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डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध (Bhimrao Ambedkar Essay in Hindi)

डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर को हमारे देश में एक महान व्यक्तित्व और नायक के रुप में माना जाता है तथा वह लाखों लोगों के लिए वो प्रेरणा स्रोत भी है। बचपन में छुआछूत का शिकार होने के कारण उनके जीवन की धारा पूरी तरह से परिवर्तित हो गयी। जिससे उनहोंने अपने आपको उस समय के उच्चतम शिक्षित भारतीय नागरिक बनने के लिए प्रेरित किया और भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना अहम योगदान दिया। भारत के संविधान को आकार देने और के लिए डॉ भीमराव अम्बेडकर का योगदान सम्मानजनक है। उन्होंने पिछड़े वर्गों के लोगों को न्याय, समानता और अधिकार दिलाने के लिए अपने जीवन को देश के प्रति समर्पित कर दिया।

डॉ भीमराव अंबेडकर पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Bhimrao Ambedkar in Hindi, Bhimrao Ambedkar par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

डॉ भीमराव अम्बेडकर एक महान देशभक्त , न्याय के पुजारी , शिक्षाविद और दलितों के मसीहा थे। भारत के संविधान के निर्माता के रूप में देश भर में वो प्रसिद्ध है।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जी का प्रारंभिक जीवन शिक्षाऔर संघर्ष

अम्बेडकर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा संघर्षपूर्ण रहा , उन्हें छुआछूत , ऊंच नीच आदि का बचपन से ही सामना करना पड़ा।उन्हें अपने ही सहपाठियों और समाज के तिरस्कार का सामना करना पड़ा। बड़ोदा के राजा द्वारा छात्रवृत्ति की सहायता मिलने पर उन्होंने विदेश जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त की और एक महान वकील बनकर भारत लौटे।

डॉ भीमराव अम्बेडकर का दलित वर्ग के लिए संघर्ष और योगदान

बाबासाहेब अम्बेडकर जी का पूरा ध्यान मुख्य रूप से दलित और अन्य निचली जातियों और तबको के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों को प्राप्त कराने में था। भारत की आजादी के बाद वे दलित वर्ग के नेता और सामाजिक रुप से अछूत माने जाने वालो के प्रतिनिधि बने।

डॉ बी.आर. अम्बेडकर का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण

1956 में डॉ अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म को अपना लिया। उन्होंने कहा की जब तक हिन्दू धर्म में ऊंच नीच का भाव रहेगा तब तक यह धर्म विकास नहीं कर सकता।डॉ बाबासाहेब अंमबेडकर के अनुसार, बौद्ध धर्म के द्वारा मनुष्य अपनी आंतरिक क्षमता को प्रशिक्षित करके, उसे सही कार्यो में लगा सकता है। उनका दृढ़ विश्वास इस बात पर आधारित था, कि ये धार्मिक परिवर्तन देश के तथाकथित ‘निचले वर्ग’ की सामाजिक स्थिति में सुधार करने में सहायता प्रदान करेंगे।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के योगदान के लिए भारत देश और खासकर दलित समाज सदा ही उनका ऋणी रहेगा।उनका जीवन हमें संघर्ष करने की प्रेरणा देता है और सदा ही हमारामार्गदर्शन करता रहेगा।

निबंध – 2 (400 शब्द)

डॉ बी. आर. अम्बेडकर एक विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री, कानूनविद, राजनेता और सामाज सुधारक थे। उन्होंने दलितों और निचली जातियों के अधिकारों के लिए छुआछूत और जाति भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संर्घष किया है। उन्होंने भारत के संविधान को तैयार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और भारतीय संविधान के निर्माताओ में से एक थे।

महाड़ सत्याग्रह में डॉ बी. आर. अम्बेडकर की भूमिका

भारतीय जाति व्यवस्था में, अछूतो को हिंदुओं से अलग कर दिया गया था। जिस जल का उपयोग सवर्ण जाति के हिंदुओं द्वारा किया जाता था। उस सार्वजनिक जल स्रोत का उपयोग करने के लिए दलितो पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। महाड़ सत्याग्रह की शुरुआत डॉ भीमराव अम्बेडकर के नेतृत्व में 20 मार्च 1927 को किया गया था।

जिसका उद्देश्य अछूतो को महाड़, महाराष्ट्र के सार्वजनिक तालाब के पानी का उपयोग करने की अनुमति दिलाना था। बाबा साहब अम्बेडकर ने सार्वजनिक स्थानों पर पानी का उपयोग करने के लिए, अछूतो के अधिकारों के लिए सत्याग्रह शुरू किया। उन्होंने आंदोलन के लिए महाड के चवदार तालाब का चयन किया। उनके इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में दलित शामिल हुए।

डॉ बी.आर. अम्बेडकर ने अपने कार्यो से हिंदू जाति व्यवस्था के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रहार किया। उन्होंने कहा कि चावदार तालाब का सत्याग्रह केवल पानी के लिए नहीं था, बल्कि इसका मूल उद्देश्य तो समानता के मानदंडों को स्थापित करना था। उन्होंने सत्याग्रह के दौरान दलित महिलाओं का भी उल्लेख किया और उनसे सभी पूराने रीति-रिवाजों को त्यागने और उच्च जाति की भारतीय महिलाओं के जैसे साड़ी पहनने के लिए आग्रह किया। महाड में अम्बेडकर जी के भाषण के बाद, दलित महिलाएं उच्च वर्ग की महिलाओं के साड़ी पहनने के तरिको से प्रभावित हुई, वहीं इंदिरा बाई चित्रे और लक्ष्मीबाई तपनीस जैसी उच्च जाति की महिलाओं ने उन दलित महिलाओं को उच्च जाति की महिलाओं की तरह साड़ी पहनने में मदद की।

संकट का माहौल तब छा गया जब यह अफवाह फैल गयी कि अछूत लोग विश्वेश्वर मंदिर में उसे प्रदूषित करने के लिए प्रवेश कर रहे हैं। जिससे वहाँ हिंसा भड़क उठी और उच्च जाति के लोगों द्वारा अछूतों को मारा गया, जिसके कारण दंगे और अधिक बढ़ गये। सवर्ण हिंदुओं ने दलितों द्वारा छुए गये तालाब के पानी का शुद्धिकरण कराने के लिए एक पूजा भी करवायी।

25 दिसंबर 1927 को महाड में बाबासाहेब अम्बेडकर जी द्वारा दूसरा सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया। हालांकि, हिंदुओं का कहना था कि तालाब उनकी निजी संपत्ति है, इसीलिए उन्होंने बाबासाहेब के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया, मामला उप-न्याय का होने के कारण सत्याग्रह आंदोलन ज्यादा दिन तक जारी नहीं रहा। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिसंबर 1937 में यह फैसला सुना दिया कि अस्पृश्यों को भी तालाब के पानी को उपयोग करने का पूरा अधिकार है।

इस प्रकार, बाबासाहेब अम्बेडकर हमेशा अस्पृश्यों और अन्य निचली जातियों की समानता के लिए लड़े और सफलता प्राप्त की। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, उन्होंने दलित समुदायों के लिए समानता और न्याय की मांग की थी।

Essay on Bhimrao Ambedkar in Hindi

निबंध – 3 (500 शब्द)

भीमराव अम्बेडकर को बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है। वे भारतीय अर्थशास्त्री, न्यायवादी, राजनेता, लेखक, दार्शनिक और सामाज सुधारक थे। वे राष्ट्र पिता के रूप में भी लोकप्रिय है। जाति प्रतिबंधों और अस्पृश्यता जैसे सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में उनका प्रयास उल्लेखनीय रहा।

वे अपने पूरे जीवन में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों और दलितों के अधिकारों के लिए लड़े। उन्हें जवाहरलाल नेहरू जी की कैबिनेट में भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। 1990 में, अम्बेडकर जी के मरणोपरांत उन्हें भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ भीमराव अम्बेडकर जी का प्रारंभिक जीवन

भीमराव अम्बेडकर जी, भीमबाई के पुत्र थे और उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू सेना छावनी, केंद्रीय प्रांत सांसद महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में एक सूबेदार थे। 1894 में उनके पिता के सेवा-निवृत्ति के बाद वो अपने पुरे परिवार के साथ सातारा चले गए। चार साल बाद, अम्बेडकर जी के मां का निधन हो गया और फिर उनकी चाची ने उनकी देखभाल की। बाबा साहेब अम्बेडकर के दो भाई बलराम और आनंद राव और दो बहन मंजुला और तुलसा थी है और सभी बच्चों में से केवल अम्बेडकर उच्च विद्यालय गए थे। उनकी मां की मृत्यु हो जाने के बाद, उनके पिता ने फिर से विवाह किया और परिवार के साथ बॉम्बे चले गए। 15 साल की उम्र में अम्बेडकर जी ने रामाबाई जी से शादी की।

उनका जन्म गरीब दलित जाति परिवार में हुआ था जिसके कारण उन्हें बचपन में जातिगत भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। उनके परिवार को उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा अछूत माना जाता था। अम्बेडकर जी के पूर्वज तथा उनके पिता ब्रिटिश ईस्ट इंडियन आर्मी में लंबे समय तक कार्य किया था। अम्बेडकर जी अस्पृश्य स्कूलों में भाग लेते थे, लेकिन उन्हें शिक्षकों द्वारा महत्व नहीं दिया जाता था।

उन्हें ब्राह्मणों और विशेषाधिकार प्राप्त समाज के उच्च वर्गों से अलग, कक्षा के बाहर बैठाया जाता था, यहां तक ​​कि जब उन्हें पानी पीना होता था, तब उन्हें चपरासी द्वारा ऊंचाई से पानी डाला जाता था क्योंकि उन्हें पानी और उसके बर्तन को छूने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने इसे अपने लेखन ‘चपरासी नहीं तो पानी नहीं’ में वर्णित किया है। अम्बेडकर जी को आर्मी स्कूल के साथ-साथ हर जगह समाज द्वारा अलगाव और अपमान का सामना करना पड़ा।

डॉ भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा

वह एकमात्र दलित व्यक्ति थे जो मुंबई में एल्फिंस्टन हाई स्कूल में पढ़ने के लिए गये थे। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1908 में एल्फिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी सफलता दलितो के लिए जश्न मनाने का कारण था क्योंकि वह ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे। 1912 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की। उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ द्वारा स्थापित योजना के तहत बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति मिली और अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए उन्होंने न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया।

जून 1915 में उन्होंने अर्थशास्त्र के साथ-साथ इतिहास, समाजशास्त्र, दर्शन और राजनीति जैसे अन्य विषयों में भी मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1916 में वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में गए और अपने शोध प्रबंध पर काम किये “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान”, उसके बाद 1920 में वो इंग्लैंड गए वहां उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की डिग्री मिली और 1927 में उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल किया।

अपने बचपन की कठिनाइयों और गरीबी के बावजूद डॉ बीआर अम्बेडकर जी ने अपने प्रयासों और समर्पण के साथ अपनी पीढ़ी को शिक्षित बनने के लिए आगे बढ़ते रहे। वे विदेशों में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे।

निबंध – 4 (600 शब्द)

भारत की आजादी के बाद सरकार ने डॉ बी. आर. अंमबेडकर को आमंत्रित किया था। डॉ अम्बेडकर ने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्हें भारत के नए संविधान और संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। निर्माण समिति के अध्यक्ष होने के नाते संविधान को वास्तुकार रूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ अम्बेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान, पहला सामाजिक दस्तावेज था। सामाजिक क्रांति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने आवश्यक शर्तों की स्थापना की।

अम्बेडकर द्वारा तैयार किए गए प्रावधानों ने भारत के नागरिकों के लिए संवैधानिक आश्वासन और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान की। इसमें धर्म की स्वतंत्रता, भेदभाव के सभी रूपों पर प्रतिबंध और छुआछूत को समाप्त करना भी शामिल था। अम्बेडकर जी ने महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की भी वकालत की। उन्होंने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और अन्य पिछड़े वर्ग के सदस्यों के लिए प्रशासनिक सेवाओं, कॉलेजों और स्कूलों में नौकरियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने का कार्य किया।

जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ भीमराव अम्बेडकर की भूमिका

जाति व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक व्यक्ति के स्थिति, कर्तव्यों और अधिकारों का भेद किसी विशेष समूह में किसी व्यक्ति के जन्म के आधार पर किया जाता है। यह सामाजिक असमानता का कठोर रूप है। बाबासाहेब अम्बेडकर का जन्म एक माहर जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार को निरंतर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के अधीन रखा गया था।

बचपन में उन्हें महार जाति, जिसे एक अछूत जाति माना जाता है से होने के कारण सामाजिक बहिष्कार, छुआछूत और अपमान का सामना करना पड़ता था। बचपन में स्कूल के शिक्षक उनपर ध्यान नहीं देते थे और ना ही बच्चे उसके साथ बैठकर खाना खाते थे, उन्हें पानी के बर्तन को छुने तक का अधिकार नहीं था तथा उन्हें सबसे दुर कक्षा के बाहर बैठाया जाता था।

जाति व्यवस्था के कारण, समाज में कई सामाजिक बुराईयां प्रचलित थीं। बाबासाहेब अम्बेडकर के लिए धार्मिक धारणा को समाप्त करना आवश्यक था जिस पर जाति व्यवस्था आधारित थी। उनके अनुसार, जाति व्यवस्था सिर्फ श्रम का विभाजन नहीं बल्कि मजदूरों का विभाजन भी था। वे सभी समुदायों की एकता में विश्वास रखते थे। ग्रेज इन में बार कोर्स करने के बाद उन्होंने अपना कानूनी व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत में अपना अद्भुत कौशल दिखाया। ब्राह्मणों के खिलाफ, गैर ब्राह्मण की रक्षा करने में उनकी जीत ने उनके भविष्य की लड़ाईयो की आधारशिला को स्थापित किया ।

बाबासाहेब ने दलितों के पूर्ण अधिकारों के लिए कई आंदोलनों की शुरूआत की। उन्होंने सभी जातियों के लिए सार्वजनिक जल स्रोत और मंदिरों में प्रवेश करने के अधिकार की मांग की। उन्होंने भेदभाव का समर्थन करने वाले हिंदू शास्त्रों की भी निंदा की।

डॉ भीमाराव अम्बेडकर को जिस जाति भेदभाव के कारण पूरे जीवन पीड़ा और अपमान का सामना करना पड़ा था, उन्होंने उसी के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अस्पृश्यों और अन्य उपेक्षा समुदायों के लिए अलग चुनावी व्यवस्था के विचार का प्रस्ताव रखा। उन्होंने दलितों और अन्य बहिष्कृत लोगों के लिए आरक्षण की अवधारणा पर विचार करते हुए इसे मूर्त रुप दिया। 1932 में, सामान्य मतदाताओं के भीतर अस्थायी विधायिका में दलित वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण हेतु बाबासाहेब अम्बेडकर और पंडित मदन मोहन मालवीय जी के द्वारा पूना संधि पर हस्ताक्षर किया गया।

पूना संधि का उद्देश्य, संयुक्त मतदाताओं की निरंतरता में बदलाव के साथ निम्न वर्ग को अधिक सीट देना था। बाद में इन वर्गों को अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के रूप में संदर्भित किया गया। लोगों तक पहुंचने और उन्हें सामाजिक बुराइयों के नकारात्मक प्रभाव को समझाने के लिए अम्बेडकर जी ने मूकनायक (चुप्पी के नेता) नामक एक अख़बार शुभारंभ किया।

बाबासाहेब अम्बेडकर, महात्मा गांधी के हरिजन आंदोलन में भी शामिल हुए। जिसमे उन्होंने भारत के पिछड़े जाति के लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक अन्याय के विरोध में अपना योगदान दिया। बाबासाहेब अम्बेडकर और महात्मा गांधी उन प्रमुख व्यक्तियो में से एक थे, जिन्होंने भारत से अस्पृश्यता को समाप्त करने में बहुत बड़ा योगदान दिया।

इस प्रकार डॉ बीआर अम्बेडकर जी ने जीवन भर न्याय और असमानता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने जाति भेदभाव और असमानता के उन्मूलन के लिए काम किया। उन्होंने दृढ़ता से न्याय और सामाजिक समानता में विश्वास किया और यह सुनिश्चित किया कि संविधान में धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। वे भारतीय गणराज्य के संस्थापको में से एक थे।

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डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध | Essay on Dr Br Ambedkar in Hindi 1000 Words | PDF

Essay on dr br ambedkar in hindi.

Essay on Dr Br Ambedkar in Hindi (Download PDF) | डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध – हमारे देश में ऐसे कई महापुरुषों ने जन्म लिया है, जो अपने त्याग और बलिदान के लिए प्रसिद्ध हुए। लेकिन एक गरीब, दलित और शोषित वर्ग में जन्म लेने वाले महापुरुषों में डॉ. भीमराव अम्बेडकर का नाम लिया जाता है और बहुत सम्मान से जाना जाता है।

जन्म और वंश परिचय

भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महार जाति में हुआ था। महार एक वीर जाति थी, जिसने प्राचीन काल में कई सेनाओं में भाग लेकर प्रसिद्धि प्राप्त की थी। लेकिन इसे अछूत जाति माना जाता है। उनके पिता रामजी राव ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे जिन्होंने अपनी बहादुरी के लिए कई पदक जीते थे और मां भीमाबाई भी एक सैन्य मेजर की बेटी थीं। डॉ अम्बेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे।

बचपन और शिक्षा

डॉ. अम्बेडकर का बचपन बड़ी पीड़ा और संघर्ष में बीता। उनके बचपन का नाम सकपाल था, जो बाद में भीमराव रामजी अंबेडकर के नाम से प्रसिद्ध हुए। पढ़ने में उनकी गहरी रुचि थी। सतारा के एक स्कूल में उनके साथ जातिगत भेदभाव किया गया। लेकिन वह कर्मवीर की तरह अपने पथ से विचलित नहीं हुए। कुछ वक्त बाद भीम जी का परिवार मुंबई में रहने लगा। उन्होंने एलफिंस्टन हाई स्कूल में दाखिला लिया।

उन्होंने 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसके बाद खराब परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया। गरीबी, अभाव, जातिगत भेदभाव की कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने 1913 में अंग्रेजी और फारसी विषयों के साथ बीए पास किया। लेकिन उनकी ज्ञान की प्यास तृप्त नहीं हुई, वह आगे पढ़ना चा चाहते थे। इसके लिए उनके प्रयास जारी थे।

छात्रवृत्ति और विदेश यात्रा

सयाजी राव गायकवाड़ बड़ौदा राज्य के राजा थे। वे उच्च विचारों के व्यक्ति थे। वह एक महान मानवतावादी थे और सभी के प्रिय थे। वह चाहते थे कि अछूत वर्ग के होनहार बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाए। राजा जानते थे कि भीमराव एक विद्वान, मेहनती और बुद्धिमान थे। राजा ने उन्हें तीन साल की मासिक छात्रवृत्ति पर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका भेज दिया। भीमराव ने न्यूयॉर्क की मशहूर कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. में दाखिला लिया।

1915 में उन्होंने एमए की परीक्षा पास की। अब वह पी.एच.डी. की डिग्री लेना चाहते थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय लाभ विषय पर शोध करना शुरू किया। उनके शोध पत्र को देखकर उनके निदेशक और परीक्षक हैरान रह गए। फिर 1924 में भीमराव को पी.एच.डी. की उपाधि मिली। अब वे डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम से प्रसिद्ध हुए। पढ़ाई पूरी कर वह घर लौट आये।

दायरा और संघर्ष

घर आकर वह बॉम्बे से बड़ौदा पहुंचे। राजा ने उन्हें सैन्य सचिव के पद पर नियुक्त किया। यहां भी उन्हें हर कदम पर संघर्ष करना पड़ा। कर्मचारी और स्थानीय लोग उनके साथ भेदभाव करते थे, लेकिन राजा उनसे प्रसन्न थे। अंत में भीमराव अपने भेदभावपूर्ण व्यवहार से परेशान होकर वहां की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

वे अपने विषय के बड़े विद्वान थे। वे बॉम्बे के सिडेनहैम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। वह अपनी अच्छी शैली और व्यवहार से लोकप्रिय हुए। 1919 में वे फिर से लंदन चले गए। वहां उन्होंने एमएससी और डी.एस सी की डिग्री हासिल की। बार-एट-लॉ की उपाधि प्राप्त कर वे स्वदेश लौटे।

ये भी देखें – Essay on Bhagat Singh in Hindi

समाज को बेहतर बनाने का संकल्प

अम्बेडकर ने समाज में सुधार लाने का निश्चय किया था। वह जाति व्यवस्था और छुआछूत को जड़ से खत्म करना चाहते थे। वे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते थे। उन्होंने अछूतों को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लोगों से कहा कि उन्हें खुद को सुधारना होगा। इसके लिए उन्हें संघर्ष करना होगा। उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। बहिष्कृत भारत नाम का एक पत्र भी निकलने लगा। उनके प्रयासों से हर जगह अछूतों के लिए पुस्तकालय, स्कूल और छात्रावास खोले गए। अछूतों में एक जागृति आई।

संविधान निर्माण

डॉ. अम्बेडकर विद्वान, विधिवेत्ता और विधि के विद्वान थे। उन्होंने कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया था। जब हमारे देश में संविधान बनाने का काम शुरू हुआ तो उसमें डॉ. अम्बेडकर की भूमिका सक्रिय थी। वह संविधान सभा की कई समितियों के सदस्य थे। इनमें मुख्य प्रारूप समिति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्हें प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।

यह एक बड़ी जिम्मेदारी थी जिसे डॉ. अम्बेडकर जैसा व्यक्ति ही निभा सकता था। उन्होंने अपने हाथों से भारतीय संविधान का समग्र प्रारूप तैयार किया। भारतीय संविधान का स्वरूप आज डॉ. अम्बेडकर की देन है। जब देश आजाद हुआ तो उन्हें भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया।

उन्होंने दुनिया के सभी धर्मों का अध्ययन किया। उनमें से उन्हें बौद्ध धर्म सबसे अच्छा लगा। जिसमें मनुष्य के बीच कोई भेदभाव नहीं था, पूर्ण समानता थी। किसी भी तरह के पाखंड और अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं थी। बुद्ध, राम और कृष्ण जैसा कोई ईश्वर नहीं था, ईश्वर ईशा जैसा पुत्र नहीं था और ईश्वर मोहम्मद जैसा दूत नहीं था। एक ही इंसान था।

इसलिए डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 ई. को विजयादशमी के अवसर पर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। डॉ अम्बेडकर जानते थे कि बौद्ध धर्म में हिंदू धर्म के सभी अच्छे गुणों और हिंदू धर्म की बुराइयों का अभाव है, इसलिए उन्होंने स्वदेशी धर्म को अपनाया।

डॉ अम्बेडकर का निधन

इस महापुरुष का निधन 6 दिसम्बर 1956 ई. को दिल्ली में हुआ था।

ये भी देखें – Essay on Mother Teresa in Hindi

डॉ. अम्बेडकर सच्चे अर्थों में मानव थे और जीवन भर मानवता का उपदेश देते रहे। अंत में मानव धर्म को अपनाकर निर्वाण की प्राप्ति हुई। उनके संदेश अभी भी भारत के दलित वर्गों का मार्गदर्शन कर रहे हैं और उन्हें एक सच्चा भारतीय बनाने में योगदान दे रहे हैं।

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FAQs. on Dr Br Ambedkar in Hindi

डॉ अम्बेडकर का निधन कब हुआ था.

उत्तर- 6 दिसम्बर 1956 को इस महापुरुष का दिल्ली में निधन हो गया।

भीमराव अम्बेडकर का जन्म कब हुआ था?

उत्तर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महार जाति में हुआ था।

डॉ. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?

उत्तर- डॉ अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 ई. को विजयादशमी के अवसर पर बौद्ध धर्म ग्रहण किया।

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Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi- डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध

In this article, we are providing an Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi | Dr BR Ambedkar   Par Nibandh डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500, 1000, 12000 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Bhim Rao Ambedkar Essay in Hindi लिखा है डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Dr BR Ambedkar   information in Hindi essay & Speech. Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi

Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi- डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध

Short Essay on DR Bhim Rao Ambedkar in Hindi ( 200 to 250  words )

डॉ भीमराव अम्बेडकर डा० अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन् 1891 को मध्य प्रदेश की जहू छावनी में हुआ। उनके पिता श्री रामजी सेना में सूबेदार थे और माता भीमाबाई एक मेजर की लड़की थी। वे मूल रूप से महाराष्ट्र में रत्नगिरि जनपद के अम्बाड़े ग्राम के दलित महार जाति से संबंधित थे। उनका बचपन का नाम सुकपाल था। बाद में वे भीमराव अम्बेडकर के नाम से प्रसिद्ध हो गये। उन्होंने बड़े संघर्षो में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। लेकिन भयंकर परिस्थितियों का सामना करते हुए उन्होंने बम्बई से बी० ए० पास किया। उसके बाद बड़ौदा नरेश ने उन्हें छात्रवृत्ति देकर अमेरिका भेज दिया। यहां से उन्होंने कई विषयों में एम. ए. व पी. एच. डी की उपाधियां प्राप्त की ।

डॉ अम्बेडकर स्वदेश लौटकर कई उच्च पदों पर कार्यरत रहे परन्तु हर जगह उन्हें संघर्षो का सामना करना पड़ता था। अब उन्होंने किसी भी पद पर कार्य न करने का निर्णय कर लिया। वे दलित, अछूत, दीन-हीन गरीबों के उद्धार में जुट गये। उन्होंने कई संगठन बनाए। दलितों को उनका हक दिलाने के लिए वे आजीवन संघर्षो से जूझते रहे।

डॉ अम्बेडकर कानून के ऐसे महान ज्ञाता थे कि उनके समान संविधान का निर्माता उस समय जगत में उपलब्ध नहीं था। उन्होंने भारत का महान संविधान अपने हाथों से बनाया। वे भारत के प्रथम कानून मंत्री थे। बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। 6 दिसम्बर 1956 ई० को डा० अम्बेडकर का निधन हो गया।

10 lines on B.R Ambedkar in Hindi

Essay on Bhimrao Ambedkar in Hindi ( 500 words ) 

जीवन परिचय

भारत-रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर हरिजन व दलित समाज के मसीहा तथा भारत के आधुनिक मनु माने जाते हैं। उनका जन्म 14 अप्रैल सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के पास महु नामक ग्राम में एक हरिजन परिवार में हुआ था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर का मूल नाम सकपाल था। उनके एक अध्यापक ने उन्हें ‘अम्बेडकर’ नाम दिया था। आपके पिता राम जी मौला जी एक सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे। उनके पिता की प्रबल इच्छा थी कि उनका पुत्र शिक्षित होकर समाज में फैली हुई छुआछूत, जात-पांत और संकीर्णता को दूर कर सके। सोलह वर्ष की अल्पायु में मैट्रिक परीक्षा पास करते ही उनका विवाह रामाबाई नामक किशोरी से कर दिया गया था।

शिक्षा

आप बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। वे विद्याध्ययन में बहुत रुचि रखते थे। पिता की नौकरी छूट जाने पर उनके सामने आर्थिक संकट आए परन्तु उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और बड़ी लगन से अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने 1912 ई. में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा सन् 1913 ई. में बड़ौदा के महाराजा से छात्रवृत्ति पाकर वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लिए अमेरिका चले गए। भीमराव ने सन् 1913 से 1917 तक अमेरिका व इंग्लैण्ड में उच्च शिक्षा प्राप्त की और वहाँ से अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा कानून में एम.ए. तथा पी.एच.डी. तथा एल.एल.बी. की डिग्री लेकर वापस भारत आ गए।

आजीविका

विदेश से भारत वापस आने पर महाराजा बड़ौदा ने उन्हें सैनिक-सचिव के पद पर नियुक्त कर दिया। परन्तु उन्हें हर कदम पर जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा। जब उनसे वह अपमान सहन न हो सका तो उन्होंने वह पद छोड़ दिया और मुम्बई जाकर अध्यापन-कार्य करने लगे। किन्तु वहाँ भी छूतछात के अभिशाप से बच न सके और वह कार्य भी छोड़ना पड़ा। अन्त में उन्हें वकालत का पेशा ही अपनाना पड़ा। इसी बीच उन्होंने छूतछात के विरुद्ध लड़ने का बीड़ा उठाया और तभी से इस कार्य में जुट गए। तभी भीमराव अम्बेडकर गांधी जी के सम्पर्क में आए और उनसे बहुत प्रभावित हुए। तभी उन्होंने एक ‘मूक’ शीर्षक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्रिका में उन्होंने दलितों की दशा तथा उनके उद्धार के विषय में अनेक लेख लिखे, जिनका भारतीय दलित वर्गों तथा अन्य शिक्षित समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा।

राजनीति में प्रवेश

सन् 1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर पहले वे पं. जवाहरलाल नेहरू जी के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बने। इसी वर्ष भारत के अपने संविधान निर्माण के लिए जो समिति बनाई गई थी, डॉ. अम्बेडकर की विद्वता तथा कानून की विशेष योग्यता को ध्यान में रखते हुए, उन्हें उसका अध्यक्ष चुना गया। इनके अथक प्रयासों से ही भारतीय संविधान में जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर सभी तरह के भेदभाव समाप्त कर दिए गए।

उपसंहार

अन्त में डॉ. अम्बेडकर का मन अपने मूल धर्म से विचलित हो गया और उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली। उनका निधन 6 दिसम्बर, 1956 ई. को नई दिल्ली में हुआ। उनकी सेवाओं को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त ‘भारत-रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया।

Dr BR Ambedkar Essay in Hindi डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध 1000 शब्दों में

प्रस्तावना :

भारतवर्ष का यह इतिहास रहा है कि यहाँ जब-जब आतंक, उत्पीड़न, भ्रष्टाचार का बोलबाला हुआ, कोई-न-कोई महाविभूति जन्म लेकर उसके विरुद्ध संघर्ष किया। डॉ. अम्बेदकर भी उन्हीं में से एक महाविभूति थे। एक तो भारत अंग्रेजों की दासता में पिस रहा था, उसमें भी देश की त्रासदी यह थी-जातीय भेद-भाव, ऊँच-नीच और अश्पृश्यता । दलित और दलनकर्ता-शोषक, शोषित के बीच समाज बँटा था। अम्बेदकर एक दलित के घर जन्म लेकर स्वयं उस अपमान और तिरस्कार को सहा था। उनके हृदय में इस कुरीति के उन्मूलन का जज्बा उत्पन्न हो चुका था। इसके लिए उन्होंने अधिक परिश्रम कर देश और विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त की और शिक्षा की शिष्टता के द्वारा इस कुरीति के विरुद्ध बिगुल बजाया ।

जीवन परिचय एवं शिक्षा :

प्रसिद्ध समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता और दलितों के मसीहा डॉ. भीमराव अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को महाराष्ट्र के एक महार परिवार में हुआ। इनका बचपन ऐसी सामाजिक, आर्थिक दशाओं में बीता जहाँ दलितों को निम्न स्थान प्राप्त था। दलितों के बच्चे पाठशाला में बैठने के लिए स्वयं ही टाट-पट्टी लेकर जाते थे। वे अन्य उच्च जाति के बच्चों के साथ नहीं बैठ सकते थे। डॉ. अम्बेदकर के मन पर छुआछूत का व्यापक असर पड़ा जो बाद में विस्फोटक रूप में सामने आया। इस अपमान की जिन्दगी में बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ ने इनकी मदद की। महाराजा गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को परखते हुए उन्हें छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई। इस कारण वे स्कूली शिक्षा समाप्त कर मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज में आ गये।

शिक्षा में बड़ौदा नरेश गायकवाड़ का सहयोग :

इसके बाद सन् 1913 में डॉ. अम्बेदकर उन्हीं की मदद से अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की। सन् 1916 में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से “ब्रिटिश इंडिया के प्रान्तों में वित्तीय स्थिति का विश्लेषण” नामक विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। सन् 1922 में लंदन विश्वविद्यालय से डॉ. अम्बेदकर ने “रुपये की समस्या” शोध विषय पर पी-एच.डी. की दूसरी डिग्री प्राप्त की। उन दिनों भारतीय वस्त्र उद्योग व निर्यात ब्रिटिश नीतियों के कारण गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था, इस अवसर पर उनका शोध सामयिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था।

भारतीय और विदेशी सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन :

डॉ. अम्बेदकर ने भारतीय और विदेश में रहकर विदेशी सामाजिक व्यवस्थाओं को बहुत नजदीक से देखा और उन पर मनन-चिन्तन किया। उन्होंने अनुभव किया कि भारत में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था छूत-अछूत जाति के सिद्धान्त पर आधारित थी, किन्तु वहीं विदेशों में इस व्यवस्था का नितान्त अभाव था। उन्हें भारत के समान सामाजिक व्यवस्था कहीं नहीं दिखाई दी। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण उन्होंने देश व विदेश की सामाजिक व्यवस्था का अपने ढंग से न केवल मूल्यांकन किया बल्कि उन विसंगतियों को भी समझा जो भारतीय समाज में छुआछूत के आधार पर परिलक्षित होती रही थी। उन्हें लंदन के स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एवं पोलिटिकल साइंस में प्रवेश भी मिला लेकिन गायकवाड़ शासन के अनुबंध के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आना पड़ा और बड़ौदा राज्य में मिलिट्री सचिव के पद पर कार्य करना पड़ा।

प्रजातन्त्रीय शासनप्रणाली के प्रबल समर्थक :

सन् 1926 में डॉ. अम्बेदकर ने हिल्टन यंग आयोग के समक्ष पेश होकर विनिमय दर व्यवस्था पर जो तर्कपूर्ण प्रस्तुति की थी, उसे आज भी मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। डॉ. अम्बेदकर को गांधीवादी, आर्थिक व सामाजिक नीतियाँ पसन्द नहीं थीं। प्रजातान्त्रिक संसदीय प्रणाली के प्रबल समर्थक थे और उनका विश्वास था कि भारत में इसी शासन-व्यवस्था से समस्याओं का निदान हो सकता है। इसकी वजह गांधी जी का बड़े उद्योगों का पक्षधर नहीं होना था। डॉ. अम्बेदकर की मान्यता थी कि उद्योगीकरण और शहरीकरण से ही भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत और गहरी सामाजिक असमानता में कमी आ सकती है।

स्वतन्त्र भारत के विधिमन्त्री और संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष :

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ. अम्बेदकर को 3 अगस्त, सन् 1947 को विधिमंत्री बनाया गया। 21 अगस्त, 1947 को भारत की संविधान निर्मात्री समिति का इन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. अम्बेदकर की अध्यक्षता में भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की संरचना हुई, जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की गयी। 26 जनवरी, 1550 को भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। 25 मई, 1950 को डॉ. अम्बेदकर ने कोलम्बो की यात्रा की। इस पद पर रहते हुए डॉ. अम्बेदकर ने हिन्दू कोड बिल लागू कराया । इस बिल का उद्देश्य हिन्दुओं के सामाजिक जीवन में सुधार लाना था। इसके अलावा तलाक की व्यवस्था और स्त्रियों को सम्पत्ति में हिस्सा दिलाना था।

उपसंहार :

डॉ. अम्बेदकर ने आर्थिक विकास व पूँजी अर्जन के लिए भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिस्थापित नैतिक और मानवीय मूल्यों पर अधिक जोर दिया था। उनका कहना था कि सोवियत रूस के मॉडल पर सहकारी व सामूहिक कृषि के द्वारा ही दलितों का विकास हो सकता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी इसी व्यवस्था के पक्षधर थे। उन्होंने इसके क्रियान्वयन के लिए डॉ. अम्बेदकर को योजना आयोग का अध्यक्ष पद देने का वायदा किया था। डॉ. अम्बेदकर पंचायती राज व्यवस्था और ग्राम स्तर पर सत्ता के विकेन्द्रीकरण के हक में नहीं थे। उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकेन्द्रीकरण से दलित व गरीबों पर आर्थिक अन्याय व उत्पीड़न और बढ़ेगा। दलितों को आरक्षण देने की मांग के सूत्रधार के रूप में डॉ. अम्बेदकर का योगदान अत्यधिक रहा।

इस लेख के माध्यम से हमने Dr BR Ambedkar Par Nibandh | Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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बी आर अम्बेडकर पर निबंध | Essay on BR Ambedkar in Hindi

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बी आर अम्बेडकर पर निबंध | Essay on  BR Ambedkar in Hindi

1. प्रस्तावना :.

स्वतन्त्र भारत के संविधान निर्माता, दलितों के मसीहा, समाज सुधारक डॉ० भीमराव अम्बेडकर एक राष्ट्रीय नेता भी थे । सामाजिक भेदभाव, अपमान की जो यातनाएं उनको सहनी पड़ी थीं, उसके कारण वे उसके विरुद्ध संघर्ष करने हेतु संकल्पित हो उठे । उन्होंने उच्चवर्गीय मानसिकता को चुनौती देते हुए निम्न वर्ग में भी ऐसे महान् कार्य किये, जिसके कारण सारे भारतीय समाज में वे श्रद्धेय हो गये ।

2. जीवन परिचय:

डॉ० अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू इन्दौर (म०प्र०) में हुआ था । उनके बचपन का नाम भीम सकपाल था । उनके पिता रामजी मौलाजी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे । उन्हें मराठी, गणित, अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था । भीम को भी यही गुण अपने पिता से विरासत में मिले थे । उनकी माता का नाम भीमाबाई था ।

ADVERTISEMENTS:

अम्बेडकर जिस जाति में पैदा हुए थे, वह बहुत निम्न व हेय समझी जाने वाली जाति थी । जब वे 5 वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहान्त हो गया था । उनका पालन-पोषण चाची ने किया । वे अपने माता-पिता की 14वीं सन्तान थे । भीमराव संस्कृत पढ़ना चाहते थे, किन्तु अछूत होने के कारण उन्हें संस्कृत पढ़ने का अधिकारी नहीं समझा गया ।

प्रारम्भिक शिक्षा में उन्हें बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा । अध्यापक उनके किताब, कॉपी को नहीं छूते थे । जिस स्थान पर अन्य लड़के पानी पीते थे, वे उस स्थान पर नहीं जा सकते थे । कई बार उन्हें प्यासा ही रहना पड़ता था । इस प्रकार की छुआछूत की भावना से वे काफी दुखी रहा करते थे ।

एक बार तो भीम तथा उनके दोनों भाइयों को बैलगाड़ी वाले ने उनकी जाति जानते ही नीचे धकेल दिया । ऐसे ही मकान की छत के नीचे बारिश से बचने के लिए वे खड़े थे, तो मकान मालिक ने उनकी जाति जानते ही कीचड़ सने पानी में उन्हें धकेल दिया । अछूत होने के कारण नाई भी उनके बाल नहीं काटता था । अध्यापक उन्हें पढ़ाते नहीं थे ।

पिता की मृत्यु के बाद बालक भीम ने अपनी पढ़ाई पूर्ण की । वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे । अत: बड़ौदा के महाराज ने उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी दी । 1907 में मैट्रिक व 1912 में बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की । बड़ौदा के महाराज की ओर से कुछ मेधावी छात्रों को विदेश में पढ़ने की सुविधा दी जाती थी, सो अम्बेडकर को यह सुविधा मिल गयी ।

अम्बेडकर ने 1913 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लैण्ड में रहकर अर्थशास्त्र, राजनीति तथा कानून का गहन अध्ययन किया । पी०एच०डी० की डिग्री भी यहीं से प्राप्त की । बड़ौदा नरेश की छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार उनकी 10 वर्ष सेवा करनी थी ।

उन्हें सैनिक सचिव का पद दिया गया । सैनिक सचिव के पद पर होते हुए भी उन्हें काफी अपमानजनक घटनाओं का सामना करना पड़ा । जब वे बड़ौदा नरेश के स्वागतार्थ उन्हें लेने पहुंचे, तो अछूत होने के कारण उन्हें होटल में नहीं आने दिया ।

सैनिक कार्यालय के चपरासी तक उन्हें रजिस्टर तथा फाइलें फेंककर देते थे । कार्यालय का पानी भी उन्हें पीने नहीं दिया जाता था । जिस दरी पर वे चलते थे, अशुद्ध होने के कारण उस पर कोई नहीं चलता था । अपमानित होने पर उन्होंने यह पद त्याग दिया ।

बम्बई आने पर भी छुआछूत की भावना से उन्हें छुटकारा नहीं मिला । यहां रहकर उन्होंने ”वार एट लॉं’ की उपाधि ग्रहण की । वकील होने पर भी उन्हें कोई कुर्सी नहीं देता था । उन्होंने कत्ल का मुकदमा जीता था । उनकी कशाग्र बुद्धि की प्रशंसा मन मारकर सबको करनी ही पड़ी ।

3. उनके कार्य:

बचपन से लगातार छुआछूत और सामाजिक भेदभाव का घोर अपमान सहते हुए भी उन्होंने वकालत का पेशा अपनाया । छुआछूत के विरुद्ध लोगों को संगठित कर अपना जीवन इसे दूर करने में लगा दिया । सार्वजनिक कुओं से पानी पीने व मन्दिरों में प्रवेश करने हेतु अछूतों को प्रेरित किया । अम्बेडकर हमेशा यह पूछा करते थे- ”क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज है जहां मनुष्य के छूने मात्र से उसकी परछाई से भी लोग अपवित्र हो जाते हैं?”

पुराण तथा धार्मिक ग्रन्थों के प्रति उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं रह गयी थी । बिल्ली और कुत्तों की तरह मनुष्य के साथ किये जाने वाले भेदभाव की बात उन्होंने लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भी कही । डॉ० अम्बेडकर ने अछूतोद्धार से सम्बन्धित अनेक कानून बनाये । 1947 में जब वे भारतीय संविधान प्रारूप निर्माण समिति के अध्यक्ष चुने गये, तो उन्होंने कानूनों में और सुधार किया ।

उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों में (1) द अनटचेबल्स हू आर दे?, (2) हू वेयर दी शूद्राज, (3) बुद्धा एण्ड हीज धम्मा, (4) पाकिस्तान एण्ड पार्टिशन ऑफ इण्डिया तथा (5) द राइज एण्ड फॉल ऑफ हिन्दू वूमन प्रमुख हैं । इसके अलावा उन्होंने 300 से भी अधिक लेख लिखे । भारत का संविधान भी उन्होंने ही लिखा ।

4. उपसंहार :

डॉ० भीमराव अम्बेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख विधि वेत्ता, समाजसुधारक थे । सामाजिक भेदभाव व विषमता का पग-पग पर सामना करते हुए अन्त तक वे झुके नहीं । अपने अध्ययन, परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन व सम्मान दिया । उन्हें भारत का आधुनिक मनु भी कहां जाता है ।

उन्होंने अपने अन्तिम सम्बोधन में पूना पैक्ट के बाद गांधीजी से यह कहा था- ”मैं दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत होकर जन्मा हूं, किन्तु मैं हिन्दू होकर नहीं मरूंगा ।” तभी तो 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के विशाल मैदान में अपने 2 लाख अनुयायियों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया ।

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डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध | Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi

Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi

भारत रत्न डॉ भीमराव अंबेडकर पर निबंध और उनका जीवन चरित्र | Essay on Dr. Bhimrao Ambedkar in Hindi | Bhimrao Ambedkar Par Nibandh

दलितों के मसीहा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू जिले में 14 अप्रैल 1891 में महार जाति में हुआ था. डॉ. अंबेडकर के पिता श्री राम जी राव सतपाल सेना में सूबेदार के पद पर थे. वे अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे. अपने बच्चों के साथ बैठकर पूजा पाठ करना उनका नित्य कर्म था. डॉक्टर अंबेडकर की माता का नाम भीमाबाई था. उनका स्वभाव अत्यंत सरल और गंभीर था. वे बनावटी जीवन से कोसों दूर थी.

बाल्यावस्था(Childhood)

बचपन में डॉक्टर अंबेडकर अत्यंत चंचल एवं शरारती थे. पढ़ाई की अपेक्षा खेलकूद में उनकी अधिक रुचि थी. समान आयु के बच्चों के साथ मारपीट करना उनका स्वभाव ही बन गया था. वे बचपन से ही निडर और हठी थे. स्कूल में अपने चारों और असमानता और छुआछूत का जो वातावरण उन्हें देखा उसने उन्हें और भी अधिक कठोर और निडर बना दिया. उस समय के विषाक्त वातावरण से उत्पन्न व्यहवहार का सामना अंबेडकर जी को भी करना पड़ा. उस समय अछूतों के साथ बड़ा अमानवीय व्यवहार किया जाता था.

शिक्षा एवं नौकरी (Education and Job)

डॉ आंबेडकर ने वर्ष 1960 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. वर्ष 1912 में भीमराव जी ने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में बड़ौदा रियासत की ओर से छात्रवृत्ति पाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र दल के सदस्य के रूप में वह अमेरिका चले गए. वहां से उन्होंने एम.ए तथा पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की. वे लंदन में रह कर डीएससी की उपाधि प्राप्त करना चाहते थे लेकिन छात्रवृत्ति का समय समाप्त होने के कारण से भारत लौटे आये. बड़ौदा नरेश को दिए गए वचन के अनुसार 1917 में रियासत की सेवा आरंभ कर दी. वह मिलिट्री में सचिव पद पर नियुक्त हो गए लेकिन अधीनस्थ कर्मचारियों के दुर्व्यवहार के कारण उन्होंने त्यागपत्र दे दिया. वर्ष 1928 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मुंबई के सिडेनहम कॉलेज में अर्थशास्त्र के अध्यापक के रूप में कार्य आरंभ कर दिया.

समाज व राष्ट्र के लिए योगदान (Contribution to Society and Nation)

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का एकमात्र लक्ष्य समाज में व्याप्त विषमता और अपराजिता का अंत करना तथा अछूतों का उद्धार करना था. इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने सब कुछ त्याग दिया. वे संघर्ष की राह पर निकल चले. हिंदू धर्म में व्याप्त जाति प्रथा पर उन्होंने तीखे प्रहार किए. कुछ ही समय में वह दलितों के लोकप्रिय नेता के रूप में उभर कर आगे आये. सन 1913 में उन्होंने दूसरी गोलमेज कांफ्रेंस में दलितों का प्रतिनिधित्व किया. दलितों को पृथक प्रतिनिधित्व की मांग को स्वीकार कर लिया गया. डॉक्टर साहब ने हिंदू धर्म में व्याप्त असमानता के तत्वों की समाप्ति के लिए जी-जान से संघर्ष किया लेकिन जब उन्हें सफलता ना मिली तो उन्होंने अपनी मृत्यु से 2 माह पूर्व अक्टूबर 1965 में लाखों दलित साथियों के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली.

क्रांतिकारी व्यक्तित्व के धनी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर केवल समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र तथा धर्म शास्त्र के ही नहीं वरन विधिशास्त्र के भी प्रकांड विद्वान थे. उनके विधिशास्त्र के ज्ञान के कारण ही उन्हें 1947 में भारतीय संविधान की 6 सदस्य संविधान समिति का अध्यक्ष चुना गया. इन सदस्यों में से अधिकांश या तो बैठकों में अनुपस्थित रहे या कुछ विदेश चले गए. परिणाम स्वरुप डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अकेले ही इस कार्य को पूरा किया इसलिए उन्होंने भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है.

जीवनभर समाज में व्याप्त असमानता, अस्पृश्यता और सवर्णों के दुर्व्यवहार को सहन करते रहने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 6 दिसंबर 1956 को इस संसार से विदा ले ली. भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया.

उपसंहार(Conclution)

बड़े-बड़े समाज सुधारक और राजनेता समाज के मुख से अस्पृश्यता और छुआछूत को समाप्त करने में असमर्थ रहे उसी कालिख को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संवैधानिक रूप से सदा सदा के लिए धो डाला. वास्तव में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सच्चे राष्ट्रप्रेमी और समाजसेवी थे. भारत मां के सच्चे सपूत तथा सही अर्थों में दलितों के मसीहा थे. उन्होंने जीवन भर दलितों के लिए कार्य किया.

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डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध | Essay On Dr. Bhimrao Ambedkar In Hindi

नमस्कार आज का निबंध, डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध Essay On Dr. Bhimrao Ambedkar In Hindi पर दिया गया हैं.

सरल भाषा में संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर पर निबंध में उनके जीवन सिद्धांतों संघर्ष और विचारों की कहानी सरल भाषा में दी गई हैं. उम्मीद करते है आपको ये निबंध पसंद आएगा.

डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध Essay On Dr. Bhimrao Ambedkar In Hindi

डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध | Essay On Dr. Bhimrao Ambedkar In Hindi

गीता में कहा गया है यदा कदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारतः अभ्युथानम अधर्मस्य तदात्मानम स्रजाम्यह्म अर्थात जब धरती पर पाप का बोझ बढ़ जाता है तो भगवान् स्वयं उसे मिटाने के लिए प्रकट होते हैं, 20 वी सदी का वातावरण इस तरह का ही था.

दुष्ट अंग्रेज भारतीय जनता पर नाना प्रकार के अत्याचार ढहा रहे थे. बुद्धिजीवी अपनी राजनीतिक धरातल खोज रहे थे. तो कुछ धर्म जाति के नाम पर लोगों में भेद कर उन्हें विभाजित करने के षड्यंत्र रच रहे थे.

ऐसी दुर्व्यवस्था में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने जन्म दिया. उन्होंने न सिर्फ दलितों का उद्धार किया बल्कि देश के लोगों को अधिकार देकर उन्हें सदियों की दासता से मुक्त कराया.  

भीमराव अम्बेडकर की जीवनी (Biography of Bhimrao Ambedkar In Hindi)

16 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का जन्म हुआ था. इनके पिताजी का नाम रामजी मालोजी सकपाल सेना में मेजर की नौकरी करते थे तथा उनकी नियुक्ति महू में ही थी. अम्बेडकर की माता का नाम भीमाबाई मुरबादकर था.

भीमराव की जाति म्हार थी ये हिन्दू धर्म के अनुयायी थे. यह वह दौर था जब उच्च जाति स्वर्ण हिन्दू जातियों द्वारा म्हार तथा निम्न जातियों के लोगों को अप्रश्य समझते थे तथा इनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था. अम्बेडकर को भी बचपन में सवर्णों के इसी अपमानजनक व्यवहार को झेलना पड़ा.

भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा व बचपन (Education and childhood of Bhimrao Ambedkar)

जब ये पढने के लिए स्कूल जाते तो इनके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था. अम्बेडकर को अन्य छात्रों के साथ बैठने की बजाय अलग से बैठना पड़ता था.

उन्हें पानी पीने तक के लिए औरों पर निर्भर रहना पड़ता था. यदि स्कूल में चपरासी होता तो ही पानी पी पाते थे. वो भी पानी का लोटा ऊपर रखकर पानी पिलाता था.

उन्हें लोगों के बर्तन को छूने तक का हक नहीं था. अपमान भरे इस बाल्य जीवन का असर उनके जीवन पर पड़ा. उन्होंने तभी निश्चय कर लिया कि वे अब से दलित शोषित वर्ग का नेतृत्व करते हुए सम्पूर्ण समाज से हक के लिए लड़ेगे तथा उन्हें वास्तविक अधिकार व सम्मान दिलाकर ही रहेगे.

भीमराव अम्बेडकर का विवाह व उच्च शिक्षा (Marriage and higher education of Bhimrao Ambedkar)

वर्ष 1905 में अम्बेडकर का विवाह रमाबाई के साथ हो गया, इसी वर्ष इनके पिताजी इन्हें लेकर मुंबई आए गये तथा इनका दाखिला एलफिंसटन स्कूल में करवा दिया.

1907 में अम्बेडकर ने दसवी की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उतीर्ण की तो बडौदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ ने इनकी 25 रूपये प्रति माह छात्रवृति देनी शुरू कर दी.

जब 1912 में भीमराव अम्बेडकर ने बी ए कर ली तो उसके बाद महाराजा गायकवाड ने इन्हें अपनी सेना में उच्च पद पर नियुक्त कर दिया.

अगले ही साल इनके पिता का देहांत हो जाने पर भीमराव ने अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया तथा आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने का निश्चय किया.

अम्बेडकर विदेश में उच्च शिक्षा (Ambedkar Higher Education Abroad)

जब इन्होने सेना की नौकरी से इस्तीफा देकर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की इच्छा जताई तो गायकवाड़ ने इस निर्णय का फैसला की तथा इस कार्य के लिए उन्हें आर्थिक मदद भी दी.

भीमराव अम्बेडकर आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गये. तथा वहां के कोलम्बिया युनिवर्सिटी न्यूयार्क से 1915 में एमए किया.

अगले ही साल इन्होने पीएचडी की पदवी प्राप्त कर ली. इतना कुछ करने के बाद भी इनकी ज्ञान पिपासा शांत नहीं हुई तथा 1923 में अमेरिका से ब्रिटेन चले गये.

जहाँ इन्होने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्राप्त की, इसके बाद अपना करियर कानून में बनाने के लिए अम्बेडकर ने बाए एट लॉ की डिग्री हासिल की.

भीमराव अम्बेडकर की स्वदेश वापसी (Bhimrao Ambedkar returns home)

वर्ष 1923 में भीमराव अम्बेडकर भारत लौट आए, उन्होंने बम्बई उच्च न्यायालय में कानूनी वकालत के पेशे को चुना. उनकी राह यहाँ भी आसान नहीं थी निम्न जाति के होने के कारण यहाँ भी उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता रहा. उन्हें कोर्ट में कुर्सी तक नहीं दी जाती थी न कि उनके हाथ में कोई केस आता था.

अचानक एक दिन एक हत्या के केस की सभी वकीलों ने पैरवी करने से इंकार कर दिया, वह केस अम्बेडकर को मिला उन्होंने इस केस की पैरवी इतने पुरजोर तरीके से की जज को उसके मुवक्किल के हक में फैसला देना पड़ा. इस घटना के बाद हर तरफ उनकी चर्चा होने लगी.

मगर अम्बेडकर का लक्ष्य अपने शोषित समाज को उनका हक दिलाना था. इस दिशा में उन्होंने 1927 में बहिस्कृत भारत नाम से एक पत्रिका का सम्पादन शुरू किया जिसके द्वारा दलितों के शोषण तथा उनके उद्धार करने के लिए समाज को जागृत करने का प्रयास किया.

1930 में तीस हजार दलितों के साथ इन्होने कालामंदिर में दलितों के प्रवेश पर रोक के विरुद्ध सत्याग्रह किया.

सवर्णों द्वारा उन पर लाठिया भांजी गई कई लोग घायल हुए मगर वो अपने निश्चय से पीछे नहीं हटे. आखिरकार उन तीस हजार लोगों को मंदिर में प्रवेश कराकर ही दम लिया. इस घटना के बाद लोग उन्हें बाबा साहब के नाम से जानने लगे.

भीमराव अम्बेडकर के दलितउद्धार कार्य (Dlituddhar Works Of BR Ambedkar)

1935 में भीमराव अम्बेडकर ने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की जिसके माध्यम से उन्होंने सवर्ण समाज के खिलाफ दलितों के हितों की लड़ाई लड़ी. 1937 में बम्बई के स्थानीय निकाय के चुनावों में भीमराव अम्बेडकर की पार्टी को पन्द्रह में से 13 स्थानों पर विजय मिली.

वे गांधीजी के दलितोंद्धार की नीति से संतुष्ट नहीं थे. मगर अपनी सोच तथा विचारधारा के कारण ये सरदार पटेल तथा महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे.

जब 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली तो पहले मंत्रिमंडल में इन्हें कानून मंत्री बनाया गया तथा संविधान सभा के गठन के बाद अम्बेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया. इन्हें भारत के संविधान का निर्माता पिता आदि कहा जाता हैं क्योंकि इन्होने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भीमराव अम्बेडकर की पुस्तकें (Books of Bhimrao Ambedkar)

बाबा साहब ने अपने समाज को हक दिलाने के उद्देश्य से कई किताबे लिखी. उन्होंने अपने जीवनकाल इतिहास में कई पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन किया.

जिनमे कुछ नाम – भारत का राष्ट्रीय अंश, भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण, भारत में लघु कृषि और उनके उपचार, मूल नायक (साप्ताहिक), ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण, रुपये की समस्या: उद्भव और समाधान, ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय, बहिष्कृत भारत (साप्ताहिक), जनता (साप्ताहिक), जाति विच्छेद, संघ बनाम स्वतंत्रता, पाकिस्तान पर विचार, श्री गाँधी एवं अछूतों की विमुक्ति, रानाडे, गाँधी और जिन्ना, कांग्रेस और गाँधी ने अछूतों के लिए क्या किया, शूद्र कौन और कैसे, महाराष्ट्र भाषाई प्रान्त, भगवान बुद्ध और उनका धर्म.

भीमराव अम्बेडकर का इतिहास कहानी (History of Bhimrao Ambedkar)

अम्बेडकर सर्वधर्म सद्भाव के विचार रखते थे. वे हिन्दू धर्म के खिलाफ न होकर वो हिन्दू धर्म में व्याप्त बुराइयों और कुरीतियों को समाप्त करना चाहते थे.

उनहोंने आजीवन परिवर्तन किया कि धर्म में सुधार हो, लेकिन दकियानूसी सोच के लोगों को ऐसा कभी मंजूर नही था. अतः जीवन के अंतिम पड़ाव में अम्बेडकर ने अपना धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली.

14 अक्टूबर 1956 के दशहरे के दिन उन्होंने नागपुर में एक बड़े कार्यक्रम में दो लाख लोगों के साथ हिन्दू धर्म से बौद्ध धर्म को अपना लिया. वे एक महान विधिवेता, समाज सुधारक शिक्षाविद और राजनेता थे. उन्होंने आजीवन अछूत वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ी.

6 दिसम्बर 1956 को दलितों के भगवान् मसीहा बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु हो गई. उनके कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया.

भीमराव अम्बेडकर पर निबंध Essay On Dr Br Ambedkar In Hindi

ये चंद लाइनें जो भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी की हैं, जो भीमराव अम्बेडकर के सम्पूर्ण जीवन और विचारों का सार बया कर जाती हैं. कुछ लोग पहली बार में उखड़ जाते हैं. आपत्ति जता सकते हैं.

विवाद खड़ा करने का प्रयास भी कर सकते हैं. परन्तु ठहरिये भीमराव अम्बेडकर का जीवन सरस सपाट और समतल नही हैं. यह बार-बार अपमान की चिंगारियों से तपता हैं, और जगह-जगह सम्मान के छिटो से शांत होता ऐसा व्यक्तित्व हैं,

जिसकी द्रढ़ता विपरीत अनुभवों को सहते-समझते हुए कदम-दर-कदम बढ़ जाती हैं. भीमराव अम्बेडकर को यह मजबूती तत्कालीन परिस्थतियो ने दी हैं. खुद उस समाज ने दी हैं, जिसका हिस्सा थे. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर.

एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु, हैं ये मेरा हिन्दू समाज | मै तो समष्टि के लिए व्यष्टि का, करता सकता बलिदान अभय ||

इस द्रढ़ता का विलक्षण पक्ष यह हैं कि भीमराव अम्बेडकर चोट खाते हैं और हर चोट के साथ सामाजिक मजबूती के काम में अधिक जोश-खरोश से जुट जाते हैं. समाज की व्यवस्थागत गलन और गंदगी पर बडबडाते हैं.

लेकिन जहाँ राष्ट्र और समाज की अखंडता पर कोई हमला होता हैं, डॉक्टर अम्बेडकर बाबासाहेब बन जाते हैं. इस समाज के अनुभवी बुजुर्ग की तरह व्यवहार करते हैं. एकरस समाज और मजबूत राष्ट्र के प्रबल पक्षधर हो जाते हैं, उनका कवच बनकर खड़ा हो जाते हैं.

बालक भीम का भीमराव अम्बेडकर होने से बाबासाहेब रूपी राष्ट्र रक्षक कवच में ढालना ऐसी परिघटना हैं, जो सबके जीवन में नही घटती हैं. यदि घटती हैं तो उस यन्त्रणा को झेलना सबके बस की बात नही हैं.

इस महामानव के जीवन की छोटी,छोटी घटनाएँ को तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में खुद को बाबासाहेब की नजर से देखना जरुरी हैं.

डा भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय (Introduction of Dr. Bhimrao Ambedkar)

छोटे से बच्चों का अन्य बच्चों के साथ खेलने के लिए मचलना और विवशता से भरी माँ द्वारा उसे यह कहकर उठा लेना कि सूबेदार मेजर का बेटा होने के साथ तू म्हार भी हैं, बालमन पर कैसी चोट लगी होगी.

बन्धनों में जकड़े बचपन की इस छटपटाहट और आसुओं में डूबे इस सबक को बच्चे की नजर से समझना होगा. बच्चे तो बच्चे हैं. पालकों में फर्क होता हैं क्या ? यह जीवन का पहला झटका, पहला सवाल हैं,

जो भीमराव अम्बेडकर के मन में उथल-पुथल मचाता हैं.और उसे इस नन्ही उम्र में प्रश्नों की बजाय उत्तर खोजने की तरफ मोड़ देता हैं.

अन्य छात्रो-शिक्षकों के जूतों के पास बैठकर पढने की शर्त पर विद्यालय में दाखिला मिलना,पिता अपमान और ग्लानी से भरे हैं, माँ की आँखों में आसूं हैं. किन्तु छ वर्ष का बच्चा कह्ता हैं.

माँ मेरा दाखिला करा दो, मै जूतों के पास बैठकर पढ़ लुगा. बच्चों में फर्क देखने वाले तथाकथित बड़े लोगों के समाज को भीमराव अम्बेडकर का यह पहला उत्तर हैं.

माँ भीमाबाई स्थति को समझती हैं और उसकी आखे अपने नन्हे बेटे की असीम सम्भावनाओं को पहचानती भी हैं. वह कहती हैं. बेटा तुम्हे समाज में बहुत अपमान झेलना पड़ेगा. बड़ी घ्रणा झेलनी पड़ेगी.

इस सबकी परवाह ना करना. तुम्हे पढना हैं, बिना पढ़े कोई आदमी बड़ा नही बन सकता. जब तुम बड़े आदमी बन जाओगे तो समाज इस गंदी रीत को बदल डालना ,यही मेरी इच्छा हैं.

माँ का सपना भीमराव अम्बेडकर के मन का संकल्प बनता हैं. घर से अपनी अलग टाट-पट्टी ले जाना, जूतों के बिच दहलीज पर बैठना. आधी छुट्टी में दीवार की ओर मुह करके पेट भरना..

उलह्नो को पीते, विषमताओ में जीते हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित किये भीमराव अम्बेडकर समाज को दूसरा उत्तर हैं- परिस्थति से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. परिणाम

भीमराव अम्बेडकर की शिक्षा & समाज को संदेश (Education and thought of Bhimrao Ambedkar)

जिस माँ की अपने भीम को पढ़ाने और बड़ा आदमी बनाने का सपना था. उस माँ को इस कारण रोग से प्राण छोड़ते देखना कि तथाकथित के घर श्रेष्ट वेद्ध्य आने को तैयार नही, दिल बैठने लगता हैं. आँसू सुख जाते हैं. भूख मर जाती हैं,

बच्चे भीमराव अम्बेडकर के लिए मानो पूरी दुनियाँ निष्प्राण हो जाती हैं. मगर वह खड़ा होता हैं, यह भीमराव अम्बेडकर की जिजीविषा हैं. उसने मन में संकल्प किया होगा कि निम्न और कुलीन के अन्यायपूर्ण प्रश्नों में झूलते समाज को उत्तर देना ही होगा.

बैठने से काम नही चलेगा. माँ जिस रोग से गईं उससे बड़ा रोग समाज को लगा हैं. मै समाज के रोग का इलाज करुगा, भीमराव अम्बेडकर का यह मूक प्रण सामाजिक निष्ठुरताओ को तीसरा उत्तर हैं.

भीमराव अम्बेडकर बड़े हैं,तो बाधाएं पार करने के कारण. बाबासाहेब का व्यक्तित्व विराट हैं तो इस कारण कि कदम-कदम पर अपमान का विष पीने के बाद भी मन में घर्णा नही उपजी. ऐसा नही कि भीमराव अम्बेडकर को क्रोध नही आता.

वे परिस्थतियो पर झुझलाते हैं, मुट्ठिया भिचते हैं, अकेले में रोते हैं, जाति की छोटी-बड़ी जंजीरों को तोड़ना चाहते थे. जो गलत करता उसे खुलकर फटकारते भी थे. लेकिन इन सभी मानवीय गुणों के साथ वे विलक्ष्ण हैं,

तो इसलिए कि वे कभी भी अपनी सदाशयता छोड़ते नही, शब्द कैसे भी हो, उनका आशय सदा अच्छा बना रहता हैं. जिन्होंने अच्छा किया भीमराव अम्बेडकर उनकी अच्छाई नही भूलते थे.

रामजी सकपाल के पुत्र का नाम हैं भीमराव अम्बेडकर, उपनाम सकपाल . किन्तु प्राथमिक शाला के जिन ब्रह्मण्य मुख्य अध्यापक ने भीम के लिए सबसे पहले शिक्षा मन्दिर के दरवाजे खोले,

इस छात्र की अनुपम मेघा को पहचाना, प्यार से अपना उपनाम दिया, बाबासाहेब ने उस ब्राह्मण उपनाम अंबेडकर को अंत तक अपने ह्रदय से लगाए रखा.

dr ambedkar history ( बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का इतिहास)

बड़ोदा नरेश महाराज गायकवाड का पूरा सहयोग इस मेधावी छात्र को मिला. उच्च शिक्षा के लिए भीमराव अम्बेडकर को छात्रवृति भी मिली, रियासत को सेवा देते हुए लेफ्टिनेंट का पद प्राप्त हुआ.

अगर जब मृत्यु शैया पर पड़े पिता की सेवा के लिए छुट्टी न देने वाले अधिकारी से कड़वा व्यवहार मिलता हैं तो भीमराव अम्बेडकर महाराज से गुहार नही लगाते हैं. सम्बन्धो का लाभ नही उठाते हैं, कोई कटुता नही पालते.

वे पिता की सेवा के लिए रियासत की रौबदारी नौकरी सहज ही छोड़ देते हैं. मान-अपमान की लड़ाई की बजाय वे अनुशासन और भारतीय संस्कारो की लीक पकड़ते हैं.

बाद में महाराज गायकवाड से मुलाक़ात होती हैं परन्तु दोनों ओर से वही सजगता, वही सहयोग और सम्मान मिलता हैं. विषम परिस्थितियों से जूझने के बाद भी चीजों को बिगड़ने ना देना.

यह भीमराव अम्बेडकर की विशेषता हैं. सोचिए जो लोग बराबर बाबासाहेब के वर्ग हितेषी,सवर्ण शत्रु और विरोधी व्यक्तित्व के चित्र खीचते हैं, उनका चित्र कितना अधुरा हैं.

कुछ लोग भीमराव अम्बेडकर को सिर्फ तत्कालीन तथाकथित वर्ग का क्रन्तिकारी नेता सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. यह बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर की विराट सर्व समावेशी द्रष्टि कोसंकीर्ण दायरे में बाँधने का असफल प्रयास हैं.

यह उस व्यक्ति के साथ सरासर अन्याय हैं, जिन्होंने सामाजिक विषमताओ के दंश झेलने के बावजूद इस समाज की सामूहिक शक्ति को पहचाना और राष्ट्रहित में सबसे एक रहने का आवहान किया.

सबसे पहले देश भीमराव अम्बेडकर की यही सोच थी. यहाँ जाति, वर्ग, धर्म औ पंथो के विभाजन की नही एकात्म की कल्पना हैं. देश की एकता और स्वतंत्रता के लिए छोटी-बड़ी जातियों में बटे सभी को एकजुट होना चाहिये.

भीमराव अम्बेडकर की जीवनी (Biography of Bhimrao Ambedkar)

मजहब पन्थ जाति किसी देश से बड़े नही हो सकते. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का स्पष्ट मत था. यह विचार बाबा साहेब ने वर्ष 1949 के अंत में एक भाषण में सामने रखा.

इस भाषण का शीर्षक था- देश को समुदाय से उपर रखना चाहिए’ सामाजिक कटुता बाटती हैं और नुकसान पुरे देश को, पुरे समाज को होता हैं. यह बात अंबेडकर ने अपमान के घूट पीने के बाद कैसे मन में बैठाई होगी! क्या यह आसान था.

1917 में कोलम्बिया विश्विद्यालय से पढ़कर लौटे भीमराव अम्बेडकर को महाराज गायकवाड़ सैन्य सचिव का उचा ओहदा देते लेकिन जातिगत श्रेष्टता के झूठे बन्धनों को ढोते उनके अमलदारो में से कोई बाबासाहेब को लेने रेलवे स्टेशन नही पहुचता.

उच्च जाति का चपरासी, सैन्य सचिव को फाइलें पकड़ता नही, दूर से पटकता हैं. इस अधिकारी के पानी मागने पर मातहत साफ़-साफ़ मना कर देते हैं.

कोई घर देने को तैयार नही, पहचान छुपाकर कमरा ले लिया तो सामान सडक पर पटक दिया जाता हैं. दिल में दर्द उमड़ता हैं, आँखों में आसू आते हैं. किन्तु भीमराव अम्बेडकर बड़पन्न कि वे ऐसी तुच्छाओ को अपनी क्षमा की चादर से ढक देते हैं.

यही भीमराव अम्बेडकर 1918 में बम्बई के सीडनहम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक में राजनीती और अर्थशास्त्र के शिक्षक होकर आते हैं तो एक रोज प्यास से गला सूखने पर घड़ा छूते भर हैं कि बवाल हो जाता हैं.

मेधा, शिक्षा, डिग्री सब व्यर्थ! क्या सनातनी कस्बे, क्या फ़ारसी धर्मशाला, क्या इसाई कॉलेज? सब जगह सोच का वही छोटापन, वही विष! यह महामानव हर कदम पर हलाहल पीता हैं मगर अपने भीतर किसी के लिए जहर नही पालता हैं.

उपर्युक्त घटनाओं के संग- संग कालान्तर में भीमराव अम्बेडकर की प्रतिक्रियाओं के रूप में सामने आता हैं.उनका व्यक्तित्व स्वत अपना स्थान बनाता हैं.

बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर (Books of Baba Saheb Bhimrao Ambedkar)

किन्तु इन सबके साथ 25 नवम्बर 1949 को भीमराव अम्बेडकर का एक भाषण तुलनात्मक सन्दर्भ के तौर पर जरुर पढ़ा जाना चाहिए. यह भाषण बाबासाहेब की सांस्कृतिक चेतना का दस्तावेज तो हैं ही, यह भी दिखाता हैं की तुच्छ व्यवहार ने बाबासाहेब को आहत जरुर किया था.

परन्तु उनकी समझ को कुंठित करने में असफल रहा था. इस रोज सविधान सभा के जरिए भीमराव अम्बेडकर ने देश को झकझोरा था. वह आवहान, वह चेतावनी आज भी पूरी तरह प्रांसगिक हैं.

इस भाषण में देश के सांस्कृतिक आतीत और इस पर आक्रमणों का पूरा लेखा उन्होंने देश के सामने रखा था. अंबेडकर ने याद दिलाया कि जब मुहमद बिन कासिम भारत पर आक्रमण करने के लिए उत्तर-पश्चिम की सीमा पर आया.

तब राजा दाहिर ने मुकाबला करने का निर्णय किया, कितु दुर्भाग्य से राजा दाहिर पराजित हुए और मुहमद बिन कासिम जीत गया. वीर होने के बावजूद दाहिरसेन की हार हुई क्युकि उनका सेनापति देशद्रोही निकला.

उस महामानव के जीवन की घटनाओं, घटनाओं की प्रतिक्रिया और इस सबसे पककर बात यह निकली सोच के सामने रखती ये कुछ झलकियाँ भर हैं. वास्तव में भीमराव अम्बेडकर का सारा जीवन समाज के कटुतम सवालों का सरल और सटीक उत्तर हैं.

मनोवैज्ञानिक तौर पर ‘जैसे को तैसा’ यह सहज मानवीय व्यवहार हैं. लेकिन भीमराव अम्बेडकर ने कैसा हैं, के सामने रखते हुए आम वैज्ञानिक धारणाएं झुटला दी. वे जुझारू थे. दबते नही थे.

इसलिए इन्होने ‘अखिल भारतीय शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’ बनाई थी. यह राजनितिक फैसला था. उनका साफ मानना था कि अस्प्रश्यता और अन्याय के विरुद्ध लड़ना हैं.

तो यह घर के भीतर की बात हैं और यह लड़ाई बाकी हिन्दू समाज से कटे रहकर नही लड़ी जा सकती और न ही दलितों को हास्ये पर पड़े रहने देना इसका इलाज हैं.

Autobiography Of Ambedkar In Hindi

प्रसिद्ध कामगार मैदान सभा में उन्होंने कहा था कि इच्छा से हो या अनिच्छा से, दलित हिन्दू समाज का ही अंग हैं. हमने महाड और नासिक में जो सत्याग्रह संघर्ष किया हैं, वह हिन्दुओ पर इस बात का दवाब डालने के लिए ही था. कि वे दलितों को बराबरी के स्तर पर स्वीकार करे.

उनकी व्यस्थावादी सोच में अस्पष्टता नही थी. न्याय व्यवस्था के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर मन्तैक्य स्थापित करना उनकी चाह थी. भले ही उन्होंने स्वय कुछ भी झेला हो लेकिन इसके बाद भी समाज से अन्याय को दूर करने के लिए सबको सहमती तक पहुचाने का प्रयास करते रहना, निरंतर जूझना, यही उनके लिए ध्येय था.

यकीनन भीमराव अम्बेडकर बहुत बड़े हैं. लेकिन वे बड़े हैं बड़ी बाधाएँ पार करने के कारण, बाबा साहेब का व्यक्तित्व विराट हैं तो इस कारण कि कदम-कदम पर विष पीने के बाद भी मन में घ्राण नही उपजती.

कुछ लोग बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का जीवन कुछ लोगों की चिंता और अन्य से नफरत का पुलिंदा बनाकर पेश करते हैं. ऐसे प्रयास अपने आप में घ्रणित हैं.

क्युकि यह एक बड़े आदमी को बौना साबित करने की कोशिश हैं. चिंदियो को तस्वीर की तरह दिखाना उस विराट चित्र का अपमान हैं. भीमराव अम्बेडकर इस सम्पूर्ण राष्ट्र इसकी चुनोतियो और अपने सहोदर समाज की परिस्थतियो का स्पंदन हैं.

समझने वाली बात यह हैं. कि भीमराव अम्बेडकर के जीवन में सामाजिक उठापठक और उलझाव तो खूब हैं. लेकिन दुराव नही हैं. यदि भीमराव अम्बेडकर तत्कालीन भारतीय समाज की बुराइयों को काटने वाली तलवार की तरह तीखे हैं तो इस समाज की साझा शक्ति को बचाने वाली ढाल हैं.

डॉ भीमराव अम्बेडकर पर निबंध (Essay on Bhimrao Ambedkar)

भारतीय संस्कृती में तप बड़ी चीज हैं. व्यक्ति को शक्ति और तेज देने वाली तपस्या की राह कभी आसान नही होती हैं. भीमराव अम्बेडकर का जीवन सरलताओ का सुगम पथ नही हैं.

वही विपरीतताओ के कांटो और अपमान के अंगारों पर चलकर उन्हें कुचलकर तय की गईं यह एक दुर्गम यात्रा हैं. भौगोलिक और अखंडता को समाज का अभिन्न अंग और समाज हित को सर्वोपरी मानते हुए.

खुद को गला देना कम बात नही हैं. यह तपस्या हैं, व्यष्टि यानि व्यक्ति समष्टि यानि सम्पूर्ण समाज के लिए कैसे अपना जीवन होम कर सकता हैं. इस बात की झांकी हैं भीमराव अम्बेडकर का तपमय जीवन.

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डॉ. बी.आर. अम्बेडकर: जीवनी और जीवन इतिहास | Dr. B.R. Ambedkar: Biography & Life History in Hindi

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर (1891-1956) जिन्हें समान्य तौर से बाबासाहेब के नाम से जाना जाता है, वे एक प्रसिद्ध भारतीय न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे, जिन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के विरद्ध होने वाले सामाजिक भेदभाव के खिलाफ आजीवन अभियान चलाया, उन्होंने सिर्फ दलितों के अधिकारों का ही समर्थन नहीं किया बल्कि पिछड़ों और महिलाओं के अधिकारों के लिए भी समर्थन किया है। वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री और भारत के संविधान के प्रमुख वास्तुकार प्रमुख थे। आज इस लेख में हम भीमराव अम्बेडकर की जीवनी पढ़ेंगे और साथ ही उनके जीवन से जुड़े सभी तथ्यों का अध्ययन करेंगे

short essay on dr br ambedkar in hindi

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर: जीवनी-उनके जन्म और महानता की भविष्यवाणी की

14 अप्रैल, 1891 को भीमाबाई और रामजी अंबडवेकर के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। उनके पिता रामजी मध्य प्रदेश के महू में तैनात एक सेना अधिकारी थे – वे ब्रिटिश शासन के तहत उस समय एक भारतीय जो सर्वोच्च पद पर आसीन हुए थे।

मस्तिष्क की खेती मानव अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।

उनकी मां ने अपने बेटे को भीम बुलाने का फैसला किया। जन्म से पूर्व रामजी के चाचा, जो सन्यासी का धार्मिक जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति थे, ने भविष्यवाणी की थी कि यह पुत्र विश्वव्यापी ख्याति प्राप्त करेगा। उनके माता-पिता के पहले से ही कई बच्चे थे। इसके बावजूद, उन्होंने उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए हर संभव प्रयास करने का संकल्प लिया।

नाम भीमराव अम्बेडकर
पूरा नाम भीमराव रामजी अम्बेडकर
जन्म 14 अप्रैल, 1891
जन्मस्थान महू मध्यप्रदेश
पिता रामजी अंबडवेकर
माता भीमाबाई
पत्नी रमाबाई
मृत्यु 6 दिसंबर 1956
मृत्यु का स्थान नई दिल्ली
प्रसिद्धि भारतीय संविधान के निर्माता

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर-प्रारंभिक जीवन और प्रथम पाठशाला

दो साल बाद, रामजी सेना से सेवानिवृत्त हुए, और परिवार महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के दापोली चला गया, जहाँ से वे मूल रूप से आए थे। भीम का नामांकन पांच साल की उम्र में स्कूल में कराया गया था। रामजी को मिलने वाली छोटी सेना पेंशन पर पूरे परिवार को जीवन यापन करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

एक सफल क्रांति के लिए केवल इतना ही काफी नहीं है कि असंतोष हो। जो आवश्यक है वह न्याय, आवश्यकता और राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के महत्व के प्रति गहन और संपूर्ण विश्वास है।- अम्बेडकर

जब कुछ दोस्तों ने रामजी को सतारा में नौकरी दी, तो ऐसा लगा कि परिवार के लिए चीजें बेहतर हो रही हैं, और वे फिर से चले गए। हालांकि, इसके तुरंत बाद, त्रासदी हुई। भीमाबाई, जो बीमार थीं, उनकी मृत्यु हो गई।

भीम की मौसी मीरा, हालांकि वह खुद अच्छे स्वास्थ्य में नहीं थीं, उन्होंने बच्चों की देखभाल की। रामजी ने अपने बच्चों को महाकाव्य महाभारत और रामायण की कहानियाँ पढ़ाई और उनके लिए भक्ति गीत गाए। इस प्रकार भीम, उनके भाइयों और उनकी बहनों का गृहस्थ जीवन अब भी सुखमय था। वह अपने पिता के प्रभाव को कभी नहीं भूले। पिता ने उन्हें सभी भारतीयों द्वारा साझा की गई समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के बारे में सिखाया।

  • B.R.Ambedkar-वो भीमराव अम्बेडकर जिन्हें आप नहीं जानते होंगे

पूर्वाग्रह का सदमा – जातिवाद

भीम ने नोटिस करना शुरू किया कि उनके और उनके परिवार के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है। हाई स्कूल में, उन्हें अन्य विद्यार्थियों के डेस्क से दूर, एक मोटे चटाई पर कमरे के कोने में बैठना पड़ता था। लंच के समय, उन्हें अपने साथी स्कूली बच्चों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कपों का उपयोग करके पानी पीने की अनुमति नहीं थी। स्कूल के चपरासी द्वारा पानी पिलाने के लिए उन्हें अपने हाथों को पकड़ना पड़ा।

भीम नहीं जानता था कि उसके साथ अलग व्यवहार क्यों किया जाना चाहिए – उसके साथ क्या गलत था? एक बार, उन्हें और उनके बड़े भाई को गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए गोरेगांव जाना पड़ा, जहां उनके पिता खजांची के रूप में काम करते थे। वे ट्रेन से उतर गए और स्टेशन पर काफी देर तक उनका इंतजार करते रहे, लेकिन रामजी उनसे मिलने नहीं पहुंचे। स्टेशन मास्टर दयालु लग रहे थे और उन्होंने उनसे पूछा कि वे कौन थे और कहाँ जा रहे थे।

लोगों और उनके धर्म को सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों द्वारा आंका जाना चाहिए। यदि धर्म को लोगों की भलाई के लिए आवश्यक अच्छा माना जाता है तो किसी अन्य मानक का कोई अर्थ नहीं होगा।-अम्बेडकर

दोनों भाई बहुत अच्छे कपड़े पहने, साफ-सुथरे और विनम्र थे। भीम ने बिना सोचे-समझे उन्हें बताया कि वे महार (‘अछूत’ के रूप में वर्गीकृत एक समूह) हैं। स्टेशन मास्टर स्तब्ध रह गया – उसके चेहरे पर दया का भाव बदल गया और वह चला गया। भीम ने उन्हें अपने पिता के पास ले जाने के लिए एक बैलगाड़ी किराए पर लेने का फैसला किया – यह तब था जब मोटर कारों को टैक्सी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था – लेकिन गाड़ी वालों ने सुना था कि लड़के ‘अछूत’ थे, और उनके साथ कुछ नहीं करना चाहते थे।

अंत में, उन्हें यात्रा की सामान्य लागत का दोगुना भुगतान करने के लिए सहमत होना पड़ा, साथ ही उन्हें गाड़ी खुद चलानी पड़ी, जबकि चालक उसके साथ चला गया। उन्हें लड़कों द्वारा अपवित्र होने का डर था क्योंकि वे ‘अछूत’ थे। हालाँकि, अतिरिक्त पैसे ने उन्हें मना लिया कि वह बाद में अपनी गाड़ी को ‘शुद्ध’ करवा सकते हैं! पूरी यात्रा के दौरान भीम लगातार सोचते रहे कि क्या हुआ है – फिर भी वे इसका कारण नहीं समझ सके। वह और उसका भाई साफ और बड़े करीने से कपड़े पहने हुए थे।

फिर भी उनसे यह अपेक्षा की गई थी कि जो कुछ वे छूएँ और जो कुछ उन्हें छूएँ वे सब कुछ अपवित्र और अशुद्ध करें। यह कैसे संभव हो सकता है? भीम इस घटना को कभी नहीं भूले। जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, इस तरह के मूर्खतापूर्ण अपमानों ने उसे एहसास दिलाया कि हिंदू समाज जिसे ‘अस्पृश्यता’ कहता है, वह बेवकूफी, क्रूर और अनुचित है। उनकी बहन को घर पर अपने बाल काटने पड़े क्योंकि गाँव के नाइयों को एक ‘अछूत’ द्वारा अपवित्र होने का डर था।

अगर उन्होंने उससे पूछा कि वे ‘अछूत’ क्यों हैं, तो वह केवल यही जवाब दे सकती थी – यह हमेशा ऐसा ही रहा है। भीम इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हो सके। वह जानता था कि -यह हमेशा से ऐसा ही रहा है” का अर्थ यह नहीं है कि इसका एक उचित कारण है – या कि इसे हमेशा के लिए उसी तरह रहना था। इसे बदला जा सकता है?

  • भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?

एक प्रतिभशाली छात्र

इस समय अपने युवा जीवन में, अपनी माँ की मृत्यु के साथ, और पिता उस गाँव से दूर काम कर रहे थे जहाँ भीम स्कूल गए थे, उनका कुछ सौभाग्य था। उनके शिक्षक, हालांकि एक ‘उच्च’ जाति के थे, उन्हें बहुत पसंद करते थे। उन्होंने भीम के अच्छे काम की प्रशंसा की और उन्हें प्रोत्साहित किया, यह देखकर कि वे कितने प्रतिभाशाली शिष्य थे। उन्होंने भीम को अपने साथ दोपहर का भोजन करने के लिए भी आमंत्रित किया – ऐसा कुछ जो अधिकांश उच्च जाति के हिंदुओं को भयभीत कर देता।

शिक्षक ने भीम का अंतिम नाम भी अम्बेडकर में बदल दिया – उनका अपना नाम। जब उनके पिता ने पुनर्विवाह करने का फैसला किया, तो भीम बहुत परेशान थे – उन्होंने तब भी अपनी माँ को बहुत याद किया। बंबई भाग जाना चाहता था, उसने अपनी मौसी का पर्स चुराने की कोशिश की। आखिरकार जब वह उसे पाने में सफल हुआ, तो उसे केवल एक बहुत छोटा सिक्का मिला। भीम को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने सिक्का वापस रख दिया और खुद को बहुत कठिन अध्ययन करने और स्वतंत्र होने का संकल्प लिया। जल्द ही वह अपने सभी शिक्षकों से सर्वोच्च प्रशंसा और प्रोत्साहन प्राप्त कर रहा था।

उन्होंने रामजी से अपने पुत्र भीम को उत्तम शिक्षा दिलाने का आग्रह किया। इसलिए रामजी अपने परिवार के साथ बंबई चले गए। उन सभी को सिर्फ एक कमरे में रहना पड़ा, एक ऐसे क्षेत्र में जहां गरीब से गरीब व्यक्ति रहता था, लेकिन भीम एलफिन्स्टन हाई स्कूल में जाने में सक्षम थे – पूरे भारत में सबसे अच्छे स्कूलों में से एक। उनके एक कमरे में हर कोई और सब कुछ था। एक साथ भीड़ लगी और बाहर की सड़कों पर बहुत शोर था। स्कूल से घर आने पर भीम सोने चला गया। फिर उसके पापा उसे रात दो बजे जगा देते ! तब सब कुछ शांत था – इसलिए वह अपना होमवर्क कर सकता था और शांति से पढ़ाई कर सकता था।

बड़े शहर में, जहां जीवन गांवों की तुलना में अधिक आधुनिक था, भीम ने पाया कि उन्हें अभी भी ‘अछूत’ कहा जाता था और उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था जैसे कि कुछ उन्हें अलग और बुरा बना देता है – यहां तक कि उनके प्रसिद्ध स्कूल में भी।

एक दिन, शिक्षक ने योग करने के लिए उसे ब्लैकबोर्ड तक बुलाया। अन्य सभी लड़के कूद गए और एक बड़ा उपद्रव किया। उनके लंच बॉक्स ब्लैकबोर्ड के पीछे रखे हुए थे – उन्हें विश्वास था कि भीम भोजन को अपवित्र कर देगा! जब उन्होंने हिंदू पवित्र शास्त्रों की भाषा संस्कृत सीखना चाहा, तो उन्हें बताया गया कि ऐसा करना ‘अछूतों’ के लिए वर्जित है। इसके बजाय उन्हें फ़ारसी का अध्ययन करना पड़ा – लेकिन उन्होंने अपने जीवन में बाद में संस्कृत सीखी।

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मैट्रिक और विवाह

कालांतर में भीम ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह समाज सुधार में रुचि रखने वाले कुछ लोगों के ध्यान में पहले ही आ चुका था। इसलिए जब उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की, तो उन्हें बधाई देने के लिए एक सभा आयोजित की गई – वे इसे पास करने वाले अपने समुदाय के पहले ‘अछूत’ थे। भीम तब 17 वर्ष के थे। उन दिनों जल्दी शादी होना आम बात थी, इसलिए उसी साल उनका विवाह रमाबाई से कर दिया गया।

उन्होंने कठिन अध्ययन करना जारी रखा और इंटरमीडिएट की अगली परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। हालाँकि, रामजी ने खुद को स्कूल की फीस भरने में असमर्थ पाया। अपनी प्रगति में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति के माध्यम से, भीम की सिफारिश बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ से की गई। शाहू महाराजा ने उन्हें मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की।

इसी की मदद से भीमराव (महाराष्ट्र में सम्मान की निशानी के तौर पर नाम के आगे ‘राव’ जोड़ा जाता है) ने बी.ए. 1912 में। फिर उन्हें सिविल सेवा में नौकरी दी गई – लेकिन शुरू करने के दो हफ्ते बाद ही उन्हें अपने घर बंबई जाना पड़ा। रामजी बहुत बीमार थे, और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई। भीमराव की बाद की उपलब्धियों की नींव रखते हुए, उन्होंने अपने बेटे के लिए वह सब कुछ किया जो वे कर सकते थे।

यूएसए और यूके में अध्ययन

बड़ौदा के महाराजा की कुछ उत्कृष्ट विद्वानों को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने की योजना थी। बेशक भीमराव का चयन हो गया था – लेकिन उन्हें अपनी पढ़ाई खत्म करने पर दस साल तक बड़ौदा राज्य की सेवा करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा।

1913 में, वे संयुक्त राज्य अमेरिका गए जहाँ उन्होंने विश्व प्रसिद्ध कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क में अध्ययन किया। अमेरिका में उन्होंने जिस स्वतंत्रता और समानता का अनुभव किया, उसका भीमराव पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भारत के जातिगत पूर्वाग्रहों से मुक्त एक सामान्य जीवन जीने में सक्षम होना उनके लिए कितना सुखद था। वह जो चाहे कर सकता था – लेकिन अपना समय अध्ययन के लिए समर्पित करता था। उन्होंने प्रतिदिन अठारह घंटे अध्ययन किया।

किताबों की दुकानों पर जाना उनका पसंदीदा शौक था! उनके मुख्य विषय अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र थे। केवल दो वर्षों में उन्हें एम.ए. से सम्मानित किया गया – अगले वर्ष उन्होंने अपनी पीएच.डी. थीसिस पूरी की। फिर वह कोलंबिया छोड़कर इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रवेश लिया। हालाँकि, उन्हें अपना कोर्स पूरा करने से पहले लंदन छोड़ना पड़ा क्योंकि बड़ौदा राज्य द्वारा दी गई छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन लौटने से पहले भीमराव को तीन साल इंतजार करना पड़ा।

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भारत वापसी – बड़ौदा में दुःस्वप्न

समझौते के अनुसार बड़ौदा में एक पद ग्रहण करने के लिए वापस भारत बुलाया गया। उन्हें बड़ौदा सिविल सेवा में एक उत्कृष्ट नौकरी दी गई थी। भीमराव के पास अब डॉक्टरेट की उपाधि थी, और उन्हें एक शीर्ष नौकरी के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था। फिर भी, वह फिर से हिंदू जाति व्यवस्था की सबसे खराब विशेषताओं में घिर गए। यह सब और भी दर्दनाक था, क्योंकि पिछले चार वर्षों से वे विदेश में थे, ‘अछूत’ के लेबल से मुक्त होकर जी रहे थे।

जिस कार्यालय में वह काम करते थे, वहां कोई भी उन्हें फाइलें और कागजात नहीं देता था – नौकर ने उन्हें अपनी मेज पर फेंक दिया। न ही उन्हें पीने को पानी देते थे। केवल उनकी जाति के कारण कोई सम्मान नहीं दिया गया था। उन्हें एक कमरा खोजने के लिए होटल से होटल जाना पड़ता था, लेकिन उनमें से कोई भी उन्हें अंदर नहीं ले जाता था। आखिरकार एक पारसी गेस्ट हाउस में रहने की जगह मिल गई थी। लेकिन केवल इसलिए कि उन्होंने आखिरकार अपनी जाति को गुप्त रखने का फैसला किया था। वह वहां बहुत ही असहज परिस्थितियों में रहते, एक छोटे से बेडरूम में ठंडे पानी के बाथरूम से जुड़ा हुआ था।

वह वहां बिल्कुल अकेले थे और कोई बात करने वाला नहीं था। बिजली की रोशनी या तेल के दीये भी नहीं थे – इसलिए रात में उस जगह पर पूरी तरह से अंधेरा था। भीमराव अपनी सिविल सेवा की नौकरी के माध्यम से रहने के लिए कहीं और खोजने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन इससे पहले कि वह एक सुबह काम के लिए निकल रहे थे, गुस्साए लोग लाठी लेकर उनके कमरे के बाहर पहुंचे। उन्होंने बाबा साहब पर होटल को प्रदूषित करने का आरोप लगाया और कहा कि शाम तक निकल जाओ – वरना! वह क्या कर सकते थे? वह बड़ौदा में अपने दो परिचितों में से किसी के साथ भी नहीं रह सके, कारण – उनकी निचली जाति। भीमराव पूरी तरह से दुखी और अस्वीकृत महसूस कर रहे थे।

बंबई – सामाजिक गतिविधि की शुरुआत

अब बाबा बाबा साहब के पास कोई विकल्प नहीं था। अपनी नई नौकरी में केवल ग्यारह दिनों के बाद, उन्हें बंबई लौटना पड़ा। उन्होंने लोगों को निवेश के बारे में सलाह देते हुए एक छोटा व्यवसाय शुरू करने की कोशिश की – लेकिन ग्राहकों को उनकी जाति के बारे में पता चलने के बाद यह भी विफल हो गया। 1918 में, वे बॉम्बे के सिडेनहैम कॉलेज में लेक्चरर बन गए। वहां, उनके छात्रों ने उन्हें एक शानदार शिक्षक और विद्वान के रूप में पहचाना।

इस समय उन्होंने ‘अछूतों’ के कारण को मुद्दा बनाने के लिए एक मराठी समाचार पत्र ‘मूक नायक’ (मूक का नेता) को खोजने में भी मदद की। उन्होंने सम्मेलनों का आयोजन करना और उनमें भाग लेना भी शुरू किया, यह जानते हुए कि उन्हें दलितों – ‘उत्पीड़ित’ – द्वारा झेले गए अपमानों का प्रचार और प्रचार करना शुरू करना था और समान अधिकारों के लिए लड़ना था। उनके अपने जीवन ने उन्हें मुक्ति के लिए संघर्ष की आवश्यकता सिखाई थी।

शिक्षा का समापन – भारत के अछूतों के नेता

1920 में, दोस्तों की मदद से, वह LSE में अर्थशास्त्र में अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन लौटने में सक्षम हुए। उन्होंने ग्रेज इन में बैरिस्टर के रूप में अध्ययन करने के लिए भी दाखिला लिया। 1923 में, भीमराव LSE से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि लेकर भारत लौटे – वे शायद पहले भारतीय थे जिन्होंने इस विश्व प्रसिद्ध संस्थान से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने बैरिस्टर-एट-लॉ के रूप में भी योग्यता प्राप्त की थी।

भारत में वापस, वह जानते थे कि कुछ भी नहीं बदला है। जहां तक ​​अस्पृश्यता की प्रथा का सवाल है, उसकी योग्यता का कोई मतलब नहीं है – यह अभी भी उनके करियर के लिए एक बाधा थी। हालाँकि, उन्होंने दुनिया में सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी, और दलित समुदाय का नेता बनने के लिए अच्छी तरह से तैयार थे। वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ दिमागों के साथ समान शर्तों पर बहस कर सकते थे और उन्हें संतुष्ट कर सकते थे। वह कानून के विशेषज्ञ थे, और एक वाक्पटु और प्रतिभाशाली वक्ता के रूप में ब्रिटिश आयोगों के समक्ष ठोस सबूत दे सकते थे। भीमराव ने अपना शेष जीवन अपने कार्य के लिए समर्पित कर दिया।

वह अपने अनुयायियों की बढ़ती संख्या से बाबासाहेब अम्बेडकर के रूप में जाने गए – उन ‘अछूतों’ को जिन्हें उन्होंने जगाने का आग्रह किया। शिक्षा के महान मूल्य और महत्व को जानते हुए, 1924 में उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा नामक एक संघ की स्थापना की। इस संघ ने छात्रावास, स्कूल और मुफ्त पुस्तकालय स्थापित किए। दलितों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा को सभी तक पहुंचाना था। जमीनी स्तर पर अवसर प्रदान करने थे – क्योंकि ज्ञान ही शक्ति है।

पानी के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन

1927 में बाबासाहेब अम्बेडकर ने कोलाबा जिले के महाड़ में एक सम्मेलन की अध्यक्षता की। वहाँ उन्होंने कहा: – अब समय आ गया है कि हम अपने मन से ऊँच-नीच के विचारों को जड़ से उखाड़ दें। हम आत्म-उन्नति तभी प्राप्त कर सकते हैं जब हम स्वयं-सहायता सीखें और अपना आत्म-सम्मान पुनः प्राप्त करें। जो अन्याय सहते हैं उन्हें अपने लिए न्याय सुरक्षित करना चाहिए।

बंबई विधानमंडल ने पहले ही एक विधेयक पारित कर दिया था जिसमें सभी को सार्वजनिक पानी की टंकियों और कुओं का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी। (हमने देखा है कि कैसे भीम को स्कूल में, उनके कार्यालय में, और अन्य स्थानों पर पानी से वंचित कर दिया गया था। सार्वजनिक जल सुविधाओं को हमेशा ‘अछूतों’ को ‘प्रदूषण’ के अंधविश्वासी भय के कारण मना कर दिया गया था।) महाड नगर पालिका ने स्थानीय पानी को खोल दिया था चार साल पहले तालाब बन गया था, लेकिन आज तक किसी ‘अछूत’ ने उससे पीने या पानी निकालने की हिम्मत नहीं की थी।

बाबासाहेब अम्बेडकर ने सम्मेलन से शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए चौदार तालाब तक एक जुलूस का नेतृत्व किया। उन्होंने घुटने टेके और उसमें से पानी पिया। उनके द्वारा यह उदाहरण प्रस्तुत करने के बाद, हजारों अन्य लोगों ने उनका अनुसरण करने का साहस जुटाया। उन्होंने टंकी से पानी पिया और इतिहास रच दिया। कई सैकड़ों वर्षों तक ‘अछूतों’ को सार्वजनिक जल पीने की मनाही थी।

जब कुछ जाति के हिंदुओं ने उन्हें पानी पीते हुए देखा, तो उन्होंने माना कि टैंक प्रदूषित हो गया है और हिंसक रूप से भीड़ पर हमला किया, लेकिन बाबासाहेब अम्बेडकर ने जोर देकर कहा कि हिंसा से मदद नहीं मिलेगी – उन्होंने अपना वचन दिया था कि वे शांतिपूर्वक आंदोलन करेंगे। बाबासाहेब अम्बेडकर ने एक मराठी पत्रिका ‘बहिष्कृत भारत’ शुरू की। ( ‘द एक्सक्लूडेड ऑफ इंडिया’) ।

इसमें, उन्होंने नासिक में काला राम मंदिर में प्रवेश के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए अपने लोगों से असत्याग्रह (अहिंसक आंदोलन) आयोजित करने का आग्रह किया। ‘अछूतों’ को हमेशा हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने से मना किया गया था। यह प्रदर्शन एक महीने तक चला था। फिर उन्हें बताया गया कि वे वार्षिक मंदिर उत्सव में भाग ले सकेंगे। हालाँकि, उत्सव में उन पर पत्थर फेंके गए – और उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई। साहसपूर्वक, उन्होंने अपना शांतिपूर्ण आंदोलन फिर से शुरू कर दिया। मंदिर को लगभग एक साल तक बंद रहना पड़ा, क्योंकि उन्होंने इसके प्रवेश द्वार को अवरुद्ध कर दिया था।

गोलमेज सम्मेलन – गांधी

इस बीच, महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ने गति पकड़ ली थी। 1930 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत का भविष्य तय करने के लिए लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया था। बाबासाहेब अम्बेडकर ने ‘अछूतों’ का प्रतिनिधित्व किया।

उन्होंने वहां कहा था: – भारत के दलित वर्ग भी ब्रिटिश सरकार को लोगों की सरकार और लोगों द्वारा बदलने की मांग में शामिल हैं … हमारी गलतियां खुले घाव के रूप में बनी हुई हैं और 150 वर्षों के ब्रिटिश शासन के बावजूद सही नहीं हुई हैं। लुढ़क गया। ऐसी सरकार किसी के लिए क्या अच्छी है? ” जल्द ही एक दूसरा सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व किया।

बाबासाहेब अम्बेडकर लंदन जाने से पहले बंबई में गांधी से मिले थे। गांधी ने उन्हें बताया कि बाबासाहेब ने पहले सम्मेलन में जो कहा था, उसे उन्होंने पढ़ा है। गांधी ने बाबासाहेब अम्बेडकर से कहा कि वह उन्हें एक वास्तविक भारतीय देशभक्त के रूप में जानते हैं। दूसरे सम्मेलन में, बाबासाहेब अम्बेडकर ने दमित वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल की मांग की। -हिंदू धर्म”, उन्होंने कहा, -हमें केवल अपमान, दुख और तिरस्कार देता है।

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एक अलग निर्वाचक मंडल का अर्थ होगा कि ‘अछूत’ अपने स्वयं के उम्मीदवारों के लिए मतदान करेंगे और उन्हें हिंदू बहुमत से अलग वोट आवंटित किए जाएंगे। बाबासाहेब को बंबई से लौटने पर उनके हजारों अनुयायियों द्वारा नायक बनाया गया था – भले ही उन्होंने हमेशा कहा कि लोग उनकी न करें। समाचार आया कि पृथक निर्वाचिका प्रदान कर दी गई है। गांधी ने महसूस किया कि अलग निर्वाचक मंडल हरिजनों को हिंदुओं से हमेशा के लिए अलग कर देगा।

यह सोचकर कि हिंदुओं को विभाजित किया जाएगा, उन्हें बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने यह कहते हुए उपवास शुरू किया कि वह आमरण अनशन करेंगे। केवल बाबासाहेब अम्बेडकर ही अलग निर्वाचक मंडल की मांग को वापस लेकर गांधी की जान बचा सकते थे। पहले तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि यह उनका कर्तव्य है कि वे अपने लोगों के लिए सबसे अच्छा करें – चाहे कुछ भी हो जाए।

बाद में उन्होंने गांधी से मुलाकात की, जो उस समय यरवदा जेल में थे। गांधी ने बाबासाहेब को इस बात के लिए राजी किया कि हिंदू धर्म बदल जाएगा और अपनी बुरी प्रथाओं को पीछे छोड़ देगा। अंत में बाबासाहेब अम्बेडकर 1932 में गांधी के साथ पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए। अलग निर्वाचक मंडल के बजाय दलित वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाना था। हालाँकि, बाद में यह स्पष्ट हो गया कि इसमें कुछ भी ठोस नहीं था।

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उनके जीवन के प्रमुख कार्य

बाबासाहेब ने इस समय तक 50,000 से अधिक पुस्तकों का एक पुस्तकालय एकत्र कर लिया था, और इसे रखने के लिए उत्तरी बॉम्बे के दादर में राजगृह नाम का एक घर बनाया था। 1935 में उनकी प्यारी पत्नी रमाबाई का निधन हो गया। उसी वर्ष उन्हें गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे का प्रिंसिपल बनाया गया। साथ ही 1935 में येओला में दलितों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था।

बाबासाहेब ने सम्मेलन में कहा: – हम मानवाधिकारों की रक्षा करने में सक्षम नहीं हैं … मैं एक हिंदू पैदा हुआ हूं। मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता, लेकिन मैं आपको सत्यनिष्ठा से विश्वास दिलाता हूं कि मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा। यह पहली बार था जब बाबासाहेब ने अपने लोगों के लिए हिंदू धर्म से धर्मांतरण के महत्व पर जोर दिया – क्योंकि वे केवल हिंदू धर्म के भीतर ‘अछूत’ के रूप में जाने जाते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, बाबासाहेब अम्बेडकर को वायसराय द्वारा श्रम मंत्री नियुक्त किया गया था।

फिर भी उन्होंने अपनी जड़ों से कभी संपर्क नहीं तोड़ा – वे कभी भ्रष्ट या कुटिल नहीं हुए। उन्होंने कहा कि वह गरीबों में पैदा हुए हैं और गरीबों का जीवन जीते हैं, वे अपने दोस्तों और बाकी दुनिया के प्रति अपने दृष्टिकोण में बिल्कुल अपरिवर्तित रहेंगे। अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ का गठन 1942 में किया गया था सभी ‘अछूतों’ को एक संयुक्त राजनीतिक दल में इकट्ठा करो।

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भारतीय संविधान के शिल्पकार

युद्ध के बाद बाबासाहेब अम्बेडकर को संविधान सभा के लिए चुना गया था ताकि यह तय किया जा सके कि भारत – लाखों लोगों का देश – कैसे शासित होना चाहिए। चुनाव कैसे होने चाहिए? लोगों के अधिकार क्या हैं? कानून कैसे बनते हैं? इस तरह के महत्वपूर्ण मामलों का फैसला करना था और कानून बनाना था।

संविधान ऐसे सभी सवालों का जवाब देता है और नियम निर्धारित करता है।

अगस्त 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तब बाबासाहेब अम्बेडकर स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। संविधान सभा ने उन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए नियुक्त समिति का अध्यक्ष बनाया। उनके कानून, अर्थशास्त्र और राजनीति के सभी अध्ययन ने उन्हें इस कार्य के लिए सबसे योग्य व्यक्ति बनाया।

कई देशों के संविधानों का अध्ययन, कानून का गहरा ज्ञान, भारत के इतिहास और भारतीय समाज का ज्ञान – ये सभी आवश्यक थे। वास्तव में, उन्होंने सारा बोझ अकेले ही उठाया। वे अकेले ही इस विशाल कार्य को पूरा कर सकते थे। संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद बाबासाहेब बीमार पड़ गए।

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बंबई के एक नर्सिंग होम में उनकी मुलाकात डॉ. शारदा कबीर से हुई और अप्रैल 1948 में उनसे शादी कर ली। 4 नवंबर, 1948 को उन्होंने संविधान सभा को मसौदा संविधान पेश किया और 26 नवंबर, 1949 को इसे वहां भारत के लोगों के नाम पर अपनाया गया। उस तारीख को उन्होंने कहा था: -मैं सभी भारतीयों से उन जातियों को त्याग कर एक राष्ट्र बनने का आह्वान करता हूं, जिन्होंने सामाजिक जीवन में अलगाव पैदा किया है और ईर्ष्या और घृणा पैदा की है।

बाद का जीवन – बौद्ध धर्म स्वीकार करना

1950 में, वे श्रीलंका में एक बौद्ध सम्मेलन में गए। अपनी वापसी पर उन्होंने बंबई में बौद्ध मंदिर में भाषण दिया। -अपनी कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए लोगों को बौद्ध धर्म अपनाना चाहिए।

मैं अपना शेष जीवन भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान और प्रसार के लिए समर्पित करने जा रहा हूं। बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1951 में सरकार से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने महसूस किया कि एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में उनके पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि सुधार इतने अत्यावश्यक को अस्तित्व में नहीं आने दिया गया था। अगले पांच वर्षों तक बाबासाहेब ने सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ अनवरत लड़ाई लड़ी।

14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। उन्होंने पांच लाख से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करने के समारोह में एक विशाल सभा का नेतृत्व किया। वर्तमान में इस स्थान को “दीक्षाभूमि” के नाम से जाना जाता है। वह जानते थे कि बौद्ध धर्म भारतीय इतिहास का एक सच्चा हिस्सा था और इसे पुनर्जीवित करने के लिए भारत की सर्वश्रेष्ठ परंपरा को जारी रखना था। ‘अस्पृश्यता’ केवल हिंदू धर्म की उपज है।

बाबासाहेब अम्बेडकर की मृत्यु

केवल सात हफ्ते बाद 6 दिसंबर, 1956 को बाबासाहेब अम्बेडकर का उनके दिल्ली स्थित आवास पर निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को बंबई ले जाया गया। दो मील लंबी भीड़ ने अंतिम संस्कार के जुलूस का गठन किया। उस शाम दादर कब्रिस्तान में, प्रतिष्ठित नेताओं ने उन्हें अंतिम सम्मान दिया। बौद्ध संस्कारों के अनुसार चिता को मुखाग्नि दी गई। इसे डेढ़ लाख लोगों ने देखा। वर्तमान में यह स्थान “चैत्य भूमि” के नाम से जाना जाता है।

इस प्रकार भारत के एक महानतम सपूत का जीवन समाप्त हो गया। उनका भारत के लाखों बहिष्कृत और उत्पीड़ित लोगों को उनके मानवाधिकारों के प्रति जागृत करने का कार्य था। उन्होंने उनकी पीड़ा और उनके प्रति दिखाई गई क्रूरता का अनुभव किया। उन्होंने अपने समय के महानतम पुरुषों के साथ बराबरी पर खड़े होने के लिए बाधाओं को पार किया। उन्होंने अपने संविधान के माध्यम से आधुनिक भारत के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका काम और मिशन आज भी जारी है – हमें तब तक आराम नहीं करना चाहिए जब तक कि हम समान नागरिकों के एक साथ शांति से रहने वाले वास्तव में लोकतांत्रिक भारत को नहीं देखते हैं।

अंबेडकर की मृत्यु का कारण क्या था

बाबासाहेब अम्बेडकर का निधन 6 दिसंबर, 1956 को हुआ था। उनकी मृत्यु का कारण प्राकृतिक कारणों, विशेष रूप से गुर्दे की विफलता के रूप में बताया गया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में अपने व्यापक काम के लिए जो लंबा समय बिताया, उसका उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ा, जिससे 65 वर्ष की आयु में उनका समय से पहले निधन हो गया।

भारत के लिए अम्बेडकर का योगदान है

बाबासाहेब अम्बेडकर, एक प्रमुख भारतीय न्यायविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार थे। उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में भारत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए व्यापक रूप से पहचाना जाता है। भारत के लिए अम्बेडकर के कुछ उल्लेखनीय योगदान हैं:

सामाजिक सुधार: अम्बेडकर ने अथक रूप से सामाजिक सुधारों की दिशा में काम किया और जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने निम्न जाति समुदायों के अधिकारों की वकालत की, जिन्हें दलित भी कहा जाता है, और उनके सामाजिक उत्थान की दिशा में काम किया। उन्होंने दलित आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जाति-आधारित भेदभाव, अस्पृश्यता को खत्म करने और भारतीय समाज में सामाजिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया।

भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करना: अम्बेडकर भारत की संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, जो भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार थी। उन्होंने संविधान को आकार देने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि यह लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय और मौलिक अधिकारों के सिद्धांतों को स्थापित करता है। भारतीय संविधान के प्रारूपण में उनके योगदान को अत्यधिक माना जाता है, और उन्हें अक्सर “भारतीय संविधान के पिता” के रूप में जाना जाता है।

मानवाधिकारों के पैरोकार: अंबेडकर मानवाधिकारों के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने बाल विवाह के उन्मूलन की दिशा में काम किया, लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया और महिलाओं और वंचित समुदायों के अधिकारों की वकालत की। उन्होंने श्रम अधिकारों के लिए भी काम किया और समाज के वंचित वर्गों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया।

शिक्षा और अधिकारिता: अम्बेडकर ने सशक्तिकरण के साधन के रूप में शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। वे स्वयं उच्च शिक्षित थे और उनका मानना था कि वंचित समुदायों के उत्थान के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है। उन्होंने दलितों और अन्य वंचित समुदायों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम किया और मुंबई में पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी और सिद्धार्थ कॉलेज जैसे शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की।

राजनीतिक नेतृत्व: अम्बेडकर एक प्रमुख राजनीतिक नेता थे और उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वंचित समुदायों के अधिकारों की वकालत की और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने राजनीतिक दल, अनुसूचित जाति संघ की भी स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में दलितों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना था।

भारत में अम्बेडकर का योगदान बहुत अधिक है और भारतीय समाज और राजनीति पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव बना हुआ है।

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  • Jivan Parichay (जीवन परिचय) /

Dr Bhimrao Ambedkar Biography : डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय

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  • Updated on  
  • अगस्त 10, 2024

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डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय समाज के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक, और संविधान निर्माता थे। उनकी जीवन यात्रा और संघर्षों ने उन्हें भारतीय सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक विशेष स्थान दिलाया। ऐसे सहृदय नेता का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में स्थित ‘महू’ में हुआ था जिसका नाम आज बदलकर डॉ.अंबेडकर नगर कर दिया गया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर जाति से दलित थे। उनकी जाति को अछूत जाति माना जाता था। इसलिए उनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में व्यतीत हुआ था। डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में अधिक जानने के लिए (Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi) यह ब्लॉग अंत तक पढ़े।

उससे पहले डॉ भीमराव अंबेडकर से संबंधित जानकारी आप नीचे दिए गए टेबल में देख सकते हैं :

14 अप्रैल 1891 
मध्य प्रदेश, भारत में
भिवा, भीम, भीमराव, बाबासाहेब अंबेडकर
बाबासाहेब अंबेडकर
भारतीय
बौद्ध धर्म
(बी॰ए॰)

(एम॰ए॰, पीएच॰डी॰, एलएल॰डी॰)

(एमएस०सी०,डीएस॰सी॰)
(बैरिस्टर-एट-लॉ)
विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ,
शिक्षाविद्दार्शनिक, लेखक पत्रकार, समाजशास्त्री, मानवविज्ञानी, शिक्षाविद्, धर्मशास्त्री, इतिहासविद् प्रोफेसर, सम्पादक
वकील, प्रोफेसर व राजनीतिज्ञ
         
(विवाह 1906- निधन 1935) 
        
( विवाह 1948- निधन 2003) 
यशवंत अंबेडकर

                  
शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन
स्वतंत्र लेबर पार्टी
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी
                 
• बहिष्कृत हितकारिणी सभा
• समता सैनिक दल

• डिप्रेस्ड क्लासेस एज्युकेशन सोसायटी
• द बाँबे शेड्युल्ड कास्ट्स इम्प्रुव्हमेंट ट्रस्ट
• पिपल्स एज्युकेशन सोसायटी

भारतीय बौद्ध महासभा
• बोधिसत्व (1956) 
• भारत रत्न (1990) 
• पहले कोलंबियन अहेड ऑफ देअर टाईम (2004) 
• द ग्रेटेस्ट इंडियन (2012)
6 दिसम्बर 1956 (उम्र 65)       
डॉ॰ आम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक, नयी दिल्ली, भारत
चैत्य भूमि,मुंबई, महाराष्ट्र

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बाबासाहेब अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन, बाबासाहेब अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा, बाबासाहेब अंबेडकर की उच्च शिक्षा, बाबासाहेब अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी, प्रयत्नशील सामाजिक सुधारक डॉ भीमराव अंबेडकर, भीम राव अंबेडकर जीवनी: छुआछूत विरोधी संघर्ष, डॉ भीमराव अंबेडकर बनाम गांधी जी, डॉ भीमराव अंबेडकर राजनीतिक सफर, पुरस्कार एवं सम्मान, डॉ भीमराव अंबेडकर का निधन, डॉ भीमराव अंबेडकर की रचनावली, डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें, बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में रोचक तथ्य, बाबासाहेब अंबेडकर के कुछ महान विचार.

डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi) और उनके पिता मुंबई शहर के एक ऐसे मकान में रहने गए जहां एक ही कमरे में पहले से बेहद गरीब लोग रहते थे इसलिए दोनों के एक साथ सोने की व्यवस्था नहीं थी तो बाबासाहेब अंबेडकर और उनके पिता बारी-बारी से सोया करते थे। जब उनके पिता सोते थे तो डॉ भीमराव अंबेडकर दीपक की हल्की सी रोशनी में पढ़ते थे। भीमराव अंबेडकर संस्कृत पढ़ने के इच्छुक थे, परंतु छुआछूत की प्रथा के अनुसार और निम्न जाति के होने के कारण वे संस्कृत नहीं पढ़ सकते थे। परंतु ऐसी विडंबना थी कि विदेशी लोग संस्कृत पढ़ सकते थे। भीम राव अंबेडकर जीवनी में अपमानजनक स्थितियों का सामना करते हुए डॉ भीमराव अंबेडकर ने धैर्य और वीरता से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की और इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई।

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सन् 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद ‘ एली फिंस्टम कॉलेज ‘ में सन् 1912 में ग्रेजुएट हुए। सन 1913 में उन्होंने 15 प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबंध लिखा था। डॉ.भीमराव अंबेडकर ने वर्ष 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए की डिग्री प्राप्त की। सन् 1917 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। बता दें कि उन्होंने ‘नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी’ विषय पर शोध किया। वर्ष 1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में उन्होंने दाखिला लिया लेकिन साधन के अभाव के कारण वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाए।

कुछ समय बाद लंदन जाकर ‘ लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स ‘ से अधूरी पढ़ाई उन्होंने पूरी की। इसके साथ-साथ एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। वह अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। बता दें कि वह (भीम राव अंबेडकर जीवनी) कुल 64 विषयों में मास्टर थे, 9 भाषाओं के जानकार थे, इसके साथ ही उन्होंने विश्व के सभी धर्मों के बारे में पढ़ाई की थी।

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कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्र के रूप में अंबेडकर वर्ष 1915 -1917 में 22 वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी एम.ए. परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए प्राचीन भारतीय वाणिज्य विषय पर रिसर्च कार्य प्रस्तुत किया।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ अंबेडकर सन् 1916 – 17 से सन् 1922 तक एक बैरिस्टर के रूप में लंदन चले गये और वहाँ उन्होंने  ग्रेज़ इन  में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए प्रवेश लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। 

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भारत रत्न Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के पास 32 डिग्रियों के साथ 9 भाषाओं के सबसे बेहतर जानकार थे। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मात्र 2 साल 3 महीने में 8 साल की पढ़ाई पूरी की थी। वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ‘डॉक्टर ऑल साइंस’ नामक एक दुर्लभ डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने वाले भारत के ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के पहले और एकमात्र व्यक्ति हैं। प्रथम विश्व युद्ध की वजह से उनको भारत वापस लौटना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में नौकरी प्रारंभ की। बाद में उनको सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। कोल्हापुर के शाहू महाराज की मदद से एक बार फिर वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन गए।

डॉ बी. आर. अंबेडकर ने इतनी असमानताओं का सामना करने के बाद सामाजिक सुधार का मोर्चा उठाया। अंबेडकर जी ने ऑल इंडिया क्लासेज एसोसिएशन का संगठन किया। सामाजिक सुधार को लेकर वह बहुत प्रयत्नशील थे। ब्राह्मणों द्वारा छुआछूत की प्रथा को मानना, मंदिरों में प्रवेश ना करने देना,  दलितों से भेदभाव, शिक्षकों द्वारा भेदभाव आदि सामाजिक सुधार करने  का प्रयत्न किया। परंतु विदेशी शासन काल होने कारण यह ज्यादा सफल नहीं हो पाया। विदेशी शासकों को यह डर था कि यदि यह लोग एक हो जाएंगे तो परंपरावादी और रूढ़िवादी वर्ग उनका विरोधी हो जाएगा।

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डॉ भीमराव अंबेडकर छुआछूत की पीड़ा को जन्म से ही झेलते आए थे। जाति प्रथा और ऊंच-नीच का भेदभाव वह बचपन से ही देखते आए थे और इसके स्वरूप उन्होंने काफी अपमान का सामना किया। डॉ भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष किया और इसके जरिए वे निम्न जाति वालों को छुआछूत की प्रथा से मुक्ति दिलाना चाहते थे और समाज में बराबर का दर्जा दिलाना चाहते थे। 1920 के दशक में मुंबई में डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने भाषण में यह साफ-साफ कहा था कि “जहां मेरे व्यक्तिगत हित और देश हित में टकराव होगा वहां पर मैं देश के हित को प्राथमिकता दूंगा परंतु जहां दलित जातियों के हित और देश के हित में टकराव होगा वहां  मैं दलित जातियों को प्राथमिकता दूंगा।” वे दलित वर्ग के लिए मसीहा के रूप में सामने आए जिन्होंने अपने अंतिम क्षण तक दलितों को सम्मान दिलाने के लिए संघर्ष किया। सन् 1927 में अछूतों को लेने के लिए एक सत्याग्रह का नेतृत्व किया। और सन् 1937 में मुंबई में उच्च न्यायालय में मुकदमा जीत लिया।

सन् 1932 में पुणे समझौते में गांधी और अंबेडकर आपसी विचार विमर्श के बाद एक मार्गदर्शन पर सहमत हुए। वर्ष 1945 में अंबेडकर ने हरिजनों का पक्ष लेने के लिए महात्मा गांधी के दावे को चुनौती दी और व्हॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स ( सन् 1945) नामक लेख लिखा l सन् 1947 अंबेडकर भारत सरकार के कानून मंत्री बने डॉ. भीमराव अंबेडकर गांधीजी और कांग्रेस के उग्र आलोचक है । 1932 में ग्राम पंचायत बिल पर मुंबई की विधानसभा में बोलते हुए अंबेडकर जी ने कहा : बहुतों ने ग्राम पंचायतों की प्राचीन व्यवस्था की बहुत प्रशंसा की है । कुछ लोगों ने उन्हें ग्रामीण प्रजातंत्र कहां है । इन देहाती प्रजातंत्रों का गुण जो भी हो, मुझे यह कहने में जरा भी दुविधा नहीं है कि वे भारत में सार्वजनिक जीवन के लिए अभिशाप हैं । यदि भारत राष्ट्रवाद उत्पन्न करने में सफल नहीं हुआ यदि भारत राष्ट्रीय भावना के निर्माण में सफल नहीं हुआ, तो इसका मुख्य कारण मेरी समझ में ग्राम व्यवस्था का अस्तित्व है।

यह भी पढ़ें – आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू

वर्ष 1936 में बाबा साहेब जी ने स्वतंत्र मजदूर पार्टी का गठन किया था। सन् 1937 के केन्द्रीय विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 15 सीट की जीत मिली। अम्बेडकर जी अपनी इस पार्टी को आल इंडिया शीडयूल कास्ट पार्टी में बदल दिया, इस पार्टी के साथ वे 1946 में संविधान सभा के चुनाव में खड़े हुए, लेकिन उनकी इस पार्टी का चुनाव में बहुत ही ख़राब प्रदर्शन रहा। कांग्रेस व महात्मा गाँधी ने अछूते लोगों को हरिजन नाम दिया, जिससे सब लोग उन्हें हरिजन ही बोलने लगे, लेकिन अम्बेडकर जी को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने उस बात का विरोध किया था। उनका कहना था अछूते लोग भी हमारे समाज का एक हिस्सा है, वे भी बाकि लोगों की तरह आम व्यक्ति ही हैं। अम्बेडकर जी को रक्षा सलाहकार कमिटी में रखा गया व वाइसराय एग्जीक्यूटिव परिषद  उन्हें लेबर का मंत्री बनाया गया था। बाबा साहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री भी बने थे।

बाबा साहेब अंबेडकर को अपने महान कार्यों के चलते कई पुरस्कार भी मिले थे, जो इस प्रकार हैं:

  • डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित किया गया है।
  • अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
  • 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
  • कई सार्वजनिक संस्थान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे कि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश का डॉ. अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी आर अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय- मुजफ्फरपुर।
  • डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है, जो पहले सोनेगांव हवाई अड्डे के नाम से जाना जाता था।
  • अंबेडकर का एक बड़ा आधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।

डॉ भीमराव अंबेडकर सन 1948 से मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित थे और वह 1954 तक बहुत बीमार रहे थे। 3 दिसंबर 1956 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और धम्म उनके को पूरा किया और 6 दिसंबर 1956 को अपने घर दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली थी। बाबा साहेब का अंतिम संस्कार चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली में किया गया। इस दिन से अंबेडकर जयंती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।

भीम राव अंबेडकर जीवनी में महत्वपूर्ण दो रचनावलियों के नाम नीचे दिए गए हैं-

  • डॉ बाबासाहेब अंबेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज [महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित]
  • साहेब डॉ अंबेडकर संपूर्ण वाड़्मय [भारत सरकार द्वारा प्रकाशित]

भीम राव अंबेडकर जीवनी में बाबासाहेब समाज सुधारक होने के साथ-साथ लेखक भी थे। लेखन में रूचि होने के कारण उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। अंबेडकर जी द्वारा लिखित पुस्तकों की लिस्ट नीचे दी गई है-

  • भारत का राष्ट्रीय अंश
  • भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण
  • भारत में लघु कृषि और उनके उपचार
  • ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण
  • रुपए की समस्या: उद्भव और समाधान
  • ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय
  • बहिष्कृत भारत
  • जाति विच्छेद
  • संघ बनाम स्वतंत्रता
  • पाकिस्तान पर विचार
  • श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति
  • रानाडे,गांधी और जिन्ना
  • शूद्र कौन और कैसे
  • भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म
  • महाराष्ट्र भाषाई प्रांत

Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के बारे में रोचक तथ्य नीचे दिए गए हैं-

  • भारत के झंडे पर अशोक चक्र लगवाने वाले डाॅ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ही थे।
  • डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर लगभग 9 भाषाओं को जानते थे।
  • भीमराव अंबेडकर ने 21 साल की उम्र तक लगभग सभी धर्मों की पढ़ाई कर ली थी।
  • भीमराव अंबेडकर ऐसे पहले इन्सान थे जिन्होंने अर्थशास्त्र में PhD विदेश जाकर की थी।
  • भीमराव अंबेडकर  के पास लगभग 32 डिग्रियां थी।
  • बाबासाहेब आजाद भारत के पहले कानून मंत्री थे।
  • बाबासाहेब ने दो बार लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन दोनों बार हार गए थे।
  • भीमराव अम्बेडकर हिन्दू महार जाति के थे, जिन्हें समाज अछूत मनाता था।
  • भीमराव अम्बेडकर कश्मीर में लगी धारा नंबर 370 के खिलाफ थे।

Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi के कुछ महान विचार नीचे दिए गए हैं-

1.जो कौम अपना इतिहास तक नहीं जानती है, वे कौम कभी अपना इतिहास भी नहीं बना सकती है।

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2. जीवन लंबा होने के बजाए महान होना चाहिए।

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    3.बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।

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 4. संविधान यह एक मात्र वकीलों का दस्तावेज नहीं। यह जीवन का एक माध्यम है।

5.जो धर्म जन्म से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को नीच बताये वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है।

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6.जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेईमानी है।

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7.मनुष्य नश्वर है, उसी तरह विचार भी नश्वर है, एक विचार को प्रचार प्रसार की जरूरत होती है, जैसे कि एक पौधे को पानी की नहीं तो दोनों मुरझा कर मर जाते हैं ।

8.यदि मुझे लगा संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो इसे जलानेवाला सबसे पहले मैं रहूँगा।

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9. कानून और व्यवस्था राजनीतिक शरीर की दवा है और जब राजनीतिक शरीर बीमार पड़े तो दवा जरूर दी जानी चाहिए।

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10.हिम्मत इतनी बड़ी रखो के किस्मत छोटी लगने लगे ।

11.किसी का भी स्वाद बदला जा सकता है लेकिन ज़हर को अमृत में परिवर्तित नही किया जा सकता । 

12.यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।

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13.अपने भाग्य के बजाए अपनी मजबूती पर विश्वास करो।

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14.मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।

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15.जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है।

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बाबा साहेब की मृत्यु मधुमेय (डायबिटीज) से हुई थी।

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ बाबा साहेब अंबेडकर हैं।

बाबा साहेब के गुरु का नाम कृष्ण केशव अंबेडकर था।

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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33 comments

Very good bhai bahut achha likha thank you Jay bheem💙💙jay samvidhan namo buddhay

Nice and thanks 👍👍

I am very impressed 💯💯💯

इतने कम शब्दों में बहुत सुंदर व्याख्या की बहुत-बहुत धन्

Very nice 👌👍👏, Jai Bheem 🙏

Dr. Ambedkar ke Jaankari ko YouTube par daal sakta hun

कमलेश जी, आप अंबेडकर जी की जानकारी को यूट्यूब पर डाल सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको हमने क्रेडिट्स देने की आवश्यकता है।

Verrinice no dout

It’s very useful Thank you

Aapne Baba saheb ke bare me bahut hi achhe se likha hai Baba saheb jaisa insan puri duniya me nahi hai Love u BABA saheb 👑💙 tum ko bhi thanks u

धर्मेंद्र जी, आपका आभार। ऐसे ही हमारी वेबसाइट पर बने रहिए।

बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ,अति उत्तम ।

Bahut badhiya tarike se likha hua hai. Thanks a lot

अंजनी जी, आपका धन्यवाद, ऐसी ही अन्य ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर बनें रहे।

सुनील जी आपका शुक्रिया, ऐसे ही हमारी वेबसाइट पर रहें।

Bahut bahut dhanyawad

आपका आभार, ऐसे ही हमारी वेबसाइट पर बने रहिए।

मैं अपने दिल से आभार प्रकट करता हूँ

आपका धन्यवाद, ऐसे ही हमारी वेबसाइट पर बने रहिए।

बहुत ही अच्छा लेख

आपका आभार, ऐसे ही आप हमारी वेबसाइट पर बने रहें।

Mujhe Babasaheb ke bare mein padh kar bht acha lga kuch knowledge mili

इस लेख को सराहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप ऐसे ही आकर्षक ब्लॉग नीचे दिए गए लिंक्स के द्वारा पढ़ सकते हैं: https://leverageedu.com/blog/hi/

Mujhe padna acha lagta h or me sabhi books padna cahata hu baba sahab ke uper se likhi hui

आपका धन्यवाद, ऐसे ही हमारी https://leverageedu.com/ पर बने रहिये।

आपका बहुत बहुत आभार

भीम राव अंबेडकर

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डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवनी | Dr. BR Ambedkar Biography in Hindi

Dr. BR Ambedkar Biography in Hindi

Dr. BR Ambedkar Biography in Hindi:- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को कौन नहीं जानता है? डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है I उन्होंने भारतीय संविधान को बनाया था 1947 में जब देश आजाद हुआ तो उसमें भारत में संविधान बनाने की जिम्मेदारी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को दी गई थी I ऐसे में इस महान पुरुष के जीवन के के सभी पहलुओं के बारे में जानना हमारे लिए आवश्यक है – कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय , शिक्षा, परिवार, राजनीतिक सफर, उपलब्धि, महत्वपूर्ण कार्य, भीमराव अंबेडकर को मिले विदेशी उपहार, उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक, उनके जीवन पर बनी फिल्म इन सब के बारे में अगर आप कुछ भी नहीं जानते हैं तो हमारे साथ आर्टिकल पर बनी रहे चलिए शुरू करते हैं-

आर्टिकल का प्रकारजीवनी
आर्टिकल का नामडॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जीवनी
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कौन थेभारत के एक जाने-माने राजनेता समाज सुधारक और एक कानून अधिवक्ता थे
भारत के प्रथम कानून मंत्री कौन थेभीमराव अंबेडकर
संविधान का निर्माण किसने किया थाडॉक्टर भीमराव अंबेडकर के गने

Dr. BR Ambedkar Biography in Hindi

पूरा नामडॉक्टर भीमराव अंबेडकर
जन्मस्थानमहू, मध्य प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब मध्य प्रदेश, भारत में)
जन्मतिथि14 अप्रैल 1891
निकनेमबाबासाहेब, भीम
बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान की डिग्री कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में मास्टर डिग्री डी.एससी लंदन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएच.डी. 
स्कूलस्कूल एलफिंस्टन हाई स्कूल, बॉम्बे
विश्वविद्यालयएलफिंस्टन कॉलेज, मुंबई कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क शहर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स बॉन विश्वविद्यालय
राशिमेष
नागरिकताभारतीय
धर्मशुरुआती दिनों में हिंदू और आखिरी दिनों में बौद्ध धर्म
पेशान्यायविद, अर्थशास्त्री, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ
राजनितिक पार्टीस्वतंत्र लेबर पार्टी
वैवाहिक स्थितिशादीशुदा
पत्नी का नामपहली पत्नी: रमाबाई अम्बेडकर (1906-1935) (उनकी मृत्यु तक) दूसरी पत्नी: सविता अम्बेडकर (1948-1956)
गृह नगरमहू
मृत्यु कब हुआ6 दिसंबर 1956
मृत्यु का स्थानदिल्ली

भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय | Dr. Ambedkar ka Jivan Parichy

डॉ भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिशो द्वारा केन्द्रीय प्रान्त (अब मध्यप्रदेश में) के एक छोटे से गांव मऊ में गांव में हुआ था . डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अपने माता पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में थे। अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे I उनके पिता ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना में छावनी में काम किया करते थे I

भीमराव अंबेडकर की शिक्षा | Dr. BR Ambedkar Education

डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1907 में मैट्रिकुलेशन पास करने के बाद एली फिंस्टम कॉलेज में 1912 में ग्रेजुएट हुए। 1913 और 15 । डॉ भीमराव अंबेडकर ने 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की शिक्षा ली। 1917 में भीमराव अंबेडकर ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त कर ली। इसके बाद उन्होंने नेशनल डेवलपमेंट फॉर इंडिया एंड एनालिटिकल स्टडी विषय पर उन्होंने शोध किया। 1917 में ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में ने दाखिला लिया लेकिन पैसे के अभाव के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दिए इसके बाद कुछ दिनों के बाद उन्होंने दोबारा से अपनी पढ़ाई पूरी की और लंदन स्कूल इकोनॉमिक्स से उन्होंने इकोनॉमिक्स में डिग्री प्राप्त की .

कुछ दिनों के बाद उन्होंने साथ-साथ एमएससी और बार एट-लॉ की डिग्री भी प्राप्त की। अपने युग के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे राजनेता और एवं विचारक थे। भीम राव आंबेडकर जीवनी कुल 64 विषयों में मास्टर थे, 9 भाषाओं के जानकार से भीमराव अंबेडकर एक ज्ञानी पुरुष थे I

भीमराव अंबेडकर का परिवार Dr. BR Ambedkar Family

पिता का नामरामजी मालोजी सकपाल
माता का नामभीमाबाई सकपाल
बहन का नाममंजुला, तुलसी, गंगाबाई, रमाबाई
भाई का नामबलराम, आनंदराव
पत्नी का नामपहली पत्नी: रमाबाई अम्बेडकर दूसरी पत्नी: सविता अम्बेडकर
बेटे का नामराजरत्न अम्बेडकर , यशवंत अम्बेडकर
बेटी का नामइंदु

भीमराव अंबेडकर का राजनितिक सफर

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के राजनीतिक सफर के बारे में अगर हम चर्चा करें तो 1935 में उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना किया था 1937 के आम चुनाव में उनकी पार्टी को 15 सीटें प्राप्त हुई थी I  डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को अनुसूचित जनजाति का नेता भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अनुसूचित जन जाति के वर्ग के लोगों के लिए राजनीतिक रूप से कई प्रकार के काम की है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने गांधी जी के द्वारा कहे गए शब्द हरिजन का घोर विरोध किया उन्होंने कहा कि हरिजन समाज में प्रत्येक जाति वर्ग के समान है इसलिए उन्हें हरिजन कहकर उनका अपमान ना करें I

1947 में जब देश आजाद हुआ तो संविधान का मसौदा डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा ही तैयार किया गया उसके बाद ही भारतीय संविधान का निर्माण किया गया यही कारण है कि डॉ भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का निर्माता और जनक कहा जाता है इसके अलावा 1952 में जब पहली बार सरकार बनी तो सरकार में उन्हें देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया हालांकि जवाहरलाल नेहरू के साथ उनके मतभेद काफी तेजी के साथ ऊपर क्या है जिसके कारण उन्होंने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्र रूप में राजनीतिक मेवा काम करने लगे I

भीमराव अंबेडकर की उपलब्धियां | Achievements of Bhimrao Ambedkar

भीमराव अंबेडकर के उपलब्धियों के बारे में बात करें तो उन्होंने निम्नलिखित प्रकार की उपलब्धियां हासिल की हैं जिनका विवरण हम आपको नीचे बिंदु अनुसार देंगे आइए जानते हैं-

  • 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक के गठन में उनकी भूमिका अतुल्य रही थी
  • बड़ौदा के रक्षा सचिव के रूप डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने काम किया
  • 1912 में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी कर लिए और बैरिस्टर रूप में सेना में भर्ती हो गए
  • 1927 में गांधी जी के द्वारा संचालित सत्याग्रह में उन्होंने भाग लिया
  • 1935 में, उन्हें ‘गवर्नमेंट लॉ कॉलेज’ के प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया,
  •   1936 में इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना की, जिसने 1937 के बॉम्बे चुनावों में 15 सीटें जीतीं
  • 1942 से 1946 तक वाइसराय की कार्यकारी परिषद के श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया और रक्षा सलाहकार समिति बोर्ड के मेंबर भी थे

भीमराव अंबेडकर के महत्वपूर्ण कार्य

  • भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए लगातार संघर्ष किया .
  • इसके बाद उन्होंने जातिगत भेदभाव का उन्मूलन किया .
  • उन्होंने 1920 में कालकापुर के महाराजा शाहजी द्वितीय की मदद से “मूकनायक” समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसके माध्यम से समाज में व्याप्त कुरीतियां और विरोधाभासी नियमों का उन्होंने पुरजोर तरीके से विरोध किया .
  • उन्होंने जातिगत भेदभाव का समर्थन करने वाले ब्राह्मणों पर भी आरोप लगाया और उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया से लड़ाई भीलड़ी जहां उनको सफलता प्राप्त हुई I

भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखी गई पुस्तकें | Dr. Bhimrao Ambedkar Books

  • भारत का राष्ट्रीय अंश
  • भारत में जातियां और उनका मशीनीकरण
  • भारत में लघु कृषि और उनके उपचार
  • ब्रिटिश भारत में साम्राज्यवादी वित्त का विकेंद्रीकरण
  • रुपए की समस्या: उद्भव और समाधान
  • ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का अभ्युदय
  • बहिष्कृत भारत
  • जाति विच्छेद
  • संघ बनाम स्वतंत्रता
  • पाकिस्तान पर विचार
  • श्री गांधी एवं अछूतों की विमुक्ति
  • रानाडे गांधी और जिन्ना
  • शूद्र कौन और कैसे
  • भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म
  • महाराष्ट्र भाषाई प्रांत

भीमराव अंबेडकर के जीवन पर बनी फिल्म 

भीमराव अंबेडकर के जीवन पर निम्नलिखित प्रकार की फिल्में बनाई गई जिसका विवरण हम आपको नीचे बिंदु अनुसार देंगे आइए जानते-

  • भीम गर्जना (1990)
  • बालक आंबेडकर (1991)
  • डॉ. आंबेडकर (1992
  • युगपुरुष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (1993
  •  डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (2000)
  •  डॉ. बी. आर. आंबेडकर (2005)
  • पेरियार (2007).
  • डेबू (2010)
  • रमाबाई भीमराव आंबेडकर
  • बोले इंडिया जय भीम (2016

FAQ’s Dr. BR Ambedkar Biography in Hindi

Q: रमाबाई अम्बेडकर भीमराव अंबेडकर का जन्म कहां और कब हुआ था .

Ans: डॉ. बीआर अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में हुआ था।

Q: भीमराव अंबेडकर की पत्नी का नाम क्या था?

Ans: भीमराव अंबेडकर की पहली पत्नी का नाम रमाबाई अम्बेडकर एवं दूसरी पत्नी का नाम सविता अम्बेडकर था

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डा. भीमराव अंबेडकर की जीवनी | About Dr B. R. Ambedkar in Hindi

Dr. B. R. Ambedakar / भारत रत्न डा. भीम राव अंबेडकर 20वीं शताब्दी के एक महापुरुष, ओजस्वी लेखक, तथा यशस्वी वक्ता एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री थे। डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माणकर्ता हैं। उन्हे भारतीय संविधान (Indian Constitution) का जनक भी माना जाता है। उन्होंने अपना सारा जीवन भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया। वे एक बहुजन राजनीतिक नेता और एक बौद्ध पुनरुत्थानवादी भी थे। 

Dr B.R Ambedkar Biography In Hindi, डा. भीम राव अंबेडकर की जीवनी

भीमराव अंबेडकर का परिचय – Dr B. R. Ambedkar Biography in Hindi

बाबासाहेब डॉ. भीमराव आम्बेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar)
बाबासाहेब
14 अप्रैल, 1891
मऊ, मध्य प्रदेश
6 दिसंबर, 1956, दिल्ली
रामजी मालोजी सकपाल
भीमाबाई मुरबादकर
राजनीतिक
भारतीय
एम.ए. (अर्थशास्त्र), पी एच. डी., एम. एस. सी., बार-एट-लॉ
भारतीय सविधान के जनक

बाबासाहब आम्बेडकर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। आम्बेडकर को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है जो भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है। अपनी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों तथा देश की अमूल्य सेवा के फलस्वरूप डॉ. अम्बेडकर को आधुनिक युग का मनु कहकर सम्मानित किया गया।

डा. भीमराव अंबेडकर की प्रारंभिक जीवन – Early Life of B. R. Ambedkar

डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिशो द्वारा केन्द्रीय प्रान्त (अब मध्यप्रदेश में) के एक छोटे से गांव मऊ में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे।

अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता, भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे और यहां काम करते हुये वो सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा की डिग्री प्राप्त की थी। उन्होने अपने बच्चों को स्कूल में पढने और कड़ी मेहनत करने के लिये हमेशा प्रोत्साहित किया।

जिस समय भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ था, उस समय छुआ-छूत का प्रभाव सारे देश में फैला हुआ था, और उनका जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे। उनके पिता सेना मे अपनी हैसियत का उपयोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से शिक्षा दिलाने मे किया, क्योंकि अपनी जाति के कारण उन्हें इसके लिये सामाजिक प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा था।

स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद आंबेडकर और अन्य अस्पृश्य बच्चों को विद्यालय मे अलग बिठाया जाता था और अध्यापकों द्वारा न तो ध्यान दिया जाता था, न ही कोई सहायता दी जाती थी। उनको कक्षा के अन्दर बैठने की अनुमति नहीं थी, साथ ही प्यास लगने प‍र कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों पर पानी डालता था, क्योंकि उनको न तो पानी, न ही पानी के पात्र को स्पर्श करने की अनुमति थी। लोगों के मुताबिक ऐसा करने से पात्र और पानी दोनों अपवित्र हो जाते थे। आमतौर पर यह काम स्कूल के चपरासी द्वारा किया जाता था जिसकी अनुपस्थिति में बालक आंबेडकर को बिना पानी के ही रहना पड़ता था।

1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और सहपरिवार सातारा चले गये। इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई। बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए।

अपने भाइयों और बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये। अपने एक दोस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम “अंबावडे” पर आधारित था।

रामजी सकपाल ने 1898 मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ मुंबई चले आये। यहाँ अम्बेडकर एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। पढा़ई में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, अम्बेडकर लगातार अपने विरुद्ध हो रहे इस अलगाव और, भेदभाव से व्यथित रहे। 1907 में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद अम्बेडकर ने बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये।

उनकी इस सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी और बाद में एक सार्वजनिक समारोह उनका सम्मान किया गया। इसी समारोह में उनके एक शिक्षक कृष्णजी अर्जुन केलूसकर ने उन्हें भगवान बुद्ध की जीवनी भेंट की, श्री केलूसकर, एक मराठा जाति के विद्वान थे। अम्बेडकर की सगाई एक साल पहले हिंदू रीति के अनुसार दापोली की, एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी।

1908 में, उन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सयाजीराव गायकवाड से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया। 1912 में उन्होंने राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने अपने पहले बेटे यशवंत को इसी वर्ष जन्म दिया। अम्बेडकर अपने परिवार के साथ बड़ौदा चले आये पर जल्द ही उन्हें अपने पिता की बीमारी के चलते मुंबई वापस लौटना पडा़, जिनकी मृत्यु 2 फरवरी 1913 को हो गयी।

1913 और 15 के बीच जब आम्बेडकर कोलंबिया विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे थे, तब एम.ए. की परीक्षा के एक प्रश्न पत्र के बदले उन्होंने प्राचीन भारतीय व्यापार पर एक शोध प्रबन्ध लिखा था। इस में उन्होंने अन्य देशों से भारत के व्यापारिक सम्बन्धों पर विचार किया है। इन व्यापारिक सम्बन्धों की विवेचना के दौरान भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा भी बन गई है। यह शोध प्रबन्ध रचनावली के 12वें खण्ड में प्रकाशित है।

राजनीतिक जीवन और संविधान की रचना – B. R. Ambedkar Career

8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया।

भारत के संविधान के निर्माण में अंबेडकर की प्रमुख भूमिका थी। वह संविधान विशेषज्ञ थे। अनेक देशों के संविधानों का अध्ययन उन्होंने किया था। भारतीय संविधान का मुख्य निर्माता उन्हीं को माना जाता है। उन्होंने जो कुछ लिखा, उसका गहरा सम्बन्ध आज के भारत और इस देश के इतिहास से है। शूद्रों के उद्धार के लिए उन्होंने जीवन भर काम किया, पर उनका लेखन केवल शूद्रों के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है। उन्होंने दर्शन, इतिहास, राजनीति, आर्थिक विकास आदि अनेक समस्याओं पर विचार किया जिनका सम्बन्ध सारे देश की जनता से है।

अंग्रेज़ी में उनकी रचनावली ‘डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज’ नाम से महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है। हिन्दी में उनकी रचनावली ‘बाबा साहब डॉक्टर आम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय’ के नाम से भारत सरकार द्वारा प्रकाशित की गई है।

डा. भीम राव अंबेडकर की मृत्यु – B. R. Ambedkar Death 

1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे। डा० अंबेडकर का देहांत 6 दिसंबर, 1956 को 65 वर्ष की उम्र में दिल्ली, भारत में हुआ। उनकी याद में प्रति वर्ष उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को ‘अंबेडकर जयंती’ (Ambedkar Jayanti) के रूप में सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। 1990 में, मरणोपरांत आंबेडकर को सम्मान देते हुए, भारत का सबसे बड़ा नागरिकी पुरस्कार, “भारत रत्न” जारी किया। एक महापुरुष, दलितों के शुभचिंतक तथा योग्य संविधान निर्माता के रूप में डॉ. अम्बेडकर को सदा आदर से स्मरण किया जायेगा।

और अधिक लेख :-

  • डॉ बी आर अम्बेडक के अनमोल विचार
  • आचार्य ओशो के अनमोल विचार
  • बाल गंगाधर तिलक के सुविचार
  • गोस्वामी तुलसीदास की जीवनी
  • गुरु नानक देव जी की जीवनी
  • सिकंदर महान का इतिहास, जीवनी

Please Note : – Dr B.R Ambedkar Biography & Life History In Hindi मे दी गयी Information अच्छी लगी हो तो कृपया हमारा  फ़ेसबुक (Facebook)   पेज लाइक करे या कोई टिप्पणी (Comments) हो तो नीचे करे। Dr B.R Ambedkar Short Biography & Life Story In Hindi व नयी पोस्ट डाइरेक्ट ईमेल मे पाने के लिए  Free Email Subscribe  करे, धन्यवाद।

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6 thoughts on “डा. भीमराव अंबेडकर की जीवनी | about dr b. r. ambedkar in hindi”.

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The greet indian man Dr br Ambedekar

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Comment:jay bheem

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Jai bheem….kaas baba saheb aaj bhi hote to acha hota lekin baba saheb nhi rahe to kya hua desh ke liye acha to kar gye…jai bheem jai bharat.

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भाई जो भी बहुत सी बाते आपने भीम राव जी के बारे मे नही बताया चलो छोडो राव जी ने अनतिम समय मे बैध धर्म क्यों अपना लिया कितने लोगो के साथ

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Jai bheem….kaas baba saheb aaj bhi hote to acha hota lekin baba saheb nhi rahe to kya hua desh ke liye acha to kar gye…jai bheem jai bharat.

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भारतीय राजनीतिक विचारक- बी.आर अंबेडकर

  • 08 Feb 2021
  • 18 min read
  • सामान्य अध्ययन-IV
  • सामान्य अध्ययन-II
  • भारतीय संविधान
  • सामाजिक सशक्तिकरण
  • डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जो कि बाबासाहेब अंबेडकर (Babasaheb Ambedkar) के नाम से लोकप्रिय थे भारतीय संविधान के मुख्य निर्माताओं में से एक थे।
  • डॉ. अंबेडकर एक प्रसिद्ध राजनीतिक नेता, दार्शनिक, लेखक, अर्थशास्त्री, न्यायविद्, बहु-भाषाविद्, धर्म दर्शन के विद्वान और एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।
  • उनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश में हिंदू महार जाति (Hindu Mahar Caste) में हुआ था। उन्हें समाज में हर तरफ से भारी भेदभाव का सामना करना पड़ा क्योंकि महार जाति को उच्च वर्ग द्वारा "अछूत" के रूप में देखा जाता था।

भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता

  • बाबासाहेब अंबेडकर की कानूनी विशेषज्ञता और विभिन्न देशों के संविधान का ज्ञान संविधान के निर्माण में बहुत मददगार साबित हुआ। वह संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष बने और उन्होंने भारतीय संविधान को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी, प्रभावी, सुलभ और संक्षेप उपचारों की व्यवस्था से है। डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।
  • उन्होंने एक मज़बूत केंद्र सरकार का समर्थन किया। उन्हें डर था कि स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर जातिवाद अधिक शक्तिशाली है तथा इस स्तर पर सरकार उच्च जाति के दबाव में निम्न जाति के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है। क्योंकि राष्ट्रीय सरकार इन दबावों से कम प्रभावित होती है, इसलिये वह निचली जाति का संरक्षण सुनिश्चित करेगी।
  • उन्हें यह भी डर था कि अल्पसंख्यक जो कि राष्ट्र का सबसे कमज़ोर समूह है, राजनीतिक अल्पसंख्यकों में परिवर्तित हो सकता है। इसलिये 'वन मैन वन वोट' का लोकतांत्रिक शासन पर्याप्त नहीं है और अल्पसंख्यक को सत्ता में हिस्सेदारी की गारंटी दी जानी चाहिये। वह 'मेजरिटेरियनिज़्म सिंड्रोम' (Majoritarianism Syndrome) के खिलाफ थे और उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिये संविधान में कई सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किये।
  • भारतीय संविधान विश्व का सबसे अधिक व्यापक और विशाल संविधान है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रशासनिक विवरणों को शामिल किया गया है। बाबासाहेब ने इसका बचाव करते हुए कहा कि हमने पारंपरिक समाज में एक लोकतांत्रिक राजनीतिक संरचना बनाई है। यदि सभी विवरण शामिल नहीं होंगे तो भविष्य में नेता तकनीकी रूप से संविधान का दुरुपयोग कर सकते हैं। इसलिये ऐसे सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं। इससे पता चलता है कि वह जानते थे कि संविधान लागू होने के बाद भारत को किन व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

संवैधानिक नैतिकता

  • बाबासाहेब अंबेडकर के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक नैतिकता का अर्थ विभिन्न लोगों के परस्पर विरोधी हितों और प्रशासनिक सहयोग के बीच प्रभावी समन्वय होगा।
  • उनके अनुसार, भारत को जहाँ समाज में जाति, धर्म, भाषा और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है, एक सामान्य नैतिक विस्तार की आवश्यकता है तथा संविधान उस विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • उन्हें लोकतंत्र पर पूरा भरोसा था। उनका मानना था कि जो तानाशाही त्वरित परिणाम दे सकती है वह सरकार का मान्य रूप नहीं हो सकती है। लोकतंत्र श्रेष्ठ है क्योंकि यह स्वतंत्रता में अभिवृद्धि करता है। उन्होंने लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप का समर्थन किया, जो कि अन्य देशों के मार्गदर्शकों के साथ संरेखित होता है।
  • उन्होंने 'लोकतंत्र को जीवन पद्धति’ के रूप में महत्त्व दिया, अर्थात् लोकतंत्र का महत्त्व केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी है।
  • इसके लिये लोकतंत्र को समाज की सामाजिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव लाना होगा, अन्यथा राजनीतिक लोकतंत्र यानी 'एक आदमी, एक वोट' की विचारधारा गायब हो जाएगी। केवल एक लोकतांत्रिक समाज में ही लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना से उत्पन्न हो सकती है, इसलिये जब तक भारतीय समाज में जाति की बाधाएँ मौजूद रहेंगी, वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती। इसलिये उन्होंने लोकतंत्र और सामाजिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिये लोकतंत्र के आधार के रूप में बंधुत्व और समानता की भावना पर ध्यान केंद्रित किया।
  • सामाजिक आयाम के साथ-साथ अंबेडकर ने आर्थिक आयाम पर भी ध्यान केंद्रित किया। वे उदारवाद और संसदीय लोकतंत्र से प्रभावित थे तथा उन्होंने इसे भी सीमित पाया। उनके अनुसार, संसदीय लोकतंत्र ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को नज़रअंदाज किया। यह केवल स्वतंत्रता पर केंद्रित होती है, जबकि लोकतंत्र में स्वतंत्रता और समानता दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित करना ज़रुरी है।
  • बाबा साहेब ने अपना जीवन समाज से छूआछूत व अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिये समर्पित कर दिया था। उनका मानना था कि अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती है, जिसका अर्थ है समग्रता में जाति व्यवस्था का उन्मूलन। उन्होंने हिंदू दार्शनिक परंपराओं का अध्ययन किया और उनका महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन किया।
  • उनके लिये अस्पृश्यता पूरे हिंदू समाज की गुलामी (Slavery) है जबकि अछूतों को हिंदू जातियों द्वारा गुलाम बनाया जाता है, हिंदू जाति स्वयं धार्मिक मूर्तियों की गुलामी में रहते हैं। इसलिये अछूतों की मुक्ति पूरे हिंदू समाज को मुक्ति की ओर ले जाती है।
  • उनका मानना था कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को हल किया जाना चाहिये।
  • यह विचार कि आर्थिक प्रगति सामाजिक न्याय को जन्म देगी, यह  जातिवाद के रूप में हिंदुओं की मानसिक गुलामी की अभिव्यक्ति है। इसलिये सामाजिक सुधार के लिये जातिवाद को समाप्त करना आवश्यक है।
  • सामाजिक सुधारों में परिवार सुधार और धार्मिक सुधार को शामिल किया गया। पारिवारिक सुधारों में बाल विवाह जैसी प्रथाओं को हटाना शामिल था। यह महिलाओं के सशक्तीकरण का पुरज़ोर समर्थन करता है। यह महिलाओं के लिये संपत्ति के अधिकारों का समर्थन करता है जिसे उन्होंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से हल किया था।
  • जाति व्यवस्था ने हिंदू समाज को स्थिर बना दिया है जो बाहरी लोगों के साथ एकीकरण में बाधा पैदा करता है। जाति व्यवस्था निम्न जातियों की समृद्धि के मार्ग में बाधक है जिसके कारण नैतिक पतन हुआ। इस प्रकार अस्पृश्यता को समाप्त करने की लड़ाई मानव अधिकारों और न्याय के लिये लड़ाई बन जाती है।
  • वर्ष 1923 में उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा (आउटकास्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन)’ की स्थापना की, जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित थी।
  • वर्ष 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में अंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। इसने भारत में दलित आंदोलन को शुरू करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • डॉ. अंबेडकर ने हर बार लंदन में तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों (1930-32) में भाग लिया और सशक्त रूप से 'अछूत' के हित में अपने विचार व्यक्त किये। 
  • वर्ष 1932 में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते (Poona Pact) पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप वंचित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल (सांप्रदायिक पंचाट) के विचार को त्याग दिया गया। हालाँकि दलित वर्गों के लिये आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्रीय विधानमंडल में कुल सीटों का 18% कर दी गई। 
  • वर्ष 1936 में बाबासाहेब अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी (Independent Labour Party) की स्थापना की।
  • वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बड़ी संख्या में नाज़ीवाद को हराने के लिये भारतीयों को सेना में शामिल होने का आह्वान किया।
  • 14 अक्तूबर, 1956 को उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। उसी वर्ष उन्होंने अपना अंतिम लेखन कार्य 'बुद्ध एंड हिज़ धर्म' (Buddha and His Dharma) पूरा किया।
  • वर्ष 1990 में डॉ. बी. आर. अंबेडकर को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • 14 अप्रैल, 1990 से 14 अप्रैल, 1991 की अवधि को बाबासाहेब की याद में 'सामाजिक न्याय के वर्ष' के रूप में मनाया गया।
  • फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विचारधारा और संदेश को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी जनता तक पहुँचाने के लिये कार्यक्रमों और गतिविधियों के कार्यान्वयन की देखरेख करना है।
  • डॉ. अंबेडकर की कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ: समाचार पत्र मूकनायक (1920), एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (1936), द अनटचेबल्स (1948), बुद्ध ऑर कार्ल मार्क्स (1956) इत्यादि।

अस्पृश्यता को दूर करने के लिये अपनाए गए तरीके

  • उनके मन को प्रभावित करने वाले मलिनता संबंधी मिथक को हटाकर अछूतों में आत्मसम्मान पैदा करना।
  • बाबासाहेब के लिये ज्ञान मुक्ति का एक मार्ग है। अछूतों के पतन का एक कारण यह था कि उन्हें शिक्षा के लाभों से वंचित रखा गया था। उन्होंने निचली जातियों की शिक्षा के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं करने के लिये अंग्रेज़ों की आलोचना की। उन्होंने छात्रों के बीच स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लिये धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पर जोर दिया।
  • वह चाहते थे कि अछूत लोग ग्रामीण समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन से मुक्त हों। वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्राप्त करें और एक नया व्यवसाय शुरू करें तथा औद्योगीकरण का लाभ उठाने के लिये शहरों की ओर रुख करें। उन्होंने गाँवों को 'स्थानीयता का एक सिंक, अज्ञानता, संकीर्णता और सांप्रदायिकता का एक खंड' के रूप में वर्णित किया।
  • वह चाहते थे कि अछूत खुद को राजनीतिक रूप से संगठित करें। राजनीतिक शक्ति के साथ अछूत अपनी रक्षा, सुरक्षा और मुक्ति संबंधी नीतियों को पेश करने में सक्षम होंगे। 
  • जब उन्होंने महसूस किया कि हिंदू धर्म अपने तौर-तरीकों को सुधारने में सक्षम नहीं है, तो उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और अपने अनुयायियों को भी बौद्ध धर्म अपनाने को कहा। उनके लिये बौद्ध धर्म मानवतावाद पर आधारित था और समानता एवं बंधुत्व की भावना में विश्वास करता था।
  • "मैं अपने जन्म के धर्म को अस्वीकार करते हुए पुनर्जन्म लेता हूँ। मैं उस धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के विकास के लिए रुकावट पैदा करता है और जो मुझे एक नीच के रूप में मानता है।”
  • इसलिये सामाजिक स्तर पर शिक्षा, भौतिक स्तर पर आजीविका के नए साधन, राजनीतिक स्तर पर राजनीतिक संगठन और आध्यात्मिक स्तर पर आत्म-विश्वास और रुपांतरण ने अस्पृश्यता को समाप्त करने का एक समग्र कार्यक्रम तैयार किया।

वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता

  • भारत में जाति आधारित असमानता अभी भी कायम है, जबकि दलितों ने आरक्षण के माध्यम से एक राजनीतिक पहचान हासिल कर ली है और अपने स्वयं के राजनीतिक दलों का गठन किया है, किंतु सामाजिक आयामों (स्वास्थ्य और शिक्षा) तथा आर्थिक आयामों का अभी भी अभाव है।
  • सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीति के सांप्रदायिकरण का उदय हुआ है। यह आवश्यक है कि संवैधानिक नैतिकता की अंबेडकर की दृष्टि को भारतीय संविधान में स्थायी क्षति से बचाने के लिये धार्मिक नैतिकता का समर्थन किया जाना चाहिये।
  • इतिहासकार आर.सी. गुहा के अनुसार, डॉ. बी.आर. अंबेडकर अधिकांश विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का अनूठा उदाहरण हैं। आज भारत जातिवाद, सांप्रदायिकता, अलगाववाद, लैंगिग असमानता आदि जैसी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमें अपने भीतर अंबेडकर की भावना को खोजने की ज़रूरत है, ताकि हम इन चुनौतियों से खुद को बाहर निकाल सकें।

अन्य महत्त्वपूर्ण लिंक

  • बी.आर. अंबेडकर की 64वाँ महापरिनिर्वाण दिवस
  • धर्मनिरपेक्षता
  • लैंगिक समानता बनाम धार्मिक रिवाज़
  • संविधान की मूल संरचना

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Dr Bhim Rao Ambedkar (डॉ. भीमराव अम्बेडकर)

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डॉ. भीमराव अम्बेडकर पर निबंध

डॉ. भीमराव अम्बेडकर प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। इनका जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के एक महार परिवार में हुआ। इनका बचपन ऐसी सामाजिक, आर्थिक दशाओं में बीता जहां दलितों को निम्न स्थान प्राप्त था। दलितों के बच्चे पाठशाला में बैठने के लिए स्वयं ही टाट-पट्टी लेकर जाते थे। वे अन्य उच्च जाति के बच्चों के साथ नहीं बैठ सकते थे। डॉ. अम्बेडकर के मन पर इस छुआछूत का व्यापक असर पड़ा जो बाद में विस्फोटक रूप में सामने आया। यदि बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ ने इनकी मदद न की होती तो शायद डॉ. अम्बेडकर उस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते जिस पर कि वे पहुंचे। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, अशिक्षा, अंधविश्वास ने उन्हें काफी पीड़ा पहुंचाई। महाराजा गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई। इस कारण वे स्कूली शिक्षा समाप्त कर मुंबई के एल्फिस्टन कॉलेज में आ गये। इसके बाद 1913 में डॉ. अम्बेडकर ने अर्थशास्त्र में एम. ए. अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से की। 1916 में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से ''ब्रिटिश इंडिया के प्रान्तों में वित्तीय स्थिति का विश्लेषण'' नामक विषय पर पी. एच. डी. की दूसरी डिग्री हासिल की। इस बार इनके शोध का विषय ''रुपये की समस्या'' था। उनका यह विषय सामयिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था क्योंकि उन दिनों भारतीय वस्त्र उद्योग व निर्यात ब्रिटिश नीतियों के कारण गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था। डॉ. अम्बेडकर ने देशी-विदेशी सामाजिक व्यवस्थाओं को बहुत नजदीक से देखा और अनुभव किया। उन्हें लगा कि भारत में तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में छूत-अछूत, जाति आध्धारित मौलिक सिद्धान्त पर आधारित थी। वहीं विदेशों में उन्हें इन आधारों पर कहीं भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। कुशाग्र बुद्धि का होने के कारण उन्होंने देश व विदेश की सामाजिक व्यवस्था का अपने ढंग से न केवल मूल्यांकन किया बल्कि उन विसंगतियों को भी समझा जो भारतीय समाज में छुआछूत के आधार पर मानव से मानव के साथ अप्रिय व्यवहार के रूप में परिलक्षित होती रही थी। ब्रिटिश शासन के दौरान उन्हें लंदन के स्कूल ऑफ इकानोमिक्स एवं पोलिटिकल सांइस में प्रवेश भी मिला लेकिन गायकवाड़ शासन के अनुबंध के कारण वे पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आ गये और बड़ौदा राज्य में मिल्ट्री सचिव पद पर कार्य करना पड़ा। 1926 में डॉ. अम्बेडकर ने हिल्टन यंग आयोग के समक्ष पेश होकर विनिमय दर व्यवस्था पर जो तर्कपूर्ण प्रस्तुति की थी उसे आज भी मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। डॉ. अम्बेडकर को गांधीवादी, आर्थिक व सामाजिक नीतियां भी पसंद नहीं थीं। इसकी वजह गाँधी जी का बड़े उद्योगों का पक्षधर नहीं होना था। डॉ. अम्बेडकर की मान्यता थी कि उद्योगीकरण और शहरीकरण से ही भारतीय समाज में व्याप्त छुआछूत और गहरी सामाजिक असमानता में कमी आ सकती है। डॉ. अम्बेडकर प्रजातांत्रिक संसदीय प्रणाली के प्रबल समर्थक थे और उनका विश्वास था कि भारत में इसी शासन व्यवस्था से समस्याओं का निदान हो सकता है। 1927 में डॉ. अम्बेडकर ने बहिष्कृत भारत पाक्षिक समाचार पत्र निकाला। यहीं से उनका प्रखर सामाजिक चिंतन सामाजिक बदलाव के परिप्रेक्ष्य में प्रारम्भ हुआ। इंडिपेन्डेन्ट लेबर पार्टी की स्थापना के द्वारा उन्होंने दलित मजदूर और किसानों की अनेक समस्याओं को उल्लेखित किया। 1937 में बम्बई के चुनावों में इनकी पार्टी को पन्द्रह में से तेरह स्थानों पर जीत मिली। हालांकि अम्बेडकर गांधीजी के दलितोद्धार के तरीकों से सहमत नहीं थे लेकिन अपनी विचारधारा के कारण उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेताओं-नेहरू और पटेल को अपनी प्रतिभा से अपनी ओर आकर्षित किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद उन्हें 3 अगस्त 1947 को विधि मंत्री बनाया गया। 21 अगस्त 1947 को भारत की संविधान प्रारूप समिति का इन्हें अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में भारत की लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी संविधान की संरचना हुई। जिसमें मानव के मौलिक अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की गयी। 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। 25 मई 1950 को डॉ. अम्बेडकर ने कोलम्बो की यात्रा की। 15 अप्रैल 1951 को डॉ. अम्बेडकर ने दिल्ली में अम्बेडकर भवन का शिलान्यास किया। इसी वर्ष 27 सितम्बर को डॉ. अम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से त्याग पत्र दे दिया। इस पद पर रहते हुए डॉ. अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल लागू कराया। इस बिल का उद्देश्य हिन्दुओं के सामाजिक जीवन में सुधार लाना था। इसके अलावा तलाक की व्यवस्था और स्त्रियों को सम्पत्ति में हिस्सा दिलाना था। पर्याप्त सम्मान और राजनीतिक पद हासिल हो जाने के बाद ही वे सामाजिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे। इस कारण उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया। डॉ. अम्बेडकरने आर्थिक विकास व पूंजी अर्जन के लिए भगवान बुद्ध द्वारा प्रतिस्थापित नैतिक और मानवीय मूल्यों पर अधिक जोर दिया था। उनका कहना था कि सोवियत रूस के मॉडल पर सहकारी व सामूहिक कृषि के द्वारा ही दलितों का विकास हो सकता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी इसी व्यवस्था के पक्षधर थे। उन्होंने इसके क्रियान्वयन के लिए डॉ. अम्बेडकर को योजना आयोग का अध्यक्ष पद देने का वादा किया था। भीमराव अम्बेडकर ने ब्रिटिश काल में वाईसराय काउंसिल के सदस्य के रूप में श्रमिकों व गरीब लोगों के लिए भी कई श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा योजना भी बनाई जिन पर आज भी काफी जोर दिया जा रहा है। डॉ. अम्बेडकर पंचायती राज व्यवस्था और ग्राम स्तर पर सत्ता के विकेन्द्रीकरण के हक में नहीं थे उनका कहना था कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकेन्द्रीकरण से दलित व गरीबों पर आर्थिक अन्याय व उत्पीड़न और बढ़ेगा। दलितों को आरक्षण देने की मांग के सूत्रधार के रूप में डॉ. अम्बेडकर का योगदान अत्यधिक रहा। दलित उद्धार के संदर्भ में उन्होंने अपनी पीड़ा को कभी नहीं छुपाया।

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मेरा प्रिय नेता डॉ भीम राव अंबेडकर पर निबंध | Bhimrao Ambedkar essay in Hindi | भीमराव आंबेडकर पर निबंध in hindi

By: Amit Singh

अंबेडकर का बचपन | bhimrao ambedkar childhood | Dr. Bhimrao Ambedkar par nibandh

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बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में मध्यप्रदेश के मोह जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी सकपाल और माता का नाम  भीमाजी सकपाल था। अंबेडकर के पिता आर्मी अफसर थे, जोकि सुबेदार के पद पर तैनात थे।

1906 में महज 15 साल की उम्र में अंबेडकर का विवाह नौ साल की रामाबाई से हुआ था। उनके बेटे का नाम यशवंत अंबेडकर था। bhimrao ambedkar wife

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लोकमान्य तिलक पर निबंध सुभाषचन्द्र बोस पर निबन्ध महात्मा गांधी पर निबंध प्रदूषण पर निबंध पर्यावरण पर निबंध

एक मराठी दलित परिवार में जन्में अंबेडकर को बचपन से ही भारतीय समाद में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता था। यही कारण था कि, पढ़ने में रुचि रखने के बावजूद अंबेडकर को कक्षा के बाहर ही बैठना पड़ता था, क्योंकि दलित जाति के बच्चों का कक्षा में प्रवेश वर्जित था।

इतना ही नहीं प्यास लगने पर उन्हें पानी का नल छूने की भी इजाजत नहीं थी। पानी पीने के लिए उन्हें किसी उच्च जाति के व्यक्ति से आग्रह करना पड़ता था, जोकि उन्हें ऊपर से बिना छुए पानी पिलाता था। दलित बच्चों को पानी पिलाने का काम ज्यादातर विद्यालय का पियून…. ही करता था। इस घटना का जिक्र करते हुए अंबेडकर अंग्रेजी में लिखते हैं – नो पियोन, नो वॉटर

1894 में अंबेडकर के पिता के रिटायर होने के दो साल बाद सभी परिवार सहित सतारा में जाकर बस गए। सतारा जाने के बाद कुछ ही समय में अंबेडकर की मां चल बसीं। लिहाजा सभी अंबेडकर सहित उनके दो भाई और दो बहने दादी के साथ रहने लगे।

अंबेडकर का वास्तविक नाम | bhimrao ambedkar original name | Bhimrao Ambedkar essay in Hindi

अंबेडकर का वास्तविक नाम भीवराव सकपाल था। हालांकि हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद पिता ने उनका नाम सकपाल से बदलकर अंबेडकर, रत्नागिरी स्थित अपने गांव के नाम पर रख दिया।

1897 में अंबेडकर का परिवार बंबई में बस गया। अंबेडकर शुरु से पढ़ने में काफी तेज थे। लिहाजा यहां स्थित एल्फिन्सटोन हाई स्कूल में दाखिला लेने वाले अंबेडकर अकेले दलित छात्र थे।

अंबेडकर ने 1912 में बंबई यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1913 में अंबेडकर को अमेरिका स्थित कैमब्रिज विश्वविद्यालय में स्कॉलरशिप मिल गयी, जिसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए।

अंबेडकर ने 1915 में अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और समाजशास्त्र से मास्टर्स किया। 1917 में उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। जिसके बाद उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय से ही कानून में डिग्री हासिल की।

Bhimrao Ambedkar essay in Hindi

भारत वापसी के बाद अंबेडकर ने अपना खुद का व्यापार शुरु करने का फैसला किया। हालांकि निवेशकर्ताओं को जैसे ही अंबेडकर के दलित होने का पता चला उन्होंने निवेश करने से इंकार कर दिया और अंबेडकर का बिजनेस ठप पड़ गया।

कुछ समय बाद अंबेडकर को बंबई स्थित एक कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किया गया। अंबेडकर एक बेहतरीन शिक्षक होने के साथ-साथ छात्रों के बेहद करीब थे, लेकिन कॉलेज के अन्य अध्यापकों ने अंबेडकर के साथ पानी का नल साझा करने से इंकार कर दिया।

यही कारण था कि भारत सरकार अधिनियम 1919 तैयार होने के दौरान अंबेडकर ने दलितों के लिए आरक्षण का प्रावधान शामिल करने करने का प्रस्ताव रखा।

बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की प्रैक्टिस के दौरान भी उन्होंने देश में छुआछूत और जात-पात के खिलाफ जनता को जागरुक करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। इसी कड़ी में बहिष्कृत हितकरनी सभा की नींव रखी।

1925 में अंबेडकर साइमन कमीशन का भी हिस्सा रहे। 1927 में अंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक जनआंदोलन शुरु करने का फैसला किया। जिसके तहत उन्होंने सार्वजनिक स्थानों मसलन पानी का नल, पार्क आदि में दलितों के प्रवेश का मुद्दा उठाया।

इसी दौरान 25 दिसम्बर 1927 को अंबेडकर ने भेदभाव का पक्ष लेने वाले हिन्दू ग्रन्थ मनुस्मृति को भी जला दिया। अंबेडकर के अनुयायी आज भी इस दिन को मनुस्मृति दहन के रुप में मनाते हैं।

1930 में अंबेडकर ने नासिक के सबसे बड़े आंदोलन के रुप में कालाराम मंदिर आंदोलन का आरंभ किया। जिसमें पुरुषों और महिलाओं सहित लगभग पंद्रह हजार से भी ज्यादा लोगों ने से हिस्सा लिया था।

 1930 और 1931 में लॉर्ड इरविन द्वारा लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलनों का आगाज किया गया। अंत में ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस के बीच तालमेल न बैठ पाने के कारण यह सम्मेलन किसी अच्छे नतीजे पर तो नहीं पंहुचा, लेकिन परिणाम काफी हद तक अंबेडकर के हक में थे।

दरअसल इन बैठकों के बाद ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर द्वारा दलितों को आरक्षण देने की मांग और पृथक निर्वाचक पर मुहर लगा दी थी। इस दौरान गांधी जी सविनय अविज्ञा आंदोलन के चलते जेल में थे।

गांधी जी ने अंबेडकर से ब्रिटिश ऑफर ठुकराने का आग्रह करते हुए भारतीय समाज को एकजुट रखने का सुझाव दिया। इसी कड़ी में गांधी जी और अंबेडकर के बीच पूना समझौता हुआ। जिसके तहत चुनावों में दलितों को आरक्षण देने से लेकर छुआछूत और जाति प्रथा का विरोध करने की बात कही गयी।

1936 में अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की नींव रखी। यह पार्टी 1937 में बंबई से लोकसभा चुनावों का हिस्सा बनी।  इन चुनावों में पार्टी ने 13 आरक्षित सीटों में से 11 सीटें और 4 सामान्य सीटों में से 3 सीटों पर जीत हासिल की।

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री बने। हालांकि इस दौरान देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती आजाद भारत का संविधान तैयार करने की थी और अंबेडकर इस भूमिका में बिल्कुल सटीक बैठ रहे थे।

लिहाजा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री बनाते हुए देश के संविधान का खाका तैयार करने का दारोमदार सौंपा गया। संविधान की प्रारुप समिति के अध्यक्ष अंबेडकर के नेतृत्व में कुल दो साल ग्यारह महीने और अठारह दिनों में दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनकर तैयार हो गया। जिसे 26 जनवरी 1950 के दिन लागू किया गया।

मूल अधिकार, मूल कर्तव्य, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों और संशोधन की शक्ति के साथ सर्वसम्मति के स्वीक किए जाने वाला भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लम्बा लिखित संविधान है। इसी संविधान की नींव पर आजादी के 70 साल बाद भी आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

अंबेडकर ने अपनाया बौद्ध धर्म

 1950 में सिलोन यात्रा (श्रीलंका) के बाद अंबेडकर बौद्ध धर्म से खासा प्रभावित हुए। जिसका सबसे बड़ा कारण था, बौद्ध धर्म का जाति प्रथा और भेदभाव से अछूता था। वहीं पूना में एक बौद्ध विहार का भ्रमण करने के बाद अंबेडकर ने बौद्ध धर्म पर किताब लिखने का एलान कर दिया। उन्होंने किताब पूरी होने पर उसके प्रकाशन के साथ बौद्ध धर्म अपनाने की भी बात कही।

इसी कड़ी में अंबेडकर दो बार बर्मा दौरे पर भी गए और 1955 में उन्होंने भारतीय बौद्ध महासभा की शुरुआत की। 1956 में उनकी किताब ‘द बुद्धा एंड हिज धम्म’ (the Buddha and his dhamma) का प्रकाशन किया।

14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने एक समारोह में पूरे धूम-घाम से अपनी दूसरी पत्नी सविता के साथ हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध भिक्षुओं की अगुवाई में बौद्ध धर्म को अपनाया।

अंबेडकर 1948 से ही मधुमेह के मरीज थे। 1955 में अचानक उनका स्वास्थय खराब होने लगा। आखिरकार दिल्ली में 6 दिसम्बर 1956 की रात सोते समय ही अंबेडकर की मृत्यु हो गयी।

7 दिसम्बर को मुंबई के दादर में स्थित चौपाटी बीच पर बौद्ध रीति रिवाज के साथ अंबेडकर का अंतिम संस्कार किया गया

अंबेडकर भले ही इस दुनिया से चले गए लेकिन भारतीय इतिहास में उनका नाम हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों के साथ दर्ज हो गया।

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डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर निबंध – Essay on Dr. BR Ambedkar in Hindi

Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi

दलितों के मसीहा के रुप में जाने वाले भीमराव आम्बेडकर जी का जीवन प्रेरणास्त्रोत है, जिससे हर किसी को सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने अपने जीवन में तमाम संघर्षों और कठिनाइयों को झेलकर अपने जीवन में न सिर्फ खूब सफलता अर्जित की बल्कि समाज में फैली छूआछूत, जातिवाद जैसी बुराईयों को भी जड़ से खत्म कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने शिक्षा का जमकर प्रचार -प्रसार किया। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रुप में भी जाना जाता है।

अक्सर बच्चों के लेखन-कौशल को सुधारने और ऐसे महान व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने के लिए उनकी परीक्षाओं में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है, इसलिए आज हम अपने इस लेख में आपको डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी के बारे में अलग-अलग शब्द के अंदर निबंध – Essay on Dr. BR Ambedkar उपलब्ध करवा रहे हैं।

डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर निबंध – Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi

Essay on Dr BR Ambedkar in Hindi

भीमराव आम्बेडकर जी पर निबंध (700 शब्द) – Dr Babasaheb Ambedkar Nibandh (700 Word)

आधुनिक भारत के निर्माता भीमराव आम्बेडकर जी को बाबा साहेब आम्बेडकर जी ने नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज और व्यक्तित्व के विकास में बाधा डाल रही और देश को अलग-अलग टुकड़ों में बांट रही कुरोतियों जैसे छूआछूत, जातिगत भेदभाव, बालविवाह, सतीप्रथा, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास को दूर करने में लगा दिया।

आम्बेडकर जी ने अपने जीवन में तमाम यातनाएं झेली, लेकिन इसके बाबजूद भी वे इससे कभी घबराए नहीं और अपने कर्तव्य के प्रति सच्ची निष्ठा के साथ आगे बढ़ते रहे और समाज से छूआछूत और जातिवाद जैसी बुराईयों को जड़ से खत्म करने में सफल हुए। आम्बेडकर जी को देश को एकता के सूत्र में बांधने वाले संविधान के निर्माता के रुप में भी जाना जाता है।

भीमराव आम्बेडकर जी का शुरुआती जीवन और शिक्षा

दलितों के मसीहा कहे जाने वाले डॉ. भीमराव आम्बेडकर जी मध्यप्रदेश के इंदौर के एक दलित परिवार में 14 अप्रैल, 1891 में जन्में थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल इंडियन आर्मी में सूबेदार थे, जिन्हें अंग्रेजी, गणित और मराठी का अच्छा ज्ञान था, यही नहीं उनके जन्म के 3 साल बाद 1894 में वह रिटायर्ड हो गए, जिसके बाद उनका परिवार महाराष्ट्र के सितारा में बस गया।

जिसके थोड़े दिनों बाद ही उनकी माता भीमाबाई का देहांत हो गया। जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी चाची ने किया।

वे अपने माता-पिता की 14वीं और आखिरी संतान थे, वहीं महार जाति में जन्म लेने की वजह से उनका बचपन बड़ा ही संघर्षपूर्ण रहा, क्योंकि उस समय निम्न जाति के लोगों के साथ काफी अमानवीय व्यवहार किया जाता था, जिससे उन्हे शारीरिक और मानसिक रुप से काफी यातनाएं झेलनी पड़ी थी।

दलित होने की वजह से आम्बेडकर जी को ऊंची जाति के लोग छूना तक पसंद नहीं करते थे, यही नहीं स्कूल में भी शिक्षा हासिल करने के लिए उन्हें तमाम तरह की कठिनाइयां झेलनी पड़ी थी। विद्दान और योग्य होने के बाबजूद भी उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था।

भेदभाव का शिकार हुए आम्बेडकर जी को अपने आर्मी स्कूल में पानी तक छूने की इजाजत नहीं थी, उनके कास्ट के बच्चों को चपरासी उपर से डालकर पानी देता था, वहीं अगर जिस दिन चपरासी छुट्टी पर होता था, उस दिन उन्हें और उनके कास्ट के सभी साथियों को पूरा दिन प्यासा ही रहना पड़ता था।

फिलहाल अंबडेकर जी ने तमाम मुश्किलों और संघर्षों के बाद भी अच्छी शिक्षा हासिल की और बाद में समाज में फैली छूआछूत और जातिवाद को जड़ से खत्म कर दिया।

भीमराव आम्बेडकर जी एक होनहार और प्रखर बुद्धि के छात्र थे, वे बहुत तेजी से किसी विषय को जल्दी से समझ लेते थे, यही वजह है कि वे अपनी सभी परीक्षाओं में अच्छे अंक से सफल होते चले गए और 1907 में उन्होंने मैट्रिक की डिग्री हासिल कर ली और इसके बाद साल 1912 में उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।

यही नहीं फेलोशिप लेकर उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। अमेरिका से लौटने के बाद उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अपने बड़ोदा के राजा ने अपने राज्य का रक्षामंत्री बना दिया, लेकिन इस पद पर रहते हुए भी उन्हें दलित होने की वजह से काफी अपमान झेलना पड़ा था।

हालांकि इन सबसे उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपनी आगे की पढ़ाई के लिए साल 1920 में वह फिर से इंग्लैंड चले गए। और फिर 1921 में उन्होनें लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस से मास्टर डिग्री हासिल की और दो साल बाद उन्होनें अपना डी.एस.सी की डिग्री प्राप्त की।

वहीं कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होनें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में काम किया। 8 जून, 1927 को उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्धारा डॉक्टरेट से सम्मानित किया गया था। इस तरह वे उच्च शिक्षा हासिल करने वाले पहले दलित छात्र बन गए।

उपसंहार –

आम्बेडकर जी ने अपने जीवन में तमाम कठिनाइयां और परेशानियां झेलने के बाद भी कभी हार नहीं मानी और अपनी सच्ची ईमानदारी और कठोर निष्ठा के साथ वह अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ते रहे।

इसके साथ ही छूआछूत और जातिवाद को समाज से जड़ से खत्म करने के लिए सफलता अर्जित की। और आधुनिक भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अगले पेज पर बाबासाहेब आम्बेडकर पर और भी बढ़िया निबंध …

2 thoughts on “डॉ. भीमराव आम्बेडकर पर निबंध – Essay on Dr. BR Ambedkar in Hindi”

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Here Year of birth of Dr. Babasaheb Ambedkar is wrongly mentioned as 1981. It should be 1891.

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अम्बेडकर : सामाजिक न्याय | Ambedkar: Social Justice in Hindi

अम्बेडकर : सामाजिक न्याय

डॉ. अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महू छावनी (वर्तमान में मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में) हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी सकपाल था जो कि उस समय पर ब्रिटिश सेना में सूबेदार मेजर के पद पर थे। अम्बेडकर के पिता रामानंद मार्ग के अनुयायी भी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सन् 1900 में गवर्नमेंट हाई स्कूल सतारा में हुई, पांचवी कक्षा के दौरान उनका विवाह भीखू वालगंकर की पुत्री रमाबाई के साथ हो गया। उन्होंने मुंबई में एलफिंस्टन हाई स्कूल में प्रवेश लिया, वहाँ पर वे छात्र के रूप में संस्कृत पढ़ना चाहते थे लेकिन उनको संस्कृत पढ़ने की स्वीकृति नहीं दी गई क्योंकि वह एक अछूत जाति से थे। जिस कारण से उन्होंने संस्कृत के स्थान पर फारसी भाषा का चयन किया। बाद में उन्होंने स्वयं संस्कृत का अध्ययन किया। 14 अप्रैल, 1907 में एलफिंस्टन कॉलेज से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की उस दौरान वे पढ़ने की स्थिति में नहीं थे लेकिन कृष्णा जी अर्जुन केलुसकर के सहयोग से उन्हें महाराजा बड़ौदा से ₹25 महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की गई। जिसके द्वारा वे अपनी शिक्षा पूरी कर सकेI सन् 1912 के दौरान अंग्रेजी और फारसी से उन्होंने बी.ए की। बड़ौदा के महाराजा ने राज्य के खर्चे पर संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में छात्रों को भेजने का निश्चय किया। जिस कारण से ही 4 जुलाई, 1913 के दौरान उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। अमेरिका में उन्होंने राजनीति विज्ञान , नीतिशास्त्र , मानवशास्त्र , समाजशास्त्र , अर्थशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन किया। जून, 1916 में उन्होंने अमेरिका छोड़ दिया।

सन् 1916 में वे लंदन पहुँचे, जहां पर उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइस में अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। सितंबर 1917 में महाराजा बड़ौदा के सैनिक सचिव के रूप में उनको नियुक्ति मिली। अक्टूबर, 1918 में अम्बेडकर बंबई में साइड्नहैम कॉलेज में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। जहाँ पर वे अपने छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। लेकिन कॉलेज में हो रहे जातीय भेदभाव से आहत होकर दिसंबर, 1918 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वे अर्थशास्त्र व कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। अप्रैल, 1923 में वे भारत वापिस आए और बंबई के उच्च न्यायालय में उन्होंने वकालत प्रारंभ की। वहाँ पर भी उनके साथ जातीय भेदभाव जारी रहा।

उन्होंने 9 मार्च, 1924 को दलितों के उत्थान के लिए सामाजिक आंदोलन शुरू कर दिए। 20 जुलाई, 1924 को प्रबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ के नाम से एक संस्था बनाई। अम्बेडकर ने उस स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लिया, जो कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित हो रहा था वह वंचित वर्ग एवं आम जनता की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन कर रहे थे ताकि दलितों के लोकतांत्रिक अधिकारों को सुरक्षित किया जाए और जाति, लिंग, वर्ग या धर्म के आधार पर हो रहे शोषण एवं असमानता से लोगों को मुक्ति दिलाई जा सके। 25 दिसंबर, 1927 को महाड़ में उन्होंने एक सत्याग्रह सम्मेलन का आयोजन किया जो कि कोलाबा जिले में था। इस जनसभा में मनुस्मृति को जलाने का प्रस्ताव पास किया गया और उसी दिन मनुस्मृति को जला दिया गया। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए अपने जीवनभर में कई प्रयास किए।

सन् 1938 में कांग्रेस पार्टी ने दलितों का नाम ‘ हरिजन’ रखने का बिल पेश किया। इसकी अम्बेडकर ने जमकर आलोचना इस आधार पर की कि केवल नाम बदलने से दलितों की परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला है। भारत के स्वतंत्र होने पर अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए बनाए गए संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। 26 नवंबर, 1949 को अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत किया गया संविधान स्वीकार किया गया। 14 अक्टूबर, 1956 को अपने अनुयायियों के साथ नागपुर में हुए ऐतिहासिक उत्सव में उन्होंने बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया। उन्होंने नवंबर, 1956 में काठमांडू नेपाल में हुए विश्व बौद्ध सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। जहां पर उन्हें ‘ नव बुध’ के रूप में मान्यता मिली। सन् 6 दिसंबर, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई। 1960 में मुंबई में स्थित दादर चौपाटी के चैत्यभूमी नामक स्थान पर जहाँ उनका शवदाह हुआ, वहाँ पर एक स्तूप खड़ा किया गया।

सामाजिक न्याय की अवधारणा

‘सामाजिक न्याय’ का पहली बार प्रयोग 1840 में सिसिली के पादरी लुईगी तापरेली डि अजेग्लियो द्वारा किया गया था एवं उसे प्रमुखता एंटोनियो रोसमिनी-सेरबाती द्वारा 1848 में दी गई। जॉन स्टूअर्ट मिल, लेसिली स्टीफीन और हेनरी सिजविक जैसे लेखकों ने वितरणात्मक न्याय से अलग किए बगैर इसे समय-समय पर सामाजिक न्याय का उल्लेख किया है। 19वीं शताब्दी के अंत तक सामाजिक न्याय शब्द को प्रमुखता मिली जब इसका प्रयोग शहरी मजदूर बन चुके विस्थापित किसानों के नए समूह ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए शासक वर्ग के समक्ष अपील के लिए किया। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में सामाजिक न्याय के बारे में सिद्धांत निर्माण प्रमुख विषय बन गया था। सन् 1900 में न्यूयॉर्क में सोशल जस्टिस नाम से पहली पुस्तक आई। इसके लेखक वेस्टल विलौबी टी.एच ग्रीन के आदर्शवाद से प्रभावित थे। अधिकांश समकालीन राजनीतिक दार्शनिकों के लेखन में सामाजिक न्याय पर वितरणात्मक न्याय के एक पहलू के रूप में ध्यान दिया गया था।

सामाजिक न्याय का उद्देश्य पूरे समाज का भला करना है केवल एक व्यक्ति का भला करना नहीं है बल्कि सामाजिकता के आधार पर ही सामाजिक न्याय की परिभाषा सैद्धांतिक रूप से तटस्थ है। यह सभी विचारधाराओं को मानने वाले लोगों के लिए खुली विचारधारा है चाहे वह दक्षिणपंथी हो या वामपंथी हो। सामाजिक न्याय की अवधारणा किसी भी ऐसे प्रयोग से इंकार नहीं करती है जो कि इसे व्यक्तियों के गुणों से न जोड़ती हो, सामाजिक न्याय एक सद्गुण एवं व्यक्तियों का गुण है। न्याय की तुलना में सामाजिक न्याय की अवधारणा व्यापक है। सामाजिक शब्द समाज के साथ जुड़ा हुआ है जिसमें सामाजिक मुद्दे ही एक प्रमुख समस्या है। इसमें सुधार शामिल होते हैं, इसके चलते ही सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन हो पाते हैं। कानून के माध्यम से ही समाज में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन को लाया जा सकता है। सामाजिक न्याय का उद्देश्य राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र का निर्माण करना है तथा समाज से वर्ग एवं जाति के भेदभाव को समाप्त करना है। इसमें यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि समाज को किस प्रकार से व्यवस्थित किया जाना चाहिए और सामाजिक मूल्यों और संरचनाओं को किस प्रकार से होना चाहिए।

सामाजिक न्याय का मूल आधार है कि समाज के वंचित शोषित एवं दलित लोगों को शोषण से मुक्ति दिलाई जाए। इसका उद्देश्य है कि मानवता द्वारा सामाजिक और आर्थिक शोषण व भेदभाव जैसे पारंपरिक बंधनों से स्वतंत्रता दिलवाई जाए। सामाजिक न्याय का यह विचार संयुक्त राष्ट्र की 1948 की घोषणा में परिकल्पित मानव अधिकारों एवं भारत के संविधान में शामिल मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है लेकिन यह उसके समान नहीं है। मौलिक अधिकार का अर्थ होता है स्वतंत्रता या समता के अधिकार, शोषण के विरूद्ध अधिकार, संवैधानिक उपायों के अधिकार से इन सभी से मानव के व्यक्तित्व को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाने का प्रयास करना। यदि यह सभी समाज में सामाजिक न्याय के स्वरूप को प्रभावित करते हैं तो इन्हें नियंत्रित या सीमित किए जाने की भी आवश्यकता पड़ सकती है। सामाजिक न्याय में समता, स्वतंत्रता एवं सम्मान जुड़े हुए हैं। ये तीनों ही सामाजिक न्याय की पूर्ति के लिए अत्यंत ही आवश्यक हैं और यदि हम इनमें से एक को भी अनदेखा करेंगे तो यह सामाजिक न्याय को पूरा नहीं कर सकेगा। अम्बेडकर का मानना था कि स्वतंत्रता का सृजन करने वाली तीन अनिवार्य शर्तें इस प्रकार से हैं–

  • सामाजिक समानता
  • आर्थिक समानता
  • ज्ञान का होना

अम्बेडकर ने यह देखा कि समाज में किस प्रकार से छुआछूत बहुत ही व्यापक स्तर पर फैला हुआ था, यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने भी अछूतों की हालात में सुधार के लिए कोई कार्य नहीं किया था। साथ ही दलितों के राजनीतिक अधिकारों को भी नकार दिया गया था। इसके संबंध में अम्बेडकर ने कहा कि …

  • इस प्रकार से समाज का समाजीकरण किया जाए कि अछूतों को अपने निम्न सामाजिक स्तर की शिकायत न हो।
  • निम्न जाति को इस तरह से सोचने के लिए मजबूर किया जाता है कि वे निचले तबके में पैदा हुए हैं इसलिए उनकी किस्मत के साथ कुछ नहीं हो सकता।
  • निम्न जाति के लोगों को इस बात का विश्वास दिलाया जाता है कि जो कुछ उन्हें मिला है उससे अधिक बेहतर व्यवहार पर उन्हें जोर देने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है।
  • अन्य जातियों द्वारा अछूतों के साथ कम सम्मान के साथ व्यवहार किया जाता था यहाँ तक कि अछूतों को अपने उत्तम भविष्य के सपने देखने की अनुमति नहीं होती थी।

अम्बेडकर ने इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को उजागर करने और अमानवीय अन्याय से अछूतों को मुक्त कराने की शपथ ली। इस असहायपन के चलते अछूतों को हिंदू समाज में दास बना दिया था और यहाँ तक कि उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित रखा जाता था। अम्बेडकर का कहना था कि अछूतों में मूर्खता एवं सहनशीलता के कारण ही वे लोग उच्च जाति द्वारा अन्याय को सहन कर रहे थे। उन लोगों में जागरूकता न होने के कारण ही उन्होंने अपनी स्थिति को असहायपन की बना लिया था। भारतीय समाज में न्याय को वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के रूप में देखा गया था, जिसके संदर्भ में अम्बेडकर का मानना था कि यह न्याय की ऐसी अवधारणा है जिसमें सामाजिक अभिक्रम के द्वारा तय की गई समता के बजाय अनुक्रम को वरीयता दी गई है। अम्बेडकर के अनुसार सामाजिक न्याय का मार्ग शिक्षा के द्वारा तय किया जा सकता है। केवल शिक्षा के द्वारा ही सामाजिक अन्याय को नष्ट किया जा सकता है। यह अत्यंत आवश्यक है कि उनके मन से हीन भावना को खत्म किया जाए ताकि उनका विकास अच्छे तरीके से हो सके और वे स्वयं को दूसरों का गुलाम/दास समझना छोड़ दें। अम्बेडकर का यह दृढ़ विश्वास था कि उच्च शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बगैर कुछ भी बेहतर तरीके से हासिल नहीं हो सकता।

अम्बेडकर का मानना था कि लोकतंत्र का उद्देश्य वास्तव में पूरे तरीके से समाज का व्यवहारिक हित होता है न कि केवल किसी विशेष वर्ग, समूह, समुदाय या जाति के हित की रक्षा करना। अम्बेडकर के सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण में शासन की शक्ति का विभाजन एवं विभिन्न विभागों के कार्य के विभाजन में ठोस विचार भी शामिल हों जिसमें अधिकारों को व्यक्ति के अंदर ही स्वाभाविक रूप से अंतर्निहित मानते हैं। उनके अनुसार कानून सिर्फ एक वैधानिक कार्य नहीं होता बल्कि यह पूरे समाज एवं राष्ट्र के पूरे जीवन को भी नियंत्रित करता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि अम्बेडकर के सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण में राष्ट्रवाद भी शामिल है। उनका कहना है कि राष्ट्रवाद एक ऐसा सत्य है जिससे न तो बचा जा सकता है और न ही इसे नकारा जा सकता है। सामाजिक न्याय के प्रति उनका दृष्टिकोण मानवतावादी और राष्ट्रवादी था। वे न केवल विदेशी प्रभुत्व से स्वतंत्रता चाहते थे बल्कि उन लोगों के लिए आंतरिक स्वतंत्रता भी चाहते थे जो इससे वंचित रह गए थे।

अम्बेडकर का मानना था कि केवल भाईचारे द्वारा ही अराजकता को रोका जा सकता है। केवल व्यक्तिवाद द्वारा अराजकता उत्पन्न होती है। इस कारण से ही अम्बेडकर सामाजिक न्याय के मुख्य घटक स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे को मानते हैं। भारतीय समाज की व्यवस्था व समस्याओं के बारे में अम्बेडकर पूरी तरह से अवगत थे इसलिए उन्होंने सामाजिक न्याय की अवधारणा में निम्नलिखित चीजों को शामिल किया है-

  • सभी व्यक्तियों को एकता और समानता प्राप्त हो।
  • पुरुषों एवं महिलाओं को समान मूल्य मिलें।
  • कमज़ोर और निचले तबके को सम्मान प्राप्त हो।
  • मानव अधिकारों पर बल दिया जाए।
  • सभी लोगों के प्रति उदारता, प्रेम, सहानुभूति, सहिष्णुता का भाव हो।
  • जातिगत भेदभाव का उन्मूलन हो।
  • सभी मामलों में मानवीय व्यवहार किया जाए।
  • सभी को शिक्षा और संपत्ति का अधिकार प्राप्त हो।
  • सभी नागरिकों की गरिमा की ओर ध्यान दिया जाए।

अम्बेडकर का सामाजिक दृष्टिकोण उनके शब्दों से उजागर होता है। अम्बेडकर भारतीय समाज की दयनीय स्थिति और महिलाओं की स्थिति से पूरी तरह से अवगत थे। उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं के उत्थान की भी कोशिश की। भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय की अवधारणा शामिल है। इस भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में अम्बेडकर ने सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था का जो सपना देखा था उसे साकार करने का उन्होंने प्रयास किया। भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय पूर्ण रूप से परिभाषित तो नहीं है। यह एक संबंधित अवधारणा है जो समय और परिस्थितियों के साथ निर्मित की गई है यह सामाजिक न्याय भारतीय संविधान में प्रस्तावना, राज्य के नीति निर्देशक तत्वों द्वारा स्पष्ट रूप से दी गई है। अम्बेडकर के अनुसार केवल सामाजिक न्याय समाज के सभी लोगों की सामाजिक सामंजस्य सामाजिक स्थिति और देशभक्ति की भावना का नेतृत्व कर सकता है। अम्बेडकर ने सामाजिक न्याय के सिद्धांत के संदर्भ में निम्नलिखित बात की हैं :

  • कानूनी शिक्षा

अम्बेडकर ने कानूनी शिक्षा में सामाजिक न्याय की आवश्यकता पर बल दिया है और इस कानूनी पेशे में हाशिए के समूह की भागीदारी और स्वयं के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर अधिक बल दिया है।

  • भू-स्वामित्व

संविधान सभा में बहस के दौरान संपत्ति के उन्मूलन और मध्यस्थों को ज़म्मीदारी प्रणाली से हटाने के सवाल पर अम्बेडकर ने कहा कि भूमि संपत्ति विशेष रूप से मौलिक अधिकार नहीं है और भूमि पर अधिकार की बात को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों से विनियमित किया जाना चाहिए।

अम्बेडकर का कहना था कि हिंदू धर्म की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि आप इसके आदर्श स्वरूप को वास्तविक रूप देने के लिए आगे नहीं जा सकते क्योंकि वास्तविक स्थिति बदतर है। हिंदू सामाजिक प्रणाली को यदि देखा जाए और इसे सामाजिक उपयोगिता या सामाजिक न्याय के बिंदु से जांचा जाए तो यह एक ऐसा धर्म है जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा स्थापित करना नहीं है ऐसा लगता है कि इसमें उच्च वर्ग का जन्म उत्तम जीवन जीने एवं राज करने के लिए हुआ है और दूसरों का जन्म किसी और कार्य के लिए नहीं बल्कि उनकी सेवा करने के लिए हुआ है।

  • वंचितों के लिए राजनीतिक संस्था

भारतीय समाज में सामाजिक अन्याय को दूर करने के लिए अछूतों के बीच राजनीतिक जागरूकता की आवश्यकता पर जोर देना अत्यंत ही आवश्यक है। अम्बेडकर का मानना है कि केवल राजनीतिक शक्ति से अन्याय को समाप्त किया जा सकता है। कानून बनाने की प्रक्रिया में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता अत्यंत ही जरूरी है ताकि अस्पृश्यता के नुकसान को देखते हुए अनुसूचित जातियों के लिए अलग निर्वाचन की आवश्यकता की जाए और अनुसूचित जाति अपने स्वयं के प्रतिनिधि के माध्यम से अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग दृढ़तापूर्वक कर सके।

इस तरह से अम्बेडकर के विचारों का उद्देश्य वंचितों के लिए अधिक समतापूर्ण एवं सम्मानजनक संदर्भ में सामाजिक न्याय को सुरक्षित करना था क्योंकि उनके अनुसार दलितों के कल्याण के लिए केवल राजनीतिक न्याय काफी नहीं था। उन्होंने राजनीतिक न्याय को पूरा करने के लिए पूर्व शर्त के तौर पर सामाजिक-आर्थिक न्याय पर विचार किया। उनका दृष्टिकोण सामाजिक जीवन में स्त्री एवं पुरुषों के समान अधिकार, सामाजिक प्रगति, व्यक्ति का सम्मान एवं प्रत्येक क्षेत्र में शांति व सुरक्षा के बेहतर मानदंड की उम्मीद करता है।

अम्बेडकर के जीवन काल में अत्यंत महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थी, जिसके चलते इन सभी का प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ा। जिसके चलते ही वे दलितों एवं भारतीय समाज के वंचित वर्ग के एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे। अम्बेडकर जिन चीजों से ज्यादा प्रभावित हुए थे, वे उनके साथ होने वाले अमानवीय परिस्थितियां थी जिन्होंने उन्हें सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक मामलों में समानता के अधिकार से वंचित ही किया। जाति के नाम पर जीवनभर ही उनके साथ बुरा व्यवहार किया गया। अपने बचपन के प्रारंभिक समय से ही उन्हें सामान्य व्यवहार का सामना करना पड़ाl वे कबीर पंथ के सामाजिक एकता के सिद्धांत से अत्यंत ही प्रभावित थे जिस कारण से सामाजिक एवं पारिवारिक वातावरण के अंतर ने उनके जीवन पर एक अद्भुत गहरा प्रभाव डाला।

बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक समानता के सिद्धांतों ने उन पर गहरा प्रभाव डाला। उन्होंने सामाजिक सुधारकों के साहित्य एवं कार्यों को भी समझने का प्रयास किया, जिनमें महात्मा बुद्ध, संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा फूले, स्वामी दयानंद सरस्वती, एम.जी रानाडे, महात्मा गांधी, महाराजा सायाजीराव गायकवाड, छत्रपति शाहूजी महाराज प्रमुख थे। अम्बेडकर महात्मा ज्योतिबा फुले से बहुत ही प्रभावित थे जिन्होंने इस बात पर अधिक बल दिया था कि जन्म से ही सभी मनुष्य समान होते हैं और भारत के लिए विदेशी शासन से स्वतंत्रता की तुलना में सामाजिक लोकतंत्र कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। अम्बेडकर ने अपने जीवन में महिलाओं एवं अछूतों के प्रति भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। भारतीय संविधान में उनके आदर्श, दर्शन, सामाजिक न्याय हेतु किए गए संघर्ष सदैव निहित रहेंगे। इस प्रकार से उनका मुख्य उद्देश्य महिलाओं और कमजोर वर्गों का उत्थान तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ना था।

महत्वपूर्ण प्रश्न

  • अम्बेडकर के सामाजिक न्याय पर विचारों की विवेचना कीजिए।
  • ‘जाति प्रथा के विनाश’ पर अम्बेडकर के विचारों का परीक्षण कीजिए।
  • ‘जाति प्रथा के विनाश’ के आलोक में भारत में जाति व्यवस्था पर अम्बेडकर के विचारों का विश्लेषण कीजिए।
  • अम्बेडकर के अनुसार, सामाजिक न्याय का क्या महत्व है?
  • पिछड़े वर्गों से संबंधित सामाजिक न्याय के बारे में अम्बेडकर के विचारों की चर्चा करें।
  • अम्बेडकर के लिए न्याय- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का दूसरा नाम है, विवेचना करें।

संदर्भ सूची

  • त्यागी, रूचि (सं) (2015). ‘ आधुनिक भारत का राजनितिक चिंतन: एक विमर्श ’, हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय: दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली.
  • नागर, डॉ. पुरुषोतम (2019). ‘ आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनितिक चिंतन ’ , राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर .
  • गौतम, बलवान (सं) (2013). ‘तुलनात्मक राजनितिक सिध्दांत के संदर्भ’ , हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय: दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली.
  • School of open learning University of Delhi, ‘ Indian Political Thought-II: Paper-XIV’ , New Delhi: University of Delhi.

“मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार आओ सब मिलकर करें इस सपने को साकार”

इन्हें भी पढ़ें –

  • महात्मा गांधी : स्वराज
  • स्वामी विवेकानंद: आदर्श समाज
  • पंडिता रमाबाई : जेंडर और पितृसत्ता संबंधी विचार
  • राजा राममोहन रॉय

Samajik nyay pr an samajik nyaay per Ambedkar ke vichar samjhaie

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स्वर्ण-भस्म स्वर्ण की अपेक्षा मूल्यवती होती है क्योंकि वह अग्नि पुंज में तपकर अशुद्धियों से रहित हो जाती है। अपने जीवन-संघर्षों में तपकर मानव भी तेजोमय हो जाता है। मानव जीवन की महत्ता केवल आत्मोन्नति में ही नहीं है, अपितु वह एक ओर स्वयं उन्नति के पथ पर अग्रसित होता है तो दूसरी ओर दूसरों के हित के लिए, दलितों और पीड़ितों के उद्धार के लिए भी दुःख झेलता है, विपत्तियों का, कष्टों का सामना करता है। वह मानवता को गरिमा-मण्डित करता है। ऐसे व्यक्तित्व इतिहास-पुरुष बनते हैं। भारत की धरती पर ऐसे अनेक संत-महात्मा हुए हैं जिन्होंने संन्यासी का रूप धारण न किया हो लेकिन उनके कार्य संन्यासियों की भान्ति ही मानव कल्याण के लिए होते हैं। डॉ. भीमराव अम्बेदकर भी ऐसे ही महामानव थे।

महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिला के गांव माहू छावनी में 14 अप्रैल सन् 1873 ई. को रामजी मौलाजी सकपाल की पत्नी भीमाबाई ने एक शिशु को जन्म दिया। जिसे बचपन में नाम दिया गया भीम और जाति के साथ शिशु कहलाया ‘भीम सकपाल’ । रामजी मौला जी सकपाल तत्कालीन अंग्रेज़ी फौज में सूबेदार मेज़र के पद पर थे। जाति से महार कहलाते थे जिसे महाराष्ट्र में अछूत माना जाता था। घर में भीम का लालन-पालन लाड़-प्यार से हुआ और धार्मिक वातावरण का प्रभाव भी बालक पर पड़ा। लेकिन छह वर्ष के बालक को माँ की मृत्यु का आघात सहन करना पड़ा।

प्रतिभावान भीम ने आरम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद 1907 में बम्बई के स्कूल एलिफिन्सटन से हाई स्कूल की शिक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण करने के पश्चात् बी. ए. की डिग्री भी प्राप्त की। बड़ौदा के राजा से सहायता प्राप्त होने पर उन्होंने अमेरिका के लिविंग्स्टोन हॅल से 1915 ई. में एम. ए की उपाधि प्राप्त की।

सन् 1916 में इन्होने लन्दन में लन्दन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पॉलिटिक्स में प्रवेश लिया और शोध कार्य आरम्भ किया। लेकिन स्कॉलरशिप की अवधि पूर्ण हो जाने पर शोध-कार्य अधूरा छोड़कर इन्हें भारत लौटना पड़ा। भारत आकर कुछ धन जुटाने की व्यवस्था करके पुन: लन्दन गए और शोध का कार्य पूरा कर पी. एच. डी. और ‘बार एट लॉ’ की उपाधियां प्राप्त कर 1923 ई. में भारत लौटे। सन् 1935 में वे लॉ कालेज के प्रिंसीपल नियुक्त हुए।

जब उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तब ही उनकी शादी हो गयी थी लेकिन सन् 1935 में इनकी पत्नी का निधन हो गया और इसके बाद अप्रैल 1948 में उन्होंने डॉ. (मिस) सविता कबीर से पुनः विवाह किया। बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षण होने के कारण इन्होंने अपनी पत्नी के साथ 14 अक्तूबर 1956 ई. को बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की।

कोलम्बो विश्वविद्यालय ने डॉ. भीमराव अम्बेदकर को एल. एल. डी. और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की मानद उपाधियों से सम्मानित किया। बुद्ध के जीवन एवं धर्म पर उन्होंने ‘बुद्ध एवं उनका धर्म’ नामक ग्रंथ की रचना की जिसका लेखन कार्य 5 दिसम्बर 1956 ई. को पूरा हुआ और 6 दिसम्बर 1956 को वे अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर स्वर्ग-सिधार गए।

मानवाधिकारों की रक्षा की ओर

जाति-बन्धनों और अछूतों की समस्या से वे बचपन से ही परिचित हो गए थे। इसके कटु अनुभव उनकी आत्मा को वेदना से भर देते थे। जब वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए और वहां जाति-प्रथा के बन्धन से मुक्त होकर शिक्षा प्राप्त करने लगे तब से ही उन्हें अपनी प्रतिभा को मुखरित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस वातावरण में उन्होंने अनेक विषयों का अध्ययन तो किया ही मानवाधिकारों की रक्षा को भी अनिवार्य समझा। इसी दिशा में उन्होंने ‘कास्टस इन इण्डिया’ निबंध लिखा था जिसकी बहुत प्रशंसा हुई थी। जब विपरीत परिस्थितियों के कारण वे अपना शोध-प्रबंध पूरा न कर पाए और लंदन से भारत लौट आए तो उन्होंने अछूतों की दशा और व्यथा को अभिव्यक्ति देने के लिए ‘मूकनायक’ नामक पत्र निकाला। अपने प्रयासों को उन्होंने इस पत्र के माध्यम से समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया।

जब भारत में उन्होंने वकालत आरम्भ की तो पुनः जाति की बाधा से वे पीड़ित हो गए। फलतः सन् 1924 ई. में उन्होंने ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की। इस सभा के माध्यम से उन्होंने दलितों पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष आरम्भ किया और सन् 1927 ई. में मराठी में ‘बहिष्कृत भारत’ पत्रिका निकालनी आरम्भ की।

वे नहीं चाहते थे कि अछूत और दलित वर्ग दूसरों की कृपा और दया पर जीवन बिताएँ। उनमें आत्मविश्वास पैदा हो जिससे वे जीवन में अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

इस दिशा में उन्होंने संघर्ष का मार्ग भी अपनाया अत: नासिक में कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया। इसी प्रकार महाड़ में भी चौबदार तालाब सत्याग्रह किया। कोलावा के सार्वजनिक टैंक से अछूतों को भी पानी पिलाने का अधिकार दिलवाना इस संघर्ष के ज्वलंत और सफल प्रमाण है।

सन् 1930 में इंग्लैंड के सम्राट की अध्यक्षता में होने वाली कॉकैंस में उन्हें निडर होकर सरकार की उस नीति का पर्दाफाश किया जिससे दलितों के प्रति उपेक्षा की भावना रखी जाती थी और उन्हें मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जाता था। इसी प्रकार सन् 1930 ई. और सन् 1931 ई. में होने वाली प्रथम और द्वितीय गोलमेज़ परिषद में उन्होंने भाग लिया तथा पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए अनेक प्रस्ताव पारित करवाए। 25 सितम्बर सन् 1932 ई. में जो ‘पूना पैक्ट” पास करवाया गया उसकी सफलता के पीछे डॉ. अम्बेदकर राव की प्रतिभा, तर्क शक्ति एवं भावना और मानवता की सेवा का महत् लक्ष्य था। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।

राजनीतिक धरातल पर उन्होंने ‘स्वतंत्र लेबर पार्टी’ की स्थापना की और इस के अध्यक्ष पद के माध्यम से पुनः कार्य किए। उनकी प्रबल धारणा और दृढ़ विश्वास था कि जब तक दलित वर्ग, अछूत जाति के लोग शिक्षित नहीं होंगे तब तक इनका मानसिक विकास संभव नही होगा और वे स्वयं संघर्ष करने तथा उन्नति करने में असफल रहेंगे। अतः इसी भावना से प्रेरित होकर 29 जून, सन् 1946 ई. में उन्होंने सिद्धार्थ महाविद्यालय की स्थापना की। उनकी दृढ़ निश्चय था कि – “मनुष्य स्वयं अपना निर्माता है। सभी को स्वयं अपनी कौम का भाग्य बनाना होगा”। राजनीतिक सुधार की अपेक्षा डॉ. अम्बेदकर समाज सुधार को अधिक सृजनात्मक और प्रभावशाली मानते थे जिसके माध्यम से व्यक्ति और समाज दोनों ही उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।

संविधान निर्माण

भारत के नीले आकाश में 15 अगस्त 1947 को आज़ादी का तिरंगा लहरा उठा और इसके साथ ही आरम्भ हुई थी भारत की प्रजातंत्र पद्धति। उस समय डॉ. भीमराव अम्बेदकर की प्रतिभा की चर्चा थी अतः भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने डॉ. अम्बेदकर को अगस्त 1947 में ही प्रथम विधि मंत्री के रूप में मंत्रि मण्डल में सम्मिलित किया। इसके पश्चात् स्वतंत्र देश के लिए संविधान निर्माण की आवश्यकता थी। अत: इसके लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया। 29 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान का मसौदा बनाने वाली समिति का गठन हुआ और इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए डॉ. भीमराव अम्बेदकर। संविधान के लिए दार्शनिक आधार प्रदान करने के लिए नेहरू ने 13 दिसम्बर सन् 1946 को संविधान निर्मात्री सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ प्रस्तुत किया था। इसमें कहा गया था – यह संविधान सभा अपने इस दृढ़ और गम्भीर संकल्प की घोषणा करती है कि वह भारत को एक स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न गणराज्य घोषित करेगी और उसके भावी शासन के लिए एक संविधान की रचना करेगी। 26 नवम्बर 1949 को इस संविधान को अंगीकृत गया था। 26 जनवरी 1950 को यह संविधान भारत में लागू किया गया था। यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है तथा इसकी समता विश्व के अन्य देशों के संविधान नहीं कर सकते हैं। इस संविधान के निर्माण में डॉ. अम्बेदकर ने विशेष भूमिका निभाई और अनथक प्रयास किया। इस सम्बन्ध में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था – ‘डॉ. अम्बेदकर को मसविदा समिति में सम्मिलित करके और उसके बाद उनको अध्यक्ष चुनकर हमने जो कार्य किया उससे बढ़कर हम दूसरा अच्छा कार्य नहीं कर सकते।’

इस संविधान में मानव के मौलिक अधिकारों की बिना किसी भेदभाव के रक्षा की गई है। यह डॉ. अम्बेदकर की प्रतिभा और भावना तथा भारत की संस्कृति के अनुरूप है।

डॉ. अम्बेदकर सच्चे हृदय से मानव के विकास के पक्षपाती थे लेकिन वे वर्गहीन समाज की रचना के प्रबल पक्षधर थे। वे अछूतों और दलितों को केवल उनके मौलिक अधिकार दिलाने तक ही सीमित नहीं थे अपित उनमें आत्मविश्वास और मानसिक विकास भी चाहते थे। उन्हें वे कृपा पात्र नहीं बनाना चाहते थे। अछूत होने का दर्द सहन कर वे इस जहर को स्वयं पीकर समाप्त करना चाहते थे। वे दलितों और शोषितों के मसीहा थे उनके नायक और मित्र थे हम दर्द थे। संविधान के माध्यम से उन्होंने उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा की। उन्हें उनकी महान् तपस्या के अनुरूप भारत सरकार ने भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया था।

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