की दिशा में कदम बढ़ाया है।

महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु- Political Teacher of Mahatma Gandhi

गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी के बीच के यह संबंध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण हैं। गोखले ने गांधी को नैतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण में मार्गदर्शन दिया और उन्होंने गांधी को अपने आदर्शों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया, अहिंसा और सत्याग्रह के महत्व के बारे में जागरूक किया, और सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में मार्गदर्शन किया।

महात्मा गांधी ने गोखले के सिद्धांतों का पालन किया और उनके मार्गदर्शन में चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। गोखले के विचारों और उपदेशों ने गांधी को व्यापक रूप से प्रभावित किया और उन्हें एक महान नेता और सत्याग्रह के प्रेरणास्त्रोत बनाया जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया दिशा देने में मदद की।

इन दो महान नेताओं के संवाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक मजबूत और आदर्शिक दिशा में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसे एक सफल आंदोलन बनाने में मदद की।

महात्मा गांधी की मृत्यु- Death of Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी की हत्या एक अत्यंत दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जो भारतीय इतिहास में गहरी छाप छोड़ी। उनका निधन 1948 में हुआ था। गांधीजी का सपना था कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जो अहिंसा, सत्य और समर्पण के माध्यम से समृद्धि की ओर बढ़े। उनकी विचारधारा और दृढ़ निष्ठा ने लाखों लोगों को प्रेरित किया था।

उनकी हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी, जो उनके विचारों से असहमत थे। गोडसे की इस हत्या के बाद, पूरे देश में शोक की लहर छाई और लोगों में गहरा दुख था। गांधीजी की आत्मा को शांति मिले, और उनके विचारों का पालन करने का कार्य हम सभी को साझा करना चाहिए।

गांधी के महत्त्वपूर्ण विचार

सत्य और अहिंसा.

गांधीजी के लिए अहिंसा मार्ग का परम धर्म था और सत्य को अपने जीवन का आदर्श मानते थे। उन्होंने यह माना कि वे सत्य की खोज में अहिंसा का माध्यम बना दिया है। उनका कहना था, “मेरे लिए, अहिंसा स्वराज से पहले आता है।” इसका मतलब था कि वे स्वतंत्रता के लिए अहिंसा का महत्व स्वीकार करते थे।

गांधीजी के लिए सत्य किसी अंतिम लक्ष्य की तरह नहीं था। वे सत्य को एक अनवरत अभ्यास का विषय मानते थे। उनका मानना था कि सत्य को समझने के लिए हमें अपने अनुभव और बुद्धि पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने कहा था, “मेरे निरंतर अनुभव ने साबित किया कि सत्य के अलावा कोई अद्भुतता नहीं है।”

गांधीजी के लिए सत्याग्रह एक माध्यम था जिसके माध्यम से वे स्वराज प्राप्ति का परिपूर्ण मार्ग देखते थे। इस मार्ग पर चलते समय, वे नैतिक दबाव वाली तकनीकों जैसे असहयोग और सविनय अवज्ञा का प्रयोग करते थे। उन्होंने सत्य के प्रति अपनी पूरी प्रतिष्ठा बनाई रखी और इसके लिए वे हृदय परिवर्तन की दिशा में कठिनाइयों का सामना किया। हम कह सकते हैं कि सत्याग्रह एक प्रकार की सामाजिक क्रांति का गांधीवादी उपाय था।

गांधीजी के लिए सत्य किसी अंतिम लक्ष्य की तरह नहीं था। वे सत्य को एक अनवरत अभ्यास का विषय मानते थे। वे मानते थे कि सत्य को समझने के लिए हमें अपने अनुभव और समझ का सहारा लेना चाहिए। व्यक्ति के अनुसार, “मेरे निरंतर अनुभव से प्रकट होता है कि सत्य के अतिरिक्त कुछ भी दिव्य नहीं है।” उन्होंने अपनी कहानी में अपने अनुभवों को साझा करने का रास्ता चुना था, जिसका शीर्षक “सत्य के साथ मेरा अनुभव” था।

गांधी जी के लिए स्वराज का अर्थ अद्वितीय रूप में है, न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का प्राप्ति, बल्कि यह एक व्यापक दृष्टिकोण का भी प्रतीक है। यह स्वामाजिक, स्वार्थ, स्वराज्य, और नैतिक स्वतंत्रता का सम्पूर्ण सार है। व्यक्तिगत स्तर पर, यह व्यक्ति के अपने जीवन को आत्म-नियंत्रित और स्वतंत्र बनाने का प्रयास है। महात्मा गांधी कहते हैं – “मैं एक ऐसा भारत बनाने का प्रयास करूँगा जिसमें हर व्यक्ति, विनाशात्मक गरीबी के बावजूद, यह अनुभव करेगा कि यह उसका स्वयं का देश है और इसके निर्माण में उसका सहयोग महत्वपूर्ण है।

गांधीजी, औद्योगिकीकरण के खिलाफ खड़े होकर स्वदेशी के महत्व को बताते हैं, और इसका समर्थन करके आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इस औद्योगिक युग में, गांधीजी का स्वदेशी विचार भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत साबित होता है। उन्होंने भारतीय समाज के धर्म, संस्कृति और गरीबी को समझने के लिए कई प्रतीक दिए, जिनमें चरखा, खादी, गाय, और गांधी टोपी शामिल हैं।

सर्वोदय का अर्थ है ‘सबका सामृद्धि का उदय’। यह एक प्रकार से गांधीवादी समाजवाद की धारा को दर्शाता है। सर्वोदय सोच ने दिखाया कि समृद्धि का मार्ग ऊपर से नीचे नहीं, बल्कि नीचे से ऊपर जाने वाला है। समाज की बुनाई गई इकाइयों और संरचनाओं से इसकी शुरुआत होती है। गांधीजी ने सभी वर्गों, खासकर अछूतों, महिलाओं, श्रमिकों और किसानों के सामाजिक उत्थान के लिए सक्रिय कार्यक्रमों का आयोजन किया। सर्वोदय की अवधारणा से ही भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई।

गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि भारत के अधिकारों की सुरक्षा करना उनका पवित्र कर्तव्य है। वे मानते थे कि भारत को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त कराने में महात्मा गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनका प्रभाव केवल भारत के अंदर ही नहीं, बल्कि विश्व भर के कई व्यक्तियों और स्थानों पर था। गांधी जी ने मार्टिन लूथर किंग को भी प्रभावित किया, और उसके परिणामस्वरूप, अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों को अब समान अधिकार प्राप्त हैं। शांतिपूर्वक भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई जीतकर, उन्होंने दुनिया भर में इतिहास की दिशा को बदल दिया।

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महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi

आज हम इस आर्टिकल में आपको महात्मा गांधी की जीवनी- Mahatma Gandhi Biography Hindi के बारे बताएंगे।

Mahatma Gandhi जी भारत और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे और वे सत्याग्रह के माध्यम से प्रतिकार के अग्रणी नेता थे।

उनकी इस अवधारणा की नींव संपूर्ण अहिंसा के सिद्धांत पर रखी रखी गई थी।

महात्मा गांधी जी ने भारत को स्वतंत्र कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई।

उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन, नमक सत्याग्रह आंदोलन आदि आन्दोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ थ।

उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था।

उनके पिता का नाम करमचंद गांधी था जो कि सनातन धर्म के पंसारी जाति से संबंध रखते थे।

इनके पिता कट्टर हिंदू एवं ब्रिटिश सरकार के अधीन गुजरात में काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर के प्रधानमंत्री थे।

इनकी माता का नाम पुतलीबाई थाऔर वे परनामी वैश्य समुदाय की थी।

महात्मा गाँधी के अन्य नाम बापू, राष्ट्रपति, गांधी जी थ।

गांधी जी का विवाह 1883 में 13.5 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हुआ था।

गांधीजी ” कस्तूरबा” को “बा” कह कर बुलाते थे।

उनका यह बाल विवाह उनके माता -पिता के द्वारा तय किया गया था।

महात्मागांधी के चार पुत्र थे जिनके नाम इस प्रकार है –

  • हरिलाल गांधी (1888ई .)
  • मणिलाल गांधी (1892ई. )
  • रामदास गांधी (1897 ई.)
  • देवदास गांधी (1900ई.)

महात्मा गांधी के शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी ने 1887 मैट्रिक की परीक्षा मुंबई यूनिवर्सिटी से पुरी की और इसके आगे की परीक्षा के लिए भी भावनगर के शामलदास स्कूल में गए।

महात्मा गांधी का परिवार उन्हें बारिस्टर बनाना चाहता था।

सितंबर 1818 ई. को गांधी जी बारिस्टर पढ़ाई के लिए लंदन गए जहां पर उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया ।

गांधी जी ने अपनी मां को दिए हुए वचन के अनुसार अपने  शाकाहारी भोजन ही किया।

गांधीजी शुरू से ही शाकाहारी थे और उन्होंने लंदन में भी अपने इस नियम को बनाए रखा।

गांधीजी के व्यक्तित्व ने उसकी लंदन में एक अलग ही छवि प्रदान की। गांधीजी ने लंदन में थियोसोफिकल नामक सोसाइटी के मुख्य सदस्यों से मिले। सोसायटी की स्थापना विश्व बंधुत्व के लिए 1875 में हुई थी और तो और इसमें बौद्ध धर्म, सनातन धर्म के ग्रंथों का संकलन भी था।

वकालत का आरंभ – महात्मा गांधी की जीवनी

इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन द्वारा बुलाए जाने पर गांधीजी वापस मुंबई लौट आए और उन्होंने यही पर अपनी वकालत की पढ़ाई शुरू की।

मुंबई में गांधी जी को सफलता नहीं मिली जिसके कारण गांधी जी गांधी जी ने कुछ समय के लिए शिक्षक के पद पर काम करने के लिए एक अर्जी दी लेकिन उसे भी अस्वीकार कर दिया गया।अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए गांधी जी को मुकदमों की अर्जी लिखने का काम शुरू करना पड़ा परंतु कुछ समय बाद ही उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा।

1893 ई. में  महात्मा गांधी जी एक वर्ष  के करार के साथ दक्षिण अफ्रीका गए।

दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की फर्म नेटल से यह वकालत करार हुआ था।

महात्मा गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा

दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को भारतीयों पर हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा।

उन्हें प्रथम श्रेणी उसकी वेध टिकट होने के बाद भी तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इंकार कर दिया गया और उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।इतना ही नहीं यात्रा करते समय पायदान पर एक अन्य यूरोपीय यात्री के अंदर आने पर उन्हें चालक से मार भी खानी पड़ी। इन्हें अपनी इस यात्रा के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

अफ्रीका के कई होटलों में उनको आने के लिए मना कर दिया गया। इसी तरह ही कई घटनाओं में से यह एक भी थी जिसमें अदालत के न्यायधीश ने उन्हें अपने पगड़ी उतारने का आदेश दे दिया था जिसे उन्होंने मानने से मना कर दिया।

गांधी जी के साथ हुई यही सारी घटनाएं उनके जीवन में एक नया मोड़ ले कर आई और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बने तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार साबित हुई।अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए गांधी जी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा अपने देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाए।

भारतीयों के आजादी के लिए संघर्ष

1916 ई. गांधी जी अपने भारत के लिए वापस भारत आए और अपनी कोशिशों में लग गए।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन पर अपने विचार व्यक्त किए लेकिन उनके विचार भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर आधारित थे, जो कि एक सम्मानित नेता थे।

चंपारण और खेड़ा – महात्मा गांधी की जीवनी

गांधी जी को सब अपनी पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चंपारण सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए नील की खेती की खेती करने के बजाय नगद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती करने वाली आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे।

जमीदारों की ताकत का दमन करते हुए भारतीयों के नाम पत्र भरपाई बता दिया गया, जिससे वे अत्यधिक गरीबी से गिर गए। गांव में गंदगी अस्वस्थता और अन्य कई तरह की बीमारियां फैलाने लगी थी।

खेड़ा, गुजरात में भी यही समस्या थी।

पहले तो गांधीजी ने वहां पर सफाई करवाई और स्कूल और अस्पताल बनवाए जिससे ग्रामीण लोगों को उन पर विश्वास हुआ। उस समय हुए शोर शराबे के कारण गांधी जी को शोर-शराबे से हुई परेशानियों के लिए थाने में बंद कर दिया गया जिसका विरोध पूरे गांव वालों ने किया।बिना किसी कानूनी कार्रवाई के गांधी जी को थाने में बंद करने के लिए और उन्हें वहां से छुड़वाने के लिए गांव के लोगों ने थाने के आगे धरना प्रदर्शन भी किया।

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़ताल का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण राजसव में बढ़ोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

महात्मा गांधी को सबसे पहले पलवल स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था

गांधी जी के नेतृत्व में दिए गए आंदोलन

  • असहयोग आंदोलन(1920)
  • स्वराज और नमक सत्याग्रह, डंडी यात्रा (1930)
  • दलित आंदोलन (1932)
  • द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन(1942)

महात्मा गांधी के नारे

  • “करो या मरो”
  • “हिंसा परमो धर्म”
  • “आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान यतना पूर्ण बहिष्कार यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं।”
  • “बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत कहो”
  • “सादा जीवन उच्च विचार”

महात्मा गांधी की मृत्यु – महात्मा गांधी की जीवनी

30 जनवरी 1948 को गांधी जी अपने बिड़ला भवन में घूम रहे थे और उनको गोली मार दी गई थी।

हत्यारे का नाम नाथु राम गोडसे था यह एक राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी हिंदू महासभा के के साथ संबंध थे।

जिसने गांधी जी को पाकिस्तान को भुगतान करने के मुद्दे पर भारत को कमजोर बनाने के लिए दोषी करार दिया था।

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Mahatma Gandhi Biography

Mahatma Gandhi Biography | महात्मा गांधी का जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Biography – महात्मा गांधी, 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में मोहनदास करमचंद गांधी के रूप में जन्मे, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति थे और अहिंसक प्रतिरोध के हिमायती थे। उनके आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व की मान्यता में उन्हें अक्सर “महात्मा” कहा जाता है, जिसका संस्कृत शब्द अर्थ “महान आत्मा” है। यह भी देखे – Sardar Vallabhbhai Patel | सरदार वल्लभभाई पटेल

Table of Contents

गांधी का जीवन और सिद्धांत दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करते हैं। उनका अहिंसा का दर्शन, जिसे सत्याग्रह के रूप में जाना जाता है, उनकी सक्रियता की आधारशिला और सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन गया। गांधी सत्य की शक्ति और मानवता की सहज अच्छाई में दृढ़ता से विश्वास करते थे, और उन्होंने अहिंसक तरीकों से सामाजिक न्याय और समानता लाने की मांग की।

गांधी के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में उनका नेतृत्व था। उन्होंने ब्रिटिश कानूनों और नीतियों को चुनौती देने के लिए 1930 में प्रसिद्ध नमक मार्च जैसे विभिन्न अभियानों और विरोधों का आयोजन किया। सविनय अवज्ञा और अहिंसक प्रतिरोध के माध्यम से, उन्होंने ब्रिटिश शासकों और भारतीय जनता दोनों के विवेक को जगाने का लक्ष्य रखा।

अहिंसा के प्रति गांधी की प्रतिबद्धता अहिंसा, या गैर-हानिकारक में उनके विश्वास में निहित थी। उनका मानना ​​था कि हिंसा केवल घृणा और उत्पीड़न के चक्र को कायम रखती है, और वह सच्चा परिवर्तन केवल प्रेम, करुणा और समझ के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। अहिंसा के प्रति गांधी के अटूट समर्पण ने भारत और विदेशों दोनों में अनगिनत व्यक्तियों को प्रेरित किया, और आज भी शांति और न्याय के लिए आंदोलनों को प्रभावित करना जारी रखा है।

एक राजनीतिक नेता के रूप में उनकी भूमिका से परे, गांधी एक आध्यात्मिक और समाज सुधारक थे। वह सादगी, आत्म-अनुशासन और आत्मनिर्भरता में विश्वास करते थे। उन्होंने अछूतों (दलितों) सहित हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान की वकालत की और अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों को खत्म करने की दिशा में काम किया।

गांधी की शिक्षाएं राजनीतिक और सामाजिक दायरे से परे फैली हुई हैं। उन्होंने व्यक्तिगत परिवर्तन और आत्म-साक्षात्कार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने लोगों को अपने दैनिक जीवन में सच्चाई, विनम्रता और निःस्वार्थता का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने “सर्वोदय” के विचार को बढ़ावा दिया, जिसका अर्थ है सभी का कल्याण और उत्थान, और समानता और न्याय के आधार पर समाज बनाने का प्रयास किया।

अपने पूरे जीवन में, गांधी ने कई चुनौतियों का सामना किया और यहां तक ​​कि कारावास भी सहन किया, लेकिन वे सत्य और न्याय की खोज में अडिग रहे। उनके प्रयासों से अंततः 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता हुई, लेकिन दुख की बात है कि 30 जनवरी, 1948 को एक हिंदू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या कर दी गई, जिन्होंने धार्मिक सद्भाव पर गांधी के रुख का विरोध किया था।

महात्मा गांधी की विरासत शांतिपूर्ण प्रतिरोध, सामाजिक सद्भाव और नैतिक विश्वास की शक्ति के प्रतीक के रूप में कायम है। उनकी शिक्षाएँ सत्य, अहिंसा और न्याय के आदर्शों को बढ़ावा देते हुए दुनिया भर में व्यक्तियों और आंदोलनों को प्रेरित करती रहती हैं। गांधी का जीवन एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन प्राप्त किया जा सकता है, और उनके सिद्धांत अधिक न्यायपूर्ण और करुणामय दुनिया के लिए हमारी चल रही खोज में प्रासंगिक बने हुए हैं।

Mahatma Gandhi Biography

NameMohandas Karamchand Gandhi
Date of BirthOctober 2, 1869
Place of BirthPorbandar, Gujarat, India
NicknameMahatma Gandhi
EducationBarrister-at-law
PhilosophyNonviolence, Satyagraha
RoleLeader of Indian independence movement
Notable Campaigns , Quit India Movement
Advocated forIndian independence, social justice, equality
Key PrinciplesTruth, nonviolence, simplicity
AssassinationJanuary 30, 1948 (assassinated by Nathuram Godse)
LegacySymbol of peaceful resistance, inspiration for civil rights movements

Please note that this is a simplified representation, and there are many more aspects to Mahatma Gandhi’s life and contributions.

Mahatma Gandhi Career : महात्मा गांधी का करियर

महात्मा गांधी का करियर बहुमुखी था और भारत की स्वतंत्रता, सामाजिक सुधारों और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए उनके अथक प्रयासों से चिह्नित था। यहां उनके करियर के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं का अवलोकन किया गया है:

  • कानूनी अभ्यास: लंदन में अपनी कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद, गांधी भारत लौट आए और 1891 में अपना कानूनी करियर शुरू किया। उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक दक्षिण अफ्रीका में कानून का अभ्यास किया, जहां वे नस्लीय भेदभाव और अन्याय के बारे में तेजी से जागरूक हुए।
  • दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकार सक्रियता: दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय पूर्वाग्रह के गांधी के अनुभवों ने अन्याय से लड़ने के लिए उनके जुनून को प्रज्वलित किया। उन्होंने भारतीयों और अन्य हाशिए के समुदायों के अधिकारों की वकालत करते हुए भेदभावपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक विरोध और अभियान चलाए। इस अवधि ने उनके अहिंसा के दर्शन और सत्याग्रह (सत्य-बल) की शक्ति में उनके विश्वास की नींव रखी।
  • भारत वापसी: गांधी 1915 में भारत लौट आए और ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता की वकालत करने वाली राजनीतिक संस्था भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे। उन्होंने शुरुआत में भूमि सुधार, किसान अधिकार और आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया।
  • अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा: गांधी के करियर में अहिंसक प्रतिरोध पर आधारित कई आंदोलन और अभियान देखे गए। उनके सबसे उल्लेखनीय अभियानों में असहयोग आंदोलन (1920-1922), नमक मार्च (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) शामिल हैं। इन आंदोलनों का उद्देश्य ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देना, भारत के लिए स्वशासन की मांग करना और भारतीयों को शांतिपूर्वक दमन का विरोध करने के लिए प्रेरित करना था।
  • सामाजिक सुधार और उत्थान: अपनी राजनीतिक सक्रियता के साथ-साथ, गांधी ने सामाजिक सुधारों और वंचित समुदायों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने छुआछूत, जातिगत भेदभाव और लैंगिक असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। गांधी ने दलितों (अछूतों) के अधिकारों का समर्थन किया और समाज में उनके समावेश की दिशा में काम किया।
  • रचनात्मक कार्यक्रम: गांधी “रचनात्मक कार्यक्रम” की अवधारणा में विश्वास करते थे, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भर और टिकाऊ ग्रामीण समुदायों का निर्माण करना था। उन्होंने खादी (हाथ से काते और हाथ से बुने कपड़े) और ग्रामोद्योग जैसी पहलों के माध्यम से ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वच्छता और आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। इन प्रयासों का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना और इसके लोगों के जीवन में सुधार करना था।
  • बातचीत और शांतिपूर्ण प्रतिरोध: गांधी ने स्वतंत्रता के लिए बातचीत करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों और भारतीय नेताओं के साथ संवाद किया। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर दृढ़ता से कायम रहते हुए शांतिपूर्ण संवाद और सहयोग के महत्व पर बल दिया।
  • विरासत और प्रभाव: गांधी के करियर का न केवल भारत बल्कि दुनिया पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। अहिंसा का उनका दर्शन और सामाजिक न्याय पर उनका जोर दुनिया भर में आंदोलनों और नेताओं को प्रेरित करता है। वह नागरिक अधिकारों, शांति सक्रियता और स्वतंत्रता के संघर्ष के इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बने हुए हैं।

महात्मा गांधी के करियर की विशेषता अहिंसा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, न्याय और समानता के लिए उनकी वकालत और भारत की स्वतंत्रता के लिए उनकी अथक खोज थी। उनका प्रभाव उनके समय से कहीं आगे तक फैला हुआ है, और उनके सिद्धांत एक बेहतर दुनिया के लिए प्रयासरत व्यक्तियों और आंदोलनों का मार्गदर्शन और प्रेरणा देते हैं।

महात्मा गांधी का करियर अहिंसा की परिवर्तनकारी शक्ति और सत्य और न्याय के सिद्धांतों के प्रति अटूट समर्पण का उदाहरण है। उनकी विरासत एक कालातीत अनुस्मारक के रूप में कार्य करती है कि शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से सकारात्मक परिवर्तन प्राप्त किया जा सकता है, आने वाली पीढ़ियों को एक अधिक दयालु और न्यायसंगत दुनिया की खोज में आने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

FAQ – Mahatma Gandhi Biography

महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ था?

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था।

“महात्मा” का क्या अर्थ है?

“महात्मा” एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “महान आत्मा”, जो गांधी को उनके आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व के सम्मान और मान्यता के संकेत के रूप में दिया गया था।

गांधी के अहिंसा के दर्शन को क्या कहा जाता था?

गांधी के अहिंसा के दर्शन को सत्याग्रह के रूप में जाना जाता था, जिसका अर्थ है “सत्य-बल” या “आत्म-बल”।

गांधी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में क्या भूमिका निभाई?

गांधी ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध के लिए एक नेता, आयोजक और वकील के रूप में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गांधी के कुछ उल्लेखनीय अभियान और विरोध क्या थे?

गांधी के कुछ उल्लेखनीय अभियानों और विरोध प्रदर्शनों में असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन शामिल हैं।

क्या गांधी को अपने करियर के दौरान किसी चुनौती या कठिनाई का सामना करना पड़ा?

हां, गांधी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें कारावास और विभिन्न गुटों का विरोध शामिल था। उन्होंने व्यक्तिगत कठिनाइयों को सहन किया लेकिन अहिंसा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और न्याय की खोज में दृढ़ रहे।

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  • प्रेरक व्यक्तित्व

महात्मा गांधी की जीवनी,mahatma gandhi biography in hindi

mahatma gandhi biography in hindi: करमचन्द और पुतलीबाई के सबसे छोटे बेटे मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात में काठियावाड़ के पोरबन्दर में हुआ था।

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mahatma gandhi biography in hindi : करमचन्द और पुतलीबाई के सबसे छोटे बेटे मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात में काठियावाड़ के पोरबन्दर में हुआ था। इनके पिता करमचन्द पहले पोरबन्दर तथा बाद में राजकोट के दीवान रहे। उनकी माता पुतलीबाई एक धर्मपरायण महिला थीं और उनके ये गुण गांधीजी के लिए अनवरत प्रेरणा स्रोत बने। गांधीजी ने अपने हृदय में महिलाओं के प्रेम और त्याग की जो छवि संजो रखी थी, वह उन्हें पुतलीबाई से प्राप्त हुई थी। उनके माता-पिता अत्यंत धार्मिक परिवेश में पले-बढ़े थे और वे आत्मशुद्धि के लिए उपवास रखते और प्रार्थना करते तथा आत्मसंयम की विधि के रूप में धार्मिक प्रतिज्ञाएं लेते थे। गांधीजी का विवाह किशोरावस्था में ही एक व्यापारी गोकलदास माकनजी की पुत्री कस्तूरबा के साथ हुआ था। लोग उन्हें ‘बा’ के नाम से पुकारते थे और वह गांधीजी के लिये महान प्रेरणा और शक्ति का स्रोत सिद्ध हुईं। mahatma gandhi biography in hindi

mahatma gandhi biography in hindi: बालक मोहनदास की प्रारंभिक शिक्षा पोरबन्दर तथा राजकोट में हुई। एक बार उन्हें पुरस्कार के अतिरिक्त दोहरी प्रोन्नति मिली और काठियावाड़ के सोरठ डिवीजन का प्रतिभावान छात्र होने के नाते उन्हें दो बार चार और दस रुपए महीने की छात्रवृत्ति मिली। वर्ष 1887 में अठारह वर्ष की आयु में मोहनदास ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सितम्बर, 1887 में वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु लंदन चले गये। गांधीजी 10 जून, 1891 को ‘बार’ के लिए अर्ह हो गए। 11 जून को उच्च न्यायालय में उनका पंजीकरण किया गया। 12 जून, 1891 को वह समुद्री मार्ग से भारत के लिए निकल पड़े। जब गांधीजी स्वदेश लौटे, तब उन्हें अपनी माता की मृत्यु का पता चला। उन्हें संभावित दुःख से बचाने के लिए ही उन्हें यह समाचार नहीं दिया गया था। लेकिन यह जानने पर उनका दुःख और भी गहरा हो गया।

अप्रैल, 1893 में गांधीजी को दक्षिण अफ्रीका स्थित नेटाल में एक सबसे धनी भारतीय व्यापारी, सेठ अब्दुल्ला की सेवा में बुलाया गया। दक्षिण अफ्रीका पहुंचने के तुरन्त बाद उन्होंने अनुभव किया कि गोरे लोगों द्वारा काले लोगों के साथ कठोर व्यवहार किया जा रहा है। वहां उन्होंने टालस्टॉय की पुस्तक “दि किंग्डम ऑफ गॉड इज विदिन यू” भी पढ़ी और उससे वह बहुत प्रभावित हुए। अपने मुवक्किल के मुकदमे के सौहार्दपूर्ण निपटारे के पश्चात् गांधीजी ने अप्रैल, 1894 में घर लौटने का निश्चय किया। किन्तु, इसी दौरान इस प्रकार का समाचार प्रकाशित हुआ कि एशियाई आप्रवासियों के विरुद्ध विधान बनाने पर विचार किया जा रहा है, जिस पर उन्होंने तुरन्त वहीं ठहरने तथा अपने लोगों का बचाव करने का निश्चय किया। इन प्रस्तावों में मताधिकार से वंचित करने, भौतिक विलगाव, परम्परागत भारतीय विवाहों का निष्प्रभावण और पथ कर लगाने की बात कही गई थी। दक्षिण अफ्रीका में उनका संघर्ष 1894 से 1914 तक चला। सार्वजनिक सभाओं, प्रेस तथा शिष्टमंडलों के माध्यम से स्थानीय तथा साम्राज्यवादी सरकारों के समक्ष लगातार एक संवैधानिक आन्दोलन चलाया गया। अन्तत: 30 जून, 1914 को सरकार झुकी और एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

mahatma gandhi biography in hindi: वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने पर उन्होंने अहमदाबाद में कोच्छराब में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की तथा अपने अनुभवों के आधार पर आश्रमवासियों के लिए कुछ नियम बनाये। मूल सिद्धांत सत्य और अहिंसा थे किन्तु इन्हें ईश्वर में विश्वास किये बिना प्राप्त करना संभव नहीं था। इसीलिये आश्रम में प्रातः और सायंकालीन प्रार्थनाओं को अनिवार्य बना दिया गया।

भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने संबंधी अपने प्रथम लक्ष्य के पश्चात् गांधीजी के मुख्य मिशन का दूसरा लक्ष्य अस्पृश्यता को दूर करना था। उनका विश्वास था कि अस्पृश्यता मनुष्य को मानवता का तिरस्कार है। अस्पृश्यता के संबंध में गांधीजी का अभियान एक विशाल आन्दोलन का भाग था, जिसे हिन्दू समाज में सुधार लाने के लिए संचालित किया जा रहा था। अन्य बुराइयों, जैसे बालविवाह, देवदासी प्रथा, विधवाओं के प्रति कठोर व्यवहार तथा सामान्यतः महिलाओं पर अत्याचार को समाप्त किए जाने की आवश्यकता थी। गांधीजी ने एक सुधारक एवं एक महिला उद्धारक के रूप में इन बुराइयों को दूर करने के लिए किए गए प्रयासों का समर्थन किया तथा प्रेरणा प्रदान की।

सितम्बर, 1920 में गुजरात राजनैतिक सम्मेलन में प्रस्तुत तथा कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन द्वारा स्वीकृत असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव सौ. विजयराघवाच्चारी की अध्यक्षता में नागपुर में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया गया। इस अधिवेशन में कांग्रेस का स्वराज को प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया गया। गांधीजी ने इस आशय के प्रति राष्ट्र का आह्वान किया कि जनता सिविल सेवाओं और विधान सभाओं से बाहर रहकर “असहयोग” आन्दोलन शुरू करे। उन्होंने जनता को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वह अंग्रेजी राजभाषा तथा ब्रिटिश शासन द्वारा चलाए जा रहे न्यायालयों, स्कूलों और कालेजों का चहिष्कार करें। लोग बितानी कपड़ों अथवा ब्रिटेन की किसो भी चीज को प्रयोग में लाएं। गांधीजी ने भारतीयों का आह‌वान किया कि वे राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लें, अपनी मातृभाषा बोलें और विवादों को निपटाने के लिए ब्रितानी न्यायालय में जाने के बजाय भारतीय मध्यस्थता बोडौँ की स्थापना करें।

mahatma gandhi biography in hindi : एक अग्रणी योद्धा होने के नाते उन्होंने वायसराय लार्ड इर्विन को यह अन्तिम चेतावनी दी कि या तो वे तिरस्कृत नमक कानून को यथाशीघ्र वापस ले लें, अन्यथा वह और उनके सहयोगी इसका उल्लंघन करेंगे। सरकार से अपने पत्र का कोई उत्तर न प्राप्त होने पर 12 मार्च, 1930 को गांधीजी आश्रम निवासियों के विशाल हुजूम के साथ तटवर्ती चौकी दांडी की 200 मील की पदयात्रा पर निका पड़े। दिनांक 6 अप्रैल, 1930 को गांधीजी ने एक छोटे से गड्ढे में जमा एक चुटकी प्राकृतिक नमक लेकर नमक कानून तोड़ा।

गांधीजी ने अपने हाथ में एक चुटकी नमक लेते हुए कहा, ‘इसे लेकर मैं अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला रहा हूं’। पुलिस ने गांधीजी के शिविर पर धावा बोलकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जनवरी, 1931 में महात्मा गांधी को जेल से रिहा कर दिया गया। रिहा होने के बाद उन्होंने वायसराय लार्ड इर्विन से बातचीत की जिसका परिणाम गांधी-इर्विन समझौते के रूप में सामने आया। इस समझौते की मुख्य विशेषताएं थीं: (एक) तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अपना नमक बनाने और बेचने की अनुमति दी जाएगो (दो) शान्तिपूर्ण धरने में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा; (तीन) राजनैतिक बंदियों को छोड़ दिया जाएगा; (चार) सभी अध्यादेशों को वापस ले लिया जाएगा; और (पांच) कांग्रेस लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।

दिनांक 14 जुलाई, 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने वर्धा में “भारत छोड़ो आंदोलन का संकल्प” पारित किया। इसके बाद 8 अगस्त, 1942 को गांधीजी ने बाम्बे में “करो या मरो” का आह्वान किया। गांधीजी ने भारतीयों से कहा कि वे स्वयं को स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक समझें। सरकार ने इससे सख्ती से निपटने का निर्णय किया और गांधीजी सहित सभी कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया क्योंकि उनका स्वास्थ्य गिर गया था। जेल से अपनी रिहाई के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने हेतु कई प्रभावी कदम उठाये।

mahatma gandhi biography in hindi : देश का विभाजन जब अवश्यम्भावी प्रतीत हो रहा था, फिरकापरस्तों द्वारा साम्प्रदायिक हत्याएं की गयीं। इस प्रकार की घटनाएं अगस्त, 1946 में घटीं तथा नोआखाली और त्रिपुरा में अधिकांश लोग इस आतंक के शिकार हुए। साम्प्रदायिक हत्याओं के संबंध में बेहद चिंतित होकर और अपने मन में सामाजिक सद्भाव के हितों और शांति को सर्वोपरि रखते हुए गांधीजी नवम्बर, 1946 को नोआखाली गये और प्रत्येक गांव का पैदल दौरा किया तथा अंततः वहां शांति बहाल करने में सफल हुए। माउंटबैटन की भारत विभाजन संबंधी 3 जून, 1947 की योजना की घोषणा ने पंजाब की पहले से ही तनावपूर्ण साम्प्रदायिक स्थिति में आग में घी डालने का काम किया। पंजाब में हत्याएं और फिर उनके प्रतिशोध में हत्याएं हो रही थीं और हत्याओं की यह आग दिल्ली में भी भड़क उठी। भारी साम्प्रदायिक तनाव से बिल्कुल निराश होकर गांधीजी कलकत्ता छोड़कर 9 सितम्बर, 1947 को दिल्ली आ गये। अपनी हत्या होने तक वह यहीं पर रहे तथा अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों के पुनर्वास संबंधी मामलों का समर्थन करते रहे। उन्होंने शांति, साम्प्रदायिक सौहार्द और समाज के सभी वर्गों के बीच भाई-चारा कायम करने के लिए उपवास भी किया।

mahatma gandhi biography in hindi : 30 जनवरी, 1948 को गांधीजी ने प्रात:कालीन प्रार्थना की अपनी दिनचर्या के साथ दिन की शुरुआत की। अपने नियमित मध्याह विश्राम के पश्चात् गांधीजी ने एक दर्जन व्यक्तियों से साक्षात्कार किया और अपनी पुरानी इंगरसोल घड़ी पर दृष्टि डाली, उन्हें पता चला कि पांच बजकर दस मिनट हो चुके हैं। वह उठ खड़े हुए और निम्नलिखित शब्दों के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल से विदा ली: “मेरा प्रार्थना सभा में जाने का समय हो गया है” और प्रार्थनास्थल जाने के लिये निकल पड़े। वहां पर गांधीजी का हत्यारा नाथूराम विनायक गोडसे बाग में पहले से ही मौजूद था। उसने अपनी जेब से पिस्तोल निकाली और गोली चला दी। उससे बाग की शांति भंग हो गई और इस तरह प्रिय बापू की जीवन लीला का अन्त हो गया। मरने से पूर्व उनके मुख से निकला-

“हे राम”।

स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल , श्री सी. राजगोपालाचारी ने अपनी श्रद्धांजलि देते हुए कहाः

“महात्मा गांधी जैसी गौरवपूर्ण मृत्यु किसी की नहीं हो सकती थी। जब सुकरात ने अपने विचारों की खातिर और ईसा मसीह ने अपनी आस्था के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए तो यह समझा गया था कि ऐसा कोई अन्य उदाहरण अब फिर नहीं मिलेगा।”

आकाशवाणी से राष्ट्र छो सम्बोधित करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने कहा थाः

“हमारे बीच से प्रकाशपुंज विलीन हो गया है और सर्वत्र अंधकार छा गया है। हमारे प्रिय नेता बापू, जिन्हें हम राष्ट्रपिता कहते थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। मैंने कहा प्रकाशपुंज विलीन हो गया, मैं गलत कह गया क्योंकि हमारे देश में जो प्रकाश दिखाई देता था, वह कोई साधारण प्रकाश नहीं था। यह प्रकाश तो ऐसा है, जो सदैव दिखाई देता रहेगा। यह सम्पूर्ण संसार को दिखाई देगा और असंख्य लोगों को शांति- सांत्वना प्रदान करेगा क्योंकि प्रकाश में वर्तमान के अलावा भी बहुत कुछ विद्यमान है: यह जीवन और शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करता है जो हमें सत्यपथ की ओर अग्रसर करेगा, बुराइयों की ओर बढ़ने से रोकेगा और इस महान देश की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेगा।”

श्री जी.वी. मावलंकर ने महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा:

“हमारे जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहां महात्मा गांधी के कार्य और प्रभाव को अनुभूति न हो। उन्होंने हमारी राजनीति, हमारे अर्थशास्त्र और हमारी शिक्षा को एक नई दिशा प्रदान की तथा हमारे जीवन की हर चीज को आध्यात्मिक रूप प्रदान करने का प्रयत्न किया। वह हमारे युग के महानतम व्यक्ति थे। उनका हृदय नफरत और हिंसक संघों के अंधकारमय समय में भी सदैव मानवता के प्रति प्रेम से सराबोर रहता था और यह जानकर भी कि बह अकेले पड़ गए हैं, वह कभी हताश नहीं हुए।”

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने महात्मा गांधी को अपनी भाव-भीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा:

“वह अत्यंत त्याग और सयम का जीवन जीते थे और करोड़ों देशवासो उनका ईश्वर प्रेरित संत के रूप में सम्मान करते थे। उनका प्रभाव सभी धर्मों के अवलंबियों पर पड़ा था।”

अमरीकी राष्ट्रपति टूमैन ने महात्मा गांधी के दुःखद निधन पर कहाः

“एक शिक्षक और नेता के रूप में उनका प्रभाव न केवल भारत में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में था तथा उनके निधन से सभी शांतिप्रिय लोगों को बड़ा आघात लगा है। एक और महामानव ने भाईचारे और शांति के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी है। मुझे विश्वास है कि एशिया के लोगों को उनके दुःखद निधन से सहयोग और आपसी विश्वास के उन लक्ष्यों, जिनके लिए महात्मा ने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया है, को प्राप्त करने के लिए और अधिक दृढ़ निश्चय के साथ प्रयास करने की प्रेरणा मिलेगी।

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महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi

महात्मा गांधी का जीवन परिचय Mahatma Gandhi Biography In Hindi -परम पूज्य राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोन नही जानता हैं | सत्य और अहिंसा को वो मूरत जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी भारत की आजादी में लगा दी|

एक लकड़ी के सहारे चलने वाले गाँधीबाबा ने सत्य अहिंसा को अपना शस्त्र बनाकर करोड़ो हिन्दुस्थानियो के साथ जंग-ए-आजादी लड़ी| उनकी कुर्बानियों की वजह से ही आज हम खुले वातावरण में सांस ले रहे हैं|

ऐसी महान आत्मा के जन्म के लिए धरती स्वय तरस जाती हैं| मानवता और हिन्दू मुस्लिम एकता की मिशाल बने महात्मा गांधी के जीवन में विपतियों के सिवाय कुछ नही था| जिन्हें सता प्राप्ति का कोई लोभ न था|

प्यारा था तो वतन और उसकी आजादी| ऐसें प्रेरणादायक महापुरुष महात्मा गांधी का जीवन परिचय जीवनी और इतिहास में उनके जीवन से जुड़ीं मुख्य घटनाओं पर प्रकाश डालने की छोटी सी कोशिश की गईं हैं|

   मोहनदास करमचन्द गांधी
 हिन्दू
 2 अक्टूबर 1869
 पोरबंदर, गुजरात
करमचन्द गाँधी, पुतलीबाई
  कस्तूरबा गाँधी (1883)
  हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
   भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस

गांधी जी की जीवनी व इतिहास (Gandhiji’s biography and history)

आज इस हस्ती के बारे में कोन नही जानता देश का बच्चा-बच्चा महात्मा गांधी की ऑटोबायो ग्राफी से वाकिफ हैं, गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास कर्मचन्द गाँधी था| इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर शहर में हुआ था| उस समय यह प्रान्त बम्बई प्रेजिडेंसी के अंतर्गत आता था|

इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी जो पंसारी जाति के थे| अग्रेज सरकार में वो दीवान के पद पर सेवारत थे| इनकी माँ का नाम पुतलीबाई था | जो मध्यम वर्ग से आती थी |

गृहणी का काम किया करती थी| दरअसल पुतलीबाई करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी थी| इनसे पूर्व की तीन पत्नियों का देहांत हो चूका था|

महात्मा गांधी का आरंभिक जीवन (Early life of Mahatma Gandhi)

कट्टर हिंदूवादी विचारधारा के परिवार में जन्मे गाँधी के जीवन पर भी धार्मिक परवर्तियो का प्रभाव पड़ा| इनकी माता धार्मिक विचारो वाली महिला था| इनके पिताजी करमचंद गाँधी को कबा गाँधी उपनाम से भी जाना जाता हैं|

हालाँकि वे शिक्षित तो नही थे| मगर जीवन के कड़े अनुभवो ने उनमे ऐसी शिक्षा का प्रदुभाव कर दिया था| जिससे वे हित और अहित को भली भांति जानते थे|

वे नही चाहते थे उनका बेटा मोहनचंद इसी अंग्रेजी हुकूमत का बाशिंदा बने| इसी पर इन्होने मोहनदास का दाखिला स्थानीय सामलाल कॉलेज में दिलाया| जहा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के त्त्पश्तात गाँधी को बम्बई विश्विद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया|

उन्हें शुरुआत से पढ़ाई में मन नही लगता था इसकी वजह अंग्रेजी भाषा थी| वे अग्रेंजी और अपनी मातृभाषा गुजराती में पूर्णत सामजस्य नही बिठा पाते थे| गाँधी बचपन से अपनी लिखावट में अच्छे नही थे|

उनका मन और कही था| मगर परिवार तो कुछ और ही चाहता था| महात्मा गांधी शुरू से ही बेहद सवेदनशील इंसान थे| मानव पीड़ा उनके लिए सबसे बड़ा दर्द था| इसमे कमी लाने के लिए वे डोक्टर बनना चाहते थे|

मगर कट्टर ब्रह्मण वादी सोच अपने कुल में चिर फाड़ और ऐसे कार्यो को बिलकुल इजाजत नही देती थी| अपनी कुल परम्परा के मुताबिक उन्हें वकील बनने की हिदायत दी गईं|

ब्रिटिश भारत में उस समय लो की शिक्षा का स्तर न्यून था| इसलिए माता-पिता ने महात्मा गांधी को इंग्लैंड भेजने का निश्चय किया गया|

गांधी जी की अफ्रीका यात्रा व भारत लौटना (Gandhiji’s visit to Africa and returning to India)

गांधी जब 19 वर्ष के थे तो कॉलेज में मन ना लगने के कारण इन्हे इंग्लैंड जाने का ऑफर मिला| जिन्हें गांधी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया| कानून की पढ़ाई करने जाने से पूर्व इनकी मुलाकात एक जैन भिक्षु के साथ हुई|

कुछ दिन साथ रहने के बाद इनका काफी प्रभाव पड़ा| इसके अतिरिक्त इनकी जीवनचर्या पर माँ के विचारो का प्रभाव पड़ा| लन्दन में रहने के दोरान उनके शाकाहारी जीवन प्रवर्ती में बड़ा बदलाव आया|

अग्रेंजी रीती-रिवाज और शैली से बिलकुल अलग और शाकाहारी और साधू के रूप में जीवन व्यतीत करने लगे| बोध धर्म की एक संस्था थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके साथ काम करते रहे

लन्दन से बेरिस्टर की डिग्री हासिल करने के बाद मुंबई लौट आए| यहाँ उन्होंने कई बार वकालत की| मगर उन्हें यहाँ इतनी सफलता नही मिली| एक अग्रेज अधिकारी की लापरवाही के कारण गांधी को इस जॉब से हाथ धोना पड़ा फिर उन्हें एक शिक्षक के रूप में एक संस्था द्वारा आमत्रित किया गया| मगर गांधी ने इच्छा न जताते हुए अनिच्छा जाहिर की|

उस समय अग्रेंजी हुकूमत दक्षिण अफ्रीका में भी थी| अत: रिश्तेदारों के बुलावे पर महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका की यात्रा पर गये| मगर यहाँ उन्हें जो कुछ झेलना पड़ा  Mahatma Gandhi Biography  में इसका वर्णन आगे दिया जा रहा हैं|

जीवन की घटनाएं

यदि मोहनदास कर्मचन्द गाँधी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा नही करते तो शायद वो महात्मा गांधी  भी नही बनते | जब 1895 में गांधीजी ने अफ्रीका की यात्रा की तो उस समय वहा ब्रिटिश हुकूमत थी| जो वहा के निवासियों और अग्रेंजो के बिच रंगभेद की दीवार खड़ी कर चुके थे|

काले और गोरे लोगों के बिच हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता था| यहाँ तक कि वे एक ही बस्ती में नही रह सकते थे| गांधीजी ने जब दक्षिण अफ्रीका में पहला ही कदम रखा| तो उन्हें रंगभेद का शिकार होना पड़ा|

एक घटना जिन्होंने अग्रेंजो के प्रति गुस्सा भर दिया | जब वे रेल मे यात्रा कर रहे थे| तब उनके पास फरिस्त क्लास की वैध्य टिकट होने के बावजूद डिब्बे में सवार गोरे लोगों ने उन्हें थर्ड क्लास में जाना को कहा गया| महात्मा गाँधी ने जब इसका विरोध किया तो कुछ गोरे लोगों ने उठाकर उन्हें चलती गाड़ी से बाहर फेक दिया|

उस समय गांधी की वेशभूषा एक धोती कुर्ता और पगड़ी पहने थी| गोरे लोगों ने उन्हें अपनी बस्ती के आस-पास आने जाने रेस्टोरेंट में रुकने से पाबंदी लगा दी| साथ ही जब वे एक मुकदमें को लेकर कोर्ट गये तो अग्रेंजी कोर्ट ने उन्हें पगड़ी तक उतारने का आदेश दिया|

उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की तादाद बड़ी संख्या में थी, उनके साथ रंगभेद का घोर अपमान किया जाता था| गांधी ने भारतीयों को जाग्रत कर जुलू से अग्रेंजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया| इन्होने भारतीय जनमत इंडियन ओपिनियन के जरिए भारतीयों को न्याय दिलाने की कोशिश भी की|

दक्षिण अफ्रीका से भारत आना

कई सफल और विफल प्रयासों के बाद महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका छोड़कर 1915 में अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए| भारत आकर इन्होने भारतीयों की अपने ही देश में राजनितिक आर्थिक दुर्दशा देखी|

अग्रेजो की फुट डालो और राज करो की निति का पूर्ण अध्ययन करने के बाद उन्होंने कई सभाओ को सम्बोधित किया| उस समय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) थे| जो महात्मा गांधी के विचारों से सहमत थे|

गांधीजी उस समय प्रत्येक क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे ताकि वास्तविक स्थति का पता लगाया जाए| तभी उनसे गुजरात के खेड़ा और बिहार के चम्पारण के किसान अपनी परेशानियों को लेकर पहुचे|

अंग्रेजी हुकूमत उन से अन्यायपूर्ण तरीके से नील और अफीम की खेती करवाती थी| गाँधी जी ने बहुत सोच-विचार के बाद इन किसान की आवाज बनने का निर्णय किया और हजारो किसानो और किसान नेताओ के साथ 1918 में खेड़ा चम्पारण का आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

यह पहला अवसर था जब मोहनदास कर्मचन्द गांधी को लोगों ने बापू और महात्मा गांधी  के नाम से पुकारना शुरू किया| इस आन्दोलन में किसानो की तरफ से रखी गईं मांगो में बढे हुए राजस्व में कमी, कृषक का उनके खेत पर पूर्ण स्वामित्व, साथ ही सभी अन्यायपूर्ण सहमती पत्र रद्द किये गये|

अंग्रेजी हुकूमत ने खेड़ा और चम्पारण के किसानो की आवाज दबाने की पूरी कोशिश की महात्मा गांधी को जेल में भी डाला गया| मगर किसानो के आन्दोलन की बढती लोकप्रियता और दवाब के कारण सरकार को अपने कदम वापिस लेने पड़े|

इस आन्दोलन से बिखरे समाज में न केवल एकता लाने का काम किया बल्कि महात्मा गांधी की लोकप्रियता भी बढ़ी| लोगों में यह विश्वास जगा कि शांतिपूर्ण तरीको से भी सरकार पर दवाब बनाकर अपनी मांगे मनवाई जा सकती हैं|

महात्मा गांधी के आंदोलन नमक सत्याग्रह (Salt satyagraha)

दांडी नमक यात्रा गांधीजी की एक विरोधात्मक रैली और आन्दोलन था| जिनमे हजारो लोगों ने भाग लिया था| 5 अप्रैल 1930 को गुजरात की दांडी नामक स्थल से आरम्भ की गईं|

लगभग 450 किलोमीटर की इस यात्रा को पूरी कर महात्मा गांधी ने सत्याग्रहियों के साथ मिलकर नमक बनाकर अंग्रेजी सरकार के उस नमक कानून का उल्लघंन किया| इस आन्दोलन से अंग्रेजी सरकार की नीव पूर्णत हिलाकर रख दी थी|

12 मार्च के दिन लगभग 1 लाख से अधिक लोगों ने सरकार के नामक निर्माण और उसकी बिक्री के एकाधिकार का हनन कर सरकार को कड़ा संदेश देने का कार्य किया| महात्मा गांधी के इस आन्दोलन के बाद तकरीबन 70 हजार लोगों को जेल में डाला गया|

आखिर मार्च 1931 को इरविन गांधी समझोते के बाद सभी कैदियों को रिहा करने के साथ सरकार ने सभी सत्याग्रहियों की मांग को स्वीकार कर लिया| जिसके बाद गांधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को रोक दिया|

दांडी नमक यात्रा और खेड़ा चम्पारण के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने कई बड़े राजनितिक और सामाजिक आन्दोलन किये जिसकी वजह से अंग्रेजी सता को कमजोर और भारतीय आंदोलनकारियो के विशवास को मजबूत करने में मदद मिली| आएये Mahatma Gandhi Biography में जानते हैं उनके कुछ प्रभावशाली जन-आंदोलनों के बारे में सक्षिप्त में|

अन्य आंदोलन

असहयोग आन्दोलन -गांधीजी के सबसे लोकप्रिय जनआंदोलनों में से एक था| पहले विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजी सरकार ने भारत में समाचार पत्रों पर पूर्णत पाबंदी लगा दी|

साथ ही इसका उलघंन करने पर बिना कोई न्याय प्रक्रिया के कठोर कारावास का प्रावधान कर दिया| महात्मा गांधी ने इस रोलेट एक्ट के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया| इस विरोध का सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में पड़ा|

वहा पर सालो से अंग्रेजी हुकूमत की सेवा करने वाले लोगों को भी जेलों में डाला गया| महात्मा गांधी के आव्हान पर हजारो युवको ने अम्रतसर और आस-पास के सभी शहरों में हड़ताल पर चले गये| बाजार पूरी तरफ ठप हो गये थे|

सभी सत्याग्रही पंजाब के जलियावाला बाग़ नामक स्थान पर एकत्रित होकर शांति पूर्ण सभा कर रहे थे| अंग्रेजी सरकार को इसकी सुचना मिलने पर जनरल डायर के आदेश पर उन बेकसूर लोगों को गोलियों से भुन दिया गया| 

भारतीय इतिहास में इस हत्याकांड को जालियाँवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh massacre के नाम से जाना गया|

सरकारी आकड़ो के अनुसार इस में चार सो लोग मारे गये| मगर मरने की वास्तविक संख्या 2 हजार से अधिक थी| सरकार के इस दमनकारी रवैये के बाद महात्मा गांधी ने देशभर में सविनय आन्दोलन आरम्भ कर दिया|

1921 तक चले इस प्रोटेस्ट के लिए सभी भारतीय लोगों की अंग्रेजी नौकरी और सेना सहित किसी कार्य में सहयोग न करने की अपील की गईं|

तक़रीबन चार सौ हडतालों में 10 लाख से अधिक मजदूर और किसान सम्मलित हुए थे| इस आन्दोलन से भले ही भारत को आजादी नही मिल पाई हो मगर अंग्रेजो को यह एहसास हो चूका था| कि अब भारत को अधिक वर्षो तक दबाकर नही रखा जा सकता|

भारत छोड़ो आन्दोलन ( Quit India Movement ) -अभी तक के महात्मा गांधी के सभी आंदोलनों में सबसे व्यापक और शक्तिशाली आंदोलनों में से भारत छोड़ो आन्दोलन सबसे अधिक प्रभावकारी था|

सरकार के दमनकारी रेवैये के कारण गाँधी को दुश्मन बना चुके थे| इस आन्दोलन की शुरुआत तो दुसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत से ही हो गईं|

महात्मा गांधी इस विश्व युद्ध का फायदा उठाना चाहते थे| सरकार की शक्ति दोनों तरफ बटी होने के कारण इस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी रूप से शुरू किया गया|

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद यह पहला अवसर था जब वतन की आजादी की खातिर सभी वर्ग जिनमे बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी इस जन आन्दोलन में हिस्सा लिया|

महात्मा गांधी ने अब तक सरकार के खिलाफ उपयोग किये गये सभी उपक्रमों का एक साथ प्रयोग किया| जिनमे अहिंसा सत्याग्रह अवज्ञा के साथ-साथ हिंसा भी बड़े पैमाने में इस आन्दोलन में शामिल रही| गाँधी के लिए यह आन्दोलन उनकी पराकाष्टा थी| वर्ष 1942 में ही इन्होने करो या मरो का नारा दिया था|

इसी दोरान उन्हें दो वर्ष तक की कठोर कारावास में भी रहना पड़ा| जेल से छुटने के बाद उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी और परम मित्र और सहयोगी महादेव देसाई का निधन हो चूका था|  डू ऑर डाय के नारे के बाद लाखो की संख्या में आंदोलनकारी सड़को पर उतर आए थे|

कही सरकार की सेना पर हमला हो रहा था तो कही लुट मार मची थी| बड़ी संख्या में जेल भरो निति से अपनी गिरफ्तारी दे रहे थे| 1943 तक भारत छोड़ो आन्दोलन को सरकार ने दबा भी दिया था| मगर सभी कैदियों की रिहाई के साथ भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के संकेत भी दे दिए|

हरिजन आंदोलन (Harijan movement) -डॉ॰ बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा भारत के नए सविधान में मुस्लिम और हिन्दू निर्वाचन क्षेत्रो के अतिरिक्त दलित समुदाय के लिए अलग से निर्वाचन क्षेत्र में आरक्षण की माग की|

इस पर अंग्रेजी सरकार भी सहमत थी| मगर सितम्बर में महात्मा गांधी ने इस जातीय विभाजन को रोकने के लिए 6 दिनों तक भूख हड़ताल की|

आखिर तीनो पक्षों ने मिलकर इस नई व्यवस्था को छोड़कर पुन: पुरानी व्यवस्था को अपनाए रखा| महात्मा गांधी दिन हिन् और पिछड़े वर्ग के उद्दारक थे| इन्होने सामाजिक आन्दोलन द्वारा समाज में दलितों की स्थति सुधारने के कई अथक प्रयास किये|

जिनमे से एक था अछूत वर्ग के लोगों को अब से हरिजन नाम से बुलाए जाने की व्यवस्था की शुरुआत की|इन्ही के प्रयासों की बदोलत नीची जाति के लोगों का धार्मिक स्थलों में प्रवेश संभव हो पाया|

महात्मा गांधी की आलोचना (Criticism of Mahatma Gandhi)

एक महान देश नायक और राष्ट्रपिता होने के बावजूद उनके काम करने का तौर तरीका और किसी सम्प्रदाय के प्रति नजदीकी और किसी के साथ दुरी बनाए रखने के विषय पर महात्मा गांधी पर कई तरह के आरोप और आलोचनाए हुई हैं|

  • शुरुआत के दोनों वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश राज्य को समर्थन देना|
  • अग्रेंजो की दमनकारी निति के आगे सत्य और अहिंसा बेकार हैं|
  • देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमन्त्री पद के लिए नेहरु को समर्थन देना|
  • जब असहयोग आन्दोलन पुरे उफान पर था अग्रेंजी पुलिस थाने पर हमले से आन्दोलन वापिस ले लेना|
  • भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान का विभाजन
  • विभाजन में पाकिस्तान को 55 करोड़ की आर्थिक मदद मज़बूरी से दिलाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठना|
  • कांग्रेस के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नेताजी सुभाषचंद्र बोस को समर्थन ना देना|
  • गांधी-इरविन समझौता जो पूर्णत अंग्रेजी हुकूमत के फायदे की शर्तो पर था इसे मंजूरी देना|
  • सशस्त्र क्रान्तिकारियों को हताश करना उनकी राह में रोड़ा बनना|

महात्मा गांधी की बेटी का नाम

बहुत से लोग महात्मा गांधी की बायोग्राफी में जानना चाहते हैं कि बापू की बेटी का क्या नाम था. मगर उनको संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता हैं. इसका कारण यह है कि बापू की कोई बेटी नहीं थी. उनके चार बेटे थे जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास.

गांधी अपने दो भाइयों और एक बहिन में सबसे छोटे थे. इनकी बहिन का नाम रलियत और दो भाइयों के नाम लक्ष्मीदास और कृष्णदास था. नंद कुंवरबेन, गंगा ये गांधीजी की भाभियाँ थी.

आज के समय में हम महात्मा गाँधी के वंशजों की बात करें तो उनके 154 परिवार के सदस्य हैं जो दुनियां के 6 देशों में रह रहे हैं. जिनमें 12 चिकित्सक और इतने ही प्रोफेसर हैं. इनके अलावा इंजीनियर, पत्रकार, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, चार्टेड एकाउंटेंट और 4 पीएचडी डिग्री धारी भी शामिल हैं.

महात्मा गांधी की मृत्यु हत्या Death of Mahatma Gandhi

30 जनवरी 1948 का दिन शाम पांच बजकर 20 मिनट का समय हो रहा था. आज बापू रोजाना की प्रार्थना सभा में कुछ देरी से जा रहे थे. बिरला भवन में उनकी सरदार पटेल के साथ एक अहम बैठक थी इसी वजह से उनकी देरी हो गई थी.

आभा और मनु के कंधे पर हाथ रखे महात्मा गांधी तेजी से बिडला भवन की तरफ निकल रहे थे उनके साथ कुछ अनुयायी थे. तभी उनके सामने नाथूराम गोडसे नामक एक शख्स आकर प्रणाम मुद्रा में झुकता है तथा उन्हें आगे बढने से रोक देता हैं.

इस पर मनु उन्हें सामने से हटने के लिए कहती है मगर वो मनु को धक्का देकर अपने कपड़ों में छिपाई गई बैरेटा पिस्टल निकालकर गांधी जी पर एक के बाद एक तीन फायर करते हैं. दो गोलियां उनके शरीर के आर पार निकल जाती हैं वहीँ एक गोली शरीर में ही अटक जाती हैं.

उस मौके पर बेटा देवदास भी आ पहुचे थे. 78 साल के महात्मा गांधी की इस तरह हत्या से भारत ही नहीं दुनियां भर में शोक की लहर फ़ैल गई.

बापू पर हुए इस हमलें में नाथूराम गोडसे मुख्य अभियुक्त समेत आठ आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया जिसमें वीर सावरकर का भी नाम थे जिन्हें अदालत ने बेगुनाह पाया था. गांधी हत्या प्रकरण में नारायण आप्टे और नाथूराम विनायक गोडसे को फांसी दे दी गई.

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्रेरक प्रसंग Gandhi Story

Story Of Mahatma Gandhi  in hindi:  शीर्षक के इस लेख में पूज्य राष्ट्रपिता गांधीजी के जीवन से जुड़ी एक कहानी दी जा रही हैं.सत्य और अहिंसा की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले  महात्मा गांधी की इस कहानी में हम जान जाएगे,

वो कितने अपने सिद्दांतो के पक्के और परिश्रमी थे, लोगों का उनके प्रति क्या नजरिया और रुझान था. यह बतलाने की जरुरत नही हैं, कि महात्मा गांधी अत्यंत परिश्रमी थे.

कभी-कभी वे तो रात के ठाई बजे उठ बैठते और दिन में आधे घंटे तक विश्राम करके रात के दस बजे तक काम करते रहते, उनके सिर पर काम का बोझ निरंतर बना रहता था. समस्त देश की चिंता महात्मा गांधी को इतना व्यस्त रखती थी.

उनके लिए हँसना हंसाना अत्यंत आवश्यक हो गया था. एक बार किसी विलायती सवाददाता ने उनसे पूछा- गांधीजी क्या आपमें हास्य की प्रवृति भी हैं, उन्होंने तुरंत जवाब दिया’ यदि मुझमे हास्य प्रवृति ना होती तो मैंने कभी का आत्मघात कर लिया होता.

महात्मा गांधी का मजाक छोटे-बड़े सभी के साथ चलता था. मन-बहलाव के लिए खास तौर पर बच्चों के साथ खूब दिल्लगी करते थे. एक बार महात्मा गांधी ने आश्रम की सभी महिलाओं की मीटिंग अपने कमरे में की. बातचीत का विषय था,

उनकी गोद ली हुई अछूत कन्या को अपने चौके में बिठला कर रसोई बनाना कोई सिखाएगा. डेढ़ घंटे तक गंभीर वार्तालाप होता रहा. एकत्रित स्त्रिओ में से कोई भी इस पुण्य कार्य के लिए तैयार नही हुई. सभी ने एक स्वर में ना कह दिया.

स्नान कराने, सिर के बाल काढ देने इत्यादि छोटी-छोटी सेवा के लिए स्त्रियाँ तैयार हो गईं परन्तु अपने चौके में उस बालिका को ना घुसने देना को स्वीकार नही था. वातावरण कुछ गम्भीर सा हो गया.महात्मा गांधी जी ने उस समय मुस्करा कर इतना ही कहा- ” तब मुझे अभी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी”

इसके तुरंत बाद इन्होने छोटे-छोटे बच्चों पर, जो अपनी माताओ के साथ बापू के पास गये थे. निगाह फेकी. एक बच्चे के हाथ में उन्हें एक पैसा दिख पड़ा.

बापू को बस मौका मिल गया. उन्होंने उस बालक से कहा “अरे भाई पैसा मुझे दे दे”

बालक ने कहा- “मलाई बर्फ खाइये”

बापू ने कहा-“हमको तो मलाई की बर्फ मिलती नही”

बालक ने कहा-“हमारे घर चलो हम तुम्हे खूब खवावेगे”

इसके बाद बापू ने कुछ, जिसमे “शु” गुजरती शब्द आया था, जिसकी मानी हैं क्या”

वह बच्चा ”शु”न सनझ सका और सब महिलाएं हंस पड़ी, बापू भी हंस पड़े.

दुसरे दिन जब उस लड़के के पिता ने बापू की सेवा में उपस्थित होकर माफ़ी मांगी तो हसते हुए महात्मा गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा” अरे यह बच्चा तो मेरा पुराना दोस्त हैं” बापू की इस स्वभाविक कोमलता के साथ-साथ कठोर नियन्त्रण वृति भी काम करती थी.

महात्मा गांधी ने अन्य महिलाओं से तो कुछ नही कहा, पर अपनी भतीजे मगनलाल गाँधी की धर्मपत्नी को हुक्म दिया” आप अपने मायके चली जाएं.

पर बच्चों को यही छोडती जाए, मुझे ऐसी बहु नही चाहिए. जो मेरी लड़की को चौके में घुसने न दे. श्री मगनलाल की धर्मपत्नी को अपने पिताजी के यहाँ जाना पड़ा और छ; सात महीने वही रहना पड़ा.

यह बतलाने की आवश्यकता नही हैं कि अतत उस तथाकथित अछूत बालिका को रसोई में ले जाना स्वीकार कर लिया.एक बार बापू की सवेरे की प्रार्थना में शामिल होने के लिए सवेरे चार बजे मै भी गया था.

मेरे हाथ में हॉकी स्टिक थी. उसे प्रार्थना स्थल के बाहर रखकर मै बैठ गया. प्रार्थना समाप्त होने पर ज्यो ही अपने हाथ में ली बापू उधर से आ निकले.

हंसकर कहा- ये लाठी आपने बड़ी मजबूत बाँधी हैं. मैंने उतर दिया” इसका नाम माखनलाल चतुर्वेदी ने मस्तक भजन रख दिया हैं”

बापू बोले-हाँ और सत्याग्रह आश्रम में मस्तक-भंजन रखनी ही चाहिए, आस-पास खड़े व्यक्ति हंस पड़े.

एक बार महात्मा गांधी ने मुझे सवेरे सात बजे और सवा सात बजे का टाइम बातचीत के लिए दिया.

मै उन दिनों नया-नया आश्रम में गया था. मन में सोचा कि बापू जाते थोड़े ही हैं, दो-चार मिनट की देरी भी हो जाएं तो क्या? सात बजकर दस बारह मिनट पर पंहुचा. बापू मुस्कराकर बोले-तुम्हारा टाइम तो बीत गया. अब भाग जाओ,

फिर कभी वक्त तय करके आना” मुझे बहुत लज्जित होना पड़ा. एक बार फिर ऐसी घटना घट गईं, परन्तु उसमे मेरा कोई अपराध नही था. बापू ने एक राजा साहब को शाम को तीन बजे का टाइम दिया था.

और मेरे सुपुर्द का काम यह था कि उनको लाऊ. उन्हें अहमदाबाद से आना था, बस एक मिनट की देरी हो गईं. मै राजा साहब को लेकर बापू की सेवा में पंहुचा तो वे बोले” मै तो मिनट भर से आपका इन्तजार कर रहा हु.  

महात्मा गांधी चाय को स्वास्थ्य के लिए सबसे हानिकारक मानते थे. परन्तु जिनको चाय पीने की आदत पड चुकी थी, उनके लिए चाय का प्रबंध भी अवश्य कर देते हैं.

एक बार मिस आगेथा हैरिसन नामक महिला अंग्रेज उनके साथ यात्रा पर आ रही थी और उन्हें इस बात की चिंता थी,कि प्रातकालीन चाय का इंतजाम कैसे होगा. 

महात्मा गांधी जी को जब यह पता लगा तो वे बोले ” आप फ़िक्र ना करिए आपके लिए मैंने आधा पौंड जहर रख दिया हैं. एक बार बापू ने मेरे साथ भी चाय के बारे में कई मजाक किये.

कलकता से चलकर वर्धा में उनकी सेवा में उपस्थित हुआ था. रात के साढ़े आठ से नौ बजे तक तक का टाइम मुझे दिया.

ठीक वक्त पर पंहुचा, आधे घंटे तक बातचीत होती रही.चलते वक्त महात्मा गांधी जी कहा-”खूब आराम से चाय पीना” मैंने कहा- क्या बापू आपकों मेरे चाय पीने का पता लग गया हैं? उन्होंने कहा- हाँ काका साह्ब मुझे बतला दिया हैं कि तुम कलकते में चाय पीने लग गये हो.

मुझे भी उसी वक्त मजाक सुझा, मैंने कहा-बापू आप मि. एंड्रयूज को छोटा भाई मानते हैं?

उन्होंने कहा- हाँ.

” और वे आपकों बड़ा भाई मानते हैं”

बापू ने कहा- हाँ.

मैंने तुरंत ही कहा-तो मै बड़े भाई की बात न मानकर छोटे भाई की बात मानता हु,

बापू हंसकर बोले- ” तब तो मै एंड्रयूज को लिख दू कि तुमको कितना अच्छा शिष्य मिल गया हैं.

फिर बापू ने गम्भीरतापूर्वक कहा-‘ रात के ढाई बजे से उठा हुआ हुआ हु,अब नौ बज रहे हैं, दिन में बीस मिनट आराम मिला हैं. मै चकित रह गया. अठारह घंटे मेहनत के बाद भी बापू कितने सजीव हैं. मानो वे हमारी काहिली का प्रायश्चित कर रहे थे.

संध्या समय जब महात्मा गांधीडच-गायना प्रवासी भारतीयों के लिए संदेश लिखाने बैठे तो मैंने अपनी जेब से फाउन्टेन पैन निकाला, तुरंत ही महात्मा गांधी जी ने कहा- कब से फाउन्टेन पेन से लिखते हो?

मैंने कहा- कई साल हो गये”

“कितने साल”

मैंने कहा-ठीक-ठीक नही बतला सकता”

तब महात्मा गांधी जी ने कहा-दक्षिण अफ्रीका में जब मेरे पास फाउन्टेन पैन था, परन्तु अब तो कलम से लिखता हु. डच गायना वाले भी क्या कहेगे कि इनके पास घर की कलम भी नही हैं” तुरंत चाक़ू और कलम मंगाई गईं. परन्तु मै जिस कागज पर लिखने चला था, वह था बढ़िया बैक पेपर.

महात्मा गांधी जी ने कहाँ यह बढ़िया कागज हम लोगों को कहा से मिल सकता हैं?

यह तुम्हारे ऑफिस वालों को ही मिलता हैं, जहाँ चाय भी मिलती हैं,

हम तो कोरा पानी पीने वाले गरीब आदमी ठहरे. मै लज्जित हो गया,

फिर महात्मा गांधी जी गम्भीर होकर बोले -मेरा संदेश स्वदेशी कागज पर लिखो. आज तो हम लोगों ने आश्रम में कार्ड और लिफ़ाफ़े भी बनवाएं हैं हाथ का बना कागज लाया गया और मैंने नेजे की कलम से और घर की स्याही से महात्मा गांधी का वो संदेश लिखा.

महात्मा गांधी अपने अधिनस्थो को पूरी-पूरी स्वाधीनता देते थे. और वे भी उनसे मजाक करने से नही चुकते थे. मै भी यह ध्रष्टता कर बैठता था.

जब श्री पदमजा नायडू के लिए कॉफ़ी का सब सामान लाया गया.

तो बापू ने हंसकर कहा- यह सब तुम्हारा साज-समान हैं.

मैंने कहा- ”देखिए बापू , मेरी वोट हो रही हैं”

”कैसे”

मैंने कहा- महादेव भाई चाय पीते हैं, बां काफी पीती हैं और पदमजा जी भी कोफ़ी पीती हैं और मै चाय, चार वोट हो गयी.

बापू ने तुरंत उत्तर दिया-बुरी चीजों के प्रचार के लिए वोट की जरुरत थोड़े ही पड़ती हैं, वे तो अपने आप फैलती हैं.

महात्मा गांधी जी मजाक में पीछे रहने वाले आदमी नही थे. वे बड़े हाजिर जवाब थे.

एक बार विद्यापीठ के प्रिंसिपल कृपलानीजी बोले- जब हम लोग आपस में दूर रहते हैं, तो हमारी अक्ल ठीक रहती हैं, परन्तु पास होते ही खराब हो जाती हैं’

बापू हंसकर बोले-”तब तो मै आपकी खराब अक्ल का जिम्मेदार मै अकेला ठहरा”

खूब हंसी हुई, कलकत्ते में बापू ने बीस मिनट का टाइम दिया-सवेरे पौने चार बजे का.

अकेले जाने की बजाय में 16-17 आदमियों के साथ गया. जब जीने पर चढने लगा, तब महादेव भाई नाराज हुए और बोले” आप तो आश्रम में रह चुके हैं, यह क्या बे-नियम कार्यवाही करते हैं. परन्तु महात्मा गांधी जी ने इतना ही कहा- तुम तो पूरी की पूरी फोज ले आए.

मैंने कहा- क्या करता, ये लोग माने ही नही, मैंने इन्हे वचन दे रखा था कि बापू के दर्शन निकट से कराउगा.

बीस मिनट तक वार्तालाप होता रहा जब प्रार्थना के लिए महात्मा गांधी जी उठे तो मैंने कहा-बापू मै तो ,मासिक पत्र में आपके खिलाफ बहुत कुछ लिखा करता हु” पर बापू बोले- सो तो ठीक हैं, पर कोई सुनता भी हैं? ”सब हंस पड़े”

मुनि श्री जिनविजय ने महात्मा गांधी का एक किस्सा सुनाया था. महात्मा गांधी पहले मोटर से बाहर निकले परन्तु थोड़ी दूर चलकर कोने में अपनी मोटर खड़ी कर ली. इसके दो मिनट बाद ही पंडित मोतीलाल जी नेहरु और मुनि जी की मोटर निकली, मोतीलाल जी ने मुनि से कहा- देखा आपने? 

महात्मा गांधी जी ने मेरे ख्याल से अपनी मोटर रोक रखी हैं.चलकर उनसे कारण पूछे, पंडितजी ने जब पूछा तो महात्मा गांधी जी बोले” मै नही चाहता था कि आपकों धुल फाक्नी पड़े, मै तो आपकों ज्यादा दिन जिन्दा देखना चाहता हु.

महात्मा गांधी जी के मजाक, हाजिर-जवाबी और उनकी जागरूकता के सैकड़ो किससे हैं, जो उनके भक्तो को सैम-समय पर याद आ जाते हैं. साथ ही अपनी घ्रष्टता का ख्याल करके लज्जा का बोध भी होता हैं.

ऐसे अवतारी महापुरुष मर्यादा पुरुषोतम के किसी भी प्रकार के मजाक की हिमाकत तो था, ही परन्तु वे अत्यंत क्षमाशील थे और सबको पूर्ण स्वाधीनता देने के पक्षपाती. उनकी पावन स्मृति में सहस्त्र बार प्रणाम! -बनारसीदास चतुर्वेदी

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महात्मा गांधी का जीवनी परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

महात्मा गाँधी की जीवनी और इतिहास, आन्दोलन, शिक्षा और संघर्ष | Mahatma Gandhi Biography [Birth, Family, Education], Revolutions, Death in Hindi

अहिंसा परमो धर्म. यदि इस श्लोक की व्याख्या किसी की जीवन से निकालना हो तो हमे भारत के राष्ट्रपिता के रूप में संबोधित होने वाले महात्मा गांधी के जीवन को देखना होगा. मोहन दास करमचंद गांधी उर्फ महात्मा गांधी का जीवन दर्शन यह सिखाता है कि कैसे अहिंसा के सहारे हम अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा सकते है. महात्मा गांधी ही वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने पूरी दुनियाँ को न सिर्फ अहिंसा का पाठ सिखाया, बल्कि अहिंसात्मक आंदोलनों में निहित शक्ति का भी परिचय कराया.

महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कुछ तथ्य

नाम(Name)मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म (Birth)2 अक्टूबर 1869
पिता का नाम (Father Name)करम चंद गांधी
माता (Mother Name)पुतली बाई
पत्नी (Wife Name)कस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया (कस्तूरबा गांधी)
जन्म स्थान (Birth Place)पोरबंदर, गुजरात
शिक्षा (Education)बैरिस्टर
संतान (Childrens)4 पुत्र (हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास)
मृत्यु (Death)30 जनवरी 1948

महात्मा गांधी का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Mahatma Gandhi Birth and Intial Life)

महात्मा गांधी का जन्म भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र, काठियावाड़ में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था. इनके पिता करमचंद गांधी और माता पुतली बाई थी. करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे, जबकि इनकी माँ एक गृहणी थी. गांधी जी के प्रारंभिक जीवन में उन पर माँ का गहरा प्रभाव पड़ा. पुतलीबाई एक बहुत ही सात्विक और धार्मिक गृहणी थी. अधिकतर समय उनका पूजा पाठ और भगवत भजन में व्यतीत होता था. माता की इस छवि का प्रभाव गांधी जी के जीवन मे भी देखने को मिलता था. सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म जैसे गूढ़ विषयों पर महात्मा गांधी की बचपन से ही समझ बनने लगी थी. गांधी जी का जिस क्षेत्र में बचपन बीता, वहाँ जैन समुदाय का ज्यादा प्रसार था. बस यही कारण था कि महात्मा गांधी पर जैन संस्कारो का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा. सत्य, अहिंसा, उपवास, शाकाहारी जीवन पद्धति का पाठ इन्होंने यहीं से सीखा.

महात्मा गांधी की शिक्षा (Mahatma Gandhi Education)

गांधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा इनके गृह नगर पोरबंदर में ही हुई थी. इन्होंने अपनी मिडिल स्कूल तक की शिक्षा पोरबंदर से ही ग्रहण की. इसी दौर में इनके पिता को राजकोट का दीवान घोषित कर दिया गया, जिसकी वजह से परिवार को राजकोट में आकर रहना पड़ा. मिडिल स्कूल के बाद की शिक्षा इन्होंने राजकोट से ही प्राप्त की. यदि इनके छात्र जीवन की बात करें तो गांधी जी कभी भी एक उत्कृष्ट विद्यार्थी नही रहे. वो एक साधारण स्तर के एक ईमानदार विद्यार्थी थे, जिन्हें परीक्षा में फेल हो जाना मंजूर था, लेकिन वो नकल नही करते थे. गांधी जी ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा राजकोट से ही उत्तीर्ण की. 1887 में गांधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा राजकोट से ही उत्तीर्ण की, इसके बाद वो भावनगर में स्थित सामलदास कॉलेज गए, लेकिन स्वास्थ्य सही न रहने के कारण इन्हें वापस पोरबंदर लौटना पड़ा.

लंदन में उच्च शिक्षा (Mahatma Gandhi Higher Education)

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

गांधी जी का लंदन का अनुभव (Mahatma Gandhi London Experience)

कानून की पढ़ाई और बैरिस्टर बनने की चाह लेकर आये मोहनदास करमचंद गांधी को प्रारंभ में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. गांधी जी शुद्ध शाकाहारी थे. वो मांस का सेवन नही करना चाहते थे. पर उस जमाने मे इंग्लैंड में शाकाहारी भोजन ढूंढना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इसी चुनौती से निपटने के लिए गांधी जी ने शाकाहारी समाज में सदस्यता के लिए आवेदन किया, जो न सिर्फ स्वीकार हुआ, बल्कि गांधी जी को कार्यकारी समूह का सदस्य चुना गया. इस दौरान गांधी जी की कई शाकाहारी लोगो से मुलाकात हुई. इन्ही लोगो ने गांधी जी को भागवत गीता पढ़ने के लिए कहा. इंग्लैंड मे कुछ वर्ष बिताने के बाद गांधी जी को वापस भारत आना पड़ा.

महात्मा गांधी का प्रारंभिक कैरियर (Mahatma Gandhi Career)

यहाँ आकर उन्होंने मुम्बई में अपने वकालत की शुरुआत की, लेकिन इसमें कोई खास सफलता न मिलती देख उन्हें वकालत का काम बीच मे ही छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने एक अध्यापक के पद के लिए आवेदन किया, लेकिन वह भी अस्वीकार कर दिया गया. इसके बाद उन्होंने राजकोट में ही काम करने का निश्चय किया. यहाँ पर वो मुकदमे की अर्जियाँ लिखते थे.

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गांधी जी का अफ्रीका प्रवास (Mahatma Gandhi in Africa)

गांधी जी जब 24 वर्ष के थे, तब उन्हें अफ्रीका के एक व्यापारी अब्दुला का कानूनी सलाहकार बनने का अवसर मिला. इसके लिए गांधी जी को भारत छोड़कर अफ्रीका जाना पड़ा. उस वक़्त अफ्रीका में भी इंग्लैंड का शासन था. वैसे तो कई भारतीय अफ्रीका गए थे, लेकिन उन्हें एक मजदूर के रूप में काम करने के लिए भेजा गया था. गांधी जी पहले भारतीय बैरिस्टर थे, जो अफ्रीका गए थे. यहाँ आने के बाद गांधी जी को भारतीयों के साथ होने वाला भेदभाव दिखा. रंगभेद के आधार पर भारतीयों पर होने वाले जुल्म ने गांधी जी को अंदर तक झकझोर दिया था. यहां पर गांधी जी के साथ भी रंग भेद हुआ. उन्हें रंग भेद के कारण चलती ट्रेन से उतार दिया गया. कहते है, इस घटना ने गांधी जी के पूरे जीवन को ही बदलकर के रख दिया. इस घटना के बाद गांधी जी ने अफ्रीका में रह रहे भारतीयों को न्याय और सम्मान दिलाने का निश्चय किया.

अफ्रीका में भारतीयों के लिए संघर्ष (Mahatma Gandhi Struggle for Indians)

प्रारंभिक संघर्ष के तौर पर गांधी का रूख नरम रहा. भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के विषय मे वो गृह सचिव और ब्रिटिश संसद में याचिकाएं भेजते रहे. पर इन याचिकाओं का कोई असर होता न देखकर महात्मा गांधी ने नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया, जो भारतीयों का एक संगठन था.

इसी के साथ ही इंडियन ओपिनियन नाम का अखबार भी निकलवाने लगे. सन 1906 में गांधी जी ने एक आंदोलन शुरू किया, जिसे सत्याग्रह नाम दिया गया. यह एक अवज्ञा आंदोलन था. इसके साथ ही सत्याग्रहियों के रोजगार और रहने की समस्या के समाधान हेतु गांधी जी ने टाल्सटाय फार्म की स्थापना की. इस आंदोलन के बाद ही गांधी जी को इस बात पर यकीन हो गया था कि दुश्मनों को हराने का और अपनी मांग पूरी करवाने का एक रास्ता अवज्ञा आंदोलन भी हो सकता है.

महात्मा गांधी का अफ्रीका से भारत आगमन (Back to Nation)

महात्मा गांधी अपने काम से अफ्रीका में बहुत ख्याति बटोर चुके थे. आखिरकार सन 1915 में 46 वर्ष की उम्र में गांधी जी पुनः भारत वापस आये. इस दौरान गांधी जी का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया गया. अपने देश मे भी गांधी जी कुछ बड़ा करने की चाह लिए हुए थे. लेकिन पुरे भारत के आर्थिक और सामाजिक स्थिति का उन्हें बेहतर ज्ञान नही था. इसलिए उस वक़्त के एक बड़े कांग्रेसी नेता और गांधी जी के राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर गांधी जी ने पूरे एक साल तक देश के हर एक हिस्से का भ्रमण किया और देश की स्थिति को बेहतर तरीके से समझा.

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

महात्मा गांधी के आरंभिक आंदोलन और उनकी स्थिति (Champaran Satyagraha)

महात्मा गांधी ने अपने देश मे पहला सफल आंदोलन चंपारण में किया. यह आंदोलन गांधी जी ने वहां के किसानों के हक में किया था. इस आंदोलन के द्वारा किसानों को 25% धन वापस दिलवाया. यह आंदोलन महात्मा गांधी द्वारा किया गया प्रथम आंदोलन था. इसी समय एक और आंदोलन किया, जो गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों के लिए था. यहां के किसानों को उत्पादन के बदले में बहुत कम हिस्सा दिया जाता था, ऊपर से बहुत ही कठोर टैक्स भी किसानों पर लगाये जाते थे, जिस कारण यहां के किसानों की स्थिति बहुत बिगड़ गई. इसी दौरान यहां अकाल पड़ गया, जिससे स्थिति और भी बिगड़ गई. इस पर गांधी जी ने खुद काम करना शुरू किया, और अंग्रेजों के सामने यह प्रस्ताव रखा कि जो किसान सक्षम है, वो खुद ही अपना कर अदा कर देंगे. बदले में गरीब किसानों का कर माफ किया जाए. यह प्रस्ताव अंग्रेजो ने स्वीकार कर लिया.

महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement)

जलियांवाला हत्याकांड से पूरे देश मे एक भयानक आक्रोश था. इसी के विरोध में देश मे कई हिंसक घटनाएं भी हुई. जलियांवाला हत्याकांड ने गांधी जी को भी पूरी तरह झकझोर दिया था. लेकिन इसके विरोध में वो हिंसा के बिल्कुल भी पक्षधर नही थे. उनका कहना था कि देश का हर पुरुष और स्त्री खादी काते और खादी के बने ही वस्त्र पहने. साथ ही जो भी लोग अंग्रेजो की दी हुई नौकरी कर रहे है. वो इस नौकरी को छोड़ दे. इस तरह से उन्होंने देश की जनता से यह आह्वान किया कि वो अंग्रेजो के प्रति विनम्र असहयोग की भावना रखे. धीरे-धीरे पूरे देश से असहयोग आंदोलन को सहयोग मिलने लगा. लेकिन चौरी-चोरा में हुई हिंसक घटना ने गांधी जी को यह आंदोलन वापस लेने पर मजबूर कर दिया.

नमक आंदोलन (Salt March)

मार्च 1930 में गांधी जी ने अपने कुछ अनुयायियों के साथ मिलकर इस आंदोलन को शुरू किया. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नमक पर अंग्रेजो द्वारा लगाए जाने वाले कर का विरोध करना था. यह आंदोलन बहुत ही व्यापक और सफल भी रहा. अंग्रेजो ने इस आंदोलन के बाद 60,000 लोगो को जेल में डाला था.

दलितों के लिए आंदोलन (Movements for Dalits)

उस वक़्त हमारे देश मे छुआछूत एक प्रमुख समस्या के रूप में जानी जाती थी. धार्मिक स्थलों में दलितों का प्रवेश लगभग पूर्णतः वर्जित था. यद्यपि दलित नेता और विद्वान डॉ भीमराव अंबेडकर ने कानून में दलितों के लिए कई कानूनी अधिकार दिए, लेकिन गांधी जी को यह काफी नही लगा. वो दलितों को भगवान की संतान के तौर पर देखते थे इसलिए उन्होंने दलितों तो एक नया नाम हरिजन दिया.

देश के विभिन्न बड़े मंदिरों में गांधी जी ने यह संदेश दिया कि वह हरिजनों के मंदिर प्रवेश के संबंध में कोई निर्णय ले अन्यथा वो आमरण अनशन पर चले जायेंगे. तय समय के अंदर ही मंदिर के ट्रस्टियों ने दलितों को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दी.

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महात्मा गांधी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ने के लिए एक आंदोलन की शुरुआत की जिसे “भारत छोड़ो आंदोलन” कहते है. यह एक बहुत ही ताकतवर और संगठित आंदोलन था. इस आंदोलन के दौरान हिंसा भी बहुत हुई. हजारों लोगों की जान इस आंदोलन में गई. हजारो की तादाद में लोग घायल हो गए थे. कई आंदोलनकारियों को बंदी बना लिया गया था. जिसमे महात्मा गांधी भी शामिल थे. इन्हें 2 साल तक कारावास में रखा गया. इस दौरान गांधी जी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत 22 फ़रवरी 1944 को हो गया, गांधी जी का स्वास्थ्य भी मलेरिया बीमारी की वजह से बहुत बिगड़ गया था. अंततः 6 मई 1944 को खराब स्वास्थ्य के चलते इन्हें जेल से रिहा किया गया. ब्रिटिश शासन नही चाहता था की गांधी जी की जेल में मृत्यु हो जाये, जिससे देश में आक्रोश पैदा हो.

भारत की आजादी और देश का विभाजन (India Independance and Partition)

भारत छोड़ो आंदोलन की सफलता तो व्यापक नही थी, पर अंग्रेजो के द्वारा किये गए दमन से देश संगठित हो गया था. इसके बाद ब्रिटिश शासन ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाथो सौप देगा. इस दौरान कांग्रेस के प्रमुख नेता और गांधी जी के बीच कुछ मतभेदों का दौर भी चला. देश में उस दौरान कुछ ऐसी विपरीत परिस्थितियां निर्मित हो चुकी थी, जिससे हिन्दू और मुसलमान के बीच हिंसा बढ़ रही थी. 1948 तक देश के लगभग 5000 लोग को मौत के घाट उतारा गया. उसी दौरान देश मे विभाजन की लहर भी दौड़ रही थी. पर महात्मा गांधी देश के विभाजन के सख्त खिलाफ थे. वही कांग्रेस के नेता मुहम्मद अली जिन्ना, बहुत से हिन्दू, मुस्लिम, सिख भी बंटवारें के पक्ष में थे. पर कांग्रेस को यह पता था कि गांधी जी के बिना यह संभव नही था. इसके लिए सरदार पटेल और गांधी जी के करीबियों ने यह समझाया कि इस युद्ध का अंत यही है. अंततः गांधी जी को मजबूर होकर विभाजन की सहमति देनी पड़ी.

महात्मा गांधी जी मृत्यु (Mahatma Gandhi Death)

अहिंसा और सत्य के इस पुजारी की यह जीवन यात्रा 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे के द्वारा समाप्त कर दी गई. लेकिन देश की आजादी में उनका योगदान हमेशा अमर रहेगा.

महात्मा गांधी पर और भी रोचक जानकारियां उपलब्ध है किन्तु इस लेख में उन्हें लिखना संभव नहीं था. आपको आगे के लेखों में गांधी जी से जुडी रोचक जानकारियां अवश्य पढने को मिलेगी. पूरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! लेख से जुड़े प्रश्न आप नीचे दिए कमेंट बॉक्स में पूछ सकते है.

4 thoughts on “महात्मा गांधी का जीवनी परिचय | Mahatma Gandhi Biography in Hindi”

Mahatma ki jivani hamare liye ek message chod jati hai desh ke liye kuch kar ke dikhao

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Mahatma Gandhi biography in hindi | महात्मा गांधी जीवनी

Mahatma Gandhi biography in hindi | महात्मा गांधी जीवनी

Table of contents, महात्मा गांधी जीवनी.

महात्मा गांधी, पूरा नाम – मोहनदास करमचंद गांधी, (जन्म 2 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, भारत-मृत्यु 30 जनवरी, 1948, दिल्ली), भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक जो इसके खिलाफ राष्ट्रवादी आंदोलन के नेता बने। भारत पर ब्रिटिश शासन. उन्हें राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है। वह अपने सत्याग्रह, अहिंसा और अनुशासन के दर्शन के लिए भी जाने जाते हैं जिसके कारण उन्होंने भारत को सफलतापूर्वक स्वतंत्रता दिलाई।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा | Mahatma Gandhi history

महात्मा गांधी हिंदू धर्म से हैं, उन्होंने लंदन में कानून की पढ़ाई की और बाद में कानून का अभ्यास करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए। दक्षिण अफ्रीका में उन्हें नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा और 1906 में उन्होंने अन्याय और कुछ कानूनों के खिलाफ पहली बार सत्याग्रह शुरू किया।

गांधी जी की भारत वापसी | महात्मा गांधी हिस्ट्री हिंदी

गांधी जी 1915 में भारत लौट आए और उन्होंने अपने कौशल का उपयोग भारत में ब्रिटिश शासन की स्थिति के साथ दक्षिण अफ्रीका में किया। भारत लौटने के तुरंत बाद, वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बन गये। गांधी जी ने खादी, नमक मार्च, सविनय अवज्ञा और कई अन्य आंदोलन शुरू किए। वह अहिंसा और अनुशासन में विश्वास करते थे और अपने सिद्धांतों और विश्वासों से भारत को स्वतंत्रता की ओर ले गए।

गांधी जी के सिद्धांत और आंदोलन

गांधी जी का मानना ​​था कि अनुशासन, सिद्धांतों और ईमानदारी से कोई भी कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उनके अहिंसात्मक आंदोलन थे: 1. सत्याग्रह (सत्य बल): गांधीजी का मानना ​​था कि सत्य सबसे शक्तिशाली हथियार है। उन्होंने व्यक्तियों को उत्पीड़न के बावजूद भी सच्चाई के लिए खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया।

2. सविनय अवज्ञा: गांधी ने शांतिपूर्ण तरीके से अन्यायपूर्ण कानूनों की अवज्ञा करने, अपने कार्यों के परिणामों को विरोध के रूप में स्वीकार करने की वकालत की।

3. आत्मनिर्भरता: उन्होंने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया और लोगों से ब्रिटिश आर्थिक शोषण का विरोध करने के तरीके के रूप में अपने कपड़े (खादी) कातकर आत्मनिर्भर होने का आग्रह किया।

4. धार्मिक सहिष्णुता: गांधीजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे और सभी की समानता में विश्वास करते थे। उन्होंने आध्यात्मिकता को अपने अहिंसक दर्शन का एक अभिन्न अंग माना।

गांधी के नेतृत्व और दर्शन का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा, जो 1947 में हासिल किया गया था। उनके अहिंसा और सविनय अवज्ञा के तरीकों ने न केवल भारतीयों को प्रेरित किया, बल्कि मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नागरिक अधिकार नेताओं को भी उनके संबंधित संघर्षों में प्रभावित किया। न्याय और समानता के लिए.

Mahatma Gandhi death – दुखद बात यह है कि 30 जनवरी, 1948 को एक कट्टरपंथी राष्ट्रवादी, नाथूराम गोडसे द्वारा, जो उनकी नीतियों से असहमत था, Mahatma Gandhi assassination महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। गांधीजी की अहिंसा, सादगी और सत्य की खोज की शिक्षाएं दुनिया भर में व्यक्तियों और आंदोलनों को प्रेरित करती रहती हैं। शांतिपूर्ण परिवर्तन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का सम्मान करते हुए, उनके जन्मदिन, 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी

महात्मा गांधी के नाम पर इंडिया में बहुत कॉलेज और यूनिवर्सिटीज हैं, महात्मा गांधी इंटरनेशनल हिंदी यूनिवर्सिटी के नाम निचे लिखे गए हैं:

  • Mahatma Gandhi kashi vidyapith – Mahatma Gandhi kashi vidyapith | महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में है I यह एक बहुत प्रसिद्द विद्यापीठ है जिसकी सारी जानकारी यहाँ से प्राप्त हो सकती है I
  • Mahatma Gandhi Central University – महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिहार में स्तिथ है, इसे याहा देखे I
  • Mahatma Gandhi College
  • Mahatma Gandhi University , Kottayam
  • Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya
  • Mahatma Gandhi University, Nalgonda
  • Mahatma Gandhi Chitrakoot Gramoday Vishwavidyalaya
  • Mahatma Gandhi Institute for Rural Industrialization
  • Mahatma Gandhi Institute of Technology , Hyderabad.
  • Mahatma Gandhi University, Meghalaya
  • MGM Institute of Health Sciences
  • Mahatma Gandhi Institute of Education for Peace and Sustainable Development , New Delhi
  • Mahatma Gandhi Labour Institute , Gujarat
  • Mahatma Gandhi Institute of Rural Energy and Development , Bangalore, Karnataka
  • Gandhigram Rural Institute , Dindigul in Tamil Nadu

महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज

महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी आपने ऊपर देखली, अब बात करते हैं महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज की:

  • Mahatma Gandhi Institute of Medical Sciences
  • Mahatma Gandhi Memorial Medical College , Indore
  • Mahatma Gandhi Memorial Medical College, Jamshedpur
  • Mahatma Gandhi Medical College & Research Institute
  • Gandhi Medical College

महात्मा गांधी नरेगा कॉम

महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गुरंटी के तेहत भारतीये लोगो के लिए रोज़गार की उपलब्धि करवाई जाती हैI महात्मा गांधी नरेगा कॉम भारत के लोगो के लिए एक स्कीम है जो भारत के लोगो के विकास को देखते हुए बनायीं गयी थी I

Mahatma Gandhi quotes

  • “ऐसे जियो जैसे कि तुम्हें कल मरना है। ऐसे सीखो जैसे तुम्हें हमेशा के लिए जीना है।”
  • “कमज़ोर कभी माफ़ नहीं कर सकते। माफ़ करना ताकतवर का गुण है।”
  • “पहले वे आपको नजरअंदाज करते हैं, फिर वे आप पर हंसते हैं, फिर वे आपसे लड़ते हैं, फिर आप जीत जाते हैं।”
  • “खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका खुद को दूसरों की सेवा में खो देना है।”
  • “आपमें वह बदलाव होना चाहिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।”
  • “आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है।”
  • “आप जो भी करेंगे वह महत्वहीन होगा। लेकिन यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप उसे करें।”
  • “आपकी अनुमति के बिना कोई भी आपको चोट नहीं पहुँचा सकता।”
  • “हमारी महानता दुनिया का रीमेक बनाने में सक्षम होने में नहीं बल्कि खुद को रीमेक करने में सक्षम होने में निहित है।”
  • “हम दुनिया के जंगलों के साथ जो कर रहे हैं वह इस बात का दर्पण है कि हम अपने और एक दूसरे के साथ क्या कर रहे हैं।”
  • “ताकत शारीरिक क्षमता से नहीं आती। यह अदम्य इच्छाशक्ति से आती है।”
  • “सौम्य तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं।”
  • “दुनिया में इंसान की ज़रूरतों के लिए पर्याप्तता है लेकिन इंसान के लालच के लिए नहीं।”
  • “तुम मुझे जंजीरों से जकड़ सकते हो, तुम मुझे यातना दे सकते हो, तुम मेरे शरीर को नष्ट भी कर सकते हो, लेकिन तुम मेरे दिमाग को कभी कैद नहीं करोगे।”
  • “मनुष्य उसी मात्रा में महान बनता है जिस मात्रा में वह अपने साथियों के कल्याण के लिए कार्य करता है।”

Happy Gandhi Jayanti calligraphy

Check out some of the happy gandhi jayanti calligraphy drawings here :

When Mahatma Gandhi married ?

Mahatma Gandhi married in 1883. Mahatma Gandhi wife name is Kasturba Gandhi.

Why Mahatma Gandhi adopted Feroze khan ?

Feroze Khan was not a Muslim, and his full name was Firoze Jehangir Ghandy, he was very influenced with Gandhi Ji so he changed his surname to Gandhi. He married to Jawahar Lal Nehru’s daughter, Indira who was called Indira Gandhi and since then the INC is going with surname Gandhi. Feroze was never adopted by Gandhi Ji.

Is Priyanka Gandhi related to Mahatma Gandhi ?

Priyanka Gandhi is not related to Mahatma Gandhi, Priyanka Gandhi is grand daughter of Indira Gandhi and Feroz Gandhi, who was very influenced with Gandhi Ji so he changed his surname to Gandhi.

Is Mahatma Gandhi related to Indira ?

Mahatma Gandhi is not related to Indira Gandhi, they have same surname as Indira Gandhi’s husband, Feroze Ghandy changed his surname to Gandhi.

What Mahatma Gandhi did for India in hindi ?

महात्मा गांधी ने नॉन वायलेंस क रस्ते पे चलकर बहरत को 1947 में आज़ादी दिलवाई I

What is the real freedom according to Mahatma Gandhi ?

According to Mahatma Gandhi, the real freedom is when one doesn’t have to depend on anyone for anything. He started Khadi using Charka to make our own clothes so that Indian won’t have to depend on any other nation for clothes. He also started Salt March and influenced people to not to be anyone’s slave and motivated people to be independent, as he believed that Freedom comes with Independence.

Who are Mahatma Gandhi children and Mahatma Gandhi grand children ?

Mahatma Gandhi and Kasturba Gandhi children are: all sons:  Harilal , born in 1888;  Manilal , born in 1892;  Ramdas , born in 1897; and  Devdas , born in 1900. Gandhi Ji grand children are Kanu Gandhi , Arun Manilal Gandhi , Rajmohan Gandhi , Ramchandra Gandhi  , Ela Gandhi ( Gandhi Ji grand daughter ), Gopalkrishna Gandhi , Kantilal Gandhi, Sita Gandhi, Tara Gandhi.

Who are Mahatma Gandhi great grand children ?

Mahtama Gandhi’s great grand children are Shanti Gandhi , Kirti Menon , Tushar Arun Gandhi , Leela Gandhi

Who are Mahatma Gandhi great great grand children ?

Mahatma Gandhi’s great great grandchildren are Vivan Gandhi, Kasturi Gandhi, Ann Gandhi, Anita Gandhi, Anjali Gandhi, Sunita Menon.

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवनी Mahatma Gandhi Biography in Hindi

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जीवनी Mahatma Gandhi Biography in Hindi

इस लेख में आप महात्मा गांधी का जीवन परिचय Biography of Mahatma Gandhi in Hindi हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमें उनके जन्म, प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, दक्षिण अफ्रीका यात्रा, प्रमुख आंदोलन, निजी जीवन, सिद्धांत, किताबें, मृत्यु और हत्यारे के विषय में पूरी जानकारी दी गई है।

Table of Content

भविष्य में जब कभी भी भारतीय आंदोलनों की बात की जाएगी, तो उसमें महात्मा गांधी का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। लगभग सभी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी एक महत्त्वूर्ण चेहरा रहे हैं। उन्होंने न केवल हिंदुस्तान में बल्कि पूरे विश्व में अपने संघर्षों से एक मिसाल कायम किया है।

न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में गांधी जी को एक महापुरुष के रूप में देखा जाता है। आजादी के बाद से भारतीय मुद्राओं पर भी गांधी जी की ही फोटो छपी है।

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महात्मा गांधी का प्रारम्भिक जीवन Early Life of Mahatma Gandhi in Hindi

मोहनदास अपने सभी भाई बहनों में सबसे छोटे थे। जिसके कारण उन्हें बहुत प्यार से पाला पोसा गया था। करमचंद्र जी ब्रिटिश जमाने में गुजरात राज्य के पोरबंदर में दीवान नियुक्त किए गए थे।

महात्मा गांधी का शुरुआती जीवन बहुत साधारण रूप से गुज़रा। पुतली बाई घर में धर्म कर्म के कार्य और उपवास भी रखती थी, जिसका प्रभाव बालक मोहनदास पर भी पड़ा और आगे चलकर गांधी जी के अंदर भी अध्यात्म की भावना विकसित हुई।

महात्मा गांधी जी की शिक्षा Mahatma Gandhi’s Teachings in Hindi

महात्मा गांधी ने एक साल तक बॉम्बे विश्वविद्यालय में लॉ की पढ़ाई की। लंदन विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद इंग्लैंड वकील संघ में भर्ती हुए। उस समय एक प्रसिद्ध किताब ”सिविल असहयोग” जिसे डेविड थोरो ने लिखा था, उसे पढ़कर मोहनदास बहुत प्रभावित हुए।

महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा Mahatma Gandhi’s visit to South Africa in Hindi

गांधी जी ने बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड की एक लॉ कॉलेज में एडमिशन लिया। वकालत पूरी करने के दरमियान उन्होंने बहुत सारे रोजगार अपनाएं और छोड़ें।

अफ्रीका मे उन्होंने देखा जातीय भेदभाव पूरी तरह से अपना पैर पसारे हुए हैं, जिसका सामना स्वयं गांधी जी को भी करना पड़ा था।

सन 1996 भारतीय जनमत इंडियन ओपिनियन में उन्होंने लिखा है, कि 23 भारतीय निवासियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन में नेपाल सरकार के कहने पर एक कोर कमेटी की रचना हुई, जिसमें भारतीयों को उस युद्ध में शामिल करने का आग्रह किया गया। सन 1915 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए।

महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन Major Movements of Mahatma Gandhi in Hindi

सन 1919 में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होते देखकर, हिंदू और मुस्लिम में भाई चारा बढ़ाने के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस रखी गई, जिसके मुख्य सूत्रधार गांधीजी थे।

12 मार्च सन 1930 को गांधी जी ने नमक कानून को तोड़ने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। जिसमें वह साबरमती आश्रम से लेकर गुजरात के दांडी नामक स्थान तक अपने अनुयायियों के साथ चल कर गए और ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए नमक पर एकाधिकार के कानून को तोड़ा।

इसके अलावा उन्होंने जाति-पाती, अस्पृश्यता, रंग भेद, और ब्रिटिश राज से भारतीयों को मुक्त कराने के लिए बहुत से आंदोलन चलाए, जिसमें से भारत छोड़ो आंदोलन सबसे बड़ा और मुख्य आंदोलन था।

महात्मा गांधी का निजी जीवन Personal life of Mahatma Gandhi in Hindi

इसवी सन 1885 में उनकी पहली संतान ने जन्म लिया पर दुर्भाग्यवश वह कुछ दिन जीवित रह सका। उसके बाद उनके 4 पुत्र हुए जिनका नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास रखा गया। सन 1944 में कस्तूरबा गांधी जी की मृत्यु हो गई तब वह पुणे में थी।

महात्मा गांधी के सिद्धांत Mahatma Gandhi’s principles in Hindi

जब मैं निराश होता हूं तब याद करता हूं, कि सत्य से प्रेम को जीता जा सकता है।

महात्मा गांधी जी की प्रमुख किताबें Major Books of Mahatma Gandhi in Hindi

हिंद स्वराज सौ पन्नों की महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध किताब है, जिसमें उन्होंने आजादी से जुड़ी बातों का उल्लेख किया है और कैसे विदेशी शासन ने भारत और भारतीयों को कमजोर करने का अभियान चलाया था, उसका जिक्र किया है। यह मुख्यत गुजराती भाषा में लिखी गई है।

महात्मा गांधी की मृत्यु और हत्यारे का नाम Death of Mahatma Gandhi and the name of the killer in Hindi

प्रखर व्यक्तित्व और देश के लिए न्योछावर महान कर्तव्य को पूर्ण करने वाले गांधीजी सदा के लिए इतिहास के पन्नों में विराजमान हो गए। उनके सत्य और अहिंसा के किस्से हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

महात्मा गांधी जी को भारत का राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है? Why is Mahatma Gandhi called the Father of the Nation of India in Hindi

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Mahatma Gandhi Biography in Hindi | महात्मा गांधी जी का जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography in Hindi – महात्मा गांधी, जिन्हें लोग प्यार से बापू (राष्ट्रपिता) कहते हैं, भारतीय राजनैतिक मंच पर 1919 से 1948 तक इस प्रकार छाए रहे है कि इस युग को भारतीय इतिहास का गांधी युग कहा जाता हैं. शान्ति और अहिंसा के दूत, गांधी जी का सन्देश समस्त विश्व के लिए है और उससे मानव जाती प्रभावित हुई हैं. गांधी जी का एक विचार जिसे कोई भी अपने जीवन में उतार ले, तो वह एक सभ्य इंसान बन सकता है उनका कहना था कि – “ बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो. ”

Mahatma Gandhi Biography in Hindi | गांधी जी का जीवन परिचय

नाम – मोहन दास गांधी ( Mohan Das Gandhi ) पूरा नाम – मोहनदास करमचंद गांधी जन्मतिथि – 02 अक्टूबर 1869 जन्मस्थल – पोरबंदर, काठियावाड़, गुजरात, भारत मृत्युतिथि – 30 जनवरी 1984 (75 वर्ष की आयु में) राष्ट्रीयता – भारतीय अन्य नाम – महात्मा गान्धी, बापु, गांधीजी शिक्षा – युनिवर्सिटी कॉलिज, लंदन प्रसिद्धि कारण – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम राजनैतिक पार्टी – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस धर्म -हिन्दू माता का नाम – पुतलीबाई पिता का नाम – करमचंद गाँधी जीवनसाथी – कस्तूरबा गांधी ( Mahatma Gandhi Wife Name – Kasturba Gandhi ) बच्चे – हीरालाल गांधी, मणिलाल गाँधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी

मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म 02 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर स्थान पर हुआ. 1891 में उन्होंने इंग्लैंड से बैरिस्टरी पास की और पहले राजकोट में और फिर बम्बई में वकालत करने लगे. 1893 में उन्हें दक्षिणी अफ्रीका की एक व्यापारिक कम्पनी से निमन्त्रण मिला और वह वहां चले गये. वहां उन्होंने गोरों द्वारा काले ( अफ्रीकी तथा भारतीय ) लोगों से रंगभेद की नीति के विरूद्ध विरोध प्रकट किया. फिर नटाल भारतीय कांग्रेस बनाई और जेल गए. उन्होंने एशियाटिक (काले लोगो का) अधिनियम ( Asiatic Blck Act ) और ट्रांसवाल देशांतर वास अधिनियम ( Transvaal Immigration Act ) के विरूद्ध भी विरोध प्रकट किया और अपना अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया. दक्षिणी अफ्रीका की सरकार को तर्क की आवाज सुननी पड़ी और उन्होंने 1914 में भारतीयों के विरूद्ध अधिकतर क़ानून रद्द कर दिए.

महात्मा गाँधी का भारत आगमन और स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेना | Mahatma Gandhi return to India and participation in freedom struggle

1914 में गांधी जी भारत लौट आये और अपनी सेवाओं की मान्यता के फ़लस्वरूप अब महात्मा कहलाने लगे. आने वाले कुछ समय तक वह भारतीय स्थिति का अध्ययन करते रहे. 1917 में उन्होंने बिहार के चम्पारन जिले में नील के बगीचों के यूरोपीय मालिकों के विरूद्ध भारतीय मजदूरों को एकत्रित किया. 1919 कीजलियांवाला बाग़ में हुई दुर्घटना और रौलट एक्ट (1919) के पारित होने पर गांधीजी बहुत खिन्न हुए और उन्होंने भारत की राजनीति में सक्रिय भाग लेना आरम्भ कर दिया. उन्होंने अंग्रेजो को “शैतानी लोग” कहा और अपनी असहयोग की नीति अपनाई.

सन् 1914 – 1919 के बीच जो प्रथम विश्व युद्ध हुआ था. उसमें महात्मा गांधीजी ने अंग्रेजी सरकार को इस शर्त पर सहयोग दिया था कि इस युद्ध के पश्चात वे भारत को आजाद कर देंगे. परन्तु जब अंग्रेजो ने ऐसा नहीं किया तो गांधीजी ने देश की आजादी के लिए कई आन्दोलन किये.

सन् 1920 में कांग्रेस लीडर बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी ही कांग्रेस के मार्गदर्शक थे – Bal Gangadhar Tilak Biography | बाल गंगाधर तिलक की जीवनी

1920 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन ( Asahayog Aandolan ) आरम्भ कर दिया. यह आन्दोलन 1930 में पुनः किया गया और 1940 में निजी रूप से भी. 1942 में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ “ भारत छोड़ो आन्दोलन ( Bharat Chhodo Aandolan ) ” शुरू किया और उन्हें अंग्रेजो के द्वारा बंदी बना लिया गया.

  • सन् 1920 – असहयोग आन्दोलन ( Non Co-operation Movement )
  • सन् 1930 – सविनय अवज्ञा आन्दोलन ( Civil Disobedience Movement )
  • सन् 1942 – भारत छोड़ो आन्दोलन ( Quit India Movement )

महात्मा गांधी द्वारा लिखी पुस्तके | Books written by Mahatma Gandhi

गांधी जे द्वारा मौलिक रूप से लिखित चार पुस्तकें हैं. गांधी जी आमतौर पर गुजराती में लिखते थे, परन्तु अपनी किताबों का हिंदी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते या करवाते थे.

  • हिंद स्वराज ( Hind Swaraj )
  • दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
  • सत्य के प्रयोग (आत्मकथा) ( The Story of My Experiments with Truth )
  • गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका

महात्मा गांधीजी ने अन्य कई विषयों पर केन्द्रित छोटी-छोटी पुस्तिकाओं का भी विभिन्न नामों से प्रकाशन होते रहा हैं. जिसमे ‘ महात्मा गांधी के विचार’ और ‘ मेरे सपनों का भारत’ मुख्य हैं. गाँधी जी ने जॉन रस्किन की अन्टू दिस लास्ट (Unto This Last) की गुजराती में व्याख्या भी की है.

महात्मा गांधी की मृत्यु | Death of Mahatma Gandhi

30 जनवरी, 1948, गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर की गई. उन्हें तीन गोलियां मारी गई थी और उनके मुँह से निकले अंतिम शब्द थे – “ हे राम “. उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में राजघाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया हैं. गोड़से और उनके सह षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा 15 नवंबर 1949 को इन्हें फांसी दे दी गई. गांधी जी की राख को एक अस्थि-रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद दिलाने के लिए संपूर्ण भारत में ले जाया गया. इनमें से अधिकांश को इलाहाबाद में संगम पर 12 फरवरी 1948 को जल में विसर्जित कर दिया गया किंतु कुछ को अलग पवित्र रूप में रख दिया गया.

गांधी जी की कुछ अन्य रोचक बातें | Some Interesting Facts About Mahatma Gandhi

  • महात्मा गांधी को भारत के राष्ट्रपिता का खिताब भारत ने नहीं दिया था, अपितु एक बार सुभाषचन्द्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी | Subhash Chandra Bose Biography in hindi
  • महात्मा गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन भी चलाया था, जिसमें उन्होंने सभी लोगो से विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार करने की मांग की और फिर स्वदेशी कपड़ो आदि के लिए स्वयं चरखा चलाया और कपड़ा भी बनाया.
  • गांधी जी ने अपने पूरे जीवन में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया.
  • आत्मिक शुद्धि के लिए गांधी जी बड़े ही कठिन उपवास भी किया करते थे.
  • प्रत्येक साल 2 अक्टूबर को गांधी जी का जन्म दिन भारत में “ गांधी जयंती ” के रूप में और पूरे विश्व में “ अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस ” के नाम से मनाया जाता है.
  • यदि आप गांधी जी के बारें में पूर्ण एवं विस्तृत जानकारी चाहते है तो गांधी जी द्वारा लिखी किताब “ सत्य के प्रयोग (आत्मकथा) ” को जरूर पढ़े.
  • 11 मार्च, 1930 ई. को साबरमती के मैदान में 75 हजार व्यक्तियों ने एकत्रित होकर प्रण किया कि जब तक स्वाधीनता नहीं मिल जाती तब तक नो तो हम चैन लेंगे और न अंग्रेजी सरकार को चैन लेने देंगे. उन्होंने इसमें से 79 ऐसे कार्यकर्ता चुने जो 12 मार्च, 1930 ई. को साबरमती आश्रम से डांडी समुंद्र तट की ओर चल पड़े . 200 मील की लम्बी दूरी पैदल चलकर 24 दिनों में पूरी की गयी.

महात्मा गांधी का सत्य और अहिंसा का सन्देश | Mahatma Gandhi’s message of truth and nonviolence

सत्य के सच्चे पुजारी के रूप में उनका विश्वास था कि सत्य ईश्वर है और ईश्वर सत्य हैं और ईश्वर ( मानवता का ) प्रेम हैं और प्रेम ही ईश्वर हैं. कुछ लोगों का विश्वास है कि गांधीजी की सत्यप्रियता हिन्दू धर्म से और अहिंसा, बौद्ध, जैन और ईसाई मत द्वारा प्रभावित थी.

महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) ने सत्य और अहिंसा को अपने स्वप्नों के नवीन समाज का आशार बनाया. वह समस्त संसार के लिए स्वतन्त्रता मांगते थे, अर्थात अहिंसा, लोभ, आक्रमण, वासनाओं और आकांक्षाओं, जिन्होंने राष्ट्रों को नष्ट कर दिया है, इत्यादि से भी स्वतन्त्रता. उन्होंने Young India नामक पत्रिका में लिखा था – “जिन ऋषियों ने हिसा के बीच अहिंसा के सिद्धांत को खोज निकाला, वे न्यूटन से अधिक प्रखर बुद्धि वाले लोग ( Geniuses ) थे , वे स्वयं वेलिंगटन से अधिक वीर योद्धा थे. स्वयं हथियारों का प्रयोग जानते हुए भी उन्होंने इसकी व्यर्थता को अनुभव किया और उन्होंने युद्ध से दुःखी संसार को बतलाया कि इसकी मुक्ति हिंसा द्वारा नहीं अपितु अहिंसा द्वारा ही हैं.”

निर्भीकता उनके सत्याग्रह का आवश्यक अंग था. इसका अर्थ अन्यायी के आगे चुपचाप झुक जाना नहीं है अपितु अपनी आत्मा को अन्यायी की इच्छा के विरूद्ध लड़ाना हैं. उसके प्रति घृणा नहीं, प्रेम, अहिंसा तथा दया की भावना से, जिससे उसकी आत्मा प्रभावित हो जाए और उसका मन ही बदल जाए, वह अंग्रेजों के निजी और सामूहिक रूप से विरूद्ध नहीं थे. वह अंग्रेजों के साम्राज्यवाद के विरूद्ध थे. इसकी जड़ में मुख्यतः वह विश्वास था कि मानव प्रकृति मूलतः अच्छी है और एक अन्यायकारी का मन, सत्याग्रहियों के आत्म बलिदान से बदल जाएगा और अंत में न्याय की ही विजय होगी.

महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रम | Mahatma Gandhi’s Creative Program

गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने रचनात्मक कार्यक्रम को बहुत बढ़ावा दिया. वह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे अपितु जनता की आर्थिक, सामजिक और आत्मिक उन्नति चाहते थे. इस भावना से उन्होंने ‘ ग्राम उद्योग संघ’ ( Village Industries Association ) , तालीमी संघ ( Basic Education Society ) , गो रक्षा संघ ( Cow Protection Association ) बनाये. उन्होंने समाज में शोषण समाप्त करने के लिए भूमि और पूँजी का समाजीकरण नहीं मांगा अपितु आर्थिक क्षेत्र के विकेंद्रीकरण ( Decentralization ) द्वारा इस प्रश्न को हल करना चाहा. उन्होंने कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन के लिए काम किया. खादी उनके आर्थिक कार्यक्रम का प्रतीक था. गांधीजी ने जनता के सामाजिक सुधार के लिए भी प्रयत्न किया उन्होंने सभी प्रकार की असमानताओं ( जन्म, जाति, धर्म और धन की ) को समाप्त करने का प्रयास किया. अछूतों के उद्धार के लिए कार्य किया और उन्हें हरिजन ( ईश्वर के लोग ) की संज्ञा दी. नशाबन्दी के लिए और हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयत्न किया.

गांधीजी के बारें में चुने हुए विचार | Selected thoughts about Gandhiji

रवीन्द्रनाथ टैगोर ( Ravindranath Tagore ) -गांधीजी एक राजनीतिज्ञ, संगठनकर्ता, मनुष्यों के नेता और नैतिक सुधारक के रूप में महान हैं, परन्तु वह मनुष्य के रूप में उससे भी अधिक महान हैं क्योंकि ये सभी पक्ष उनकी मानवता को सीमित नहीं करते. वास्तव में सभी को इससे शक्ति मिलती हैं. यद्यपि वह असाध्य रूप से आदर्शवादी थे और अपने निश्चित मापदंडो द्वारा ही प्रत्येक कार्य को मापते थे, फिर भी वह मानव प्रेमी है न कि खोखले विचारों के प्रेमी. Rabindranath Tagore Biography in Hindi | रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी

आचार्य कृपलानी ( Acharya Kriplani ) – “जब हम ठीक होते हैं उससे महात्मा जी उस समय भी जब वे गलत होते हैं हमसे अधिक ठीक होते हैं.” ( The Mahatma is more right when he is wrong than we are when we are right. )

अर्नाल्ड टॉयनबी ( Arnold Toynbee ) – मैं जिस पीढ़ी में उत्पन्न हुआ वह पीढ़ी पश्चिम में केवल हिटलर अथवा स्टालिन की ही पीढ़ी नहीं थीं अपितु भारत में गांधी की पीढ़ी भी थी. हम कुछ निश्चयपूर्वक यह भविष्यवाणी कर सकते हैं कि मानव इतिहास पर गांधी का प्रभाव हिटलर और स्टालिन के प्रभाव से अधिक चिरस्थायी होगा. ( It can already be forecast with some confidence that Gandhi’s effect on human history is going to be greater and more lasting than Stalin’s or Hitler’s )

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