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जैव विविधता और संरक्षण

पृथ्वी पर पाए जाने वाले पौधों, जानवरों, कवकों और सूक्ष्मजीवों सहित जीवन के अन्य सभी रूपों की विस्तृत श्रृंखला में काफी अधिक विविधता पाई जाती है. इसी विविधता को ही जैव विविधता कहा जाता है. जीवन के अलावा इसमें उस पर्यावरण को भी शामिल किया जाता है, जो इन जीवों का आवास है. यह हमारे ग्रह के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता का एक महत्वपूर्ण पहलू है. जैव विवधता पारिस्थितिक तंत्र को बरकार रखने में दवा का काम कर इसे स्वस्थ्य बनाए रखता है. साथ ही इससे हमें प्राकृतिक ‘ सांस्कृतिक मूल्य ‘ भी प्राप्त होता है.

जैव विविधता को आनुवंशिक , प्रजाति विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के विविधता में वर्गीकृत किया गया है. जैव विविधता प्राकृतिक दुनिया और पृथ्वी पर जीवन के स्वास्थ्य में अद्वितीय भूमिका निभाता है. लेकिन, जीवों के प्राकृतिक आवास के विनाश और जलवायु परिवर्तन जैसे नकारात्मक खतरों से कई प्रजातियों के विलुप्ति का संकट पैदा हुआ है. कई तो विलुप्त हो गए है या होने के करीब है. इसलिए जैव विविधता के संरक्षण का सामूहिक प्रयास जरुरी है.

बढ़ते प्रदुषण , बढ़ती जन आबादी, प्रकृति में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, घटते वन और मानव द्वारा अन्य जीवों के आवास के अतिक्रमण से कई जीव-जंतुओं, पौधों, पक्षी और सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व पर गहरा संकट पड़ा है. इससे धरती के जैविक विविधता को नुकसान हुआ है और इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है. पृथ्वी पर जीवन और जीवधारियों पर आए इस संकट को ही जैव विविधता संकट कहा जाता है.

जैविक विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biodiversity – CBD) और साइट्स (CITES – Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संधियों का संबंध जैव विविधता संरक्षण से है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपने दशकीय और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में एकीकरण जैसी पहलों के माध्यम से भी जैव विविधता को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है.

परिचय और इतिहास (Introduction and History)

जैव विविधता (Biodiversity) दो शब्दों – जैविक (Biological) और विविधता (Diversity) – से बंना है. इस शब्द के प्रथम प्रयोग के बारे में विवाद है. विकिपीडिया के अंग्रेजी संस्करण के अनुसार, 1980 में थॉमस लवजॉय ने एक किताब में वैज्ञानिक समुदाय के लिए जैविक विविधता (Biological Diversity) शब्द पेश किया. इसके बाद इस शब्द का व्यापक इस्तेमाल सामान्य होते चला गया.

एडवर्ड ओ. विल्सन (Edward O. Wilson) के अनुसार, 1985 में जैव विविधता का अनुबंधित (Contracted) रूप डब्ल्यू. जी. रोसेन (W. G. Rosen) द्वारा गढ़ा गया था. इसके तर्क में उन्होंने कहा कि “जैव विविधता पर राष्ट्रीय मंच” की कल्पना वाल्टर जी.रोसेन ने की थी. इसी दौरान उन्होंने जैव विविधता (Biodiversity) शब्द के उपयोग की शुरुआत की. इसलिए जैव विविधता का प्रथम इस्तेमाल करने का श्रेय वाल्टर जी. रोसेन को दिया जा सकता है.

जैव विविधता क्या है(What is Biodiversity in Hindi)?

अलग-अलग विद्वानों ने ‘ जैव विविधता ‘ शब्द का कई परिभाषाएँ दी है. इसे किसी क्षेत्र के जीन, प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र की समग्रता’ के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है. इसमें प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच और पारिस्थितिक तंत्र की विविधता शामिल है.

जैव विविधता को विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में मौजूद जीवों के बीच सापेक्ष विविधता के माप के रूप में भी देखा जाता है. इस परिभाषा में, विविधता में प्रजातियों के भीतर और प्रजातियों के बीच भिन्नता और पारिस्थितिक तंत्र के बीच तुलनात्मक विविधता शामिल है.

गैस्टन और स्पाइसर (2004) के अनुसार, यह ‘ जैविक संगठन के सभी स्तरों पर जीवन की विविधता ‘ है.

1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के अनुसार, “ जैव विविधता समस्त स्रोतों, यथा-अंतर्क्षेत्राीय, स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह, जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएँ हैं. इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित है. “

जैविक विविधता पर कन्वेंशन (ग्लोका एट अल, 1994) के अनुसार, “ जैव विविधता को सभी स्रोतों से जीवित जीवों के बीच परिवर्तनशीलता के रूप में परिभाषित किया गया, जिसमें अन्य चीजें, स्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिक परिसर शामिल हैं; जिनका वे हिस्सा हैं “.

जैव विविधता के स्तर (Levels of Biodiversity in Hindi)

Levels of Biodiversity

जैव विविधता को तीन स्तरों में विभाजित किया जा सकता है. ये तीनों मिलकर पृथ्वी पर जीवन के संभावनाओं को साकार करते है. ये है:

  • आनुवंशिक विविधता
  • प्रजाति विविधता
  • पारिस्थितिकी तंत्र विविधता

1. आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity in Hindi)

एक प्रजाति के भीतर वंशानुगत जानकारी (जीन) की बुनियादी इकाइयों में विविधता को आनुवंशिक विविधता कहा जाता है. जीनोम किसी जीव की आनुवंशिक सामग्री (यानी, डीएनए) का पूरा सेट है.

यह एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तांतरित होता है. मतलब कोई संतान अपने माता-पिता से इस गुण को प्राप्त करता है. इसी के कारण एक जीव का अगला पीढ़ी अपने पिछले पीढ़ी के समान गुण का होता है. किसी प्रजाति के दो जीवों के गुणों, बनावट, खानपान व व्यवहार में अंतर् का कारण भी आनुवंशिक विविधता ही है. इसी कारण दो मनुष्यों के चेहरे, रंगरूप व गुणों में अंतर होते है. वास्तव में, आनुवंशिक विविधता ही जैव विविधता का मूल स्त्रोत है और विभिन्न प्रजातियों का आधार है.

एक ही प्रजाति के पक्षियों के स्वर, पंखों के रंग, सेब और अन्य खाद्य पदार्थों के रंग, स्वाद और बनावट इत्यादि अलग-अलग होने का कारण आनुवंशिक विविधता ही है.

आनुवंशिक विविधता यह निर्धारित करता है कि कोई जीव अपने पर्यावरण के प्रति किस हद तक अनुकूलन कर सकता है. धरती पर जलवायु परिवर्तन के इतिहास को देखते हुए, यह अनुकूलन उक्त जीव के अस्तित्व के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. लेकिन जानवरों के सभी समूहों में आनुवंशिक विविधता समान नहीं होती है. आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए, एक प्रजाति की विभिन्न आबादी को संरक्षित किया जाना चाहिए.

इस तरह बदलते पर्यावरण और मौसम के कारण आनुवंशिक गुण व जीन प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण हो जाते है. इसी को ध्यान में रखते हुए विश्व में जीनों को संरक्षित करने के प्रयास भी किए जा रहे है. ग्लोबल जीनोम इनिशिएटिव एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है. जीनोम के नमूनों को एकत्रित व संरक्षित कर पृथ्वी की जीनोमिक जैव विविधता को बचाना ही इसका लक्ष्य है.

2. प्रजातीय विविधता (Species Diversity in Hindi)

प्रजाति विविधता से तात्पर्य किसी पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रजातियों की विविधता से है. दो प्रजाति समान नहीं होते है, जैसे इंसान और चिम्पांजी. दोनों के जीन में 98.4 प्रतिशत का समानता होता है. लेकिन दोनों अलग-अलग जीवधारी है. यहीं अंतर प्रजति विविधता कहलाता है.

दूसरे शब्दों में, किसी प्रजाति की आबादी के भीतर या किसी समुदाय की विभिन्न प्रजातियों के बीच पाई जाने वाली परिवर्तनशीलता ही प्रजातीय विविधता है. प्रजाति किसी जीव का बुनियादी इकाई होता है, जिसका उपयोग जीवों को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल जैव विविधता का वर्णन करने में सबसे अधिक होता है. इसी से किसी प्रजाति के समुदाय के समृद्धि, प्रचुरता और पर्यावरण से अनुकूलता का पता चलता है.

यदि प्रजातियों की संख्या और प्रकार के साथ ही प्रति प्रजाति अधिक आबादी से जैविक विविध परिस्थिति का पता चलता है. प्रजातीय विविधता को 0 से एक के बीच मापा जाता है. 0 सबसे अधिक विविधता को दर्शाता है, जबकि 1 सबसे कम विविधता को दर्शाता है. यदि किसी परिस्थिति में प्रजातीय विविधता 1 है तो माना जाता है कि उक्त जगह सिर्फ एक प्रजाति निवास कर रहा है.

किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातीय विविधता कायम होना उसके सुरक्षा के लिए नितांत जरुरी है. उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन चक्र में बैक्टीरिया, पौधे और केंचुए भाग लेते है. इससे मिटटी को उर्वरता प्राप्त होता है. यदि इनमें कोई एक जीव विलुप्त हो जाए तो नाइट्रोजन चक्र समाप्त हो जाएगा. इससे मिटटी के उर्वरता के साथ-साथ मानव खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी.

3. पारिस्थितिकीय विविधता (Ecological Diversity in Hindi)

पारिस्थितिकी तंत्र जीवन के जैविक घटकों का एक समूह है जो आपस में और पर्यावरण के निर्जीव या अजैविक घटकों के साथ परस्पर सम्बन्धित होते है. मतलब, पारिस्थितिकी तंत्र जीवों और भौतिक पर्यावरण का एक साथ पारस्परिक क्रिया है. पारिस्थितिकी तंत्र के उदाहरण में ग्रेट बैरियर रीफ, मकड़ी का जाल, तालाब, पहाड़, रेगिस्तान, समुद्र तट और नदी शामिल है. यहां अलग-अलग प्रकार के जीव निवास करते है.

इसलिए पारिस्थितिक तंत्र विविधता , आवासों की विविधता है, जहां जीवन विभिन्न रूपों में पाए जाते है. ऐसे स्थानों पर ख़ास प्रकार के जीव स्वाभाविक रूप से पाए जाते है. जैसे रेगिस्तान में कैक्टस, ऊँचे पर्वतों पर शंकुधारी वृक्ष, तालाबों में जलकुम्भी व मीठे जल की मछली इत्यादि, पारिस्थितिकीय विविधता का उदाहरण है.

जैव विविधता प्रवणता (Biodiversity Gradients in Hindi)

जलवायु जनित परिस्तिथियों के कारण बायोमास और प्रजातियों की संख्या में क्रमिक कमी जैव विविधता प्रवणता कहलाता है. इसके कारण जीवन के सघनता में निम्न प्रकार से बदलाव देखा जाता है-

  • उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों (ध्रुवों से भूमध्य रेखा) में जाने पर जीवों की संख्या और जैव विविधता में कमी पाया जाता है.
  • पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई के साथ ही विविधता में कमी होते जाता है.
  • टुंड्रा व टैगा जलवायु क्षेत्रों में विषुवतीय व उष्णकटिबंधीय वर्षावन वाले क्षेत्रों के तुलना में कम विविधता होता है.

इसके अलावा सागरीय पारिस्थितिकी भी जैव विविधता प्रवणता से प्रभावित होता है. समुद्र की गहराई बढ़ने के साथ-साथ जानवरों की संख्या कम हो जाती है, लेकिन प्रजातियों की विविधता बहुत अधिक होती है. सतह के करीब वाले समुद्री हिस्से अधिक उत्पादक होते हैं, क्योंकि उन्हें निचली गहराई की तुलना में अधिक प्रकाश प्राप्त होता है. यह उच्च उत्पादकता उन्हें विभिन्न प्रकार के जीवन रूपों का समर्थन करने की अनुमति देती है.

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बायोमास और अत्यधिक जनसंख्या के निम्नलिखित कारण है-

  • मैदानी व उष्णकटिबंधीय इलाकों में जीवन आसान होता है, जबकि टुंड्रा जैसे ठन्डे और पहाड़ों के चोटी पर जीवन कठिन होता है.
  • भूमध्य रेखा पर धुप की किरणे सीधी पड़ती है, इससे पौधों को अधिक ऊर्जा प्राप्त होता है. अधिक पौधें शाकाहारी जीवों के विकास में योगदान देते है और मांसभक्षियों की संख्या भी बढ़ जाती है.

जैव विविधता मापन के घटक (Components of Biodiversity Measurement in Hindi)

measurement of biodiversity alpha beta and gama

किसी स्थान में जैव विविधता के समृद्धि या एकरूपता का पता लगा के लिए विभिन्न तरीकों अपनाया जाता है. समुदाय और पारिस्थितिकी तंत्र के स्तर पर विविधता 3 स्तरों पर मौजूद है. पहली है अल्फा विविधता (सामुदायिक विविधता के भीतर), दूसरी है बीटा विविधता (समुदायों की विविधता के बीच) और तीसरी है गामा विविधता (कुल परिदृश्य या भौगोलिक क्षेत्र में आवासों की विविधता). इनकी व्याख्या इस प्रकार है:

1. अल्फा ( α ) विविधता (Alpha Diversity in Hindi):

किसी पारिस्थितिकी तंत्र में प्रजातियों की विविधता को मापती है. इसे आम तौर पर उस पारिस्थितिकी तंत्र में प्रजातियों की संख्या से व्यक्त किया जाता है. अल्फा विविधता एक समुदाय के भीतर छोटे पैमाने पर या स्थानीय स्तर पर प्रजातियों की विविधता का वर्णन करती है, आमतौर पर एक पारिस्थितिकी तंत्र के आकार की. जब हम लापरवाही से किसी क्षेत्र में विविधता की बात करते हैं, तो अक्सर इसका तात्पर्य अल्फा विविधता से होता है.

2. बीटा ( β ) विविधता (Beta Diversity in Hindi):

दो समुदायों या दो पारिस्थितिक तंत्रों के बीच प्रजातियों की विविधता में परिवर्तन का माप बीटा विविधता कहलाता है. यह आवासों या समुदायों की एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापन दर से संबंधित है. यह जीवों की विविधता मापने का बड़ा पैमाना है और दो अलग-अलग अवयवों के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना करता है. ये अक्सर नदी या पर्वत श्रृंखला जैसी स्पष्ट भौगोलिक बाधा से विभाजित होती हैं.

3. गामा ( γ ) विविधता (Gama Diversity in Hindi):

एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र की समग्र जैव विविधता को मापती है. यह एक क्षेत्र में विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों के लिए समग्र विविधता का माप है. गामा विविधता में विविधता का अध्ययन बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. जैसे एक बायोम, जहां कई पारिस्थितिक तंत्रों के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना की जाती है. यह किसी पर्वत की संपूर्ण ढलान, या समुद्र तट के संपूर्ण तटीय क्षेत्र तक विस्तृत हो सकता है.

α, β और γ विविधता का महत्त्व (Importance of α, β and γ Diversity)

Alpha Beta and Gama Diversity Diagram for UPSC and Other State PCS Competitive Examination

विविधता के एक या दो स्तरों पर मानवीय हस्तक्षेप के काफी बढ़ गया है. इससे समग्र गामा विविधता में गिरावट हो रही है. इंसानों ने अपने आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए प्रकृति का भरपूर दोहन किया है. जंगल के जगह खेत, शहर, सड़के और अन्य मानवीय संरचनाओं का निर्माण हुआ है, जो पारिस्थितिक तंत्र के सिकुड़ने का कारण बन गया.

इन छोटे तंत्रों में सड़कों और शहरों के अवरोध उत्पन्न हुए है. यह दो समुदायों के सम्पर्क में बाधा के तौर पर उभरा है. साथ ही, एक तरह के जैवीय वातावरण बना है, जिससे बीटा विविधता में वृद्धि हुई है.

इसके साथ ही दुनियाभर में गामा विविधता में गिरावट देखा जा रहा है. अल्फा विविधता स्थिर हो या मामूली रूप से कम हो रही है या बीटा-विविधता में उतार-चढ़ाव हो, दुनिया के विभिन्न स्थानों पर बड़े पैमाने पर जीवों की विलुप्ति गामा विविधता में कमी का स्पष्ट प्रमाण है.

जैव विविधता सूचकांक (Biodiversity Index in Hindi)

ये सूचकांक किसी पारिस्थितिकी तंत्र की जैव विविधता का मूल्य है. चूँकि कोई एक सूचकांक जैव विविधता के सभी पहलुओं का आकलन नहीं कर पाता है. इसलिए अनुसंधानकर्ताओं द्वारा विविधता का मूल्यांकन के लिए कई प्रकार के सूचकांकों का इस्तेमाल किया जाता है. यह मूल्यांकन मुख्यतः निम्नलिखित दो कारकों पर निर्भर होता है:

  • प्रचुरता (Richness)
  • समानता (Evenness)

1. प्रचुरता (Richness)

किसी सैंपल में उपलब्ध प्रजातियों की संख्या जितनी अधिक होगी, उसे उतना ही प्रचुर कहा जाएगा. विविधता के गणना के लिए प्रजाति के जीवों की संख्या का गणना नहीं किया जाता है. उदाहरण के लिए, किसी सैंपल में उपलब्ध आम के 5 पेड़ और कटहल के 25 पेड़ों को दो प्रजाति माना जाता है.

सैंपल में प्रजाति के जिस जीव या पौध का संख्या कम हो उसे अधिक भार दिया जाता है. उपरोक्त उदाहरण में आम के 5 पेड़ों को कटहल के 25 पेड़ों के तुलना में अधिक भार दिया जाएगा.

2. समानता (Evenness)

किसी सैंपल में विभिन्न प्रजातियों की सापेक्षिक उपलब्धता को सैंपल का समानता कहा जाता है. इसे आसानी से समझने के लिए नीचे दिए गए तालिका पर गौर करें:

प्रजातिसैंपल 1सैंपल 2
बरगद512129
लीची4871173
कटहल501198
कुल15001500

इस उदारहरण में पहला सैंपल अधिक समान है, क्योंकि इसमें तीनों प्रजातियों की संख्या लगभग समान है. इसलिए इसे अधिक विविध माना जाएगा.

जिस सैंपल में अत्यधिक प्रचुरता और समानता का गुण हो, उसमें उतना ही अधिक विविधता होता है.

जैव विविधता के अन्य सूचकांक (Other Indices of Biodiversity in Hindi)

विभिन्न जीव विज्ञानियों द्वारा अलग-अलग सूचकांक विकसित किए गए है. इनके माध्यम विविधता के सम्बन्ध में कई प्रकार के जानकारियां आसानी से प्राप्त हो जाते है. इनमें कुछ प्रमुख और विख्यात सूचकांक इस प्रकार है:

1. सिम्पसन विविधता सूचकांक (Simpson’s Diversity Index)

इसमें सूचकांक में समानता और प्रचुरता, दोनों का ध्यान रखा गया है. प्रचुरता और समानता, दोनों के लिए एक अंक निर्धारित किया गया है. सिम्पसन विविधता सूचकांक जैव विविधता को मापने के लिए काफी उपयोगी है. विविधता मापने के लिए कई अन्य सूचकांक भी है. अन्य सूचकांक, जैसे कि स्पीशीज़ समृद्धि और स्पीशीज़ समानता, कभी-कभी अधिक उपयुक्त होते हैं.

सिम्पसन विविधता सूचकांक का सूत्र निम्नलिखित है:

D = 1 – Σ n(n-1)/N(N-1)

D = सिम्पसन विविधता सूचकांक n = समुदाय में ख़ास प्रजाति के जीवों की संख्या N = समुदाय में सभी प्रजातियों के जीवों की संख्या

इस सूचकांक का मान 0 से 1 के बीच होता है. 0 का मतलब समुदाय में केवल एक प्रजाति के मौजूद होने का संकेत देता है, जबकि 1 का मान समुदाय में सभी प्रजातियों की समान प्रचुरता को दर्शाता है.

मतलब विविधता का मान उच्च होना प्रजातियों के विस्तृत श्रृंखला के उपस्थिति को दर्शाता है. यह प्रत्येक जीव की आनुपातिक तौर पर पर्याप्त प्रचुरता होना निर्धारित करता है. दूसरी तरफ,संख्या का मान कम होने का मतलब है समुदाय में प्रजाति की संख्या और प्रचुरता कम है.

सिम्पसन विविधता सूचकांक का उपयोग अक्सर जैव विविधता के नुकसान को ट्रैक करने के लिए किया जाता है. जैसे-जैसे प्रजातियां विलुप्त होती हैं, समुदाय में प्रजातियों की संख्या और प्रचुरता कम होते जाता है.विविधता में कमी के अनुसार सिम्पसन विविधता सूचकांक भी कम हो जाता है. इससे किसी ख़ास क्षेत्र के विविधता में हो रहे बदलाव का पता चल जाता है.

सिम्पसन विविधता सूचकांक का उदाहरण

प्रजातिसंख्या (n)n(n-1)
साल22
चन्दन856
सागवान10
शीशम10
महुआ36
कुल1564
N = 15Σ n(n-1) = 64

यहाँ सिम्पसन फॉर्मूले में Σ n(n-1) और N का मान रखने पर हमें विविधता का मान 0.7 प्राप्त होता है. यह एक के करीब है, इसलिए यह इलाका समान और प्रचुर विविधता के करीब माना जा सकता है.

सिम्पसन सूचकांक के लाभ और हानि (Advantages and Disadvantages of Simpson Index)

सिम्पसन विविधता सूचकांक के कुछ लाभ और नुकसान निम्नलिखित हैं:

लाभ (Advantages):

  • यह एक सरल और समझने में आसान सूचकांक है.
  • यह समुदाय में प्रजातियों की संख्या और प्रचुरता दोनों को ध्यान में रखता है.

नुकसान (Disadvantages):

  • यह प्रजातियों के आकार या वितरण को ध्यान में नहीं रखता है.
  • यह प्रजातियों के बीच संबंधों को ध्यान में नहीं रखता है.

2. शेनॉन-वीनर सूचकांक (Shannon-Weiner Index in Hindi)

यह सूचकांक मूलतः क्लाउड शेनॉन (Claude Shannon) द्वारा 1948 में प्रस्तुत किया गया था. यह सूचकांक सबसे अधिक प्रचलित है. इसमें प्रचुरता और समानता दोनों तरह के विविधता का ध्यान रखा गया है. इस सूचकांक का सबसे बड़ा खासियत इसका लॉग (Log) पर आधारित होना है, जो क्लाउड ई. शैनन और नॉर्बर्ट वीनर द्वारा विकसित सूचना के सिद्धांतों पर आधारित है.

सूचकांक का सूत्र निम्नलिखित है:

H’ = -\sum_{i=1}^{S} p_i \log_e p_i

H’ = शेनॉन – वीनर सूचकांक p_i = समुदाय में iवीं प्रजाति की प्रचुरता S = समुदाय में प्रजातियों की कुल संख्या

सिम्पसन सूचकांक के भांति शेनॉन-विनर सूचकांक का मान भी 0 से 1 के बीच होता है. 0 का मान पूर्ण रूप से एकल समुदाय को दर्शाता है. मललब इलाके में सिर्फ एक ही प्रजाति मौजूद है. वहीं, 1 का मान पूर्ण रूप से विविध समुदाय को दर्शाता है. मतलब इलाके में विभिन्न प्रजातियों के जीव समान रूप से प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है.

इस सूचकांक का उपयोग विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक समुदायों, जैसे कि वन, घास के मैदान, झीलें और महासागरों में प्रजातियों की विविधता को मापने के लिए किया जाता है. यह सूचकांक हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रजातियों की विविधता को कैसे संरक्षित किया जाए. इसलिए यह पारिस्थितिकीय संरक्षण के लिए भी उपयोगी है.

खासियत और खामी

शेनॉन – वीनर सूचकांक के कुछ फायदे निम्नलिखित हैं:

  • यह सूचकांक सरल और आसानी से समझने योग्य है.
  • यह विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक समुदायों में प्रजातियों की विविधता को मापने के लिए उपयोग किया जा सकता है.
  • यह हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रजातियों की विविधता को कैसे संरक्षित किया जाए.

शेनॉन – वीनर सूचकांक के कुछ नुकसान निम्नलिखित हैं:

  • यह प्रजातियों की प्रचुरता के आकार पर निर्भर करता है.
  • यह प्रजातियों के आकार या आवास के प्रकार जैसे अन्य कारकों को ध्यान में नहीं रखता है.

जीवीय विविधता के महत्व (Importance of Biological Diversity in Hindi)

मानव अपने जीवन को बनाए रखने के लिए प्रकृति से कई प्रकार के वस्तुएं प्राप्त करता है. इसलिए मानव जीवन के लगभग सभी पहलुओं में जैव विविधता का अत्यधिक महत्व है. जैव विविधता के विविध उपयोगों में शामिल हैं:

1. उपभोग्य उपयोग (Consumptive Uses):

जैव विविधता के उपभोग का अर्थ जीवीय उत्पादों की कटाई और उपभोग से है, जैसे ईंधन, भोजन, औषधियाँ, औषधियाँ, रेशे आदि. जंगली पौधे और जानवरों की एक बड़ी संख्या मनुष्यों के भोजन का स्रोत हैं. दुनिया की लगभग 75% आबादी दवाओं के लिए पौधों या पौधों के अर्क पर निर्भर है.

उदाहरण के लिए, एंटीबायोटिक के रूप में उपयोग की जाने वाली दवा पेनिसिलिन, पेनिसिलियम नामक कवक से प्राप्त होती है. वहीं टेट्रासाइक्लिन एक जीवाणु से प्राप्त होता है. मलेरिया का इलाज के लिए जरूरी कुनैन भी सिनकोना पेड़ की छाल से प्राप्त किया जाता है.

विनब्लास्टिन और विन्क्रिस्टिन नाम की दो कैंसर रोधी दवाएं कैथरैन्थस पौधे से प्राप्त की जाती हैं. इसके अलावा इंसान जंगलों का उपयोग सदियों से ईंधन की लकड़ी के लिए करते रहे है. जीवाश्म ईंधन कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस भी जैव विविधता के उत्पाद हैं.

2. उत्पादक उपयोग (Productive Use)

इसका तात्पर्य पशु उत्पाद जैसे कस्तूरी मृग से कस्तूरी, रेशमकीट से रेशम, भेड़ से ऊन, कई जानवरों से प्राप्त फर, लाख के कीड़ों से प्राप्त लाख आदि इत्यादि के व्यापार से है. इसके अलावा, कई उद्योग विविध जीव के उत्पादक उपयोग पर निर्भर हैं, जैसे, कागज और लुगदी, प्लाईवुड, रेलवे स्लीपर, कपड़ा, चमड़ा और मोती उद्योग इत्यादि.

3. सामाजिक महत्व (Social Value)

लोगों के सामाजिक जीवन, रीति-रिवाज, धर्म, मानसिक-आध्यात्मिक इत्यादि पहलू प्रकृति से जुड़े होते है. मतलब, जैव विविधता का अलग-अलग समाजों में विशिष्ट सामाजिक मूल्य होता है. उदाहरण के लिए बिश्नोई समाज के लोग काले हिरण को अपने गुरु जंबाजी उर्फ जंबेश्वर भगवान का रूप मानते है. भगवान् बुद्ध को भी बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ है. हिन्दू धर्म में भी तुलसी, पीपल, आम, कमल आदि कई पौधों को पवित्र माना जाता है और पूजा भी जाता है. कई पौधों के पत्तियों, सूखे टहनियों, फलों या फूलों का उपयोग पूजा में किया जाता है. आदिवासियों का सामाजिक जीवन, गीत, नृत्य और रीति-रिवाज वन्य जीवन से जुड़े हुए हैं. इस प्रकार जीवीय विविधता का समाज में विशेष महत्व होता है.

4. नैतिक या अस्तित्व मूल्य (Ethical or Existence Value)

यह ‘जियो और जीने दो’ की अवधारणा पर आधारित है. मतलब मानव जीवन के सुरक्षा के लिए पृथ्वी का विविधता बचाए रखना जरुरी है. इसलिए धरती पर सभी प्रकार के जीवन को सुरक्षित किया जाना चाहिए.

5. सौन्दर्यपरक मूल्य (Aesthetic Value)

सौंदर्यपूर्ण पर्यावरण का उपयोग पर्यटन और मनोरंजन के लिए किया जाता है. लोग प्राकृतिक सुंदरता और विविधता का आनंद लेने के लिए दूर-दूर तक का सफर तय करते है. इसमें उनके बड़ा धन खर्च होता है और समय की बर्बादी भी होती है. लेकिन, इससे प्राप्त होने वाला ताजगी मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है. इसलिए जैव विविधता का सौंदर्य संबंधी महत्व बहुत अधिक है.

6. पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्य (Ecosystem Service Values in Hindi)

मानव कल्याण और निर्वाह के लिए अपरिहार्य वस्तुओं और सेवाओं के समुच्चय को पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ (ESs) कहा जाता है. वहीं, पारिस्थितिकी तंत्र कार्यप्रणाली (Ecosystem Function) इसके भीतर होने वाली प्रक्रियाओं और घटकों को संदर्भित करता है. ‘पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्य (ESVs)’ पारिस्थितिकी तंत्र की वस्तुओं और सेवाओं और उसके कार्यों को आर्थिक मूल्य निर्धारित करने और निर्दिष्ट करने का एक दृष्टिकोण है.

हमे पारिस्थितिक तंत्र द्वारा कई प्रकार के सेवाएं और लाभ प्राप्त होते है. उदाहरण के लिए, मिट्टी के कटाव को रोकना, बाढ़ की रोकथाम, मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखना, पोषक तत्वों का चक्रण, नाइट्रोजन का स्थिरीकरण, पानी का चक्रण, प्रदूषक अवशोषण और ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को कम करना इत्यादि में पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न घटकों द्वारा प्राप्त लाभ है.

बढ़ती मांग और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन के कारण स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना और कार्यप्रणाली गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं. इसलिए विविधता का संरक्षण आवश्यक हो जाता है.

पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का वर्गीकरण चार प्रकार में किया गया है:

  • खाद्य : फसल, पशुधन, मछली
  • पानी : जलाशय, नदियां, झीलें
  • लकड़ी : इमारती लकड़ी, कागज
  • दवाएं : औषधीय पौधे, जंतु उत्पाद
  • बाढ़ नियंत्रण: नदी के किनारों पर पेड़, जंगल
  • मिट्टी संरक्षण: वन, घास के मैदान
  • जलवायु नियमन: वन, समुद्री वनस्पति
  • रोग नियंत्रण: परभक्षी, रोगाणुरोधी पौधे
  • कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन
  • पर्यटन, मनोरंजन
  • वन्यजीव अवलोकन
  • शिक्षा, अनुसंधान
  • आध्यात्मिक मूल्य
  • मनोवैज्ञानिक लाभ
  • सांस्कृतिक पहचान

इसके अलावा जैव विविधता द्वारा संचालित वे कार्य जो जैव विविधता, पोषण चक्र तथा अन्य सेवाओं को यथावत कायम रखने में सहायक हो, सहायक सेवा कहा जा सकता है.

7. जैव विविधता का कृषि में महत्व

कृषि कार्य में जैव विविधता का काफी अहम योगदान होता है. राइजोबियम, एज़ोटोबैक्टर और साइनोबैक्टीरिया जैसे जीवाणु नाइट्रोजन स्थिरीकरण में हिस्सा लेकर जमीन में नाइट्रोजन का मात्रा बढ़ाते है. वहीं, केंचुआ मिटी को मुलायम और भुरभुरी बनाए रखने में मदद करता है. इसलिए केंचुए को किसान का मित्र कहा जाता है.

दुनिया में करीब 1400 प्रकार के पौधों को खाद्य उत्पाद के लिए उगाया जाता है. इनमें 80 फीसदी को परागण का जरूरत होता है. मधुमक्खियाँ, भृंग, तितलियाँ, चींटियाँ, हमिंगबर्ड, चमगादड़, कृंतक, नींबू, छिपकली, ततैया, पतंगे और स्लग इसमें मदद करते है.

विविधता में ह्रास के कारण उपरोक्त जीवों के संख्या में ह्रास हुआ है. बढ़ती आबादी को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाने के लिए आधुनिक कृषि प्राद्यौगिकी व उत्पाद का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इनमें कीटनाशकों व रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी शामिल है. इससे कृषि में सहायक जीवों के जीवन पर खतरा उत्पन्न हुआ है.

प्रदुषण से भी कृषि पादपों के प्रजाति पर असर हुआ है. अनुमानतः 940 के करीब कृषि प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है.

8. वैज्ञानिक और विकासवादी मूल्य (Scientific and Evolutionary Values)

प्रत्येक प्रजाति का विशेषता मिलकर ये बताने में सक्षम होते है कि पृथ्वी पर जीवन कैसे विकसित हुआ और कैसे विकसित होता रहेगा. जीवन कैसे कार्य करता है और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में प्रत्येक प्रजाति की भूमिका क्या है, जैसे मुद्दों को भी विविधता द्वारा समझा जा सकता है. इसके अलावा भी जैव विविधता के अन्य कई अन्य महत्व है.

जैव विविधता हानि के कारण (Causes of Biodiversity Loss in Hindi)

पृथ्वी पर जैव विविधता का नुकसान हमारे ग्रह और इसके लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है. जैव विविधता के नुकसान के कारणों को समझकर ही हम अपनी प्राकृतिक दुनिया की रक्षा के लिए कदम उठा सकते है. इसलिए इन कारणों को समझना जरुरी है. जैव विविधता के हानि का कारण या तो प्राकृतिक या फिर मानवीय हो सकता है.

A. प्राकृतिक

  • प्राकृतिक आपदाएँ : भूकंप, भू-स्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, तूफान, बाढ़-सुखाड़ और जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएँ आवासों को नष्ट कर सकती हैं और बड़ी संख्या में पौधों और जानवरों को मार सकती हैं.
  • जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान, वर्षा और समुद्र के स्तर में परिवर्तन हो रहा है. इससे कई प्रजातियों के लिए प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियां उत्पन्न होते है. इससे पारिस्थितिक तंत्र बाधित होता है और प्रजातियों के नुकसान का कारण बन जाता है.
  • आक्रामक प्रजातियाँ : आक्रामक प्रजातियाँ गैर-देशी प्रजातियाँ हैं. जब ये नए वातावरण में प्रवेश करते है तो यहाँ इनका कोई प्राकृतिक शिकारी या प्रतिस्पर्धी नहीं होता है. इसके कारण ये तेजी से फैलकर देशी और स्थानीय प्रजातियों को विस्थापित कर सकती हैं, जिससे स्थानीय विविधता का नुकसान हो सकता है.
  • सहविलुप्तता : जब एक प्रजाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगते है. उदाहरण के लिए, जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवि भी विलुप्त होने लगते है. दूसरा उदाहरण सह-उद्भव व विकास (Co – evolution and Development ), परागण (Pollination) और सहोपकारिता (Mutualism) का है. परागण में पौधों के विलोपन से किट-पतंगों का भी विनाश होने लगता है.

B. मानव निर्मित

i) प्रत्यक्ष

  • पर्यावास का विनाश : पर्यावास का विनाश जैव विविधता हानि का सबसे प्रमुख कारण है. मनुष्य कृषि, विकास और अन्य उद्देश्यों के लिए जंगलों, घास के मैदानों और अन्य प्राकृतिक आवासों को साफ़ करते है. यह पौधों और जानवरों के घरों को नष्ट कर देता है, जिससे उन्हें नए क्षेत्रों में जाना पड़ता है अन्यथा भोजन के अभाव में अपना जीवन त्यागना पड़ता है.
  • अतिशोषण : अतिशोषण जानवरों और पौधों के उपभोग के उस दर से होती है जो क्रमशः उनके प्रजनन और रोपण के तुलना में तेज़ होती है. इससे आबादी का पतन होता है और यहां तक कि विलुप्ति भी हो सकती है.
  • प्रदूषण : प्रदूषण आवासों को दूषित कर सकता है और उन्हें पौधों और जानवरों के लिए अनुपयुक्त बना सकता है. यह सीधे तौर पर पौधों और जानवरों के लिए जहर का काम भी कर सकता है. औद्योगिक कचरे, प्लास्टिक, जल में औद्योगिक रसायन द्वारा प्रदुषण इत्यादि इसके उदाहरण है.

ii) अप्रत्यक्ष

  • जलवायु परिवर्तन : जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण होता है. जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, जलवायु परिवर्तन का जैव विविधता पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है.
  • आक्रामक प्रजातियों का परिचय : मनुष्य अक्सर व्यापार, यात्रा और अन्य गतिविधियों के माध्यम से अनजाने में आक्रामक प्रजातियों को नए वातावरण में पेश करता है. उदाहरण के लिए, ज़ेबरा मसल्स को 1980 के दशक में उत्तरी अमेरिका में लाया गया था और तब से यह ग्रेट लेक्स में एक प्रमुख आक्रामक प्रजाति बन गई है.
  • रोग : मनुष्य जंगली पौधों और जानवरों में बीमारियाँ फैला सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर मृत्यु और विलुप्ति हो सकती है. उदाहरण के लिए, चेस्टनट ब्लाइट कवक 1900 के दशक की शुरुआत में उत्तरी अमेरिका में लाया गया था और इसने अरबों अमेरिकी चेस्टनट पेड़ों को नष्ट कर दिया था.

जैव विविधता संरक्षण (Conservation of Biodiversity in Hindi)

Methods of Biodiversity Conservation in Hindi for UPSC Infographics 1

जैव विविधता संरक्षण क्या है (What is Biodiversity Conservation in Hindi)?

सतत विकास के लिए प्रकृति से संसाधन प्राप्ति को उस प्रकार प्रबंधित करने से है जिससे जैव विविधता को कम से कम या नहीं के बराबर हानि हो, जैव विविधता का संरक्षण है. इस तरह विविधता संरक्षण का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के सदुपयोग से है.

जैव विविधता संरक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

  • प्रजातियों की विविधता को संरक्षित करना.
  • प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग को बरकरार रखना.
  • पृथ्वी के जीवन-सहायक प्रणालियों और आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखना.

जैव विविधता संरक्षण के रणनीतियां (Strategies of Biodiversity Protection)

प्रकृति में विविधता बनाए रखने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते है:

  • जीवों के प्राकृतिक आवास को न तो नष्ट करना चाहिए और न ही इनमें कोई बदलाव किया जाना चाहिए.
  • जीवन के लिए जरूरी मृदा, जल, हवा और ऊर्जा को सुरक्षित रखना चाहिए, ताकि सभी जीवों के लिए यह सुलभ हो.
  • सभी प्रकार के जीवों को प्राकृतिक आवास में ही सुरक्षा मिले. यदि ऐसा संभव न हो तो चिड़ियाघर या जंतु शाला (Zoological Park) में इन्हें संरक्षित किया जा सकता है.
  • असुरक्षित, संकटापन्न या विलुप्तप्राय जीवों के संरक्षण के लिए विशेष क़ानूनी प्रावधान होना चाहिए. यदि प्राकृतिक आवास पर इन्हें संरक्षित नहीं किया जा सके तो कृत्रिम आवास में इन्हें संरक्षित करना चाहिए.
  • जंगलों का सीमांकन स्पष्ट होना चाहिए और विविधता के दृश्कों से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बाह्य प्रवेश निषिद्ध होना चाहिए.
  • पशुओं के आहार, जलाशय, विश्राम स्थल और प्रजनन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
  • पारिस्थितिकी तंत्र का सिमित उपभोग करना चाहिए. साथ ही उपयोग उत्पादन दर के अनुरूप होना चाहिए.
  • असुरक्षित प्रजातियों के व्यापार पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध होना चाहिए.
  • एक जीव के स्थान पर सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र के सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए, ताकि संतुलन बना रहे.
  • जीवों के शिकार पर प्रतिबन्ध हो.
  • अत्यधिक प्रवणता वाले क्षेतों को संरक्षित घोषित करने से बड़े पैमाने पर जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है. यदि यह प्रयास वैश्विक स्तर पर हो तो परिणाम कई गुना फलित होंगे.
  • समाज में जागरूकता होने से संरक्षण की संभावना बढ़ती है. शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में जैव विविधता के महत्व और सुरक्षा के उपायों को शामिल करके भी जागरूकता फैलाया जा सकता है.

जैव विविधता संरक्षण के तरीके (Methods of Biodiversity Conservation in Hindi)

जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की परिवर्तनशीलता से है. इसे निम्नलिखित तरीकों से संरक्षित किया जा सकता है:

  • स्वस्थाने संरक्षण (In-situ Conservation)

अस्थानिये संरक्षण (Ex-situ Conservation)

1. स्वस्थाने संरक्षण (in-situ conservation).

यह प्राकृतिक आवास के भीतर प्रजातियों के संरक्षण का तरीका है. इस विधि से सम्पूर्ण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का रखरखाव एवं संरक्षण किया जाता है. इस रणनीति में उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र का पता लगाया जाता है. ये वैसे क्षेत्र है जिसमें पौधे और जानवर बड़ी संख्या में मौजूद हो. इस उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र को प्राकृतिक पार्क, वन्यजीव अभयारण्य, जीव मंडल आरक्षित क्षेत्र आदि के रूप में कवर किया किया जाता है. इस प्रकार जैव विविधता को मानवीय गतिविधियों से बचाकर उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित किया जा सकता है.

इस प्रकार के संरक्षण से अधिक लाभ होता है, जो इस प्रकार है.

  • यह सुविधाजनक और सस्ता तरीका है.
  • इस प्रकार के संरक्षण में लक्षित जीवों के साथ ही अन्य जीवों का सुरक्षा भी हो जाता है. इससे संरक्षित जीवों की संख्या बढ़ जाती है.
  • प्राकृतिक परिवेश में जीवों को जीवन से जुड़े बाधाओं से झूझना पड़ता है. इससे इनका बेहतर विकास होता है. साथ ही, विभिन्न वातावरण में समायोजित होने का गुण भी बरकरार रहता है.

भारत सरकार द्वारा इस विधि का उपयोग करते हुए निम्नलिखित आरक्षित क्षेत्र बनाए गए है:

1. राष्ट्रीय उद्यान (National Parks)

ये सरकार द्वारा संरक्षित छोटे क्षेत्र है. इसकी सीमाएँ अच्छी तरह से सीमांकित हैं और चराई, वानिकी, आवास और खेती जैसी मानवीय गतिविधियाँ निषिद्ध हैं. उदाहरण के लिए, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, और बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान.

2. वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary)

ये वे क्षेत्र हैं जहां केवल जंगली जानवर पाए जाते हैं. लकड़ी की कटाई, खेती, लकड़ियों और अन्य वन उत्पादों का संग्रह जैसी मानवीय गतिविधियों को तब तक अनुमति दी जाती है जब तक वे संरक्षण परियोजना में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. पर्यटकों को इन इलाकों में आने दिया जाता है.

3. बायोस्फीयर रिजर्व (Biosphere Reserve)

बायोस्फीयर रिजर्व बहुउद्देश्यीय संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां वन्य जीवन, निवासियों की पारंपरिक जीवनशैली और पालतू पौधों और जानवरों की रक्षा की जाती है. यहां पर्यटक और अनुसंधान गतिविधियों की अनुमति है.

सरक्षण के इस तकनीक में जैव विविधता को प्राकृतिक आवास के बाहर कृत्रिम पारिस्थितक तंत्र में संरक्षित किया जाता है. चिड़ियाघर, नर्सरी, वनस्पति उद्यान, जीन बैंक आदि इसके उदाहरण है. इसमें आनुवंशिक संसाधनों के साथ-साथ जंगली और खेती या प्रजातियों का संरक्षण शामिल है. इसके लिए विभिन्न तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग किया जाता है.

अस्थानिये संरक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं:

  • जीवों को भोजन, पानी और आवास के लिए कम संघर्ष करना पड़ता है. इससे उन्हें प्रजनन और आराम के लिए लम्बा समय मिलता है.
  • कैदी प्रजातियों को जंगल में फिर से बसाया जा सकता है.
  • लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए आनुवंशिक तकनीकों का उपयोग हो सकता है.
  • ऐसे कृषि बीज, जो प्रकृति में सुरक्षित नहीं रह सकते को जीन में सुरक्षित किया जा सकता.
  • जीन बैंक में सुरक्षित बीजों का उपयोग भविष्य में अनुसंधान और रोपण कार्य किया जा सकता है.
  • पुरे दुनिया में करीब 60 करोड़ लोग हरेक वर्ष चिड़िया घर व अन्य संरक्षित पार्क घूमने जाते है.

अस्थानिये जैव विविधता संरक्षण निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है:

  • जीन बैंक बनाकर : इसमें बीज, शुक्राणु और अंडाणु को बेहद कम तापमान और आर्द्रता पर संग्रहित किया जाता है.
  • शुक्राणु और अंडाणु बैंक, बीज बैंक इत्यादि बहुत कम जगह में पौधों और जानवरों की बड़ी विविधता वाली प्रजातियों को बचाने में बहुत मददगार है.
  • चिड़ियाघर और वनस्पति उद्यान का निर्माण : अनुसंधान उद्देश्य के लिए और जलीय जीवों, चिड़ियाघरों और वनस्पति उद्यानों के लिए जीवित जीवों को इकट्ठा कर सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना.
  • इन विट्रो प्लांट टिश्यू और माइक्रोबियल कल्चर का संग्रह.
  • जंगल में फिर से प्रवेश करवाने के उद्देश्य के साथ जानवरों का बंदी प्रजनन और पौधों का कृत्रिम प्रसार.

जैव विविधता का संरक्षण क्यों करें (Why to Protect Biodiversity)?

प्रजातियों के अधिक सघनता वाले क्षेत्र विविधता के दृष्टिकोण से अधिक स्थिर होते है. हम कई प्रकार से सजीवों से प्राप्य उत्पादों पर निर्भर है. साथ ही, यह हमें आर्थिक, औषधीय, सांस्कृतिक, नैतिक व सौंदर्य लाभ प्रदान करता है. इसलिए इनका संरक्षण जरुरी है.

इसे भी पढ़ें – भारत के 6 जैव विविधता हॉटस्पॉट

“जैव विविधता और संरक्षण” पर 1 विचार

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Very very very nice contant of biodiversity,I am very happy to read this contant

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जैव विविधता पर निबंध Essay on Biodiversity in Hindi

इस लेख में हिन्दी में जैव विविधता पर निबंध (Biodiversity Essay in Hindi) लिखा गया है। 

Table of Content

इसमें जैव विविधता का अर्थ, महत्व, जैव विविधता के 3 स्तर, जैव विविधता के संरक्षण और इसकी भूमिका इत्यादि के विषय में चर्चा किया गया है।

जैव विविधता क्या है? What is Biodiversity in Hindi?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसंधान के मुताबिक जैव विविधता पृथ्वी पर उपस्थित समस्त प्रजातियां और अनुवांशिक पारिस्थितिकी तंत्र का मापदंडन करती हैं। 

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करने वाले विभिन्न जीवों के आंकड़े और उनकी प्रजातियों में विविधता को जैव विविधता कहा जाता है। पूरे सौरमंडल में पृथ्वी को एक अलग पहचान देने में इसकी प्रमुख विशेषता रही है।

यह एक तरह का ऐसा प्राकृतिक संसाधन है, जो जीवन जीने के लिए अनिवार्य होता है। यदि जैव विविधता की कड़ी डगमगा जाती है, तब पृथ्वी पर विनाश जैसी परिस्थितियां प्रकट होने लगती हैं। 

जैव विविधता के जनक कौन हैं? Who is the Father of Biodiversity?

विश्व विख्यात हार्वर्ड विश्वविद्यालय के महान जीवविज्ञानी लोगों में से ईओ विल्सन (EO Wilson) को जैव विविधता का जनक कहा जाता है। वे एक प्रसिद्ध खोजकर्ता थे, जिन्हें उनके बेमिसाल कार्यों के लिए पुलित्जर पुरस्कार और अन्य कई सम्मान दिए जा चुके हैं।

जैव विविधता का महत्व Importance of Biodiversity in Hindi

वैसे तो जैव विविधता के अनगिनत महत्व और विशेषताएं हैं, किंतु कई अधिकारिक अनुसंधान के अनुसार पारिस्थितिक वैज्ञानिक तथा आर्थिक प्रकार की विशेषताएं बेहद खास मायने रखती हैं।

पारिस्थितिकीय महत्त्व

यहां उपस्थित प्रत्येक जीव जिंदा रहने के लिए दूसरे जीवो पर निर्भर रहता है। अर्थात पोषक तत्वों के चक्र के कारण ऊर्जा का संचालन स्वयं होता जाता है।

वैज्ञानिक महत्व 

जैव विविधता के महत्व को उचित ढंग से समझने के लिए हमें इसके वैज्ञानिक तर्क को समझना होगा। हमारे जीवन को बनाए रखने में दूसरी प्रजातियों का क्या योगदान है।  

वह किस तरह से अन्य प्रजातियों के विकास में सहायता करती हैं, यह सर्वप्रथम समझना होगा। हम जानते हैं कि पृथ्वी पर इंसानों का ही राज चलता है, लेकिन उनके अधिकारों का दुरुपयोग करने के कारण परिणाम यह निकला है कि बहुत सारी ऐसी प्रजातियां हैं, जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। 

जैव विविधता हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसके लिए हमें इसके महत्व को समझते हुए विवेक पूर्वक इसका प्रयोग करना चाहिए। 

यदि मानव इसी तरह प्रकृति चक्र में दखल अंदाज करता रहेगा, तो अब तक हमने जैव विविधता के परिणाम स्वरूप जो कुछ भी हासिल किया है वह सब एक प्रकृति के बदलाव के साथ नष्ट हो जाएगा।

आर्थिक महत्व

प्रकृति ने हमें जीने के लिए बहुत कुछ दिया है। देखा जाए तो यह किसी खजाने के भंडार से कम नहीं है। दैनिक जीवन स्थिर ढंग से चलाने के लिए भी यह महत्वपूर्ण है। 

हम भोजन के लिए प्राकृतिक संसाधनों अथवा कृषि पर निर्भर रहते हैं। प्राचीन काल से ही इन्हीं प्राकृतिक संसाधनों की सहायता से विभिन्न प्रकार की औषधियां, खाद्य पदार्थ और न जाने कितने तरह के वस्तुएं बनाए जाते रहे हैं। 

आज के समय में करोड़ों लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। यह जैव विविधता का आर्थिक महत्व को प्रकट करता है।

जैव विविधता के 3 स्तर 3 Levels of Biodiversity in Hindi

1. अनुवांशिक जैव विविधता.

समस्त मानव समुदाय को वैज्ञानिक भाषा में ‘होमोसेपियन’ प्रजाति कहा जाता है, क्योंकि अनुवांशिक विविधता के अनुरूप सभी इंसानों का दिखावटी शारीरिक संरचना, कद, रंग इत्यादि बेहद विभिन्न होते हैं। 

हम जानते हैं कि किसी भी जीव के निर्मित होने में जीन एक महत्वपूर्ण इकाई है तथा अनुवांशिक रूप से सभी प्राणियों में विभिन्न जीन पाए जाते हैं, जो जैव विविधता को दर्शाता है।

2. प्रजातीय जैव विविधता

भौगोलिक रूप से जिन निश्चित इलाकों में प्रजातियों की अधिक संख्या होती है, वह विविधता को प्रदर्शित करते हुए हॉटस्पॉट की सूची में डाल दिए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह विभिन्नता को प्रदर्शित करने वाले प्रजातीय जैव विविधता को निर्धारित करता है।

2. पारितंत्रीय जैव विविधता

इनके व्यापक विभिन्नताओं तथा अलग-अलग प्रकार के पारितंत्रीय की आवासों व क्रियाओं में बहुत अधिक विभिन्नता देखी जाती है।

जैव विविधता के संरक्षण Conservation of Biodiversity in Hindi

लोगों में जागरूकता.

हमें समझना होगा यदि जैव विविधता का अस्तित्व रहेगा, तभी हम जीवित रह पाएंगे। लोगों को इस विषय में जागरूक करने की बहुत जरूरत है, जिससे जैव विविधता को संरक्षण प्राप्त हो सके।

स्थानीय स्तरों पर संस्थाओं का विकास

जैव विविधता के संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति को उसका भागीदार बनना पड़ेगा, तभी हम साथ मिलकर इस समस्या का हल ढूंढ सकेंगे। 

इसके लिए स्थानीय क्षेत्रों में संस्थाओं को स्थापित करके लोगों में निरंतर पर्यावरण के संदर्भ में जागृति संचालन होता रहेगा।

शिक्षा के पाठ्यक्रमों में जानकारी

आज के बच्चे व युवा पीढ़ी ही कल का भविष्य हैं। प्रारंभिक स्तर पर जो भी शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षाएं दी जाती हैं, उनमें अनिवार्य रूप से जैव विविधता के संरक्षण के बारे जानकारी प्रदान करना चाहिए। 

पाठ्यक्रम में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत रूप से क्रियाकलापों में भी जैव विविधता के महत्व का संदेश सभी तक पहुंचाना चाहिए।

प्रभावी योजनाएं

देश के विकास के लिए तो ढेरों योजनाएं प्रतिदिन तैयार की जाती हैं, लेकिन मानव अस्तित्व के लिए यह सबसे आवश्यक है की सरकारें जैव विविधताओं के संरक्षण में प्रभावकारी योजनाओं का निर्माण भी करें। 

यदि इन योजनाओं को सभी लोगों का समर्थन प्राप्त हो जाता है, तो इससे जैव विविधता के संरक्षण में काफी सहायता मिल जाएगी।

कड़े नियम कानून

अभयारण्य/राष्ट्रीय उद्यान का विकास  , प्रजातियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, जंगलों का विस्तार.

हमें चाहिए की अब जितने भी जंगल शेष हैं, उनकी संख्या में बढ़ोतरी हो ना कि वे एक-एक करके कम होते जाएं।

जैव विविधता की भूमिका Role of Biodiversity in Hindi

निष्कर्ष conclusion.

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वन्यजीव संरक्षण पर निबंध (Wildlife ConservationEssay in Hindi)

“वन्यजीव संरक्षण” यह शब्द हमें उन संसाधनों को बचाने की याद दिलाता है जो हमें प्रकृति द्वारा उपहार के रूप में प्रदान किए गए हैं। वन्यजीव उन जानवरों का प्रतिनिधित्व करता है जो पालतू या समझदार नहीं हैं। वे सिर्फ जंगली जानवर हैं और पूरी तरह से जंगल के माहौल में रहते हैं। ऐसे जानवरों और पौधों की प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है ताकि वे विलुप्त होने के खतरे से बाहर हो सकें, और इस पूरी क्रिया को ही वन्यजीव संरक्षण कहा जाता है। इस विषय पर हम आपके लिए अलग-अलग शब्द संख्या में कुछ निबंध लेकर आये हैं ताकि आपका दृष्टिकोण पूर्ण रूप से स्पष्ट हो सके।

वन्यजीव संरक्षण पर लघु और दीर्घ निबंध (Short and Long Essays on Wildlife Conservation in Hindi, Vanyajiv Sanrakshan par Nibandh Hindi mein)

वन्यजीव संरक्षण पर निबंध – 1 (250 – 300 शब्द).

उपयुक्त तरीकों को लागू करने से विलुप्त होने या लुप्त होने से वन्यजीवों की प्रजातियों की सुरक्षा की जा सकती है और इसे ही वन्यजीव संरक्षण कहा जाता है। जंगली जानवर और पौधे उस पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जहाँ वे रहते हैं। वन्यजीव प्राणी और पौधे हमारी प्रकृति में सुंदरता को जोड़ते हैं। उनकी विशिष्टता, कुछ पक्षियों और जानवरों की सुंदर आवाज, वातावरण और निवास स्थान को बहुत ही मनभावन और अद्भुत बनाती है।

वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता

पेड़ों और जंगलों की भारी कटाई से वन्यजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं। मानव के विचारहीन कर्म वन्यजीव प्रजातियों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार हैं। शिकार करना या अवैध रूप से शिकार का कार्य भी एक दंडनीय अपराध है, किसी भी वन्यजीव की प्रजाति को अपने आनंद के उद्देश्य से नहीं मारा जाना चाहिए।

वन्यजीव संरक्षण के उपाय

जंगली जानवर और पौधे पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे कई कारक हैं जो वन्यजीव प्राणियों के लिए खतरा हैं। बढ़ता प्रदूषण, तापमान और जलवायु परिवर्तन, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, अनियमित शिकार या अवैध शिकार, निवास स्थान की हानि, आदि वन्यजीवों की समाप्ति के प्रमुख कारण हैं। वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में सरकार द्वारा कई कार्य और नीतियां तैयार और संशोधित की गईं हैं।

यह मनुष्य की एकमात्र और सामाजिक जिम्मेदारी है,  व्यक्तिगत आधार पर, हर किसी को चाहिए कि हम अपने अक्षय संसाधनों के संरक्षण के लिए प्रयास करें। वे बहुमूल्य हैं और इनका बुद्धिमानी से उपयोग किया जाना चाहिए।

निबंध 2 (400 शब्द) – वन्यजीवों के घटने का कारण

जंगली पौधों और जानवरों की प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए की गयी कार्रवाई को वन्यजीव संरक्षण कहा जाता है। मानव द्वारा विभिन्न योजनाओं और नीतियों को अमल में लाकर इसे हासिल किया जाता है। वन्यजीव हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण कारक है, उनके अस्तित्व के बिना, पारिस्थितिक संतुलन एक असंतुलित स्थिति में बदल जाएगी। जिस तरह से इस धरती पर मौजूद हर एक प्राणी को अपने अस्तित्व का अधिकार है और इसलिए उन्हें एक उचित निवास स्थान और उनकी शर्तों का अधिकार मिलना चाहिए।

लेकिन वर्तमान में हो रही परिस्थितियां पूरी तरह से अलग हैं। मनुष्य अपनी इच्छाओं को लेकर इतना अधिक स्वार्थी हो गया है कि वो यह भूल गया कि अन्य जीवों को भी यही अधिकार प्राप्त है। विभिन्न अवैध प्रथाओं, उन्नति, आवश्यकताओं ने एक ऐसी स्थिति का निर्माण किया है जो काफी चिंताजनक है।

वन्यजीवों की कमी के कारण

वन्यजीवों के विनाश के लिए कई कारक हैं जिनमे से कुछ को हमने यहाँ सूचीबद्ध किया है:

  • निवास स्थान की हानि – कई निर्माण परियोजनाओं, सड़कों, बांधों, आदि को बनाने के लिए जंगलों और कृषि भूमि की अनावश्यक तरह से कटाई विभिन्न वन्यजीवों और पौधों के निवास स्थान की हानि के लिए जिम्मेदार है। ये गतिविधियाँ जानवरों को उनके घर से वंचित करती हैं। परिणामस्वरूप या तो उन्हें किसी अन्य निवास स्थान पर जाना पड़ता है या फिर वे विलुप्त हो जाते है।
  • संसाधनों का अत्यधिक दोहन – संसाधनों का उपयोग बुद्धिमानी से करना होता है, लेकिन यदि इसका अप्राकृतिक तरीके से उपयोग किया जाता है, तो उसका अत्यधिक इस्तेमाल होता है। जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल तमाम तरह की प्रजातियों के विलुप्त होने को बढ़ावा देगा।
  • शिकार और अवैध शिकार – मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार करना या उनका अवैध तरह से शिकार का कार्य वास्तव में घिनौना है क्योंकि ऐसा करने का मतलब है अपने मनोरंजन और कुछ उत्पाद प्राप्त करने के आनंद के लिए जानवरों को फंसाना और उनकी हत्या करना। जानवरों के कुछ उत्पाद बेहद मूल्यवान हैं, उदाहरण के लिए, हाथी दांत, त्वचा, सींग, आदि। जानवरों को बंदी बनाने या उनका शिकार करने और उन्हें मारने के बाद उत्पाद हासिल किया जाता है। यह बड़े पैमाने पर वन्यजीवों के विलुप्त होने के लिए अग्रणी है, जिसका एक उदाहरण कस्तूरी हिरण है।
  • रिसर्च पेर्पस के लिए जानवरों का उपयोग करना – अनुसंधान संस्थानों की प्रयोगशाला में परीक्षण परिणामों के लिए कई जानवरों का चुनाव किया जाता है। इन प्रजातियों को बड़े पैमाने पर अनुसंधान के लिए इस्तेमाल में लाया जाना भी इनके विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार है।
  • प्रदूषण – पर्यावरण की स्थिति में अनावश्यक बदलाव जिसको परिणामस्वरूप हम प्रदूषित कह सकते है। और ऐसा ही वायु, जल, मृदा प्रदूषण के साथ भी है। लेकिन हवा, पानी, मिट्टी की गुणवत्ता में परिवर्तन की वजह से पशु और पौधों की प्रजातियों की संख्या में कमी होना काफी हद तक जिम्मेदार है।

दूषित जल से समुद्री जैव विविधता भी काफी प्रभावित होती है; पानी में मौजूद रसायन समुद्री जलचरों की कार्यात्मक गतिविधियों को बिगाड़ते हैं। मूंगा-चट्टान तापमान परिवर्तन और दूषितकरण से काफी ज्यादा प्रभावित होती है।

वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए। सरकार द्वारा पहले से ही संरक्षण उद्देश्यों के लिए काम कर रही कई नीतियां, योजनाएं और पहल जारी हैं। जंगली जानवरों और पौधों को अपने स्वयं के आवास के भीतर संरक्षित करना आसान है उन्हें अनुवान्सिक तौर पर संरक्षण उपाय करने के बाद संरक्षित किया जाना चाहिए। वे जानवर और पौधे जो अपने स्वयं के निवास स्थान में सुरक्षित नहीं रह पा रहे हैं या विलुप्त हो रहे क्षेत्रों का सामना कर रहे हैं, उन्हें प्रयोगशालाओं के भीतर या पूर्व-भरण-पोषण उपायों के बाद कुछ भण्डारों में संरक्षित किया जाना चाहिए।

निबंध 3 (600 शब्द) – वन्यजीव संरक्षण: कारक, प्रकार, महत्व और परियोजनाएं

वन्यजीव संरक्षण, विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे वन्यजीवों के संरक्षण और प्रबंधन की एक प्रक्रिया है। वन्यजीव हमारी पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वे जानवर या पौधे ही हैं जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की सहायक प्रणाली हैं। वे जंगल वाले माहौल में या तो जंगलों में या फिर वनों में रहते हैं। वे हमारे पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद कर रहे हैं। अमानवीय क्रियायें वन्यजीव प्राणियों के लुप्त या विलुप्त होने में सबसे बड़ी भूमिका निभा रही हैं। भारत जैव विविधता में समृद्ध है, लेकिन इसके नुकसान के लिए भी कई कारक हैं।

वन्यजीवों के विनाश के लिए अग्रणी कारक

  • संसाधनों का अत्यधिक इस्तेमाल
  • प्राकृतिक निवास का नुकसान
  • निवास स्थान को टुकड़ों में बंटाना
  • शिकार और अवैध शिकार
  • जलवायु परिवर्तन

वन्यजीव संरक्षण के प्रकार

  • इन-सीटू संरक्षण – इस प्रकार के संरक्षण में, पौधों और जानवरों की प्रजातियां और उनके आनुवंशिक सामग्री को उनके निवास स्थान के भीतर ही सुरक्षित या संरक्षित किया जाता है। इस प्रकार के क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र कहा जाता है। वे राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, जीवमंडल भंडार, आदि होते हैं।
  • एक्स-सीटू संरक्षण – संरक्षण की इस तकनीक में पौधों और जानवरों की प्रजातियों को सुरक्षित या संरक्षण करने के साथ-साथ उनके आवास के बाहर की आनुवंशिक सामग्री भी शामिल है। यह जीन बैंकों, क्रायोप्रेज़र्वेशन, टिशू कल्चर, कैप्टिव ब्रीडिंग और वनस्पति उद्यान के रूप में किया जाता है।

वन्यजीव संरक्षण का महत्व

  • पारिस्थितिकी संतुलन
  • सौंदर्य और मनोरंजन मूल्य
  • जैव विविधता को बनाए रखने के लिए बढ़ावा देना

भारत में वन्यजीव संरक्षण के प्रयास

  • प्रोजेक्ट टाइगर : यह परियोजना 1973 में भारत सरकार द्वारा बाघों की घटती जनसंख्या के संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक पहल के साथ शुरू की गई थी। बंगाल के बाघ बढ़ती मानव गतिविधियों और प्रगति के परिणामस्वरूप अपनी संख्या और आवासों में काफी तेजी से कम होते जा रहे थे। इसलिए उनके निवास स्थान और उनकी संख्या को बचाने के लिए एक परियोजना की पहल की गई। परियोजना को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रशासित किया गया था।

परियोजना का मुख्य उद्देश्य बाघों के आवास को विनाश से बचाना था। साथ ही साथ दूसरे, बाघों की संख्या में वृद्धि सुनिश्चित करना।

हमारे रॉयल बंगाल टाइगर्स को बचाने के लिए परियोजना में सकारात्मक दृष्टिकोण था, क्योंकि इस प्रयास के बाद उनकी संख्या 1000-5000 के लगभग बढ़ गई थी। प्रारंभिक स्तर पर, 9 संरक्षित क्षेत्र थे जो 2015 तक बढ़कर 50 हो गए। यह वास्तव में राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण की दिशा में एक सफल प्रयास था।

  • प्रोजेक्ट एलीफेंट : सड़क, रेलवे, रिसॉर्ट, इमारत, आदि के निर्माण जैसी विकास संबंधी गतिविधियां कई जंगलों और चराई के स्थानों को साफ करने के लिए जिम्मेदार हैं, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न जंगली जानवरों के निवास स्थान का विनाश होता है। हाथियों के साथ भी कुछ ऐसा ही देखा गया। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1992 में हाथियों की संख्या को संरक्षित करने, उनके आवास के रखरखाव, मानव-पशु संघर्ष को कम करने के साथ-साथ शिकार और अवैध शिकार को कम करने के लिए हाथी परियोजना का शुभारंभ किया गया था।

यह परियोजना केंद्रीय स्तर पर शुरू की गई थी, लेकिन इसकी पहल राज्यों द्वारा की गई थी, इस परियोजना के तहत विभिन्न राज्यों को आवश्यकताओं के अनुसार धन भी प्रदान किया गया था। 16 राज्य मुख्य रूप से इस अधिनियम को लागू कर रहे थे।

  • मगरमच्छ संरक्षण परियोजना : यह परियोजना साल 1975 में राज्य स्तरों पर शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य मगरमच्छों के आवास के होते विनाश को रोकना था और इस प्रकार उनकी संख्या को बढ़ाने में मदद करना था। मगरमच्छों के शिकार और हत्या पर नजर रखी जानी चाहिए। इस पहल के परिणामस्वरूप, वर्ष 2012 तक उनकी संख्या को 100 से बढ़ाकर 1000 कर दिया गया।
  • यूएनडीपी सागर कछुआ संरक्षण परियोजना : यूएनडीपी द्वारा शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य कछुओं की आबादी की घटती संख्या का उचित प्रबंधन और संरक्षण करना था।

जनसंख्या विस्फोट और शहरीकरण के ही परिणाम हैं कि वनों को काटकर इसे इमारतों, होटलों, या मानव बस्तियों में बदलने की गतिविधियों में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप जंगल में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों के निवास स्थान में कमी आई है। उन्हें उन स्थानों को छोड़ना पड़ता था और नए आवास की तलाश करनी होती थी जो कि आसान नहीं होता है। नए निवास स्थान की खोज, भोजन के लिए बहुत सारी प्रतियोगिता, कई प्रजातियों को लुप्त होने की कगार पर ले जाती है।

वन्यजीव जानवर और पौधे प्रकृति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। किसी भी स्तर पर नुकसान होने पर इसके अप्राकृतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। वे पारिस्थितिक संतुलन के लिए जिम्मेदार हैं और मानव जाति के निर्वाह के लिए, यह संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसलिए सरकार द्वारा संरक्षण प्रयासों के साथ, यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है, कि हम व्यक्तिगत रूप से वन्यजीवों के संरक्षण में अपना योगदान करें।

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जैव विविधता के महत्व पर निबंध। Essay on Biodiversity in Hindi

जैव विविधता के महत्व पर निबंध। Essay on Biodiversity in Hindi : जीवन की विविधता (जैव विविधता) धरती पर मानव के अस्‍ति‍त्‍व और स्‍थायित्‍व को मजबूती प्रदान करती है। संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा 22 मई को अंतर्राष्‍ट्रीय जैव विविधता दिवस (आईडीबी) घोषित किए जाने के बादजूद, यह जरूरी है कि प्रतिदिन जैव विविधता से सम्‍बद्ध मामलों की समझ और उनके लिए जागरूकता बढ़ाई जाए। समृद्ध जैव विविधता अच्‍छी सेहत, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक विकास, अजीविका सुरक्षा और जलवायु की परिस्‍थितियों को सामान्‍य बनाए रखने का आधार है। विश्‍व में जैव विविधता का सालाना योगदान लगभग 330 खरब डालर है। हालांकि इस बहुमूल्‍य प्राकृतिक सम्‍पदा का तेजी से हृास होता जा रहा है।

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जैव विविधता के महत्व, कारण और संरक्षण | Biodiversity Conservation in Hindi

speech on biodiversity in hindi

दुनिया में कुल कितनी प्रजातियाँ हैं यह ज्ञात से परे है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 30 लाख से 10 करोड़ के बीच है। विश्व में 14,35,662 प्रजातियों की पहचान की गयी है। यद्यपि बहुत सी प्रजातियों की पहचान अभी भी होना बाकी है। पहचानी गई मुख्य प्रजातियों में 7,51,000 प्रजातियाँ कीटों की, 2,48,000 पौधों की, 2,81,000 जन्तुओं की, 68,000 कवकों की, 26,000 शैवालों की, 4,800 जीवाणुओं की तथा 1,000 विषाणुओं की हैं। पारितंत्रों के क्षय के कारण लगभग 27,000 प्रजातियाँ प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर ऊष्णकटिबंधीय छोटे जीव हैं। अगर जैव-विविधता क्षरण की वर्तमान दर कायम रही तो विश्व की एक-चौथाई प्रजातियों का अस्तित्व सन 2050 तक समाप्त हो जायेगा। Abstract : Exactly how many species of life exists is not known to anybody. Estimate ranges from 3 million to 100 million. There are 14,35,662 identified species all over the world, however, a large number of species are still unidentified. They include 7,51,000 species of insects, 2,48,000 of flowering plants, 2,81,000 of animals, 68,000 of fungi, 26,000 of algae, 4,800 of bacteria and 1,000 of viruses. Approximately 27,000 species become extinct every year due to loss of ecosystems. Majority of them are small tropical organisms. If this trend of bio-diversity depletion continues, 25 percent of the world’s species may vanish by the year 2050. 1. परिचय- जैव-विविधता (जैविक-विविधता) जीवों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नता है जोकि प्रजातियों में, प्रजातियों के बीच और उनकी पारितंत्रों की विविधता को भी समाहित करती है। जैव-विविधता शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वाल्टर जी. रासन ने 1985 में किया था। जैव-विविधता तीन प्रकार की हैं। (i) आनुवंशिक विविधता, (ii) प्रजातीय विविधता; तथा (iii) पारितंत्र विविधता। प्रजातियों में पायी जाने वाली आनुवंशिक विभिन्नता को आनुवंशिक विविधता के नाम से जाना जाता है। यह आनुवंशिक विविधता जीवों के विभिन्न आवासों में विभिन्न प्रकार के अनुकूलन का परिणाम होती है। प्रजातियों में पायी जाने वाली विभिन्नता को प्रजातीय विविधता के नाम से जाना जाता है। किसी भी विशेष समुदाय अथवा पारितंत्र (इकोसिस्टम) के उचित कार्य के लिये प्रजातीय विविधता का होना अनिवार्य होता है। पारितंत्र विविधता पृथ्वी पर पायी जाने वाली पारितंत्रों में उस विभिन्नता को कहते हैं जिसमें प्रजातियों का निवास होता है। पारितंत्र विविधता विविध जैव-भौगोलिक क्षेत्रों जैसे- झील, मरुस्थल, ज्वारनद्मुख आदि में प्रतिबिम्बित होती है।

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2. जैव-विविधता का महत्त्व- जैव-विविधता का मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैव-विविधता के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन असंभव है। जैव-विविधता के विभिन्न लाभ निम्नलिखित हैं- 1. जैव-विविधता भोजन, कपड़ा, लकड़ी, ईंधन तथा चारा की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे गेहूँ (ट्रिटिकम एस्टिवम), धान (ओराइजा सेटाइवा), जौ (हारडियम वलगेयर), मक्का (जिया मेज), ज्वार (सोरघम वलगेयर), बाजरा (पेनिसिटम टाईफाइडिस), रागी (इल्यूसिन कोरकेना), अरहर (कैजनस कैजान), चना (साइसर एरियन्टिनम), मसूर (लेन्स कुलिनेरिस) आदि से हमारी भोजन की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि कपास (गासिपियम हरसुटम) जैसी फसल हमारे कपड़े की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। सागवान (टेक्टोना ग्रान्डिस), साल (शोरिया रोबस्टा), शीशम (डेलवर्जिया सिसू) आदि जैसे वृक्षों की प्रजातियाँ निर्माण कार्यों हेतु लकड़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), शिरीष (एल्बिजिया लिबेक), सफेद शिरीष (एल्बिजिया प्रोसेरा), जामुन (साइजिजियम क्यूमिनाई), खेजरी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया), हल्दू (हेल्डिना कार्डिफोलिया), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा) आदि वृक्षों की प्रजातियों से हमारी ईंधन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है जबकि शिरीष (एल्बिजिया लिबेक),घमार (मेलाइना आरबोरिया), सहजन (मोरिंगा आलिफेरा), शहतूत (मोरस अल्बा), बेर (जिजिफस जुजुबा), बबूल (अकेसिया नाइलोटिका), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा), नीम (एजाडिराक्टा इण्डिका) आदि वृक्षों की प्रजातियों से पशुओं के लिये चारा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। 2. जैव-विविधता कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ रोगरोधी तथा कीटरोधी फसलों की किस्मों के विकास में सहायक होती हैं। हरित क्रांति के लिये उत्तरदायी गेहूँ की बौनी किस्मों का विकास जापान में पाये जाने वाली नारीन-10 नामक गेहूँ की प्रजाति की मदद से किया गया था। इसी प्रकार धान की बौनी किस्मों का विकास ताइवान में पाये जाने वाली डी-जिओ-ऊ-जेन नामक धान की प्रजाति से किया गया था। सन 1970 के प्रारम्भिक वर्षों में विषाणु के संक्रमण से होने वाली धान की ग्रासी स्टन्ट नामक बीमारी के कारण एशिया महाद्वीप में 1,60,000 हेक्टेयर से भी ज्यादा फसल को नुकसान पहुँचाया था। धान की जातियों में इस बीमारी के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने हेतु मध्य भारत में पायी जाने वाली जंगली धान की प्रजाति ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया था। आई आर 36 नामक विश्व प्रसिद्ध धान की जाति के भी विकास में ओराइजा निभरा का उपयोग किया गया है। 3. वानस्पतिक जैव-विविधता औषधीय आवश्यकताओं की पूर्ति भी करती है। एक अनुमान के अनुसार आज लगभग 30 प्रतिशत उपलब्ध औषधियों को उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों से प्राप्त किया जाता है। उष्णकटिबंधीय शाकीय वनस्पति सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) विनक्रिस्टीन तथा विनव्लास्टीन नामक क्षारों का स्रोत होता है जिनका उपयोग रक्त कैंसर के उपचार में होता है। सर्पगंधा (राओल्फिया सरपेन्टीना) पादप रेसर्पीन नामक महत्त्वपूर्ण क्षार का स्रोत होता है जिसका उपयोग उच्च-रक्तचाप के उपचार में किया जाता है। गुग्ल (कामीफेरा बिटाई) नामक पौधे से प्राप्त गोंद का उपयोग गठिया के इलाज में किया जाता है। सिनकोना (सिनकोना कैलिसिया) वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन नामक क्षार का उपयोग मलेरिया ज्वर के उपचार में किया जाता है। इसी प्रकार आर्टिमिसिया एनुआ नामक पौधे से प्राप्त आर्टिमिसिनीन नामक रसायन का उपयोग मस्तिष्क मलेरिया के उपचार में होता है। जंगली रतालू (डायसकोरिया डेल्टाइडिस) से प्राप्त डायसजेनीन नामक रसायन का उपयोग स्त्री गर्भनिरोधक के रूप में होता है।

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    4. जैव-विविधता पर्यावरण प्रदूषण के निस्तारण में सहायक होती है। प्रदूषकों का विघटन तथा उनका अवशोषण कुछ पौधों की विशेषता होती है। सदाबहार (कैथरेन्थस रोसियस) नामक पौधे में ट्राइनाइट्रोटालुइन जैसे घातक विस्फोटक को विघटित करने की क्षमता होती है। सूक्ष्म-जीवों की विभिन्न प्रजातियाँ जहरीले बेकार पदार्थों के साफ-सफाई में सहायक होती हैं। सूक्ष्म-जीवों की स्यूडोमोनास प्यूटिडा तथा आर्थोबैक्टर विस्कोसा में औद्योगिक अपशिष्ट से विभिन्न प्रकार के भारी धातुओं को हटाने की क्षमता होती है। पौधों की कुछ प्रजातियों में मृदा से भरी धातुओं जैसे कॉपर, कैडमियम, मरकरी, क्रोमियम के अवशोषण तथा संचयन की क्षमता पायी जाती है। इन पौधों का उपयोग भारी धातुओं के निस्तारण में किया जा सकता है। भारतीय सरसों (ब्रैसिका जूनसिया) में मृदा से क्रोमियम तथा कैडमियम के अवशोषण की क्षमता पायी जाती है। जलीय पौधे जैसे जलकुम्भी (आइकार्निया कैसपीज), लैम्ना, साल्विनिया तथा एजोला का उपयोग जल में मौजूद भारी धातुओं (कॉपर, कैडमियम, आयरन एवं मरकरी) के निस्तारण में होता है। 5. जैव-विविधता में संपन्न वन पारितंत्र कार्बन डाइऑक्साइड के प्रमुख अवशोषक होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड हरित गृह गैस है जो वैश्विक तपन के लिये उत्तरदायी है। उष्णकटिबंधीय वनविनाश के कारण आज वैश्विक तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है जिसके कारण भविष्य में वैश्विक जलवायु के अव्यवस्थित होने का खतरा दिनोंदिन बढ़ रहा है। 6. जैव-विविधत मृदा निर्माण के साथ-साथ उसके संरक्षण में भी सहायक होती है। जैव-विविधता मृदा संरचना को सुधारती है, जल-धारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाती है। जैव-विविधता जल संरक्षण में भी सहायक होती है क्योंकि यह जलीय चक्र को गतिमान रखती है। वानस्पतिक जैव-विविधता, भूमि में जल रिसाव को बढ़ावा देती है जिससे भूमिगत जलस्तर बना रहता है। 7. जैव-विविधता पोषक चक्र को गतिमान रखने में सहायक होती है। वह पोषक तत्वों की मुख्य अवशोषक तथा स्रोत होती है। मृदा की सूक्ष्मजीवी विविधता पौधों के मृत भाग तथा मृत जन्तुओं को विघटित कर पोषक तत्वों को मृदा में मुक्त कर देती है जिससे यह पोषक तत्व पुनः पौधों को प्राप्त होते हैं। 8. जैव-विविधता पारितंत्र को स्थिरता प्रदान कर पारिस्थितिक संतुलन को बरकरार रखती है। पौधे तथा जन्तु एक दूसरे से खाद्य शृंखला तथा खाद्य जाल द्वारा जुड़े होते हैं। एक प्रजाति की विलुप्ति दूसरे के जीवन को प्रभावित करती है। इस प्रकार पारितंत्र कमजोर हो जाता है। 9. पौधे शाकभक्षी जानवरों के भोजन के स्रोत होते हैं जबकि जानवरों का मांस मनुष्य के लिये प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है। 10. समुद्र के किनारे खड़ी जैव-विविधता संपन्न ज्वारीय वन (मैंग्रोव वन) प्राकृतिक आपदाओं जैसे समुद्री तूफान तथा सुनामी के खिलाफ ढाल का काम करते हैं। 11. जैव-विविधता विभिन्न सामाजिक लाभ भी हैं। प्रकृति, अध्ययन के लिये सबसे उत्तम प्रयोगशाला है। शोध, शिक्षा तथा प्रसार कार्यों का विकास, प्रकृति एवं उसकी जैव-विविधता की मदद से ही संभव है। इस बात को साबित करने के लिये तमाम साक्ष्य हैं कि मानव संस्कृति तथा पर्यावरण का विकास साथ-साथ हुआ है। अतः सांस्कृतिक पहचान के लिये जैव-विविधता का होना अति आवश्यक है। 12. जैविक रूप से संपन्न वन पारितंत्र, वन्य-जीवों तथा आदिवासियों का घर होता है। आदिवासियों की संपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति वनों द्वारा होती है। वनों के क्षय से न सिर्फ आदिवासी संस्कृति प्रभावित होगी अपितु वन्य-जीवन भी प्रभावित होगा।

संबधित लेख भी पढ़े:-    जीवित हुए जलस्रोत, तो जी उठी जैव विविधता 3. जैव-विविधता का क्षरण - पृथ्वी पर जैविक संसाधनों के क्षय को जैव विविधता क्षरण के नाम से जाना जाता है। पृथ्वी का जैविक धन जैव-विविधता लगभग 400 करोड़ वर्षों के विकास का परिणाम है। इस जैविक धन के निरंतर क्षय ने मनुष्य के अस्तित्व के लिये गम्भीर खतरा पैदा कर दिया है। दुनिया के विकासशील देशों में जैव-विविधता क्षरण चिन्ता का विषय है। एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के देश जैव-विविधता संपन्न हैं जहाँ तमाम प्रकार के पौधों तथा जन्तुओं की प्रजातियाँ पायी जाती हैं। विडम्बना यह है कि अशिक्षा, गरीबी, वैज्ञानिक विकास का अभाव, जनसंख्या विस्फोट आदि ऐसे कारण हैं जो इन देशों में जैव-विविधता क्षरण के लिये जिम्मेदार हैं। दुनिया में कुल कितनी प्रजातियाँ हैं यह ज्ञात से परे है लेकिन एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या 30 लाख से 10 करोड़ के बीच है। दुनिया में 14,35,662 प्रजातियों की पहचान की गयी है। हालाँकि बहुत सी प्रजातियों की पहचान अभी भी होना बाकी है। पहचानी गई मुख्य प्रजातियों में 7,51,000 प्रजातियाँ कीटों की, 2,48,000 पौधों की, 2,81,000 जन्तुओं की, 68,000 कवकों की 26,000 शैवालों की, 4,800 जीवाणुओं की तथा 1,000 विषाणुओं की हैं। पारितंत्रों के क्षय के कारण लगभग 27,000 प्रजातियाँ प्रतिवर्ष विलुप्त हो रही हैं। इनमें से ज्यादातर उष्णकटिबंधीय छोटे जीव हैं। अगर जैव-विविधता क्षरण की वर्तमान दर कायम रही तो विश्व की एक-चौथाई प्रजातियों का अस्तित्व सन 2050 तक समाप्त हो जायेगा। पृथ्वी के पूर्व के 50 करोड़ वर्ष के इतिहास में छः बड़ी विलुप्ति लहरों ने पहले ही दुनिया की बहुत सी प्रजातियों को समाप्त कर दिया जिनमें छिपकली परिवार के विशालकाय डायनासोर भी शामिल हैं। विलुप्ति लहरों के क्रमवार काल में पहला आर्डोविसियन काल (50 करोड़ वर्ष पूर्व), दूसरा डेवोनियन काल (40 करोड़ वर्ष पूर्व), तीसरा परमियन काल (25 करोड़ वर्ष पूर्व), चौथा ट्रायसिक काल (18 करोड़ वर्ष पूर्व) है। पाँचवा क्रिटेसियस काल (6.5 करोड़ वर्ष पूर्व), छठवां प्लाइस्टोसीन काल (10 लाख वर्ष पूर्व) था। जुरासिक काल में पृथ्वी पर राज करने वाले विशाल जीव डायनासोर क्रिटेसियस काल में ही इस पृथ्वी से विलुप्त हो गये। विलुप्ति की छठवीं लहर में विशाल स्तनधारियों एवं पक्षियों की बहुत सी प्रजातियों का पृथ्वी से पतन हो गया। उक्त सभी छः विलुप्ति लहरों का प्रमुख कारण प्राकृतिक था जबकि सातवीं विलुप्ति का वर्तमान दौर मानव की विध्वंसक गतिविधियाँ हैं। उष्णकटिबंधीय वर्षा वन, जैव विविधता संपन्न होते हैं जिन्हें ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है क्योंकि ये ऑक्सीजन के प्रमुख उत्सर्जक तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषक होते हैं। इनका विस्तार पृथ्वी की कुल 7 प्रतिशत भौगोलिक भूमि पर है। दुनिया की कुल 50 प्रतिशत पहचानी गई प्रजातियाँ इन्हीं वनों में पायी जाती हैं। चूँकि ज्यादातर वर्षा वन दुनिया के विकासशील देशों में पाये जाते हैं इसलिये जनसंख्या विस्फोट इन वनों के विनाश का प्रमुख कारण है। समय रहते अगर संरक्षण को नहीं अपनाया गया तो बहुत जल्द इनमें 90 प्रतिशत आवासों का विनाश होगा परिणामस्वरूप 15,000 से 50,000 प्रजातियों की क्षति प्रतिवर्ष होगी। उष्णकटिबंधीय वनविनाश आने वाले अगले 50 वर्षों में जैव-विविधता क्षरण का प्रमुख कारण होगा।

संबधित लेख भी पढ़े:-    कैसे होगा जैव विविधता का विकास और संरक्षण ? संपूर्ण विश्व में पौधों की लगभग 60,000 प्रजातियाँ तथा जन्तुओं की 2,000 प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर खड़ी हैं। यद्यपि इसमें से ज्यादातर प्रजातियाँ पौधों की हैं पर इसमें कुछ प्रजातियाँ जन्तुओं की भी हैं। इनमें मछलियाँ (343), जलथलचारी (50), सरीसृप (170), अकेशरुकी (1,355), पक्षियाँ (1,037) तथा स्तनपायी (497) शामिल हैं। जीन कोष से जीन के क्षति को आनुवंशिक क्षरण कहते हैं जिससे पृथ्वी के आनुवंशिक संसाधनों में कमी होती है। पिछली सदी, फसलों में 75 प्रतिशत आनुवंशिक विविधता की क्षति की गवाह रही है। पिछली सदी के अंत तक अधिक पैदावार देने वाली किस्मों ने गेहूँ तथा धान की खेती वाले क्षेत्रों के 50 प्रतिशत क्षेत्रफल पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। आनुवंशिक क्षरण के निम्नलिखित दो प्रमुख कारण हैं- 1. फसल संख्या- पूर्व में अधिक संख्या में पौधों का उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु होता था लेकिन धीरे-धीरे इन पौधों की संख्या में गिरावट आयी। उदाहरण के लिये 3,000 भोजन पौधों की प्रजातियों में केवल 150 का वाणिज्यीकरण हुआ। कृषि में 12 प्रजातियों का प्रभुत्व है जिनमें 4 फसलों की प्रजातियाँ कुल पैदावार का 50 प्रतिशत पैदा करती हैं। (धान, गेहूँ मक्का एवं आलू)। 2. फसलों के प्रकार - आज एक ही प्रकार की फसल में ज्यादा से ज्यादा अच्छे गुणों को समावेश करने का चलन है। जैसे ही नई प्रकार की फसल विकसित होती है उसका बड़े पैमाने पर उपयोग होता है परिणामस्वरूप स्थानीय देसी किस्मों का प्रयोग बन्द हो जाता है जिससे स्थानीय प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं। आनुवंशिक क्षरण गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि यह भविष्य में फसलों के सुधार कार्यक्रम को प्रभावित करेगा। फसलों की स्थानीय तथा पारंपरिक प्रजातियों में उपयोगी गुण होते हैं जिनका उपयोग फसलों की वर्तमान प्रजातियों के विकास में किया जा सकता है। इसलिये फसलों की विविधता को बनाए रखना अति आवश्यक है। आनुवंशिक क्षरण गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि इसका प्रत्यक्ष प्रभाव फसल प्रजनन कार्यक्रम पर पड़ेगा। फसलों की पारंपरिक किस्में तथा उनकी जंगली प्रजातियों में बहुत से उपयोगी जींस होते हैं जिनका उपयोग फसलों की वर्तमान किस्मों के सुधार में किया जा सकता है। 4. जैव-विविधता क्षरण के कारण - जैव-विविधता क्षरण के विभिन्न कारण हैं जिनमें आवास विनाश, आवास विखण्डन, पर्यावरण प्रदूषण, विदेशी मूल के पौधों का आक्रमण, अति-शोषण, वन्य-जीवों का शिकार, वनविनाश, अति-चराई, बीमारी, चिड़ियाघर तथा शोध हेतु प्रजातियों का उपयोग नाशीजीवों तथा परभक्षियों का नियंत्रण, प्रतियोगी अथवा परभक्षी प्रजातियों का प्रवेश प्रमुख है-

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1. आवास विनाश- मानव जनसंख्या वृद्धि एवं मानव गतिविधियाँ आवास विनाश का प्रमुख कारण हैं। आवास की क्षति वर्तमान में अकशेरुकी जीवों के विलुप्ति का एक प्रमुख कारण है। बहुत से देशों में विशेषकर द्वीपों पर जब मानव जनसंख्या घनत्व में वृद्धि होती है तो अधिकतर प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं। दुनिया के 61 में से 41 प्राचीन विश्व उष्णकटिबंधीय देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वन्य-जीवों के आवास नष्ट हो चुके हैं। ज्यादातर स्थितियों में आवास विनाश के प्रमुख कारक औद्योगिक तथा वाणिज्यिक गतिविधियाँ हैं जिनका संबंध वैश्विक अर्थव्यवस्स्था जैसे- खनन, पशु पालन, कृषि, वानिकी, बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं की स्थापना आदि से है। वर्षा वन, उष्णकटिबंधीय शुष्क वन, नमभूमियाँ, ज्वारीय वन तथा घास के मैदान जोखिमग्रस्त आवास हैं। 2. आवास विखण्डन - आवास विखण्डन वह प्रक्रिया है जिसमें एक विशाल क्षेत्र का आवास क्षेत्रफल कम हो जाता है और प्रायः दो या अधिक टुकड़ों में बंट जाता है। जब आवास नष्ट हो जाता है तो टुकड़े बहुधा एक दूसरे से अलग-अलग क्षरित अवस्था में प्रकट होते हैं। आवास विखण्डन प्रजातियों के विस्तार तथा स्थापना को सीमित कर देता है, जिससे जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 3. पर्यावरण प्रदूषण - बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। नाशिजीवनाशक (पेस्टीसाइड), औद्योगिक रसायन तथा अपशिष्ट आदि पर्यावरण प्रदूषण के लिये मुख्यतः उत्तरदायी हैं। नाशिजीवनाशक प्रदूषण के परिणामस्वरूप मृदा के सूक्ष्मजीवी वनस्पतियों तथा जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त जल वर्षा के बहाव से जब नाशिजीवनाशक जलस्रोतों में पहुँचते हैं तो वहाँ भी सूक्ष्मजीवी वनस्पतियों तथा जंतुओं को मार देते हैं। परिणामस्वरूप जैव-विविधता का क्षय होता है। नाशिजीवनाशक डी.डी.टी. (डाईक्लोरो डाईफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) पक्षियों की गिरती आबादी का एक प्रमुख कारण हैं। डी.डी.टी. खाद्य शृंखला के माध्यम से पक्षियों के शरीर में पहुँचता है जहाँ वह इसट्रोजेन नामक हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है जिससे अण्डे की खोल कमजोर हो जाती है, परिणामस्वरूप अण्डा समय से पहले फूट जाता है जिससे भ्रूण की मृत्यु हो जाती है। अम्ल वर्षा के कारण नदियों तथा झीलों का अम्लीकरण जलीय जीवों के लिये एक प्रमुख खतरा बनता जा रहा है। 4. विदेशी मूल की वनस्पतियों का आक्रमण - विदेशी मूल की वनस्पतियों के आक्रमण के परिणामस्वरूप जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है इसलिये इन्हें ‘जैविक प्रदूषक’ की संज्ञा दी जाती है। सफल विदेशी मूल की वनस्पति की प्रजाति देसी प्रजातियों को विस्थापित कर उन्हें विलुप्ति के स्तर तक पहुँचा देती हैं। इसके अतिरिक्त वह आवास पर विपरीत प्रभाव डालकर देसी प्रजाति के अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर देती है। भारत में बहुत से विदेशी मूल की वनस्पतियाँ जैसे गाजर घास (पार्थिनियम हिट्रोफोरस), कुर्री (लैंटाना कमरा), काबुली कीकर (प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा) आदि जैव-विविधता क्षरण के प्रमुख कारण साबित हो रहे हैं।

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5. अतिशोषण - बढ़ती मनव जनसंख्या के कारण जैविक संसाधनों का दोहन भी बढ़ा है। संसाधनों का उपयोग तब ज्यादा बढ़ जाता है जब पूर्व में उपयोग नहीं हुई अथवा स्थानीय उपयोग वाली प्रजाति के लिये वाणिज्यिक बाजार विकसित हो जाता है। अतिशोषण दुनिया के लगभग एक-तिहाई लुप्तप्राय कशेरुकी जीवों के लिये प्रमुख खतरा हैं। बढ़ती ग्रामीण बेरोजगारी, उन्नत शोषण विधियों का विकास तथा अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण ने बहुत सी प्रजातियों को विलुप्ति के शीर्ष पर पहुँचा दिया है। अगर प्रजाति पूरी तरह से समाप्त नहीं होती है तो भी उसकी जनसंख्या उस स्तर तक घट जाती है जहाँ से वह अपना पुनरुत्थान करने में अक्षम होती है। 6. शिकार - जन्तुओं का शिकार आमतौर से दांत, सींग, खाल, कस्तूरी आदि े लिये किया जाता है। अंधाधुंध शिकार के कारण जानवरों की बहुत सी प्रजातियाँ लुप्तप्राय जन्तुओं की श्रेणी में पहुँच चुकी है। असम राज्य में एक सींग वाले गैण्डे की जनसंख्या में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गयी है क्योंकि इसका शिकार इसकी सींग के लिये किया जाता है जिसका उपयोग कामोत्तेजक दवाओं के निर्माण में होता है। इसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर मणिपुर में चीरू नामक जानवर का शिकार उसकी खाल के लिये किया जाता है जिससे शाहतूस शाल का निर्माण होता है। बाघ, तेन्दुआ, चिंकारा, अजगर, कृष्ण मृग तथा मगरमच्छ का शिकार भी खाल के लिये किया जाता है। हाथियों का शिकार दाँत के लिये किया जाता है जबकि बारहसिंगा का शिकार सींग के लिये किया जाता है। कस्तूरी मृग का शिकार कस्तूरी के लिये किया जाता है। 7. वन विनाश - विकास कार्यों तथा कृषि के विस्तार के कारण उष्णकटिबंधीय देशों में जंगलों को बड़े पैमाने पर नष्ट किया गया है जिसके परिणामस्वरूप उष्णकटिबंधीय वनों में जैव-विविधता का क्षरण हुआ है। उष्णकटिबंधीय देशों में आदिवासियों द्वारा की जाने वाली झूम कृषि (स्थानान्तरी कृषि) भी जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण रही है। भारत के आदिवासी बहुत पूर्वोत्तर राज्यों में झूम कृषि के कारण वनों के क्षेत्रफल में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गयी है। 8. अति-चराई - शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में चराई जैव-विविधता क्षरण का एक प्रमुख कारण है। भेड़ों, बकरियों तथा अन्य शाकभक्षी पशुओं द्वारा चराई के कारण पौधों की प्रजातियों को नुकसान पहुँचता है। अति-चराई के कारण पौधों का प्रकाश-संश्लेषण वाला भाग नष्ट हो जाता है जिससे पौधों की मृत्यु हो जाती है। बहुत सी कमजोर प्रजातियाँ शाकभक्षी पशुओं द्वारा कुचल दी जाती हैं। भारी चराई, प्रजाति को समुदाय से नष्ट कर देती है। 9. बीमारी - मानव गतिविधियाँ वन्य-जीवों की प्रजातियों में बीमारियों को बढ़ावा देती हैं। जब कोई जानवर एक प्राकृतिक संरक्षित क्षेत्र तक सीमित होता है तब उसमें बीमारी के प्रकोप की संभावना ज्यादा होती है। दबाव में जानवर बीमारी के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य की कैद में वन्य-जीव बीमारियों के प्रति अत्यन्त ही संवेदनशील होते हैं। 10. चिड़ियाघर तथा शोध हेतु प्रजातियों का उपयोग- चिकित्सा शोध, वैज्ञानिक शोध तथा चिड़ियाघर के लिये कुछ विशिष्ट जानवरों को प्राकृतिक वास से पकड़ना प्रजाति के लिये खतरनाक साबित होता है क्योंकि इससे इनकी जनसंख्या में गिरावट होने की संभावना रहती है जिससे ये जानवर विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकते हैं। चिकित्सा शोध महत्त्वपूर्ण क्रिया है लेकिन यह संकटग्रस्त जंगली प्राइमट्स जैसे गुरिल्ला, चिम्पांजी तथा ओरांगुटान के लिये खतरनाक है। 11. नाशीजीवों तथा परभक्षियों का नियन्त्रण - फसलों तथा पशुओं का नाशीजीवों तथा परभक्षियों से सुरक्षा ने भी बहुत से प्रजातियों को विलुप्ति के कगार पर पहुँचा दिया है। विष के प्रयोग से एक विशेष प्रजाति को नष्ट करने के प्रयास में कभी-कभी उस प्रजाति के परभक्षी भी विष के शिकार हो जाते हैं जिससे पारितंत्र में खाद्य शृंखला अव्यवस्थित हो जाती है और नियंत्रित प्रजाति नाशीजीव (पेस्ट) का रूप धारण कर जैव-विविधता को क्षति पहुँचाती है। 12. प्रतियोगी अथवा परभक्षी प्रजातियों का प्रवेश - प्रवेश कराई गयी प्रजाति दूसरी प्रजातियों को उनके शिकार, भोजन के लिये प्रतियोगिता, आवास को नष्टकर अथवा पारिस्थितिक संतुलन को अव्यवस्थित कर उन्हें प्रभावित कर सकती है। उदाहरणस्वरूप हवाई द्वीप में वर्ष 1883 में गन्ने की फसल को बर्बाद कर रहे चूहों के नियंत्रण हेतु नेवलों को जानबूझकर प्रवेश कराया गया था जिसके फलस्वरूप बहुत से अन्य स्थानीय प्रजातियाँ भी प्रभावित हुई थी।

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5. जैव-विविधता का संरक्षण - जैव विविधता संरक्षण का आशय जैविक संसाधनों के प्रबंधन से है जिससे उनके व्यापक उपयोग के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता भी बनी रहे। चूँकि जैव-विविधता मानव सभ्यता के विकास की स्तम्भ है इसलिये इसका संरक्षण अति आवश्यक है। जैव-विविधता हमारे भोजन, कपड़ा, औषधीय, ईंधन आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। जैव-विविधता पारिस्थितिक संतुलन को बनाये रखने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त यह प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा आदि से राहत प्रदान करती है। वास्तव में जैव-विविधता प्रकृति की स्वभाविक संपत्ति है और इसका क्षय एक प्रकार से प्रकृति का क्षय है। अतः प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के लिये जैव-विविधता को संरक्षण प्रदान करना समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। 5. जोखिमग्रस्त प्रजातियाँ - मेस तथा स्टुअर्ट एवं अन्तरराष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संघ (आई.यू.सी.एन. 1994 डी) ने वनस्पतियों एवं जन्तुओं की कम होती प्रजातियों को संरक्षण हेतु निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा है- 1. असहाय प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो कि संकटग्रस्त प्रजातियाँ बन सकती हैं अगर वर्तमान कारक का प्रकोप जारी रहा जो इनकी जनसंख्या के गिरावट के लिये जिम्मेदार है। भारत में भालू (स्लाथ बीयर) इसका उदाहरण है। 2. दुर्लभ प्रजाति - यह वे प्रजातियाँ होती हैं जिनकी संख्या कम होने के कारण उनकी विलुप्ति का खतरा बना रहता है। भारत में शेर (एशियाटिक लायन) इसका उदाहरण है। 3. अनिश्चित प्रजाति- वे प्रजातियाँ जिनकी विलुप्ति का खतरा है लेकिन कारण अज्ञात हैं। मेक्सिकन प्रेरी कुत्ता इसका उदाहरण है। 4. संकटग्रस्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनके विलुप्ति का निकट भविष्य में खतरा है। इन प्रजातियों की जनसंख्या गम्भीर स्तर तक घट चुकी है तथा इनके प्राकृतिक आवास भी बुरी तरह घट चुके हैं। गंगा डॉल्फिन तथा नीला ह्वेल इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 5. गंभीर संकटग्रस्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो निकट भविष्य में जंगली अवस्था में विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हो। भारत में ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड (सोहन चिड़िया) तथा गंगा शार्क इसके उदाहरण हैं। 6. विलुप्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनका अस्तित्व पृथ्वी से समाप्त हो चुका है। डाइनासोर तथा डोडो इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 7. अपर्याप्त रूप से ज्ञात प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो संभवतः किसी एक संरक्षण श्रेणी से संबद्ध होती हैं लेकिन अपर्याप्त जानकारी के अभाव में उन्हें किसी विशेष प्रजातीय श्रेणी में रखा गया है। 8. जंगली अवस्था में विलुप्त प्रजाति - वे प्रजातियाँ जो वर्तमान में खेती अथवा कैद में होने के कारण ही जीवित हैं। ये प्रजातियाँ अपने पूर्व के प्राकृतिक आवास से विलुप्त हो चुकी हैं। 9. संरक्षण आधारित प्रजाति - ये वे प्रजातियाँ होती हैं जो आवास आधारित संरक्षण कार्यक्रम पर निर्भर होती हैं। अगर संरक्षण कार्यक्रम रुक जाता है तो ये प्रजातियाँ पाँच वर्ष के भीतर किसी भी जोखिमग्रस्त श्रेणी के अंतर्गत आ सकती हैं। 10. लगभग जोखिमग्रस्त प्रजाति - ये वे प्रजातियाँ हैं जो दुर्लभ श्रेणी में पहुँचने के करीब होती हैं। 11. कम महत्त्व वाली प्रजाति - वे प्रजातियाँ, जो न तो गम्भीर संकटग्रस्त, संकटग्रस्त अथवा असहाय होती हैं न तो वह संरक्षण आधारित अथवा लगभग संकटग्रस्त के योग्य होती हैं। 12. आंकड़ों की अभाव वाली प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनके विषय में पर्याप्त आंकड़ों के अभाव के कारण इनको किसी श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। 13. अमूल्यांकित प्रजाति - वे प्रजातियाँ जिनका आकलन किसी भी मापदण्ड के अनुसार नहीं किया गया है।

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विश्व संरक्षण रणनीति ने जैव-विविधता संरक्षण के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं- 1. उन प्रजातियों के संरक्षण का प्रयास होना चाहिए जो कि संकटग्रस्त हैं। 2. विलुप्ति पर रोक के लिये उचित योजना तथा प्रबंधन की आवश्यकता। 3. खाद्य फसलों, चारा पौधों, मवेशियों, जानवरों तथा उनके जंगली रिश्तेदारों को संरक्षित किया जाना चाहिए। 4. प्रत्येक देश की वन्य प्रजातियों के आवास को चिंहित कर उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए। 5. उन आवासों को सुरक्षा प्रदान करना चाहिए जहाँ प्रजातियाँ भोजन, प्रजनन तथा बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। 6. जंगली पौधों तथा जन्तुओं के अन्तरराष्ट्रीय व्यापार पर नियंत्रण होना चाहिए। वनस्पतियों एवं जन्तुओं की प्रजातियों तथा उनके आवास को बचाने के लिये समयबद्ध कार्यक्रम को लागू करने की आवश्यकता है जिससे जैव-विविधता संरक्षण को बढ़ावा मिल सके। अतः संरक्षण की कार्ययोजना आवश्यक रूप से निम्नलिखित दिशा में होनी चाहिए- 1. द्वीपों सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाने वाले जैविक संसाधनों को सूचीबद्ध करना। 2. संरक्षित क्षेत्र के जाल जैसे राष्ट्रीय पार्क, जैवमण्डल रिजर्व, अभ्यारण्य, जीन कोष आदि के माध्यम से जैव-विविधता का संरक्षण। 3. क्षरित आवास का प्राकृतिक अवस्था में पुनरुत्थान। 4. प्रजाति को किसी दूसरी जगह उगाकर उसे मानव दबाव से बचाना। 5. संरक्षित क्षेत्र बनने से विस्थापित आदिवासियों का पुनर्वास। 6. जैव-प्रौद्योगिकी तथा ऊतक संवर्धन की आधुनिक तकनीकों से लुप्तप्राय प्रजातियों का गुणन। 7. देसी आनुवंशिक विविधता संरक्षण हेतु घरेलू पौधों तथा जन्तुओं की प्रजातियों की सुरक्षा। 8. जोखिमग्रस्त प्रजातियों का पुनरुत्थान। 9. बिना विस्तृत जाँच के विदेशी मूल के पौधों के प्रवेश पर रोक। 10. एक ही प्रकार की प्रजाति का विस्तृत क्षेत्र पर रोपण को हतोत्साहन। 11. उचित कानून के जरिये प्रजातियों के अतिशोषण पर लगाम। 12. प्रजाति व्यापार संविदा के अंतर्गत अतिशोषण पर नियन्त्रण। 13. आनुवंशिक संसाधनों के संपोषित उपयोग तथा उचित कानून के द्वारा सुरक्षा। 14. संरक्षण में सहायक पारंपरिक ज्ञान तथा कौशल को प्रोत्साहन।

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1. विल्सन, ई.ओ. एवं पिटर्स, एफ.एम. (1988) बायोडाइवर्सिटी (संपादित), नेशनल एकेडमी प्रेस, वाशिंगटन डी.सी.। 2. हेवुड, वी.एच. एवं वाटसन, आर.टी. (1995) ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी असेस्मेन्ट (संपादित), यूनाइटेड नेशन इन्वायरन्मेण्ट प्रोग्राम, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, कैम्ब्रीज, यू.के.। 3. भरुचा, ई. (2005) टेक्स्टबुक ऑफ एनवायरनमेन्टल स्टडीज, यूनिवर्सिटी प्रेस प्राइवेट लिमिटेड, इण्डिया। 4. शर्मा, पी.डी. (2004) इकोलॉजी एण्ड एनवायरन्मेन्ट, रस्तोगी पब्लिकेशन्स, मेरठ, इण्डिया। 5. सिंह, ए. (2007) वोरहेविया डिफ्यूजा: एन ओवर-ऐक्सप्लॉयटेड प्लाण्ट ऑफ मेडिसिनल इमपॉरटेन्स इन रूरल एरियाज ऑफ ईस्टर्न उत्तर प्रदेश, करेण्ट साइन्स, खण्ड-93, अक-4. पृ. 446। 6. मेस, जी.एम. तथा स्टुअर्ट, एस. (1994), ड्राफ्ट आई यू सी एन रेड लिस्ट कटेगरीज, वरजन 2.2 स्पीसीज 21/22: मु.पृ. 13-14। 7. आई यू सी एन (1994 डी) आई यू सी एन रेड लिस्ट कटेगरीज, आई यू सी एन, इंग्लैण्ड।

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अरविन्द सिंह वनस्पति विज्ञान विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी 221005, उ.प्र. भारत, [email protected]; [email protected] प्राप्त तिथि-01.05.2016 स्वीकृत तिथि-02.09.2016

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दा इंडियन वायर

जैव विविधता किसे कहते हैं?

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By अपूर्वा सिंह

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जीवित जीवों की परत यानी बायोस्फीयर अपने अनगिनत पौधों, जानवरों, और सूक्ष्मजीवों की सामूहिक मेटाबोलिक गतिविधियों के माध्यम से, पर्यावरण प्रणाली में वायुमंडल, भू-भाग, और हाइड्रोस्फीयर को रासायनिक रूप से एकजुट करती है, जिसमें मानवों सहित लाखों प्रजातियां बढ़ी हैं।

सांस लेने योग्य हवा, पीने योग्य पानी, उपजाऊ मिट्टी, उत्पादक भूमि, समुद्र, पृथ्वी के हाल के इतिहास का न्यायसंगत वातावरण, और अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाए जीवन के कार्यकलापों की अभिव्यक्ति हैं।

जैव विविधता की परिभाषा (Definition of Biodiversity)

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जैव विविधता को “सभी स्रोतों, स्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों और पारिस्थितिक परिसरों सहित जीवित जीवों के बीच परिवर्तनशीलता के रूप में परिभाषित किया जाता है; इसमें प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्रों के बीच प्रजातियों के भीतर विविधता शामिल होती है”। इस परिभाषा का महत्व यह है कि यह जैव विविधता के कई आयामों पर ध्यान आकर्षित करता है।

यह स्पष्ट रूप से मान्यता देता है कि प्रत्येक बायोटा को इसकी टैक्सोनोमिक, पारिस्थितिकीय, और अनुवांशिक विविधता द्वारा विशेषता दी जा सकती है और जिस तरह विविधता के ये आयाम स्पेस और समय पर भिन्न होते हैं ये जैव विविधता की एक प्रमुख विशेषता है। इस प्रकार जैव विविधता का केवल एक बहुआयामी मूल्यांकन जैव विविधता में परिवर्तन और पारिस्थितिक तंत्र के कार्य करने और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं में परिवर्तन के बीच के संबंधों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

जैव विविधता में सभी प्रबंधित या अप्रबंधित पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। कभी-कभी जैव विविधता को केवल अप्रबंधित पारिस्थितिक तंत्र, जैसे वन्यभूमि, प्रकृति संगरक्षण, या राष्ट्रीय उद्यानों की एक प्रासंगिक विशेषता माना जाता है। लेकिन यह गलत है। प्रबंधित प्रणाली में -वृक्षारोपण, खेत, फसल भूमि, जलीय कृषि स्थल, रेंजलैंड, या यहां तक कि शहरी पार्क और शहरी पारिस्थितिक तंत्र भी हैं- इनकी अपनी जैव विविधता है।

कई औजारों और डेटा स्रोतों के बावजूद, जैव विविधता को सटीक मात्रा में मापना मुश्किल है। जैव विविधता की स्थितियों और प्रवृत्तियों का आकलन करने के लिए या तो विश्व स्तर पर या उप-वैश्विक स्तर पर, वर्गीकरण (जैसे कि प्रजातियों की संख्या) का उपयोग करके अंतरिक्ष और समय पर सभी जीवों की बहुतायत को मापना आवश्यक है। वर्तमान में, यह अधिक सटीकता के साथ करना संभव नहीं है क्योंकि इसमे डेटा की कमी है।

जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति, सेवाओं, या परिवर्तन की चालक है, लेकिन कोई भी पारिस्थितिक सूचक जैव विविधता के सभी आयामों को कैप्चर करता है।

जैव विविधता के प्रकार (Types of Biodiversity)

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1. जेनेटिक विविधता (Genetic Diversity)

आबादी के भीतर प्रत्येक व्यक्ति में आमतौर पर genes के थोडे अलग रूप होते हैं जो उन्हें अपने अद्वितीय गुण देते हैं। आनुवंशिक विविधता या जेनेटिक डाइवर्सिटी किसी भी प्रजाति के लिए प्रजनन व्यवहार्यता, बीमारी के प्रतिरोध, और बदलती स्थितियों को अनुकूलित करने की क्षमता को बनाए रखने के लिए जरूरी है। वे व्यक्ति जो इन अनुकूल genes पर जीवित रहने और पुन: उत्पन्न करने में सक्षम हैं। इन्हें प्राकृतिक चयन के रूप में जाना जाता है।

जलवायु बदलने और मानव दबाव में वृद्धि के इस समय में, प्रजातियों के निरंतर अस्तित्व के लिए अनुकूलन और जीवित रहने की क्षमता महत्वपूर्ण है। और यदि एक प्रजाति गायब हो जाती है, तो एक संपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र पर उसका फर्क पड़ सकता है।

2. प्रजाति विविधता (Species Diversity)

प्रजाति विविधता एक पारिस्थितिक समुदाय में विभिन्न प्रजातियों की संख्या और उनके सापेक्ष बहुतायत का एक उपाय है। प्रजातियों की पहचान और वर्गीकरण को टैक्सोनोमी के रूप में जाना जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र में प्रत्येक प्रजाति की भूमिका होती है, जो कि कई अन्य लोगों के बीच शिकारी, शिकार, पोलिनेटर या सीड डिस्परसर वाला होता है। यदि एक प्रजाति विलुप्त हो जाती है, तो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि मधुमक्खियां विलुप्त हो गई, तो इसमें फल और सब्जियां अगली हो सकती हैं, और फिर जानवर जो इनपर फीड करते हैं।

3. सामुदायिक विविधता (Community Diversity)

यह किसी विशेष क्षेत्र के भीतर विभिन्न प्रजातियों के संयोजनों की संख्या है।

सामुदायिक विविधता उचित पारिस्थितिक तंत्र में कार्य करने की निरंतरता का समर्थन करती है, जो लोगों को महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करती है। इनमें पीने और कृषि , के लिए स्वच्छ पानी, बाढ़ नियंत्रण, मिट्टी के कटाव से संरक्षण, हवा की फ़िल्टरिंग, जलवायु स्थिरता, प्रदूषण अवशोषण, औषधीय संसाधन, आदि शामिल है।

जैव-विविधता की जरूरत (Importance of Biodiversity)

पृथ्वी पर आज जैव विविधता लगभग 3.5 अरब वर्षों के विकास का परिणाम है। मनुष्यों के उदय तक, पृथ्वी भूगर्भीय इतिहास में किसी भी अन्य अवधि की तुलना में अधिक जैव विविधता का समर्थन करती है। हालांकि, मनुष्यों के प्रभुत्व के बाद, जैव विविधता में तेजी से गिरावट शुरू हो गई है, और एक प्रजाति के बाद एक अन्य प्रजाति विलुप्त होने लगी हैं। निम्नलिखित कारणों से जैव विविधता का रखरखाव महत्वपूर्ण है:

1. पारिस्थितिक स्थिरता

प्रत्येक प्रजाति एक पारिस्थितिक तंत्र के भीतर एक विशेष कार्य करती है। वे ऊर्जा को कैप्चर और स्टोर कर सकते हैं, आर्गेनिक पदार्थों का उत्पादन कर सकते हैं, आर्गेनिक पदार्थों को विघटित कर सकते हैं, पूरे पारिस्थितिक तंत्र में चक्र के पानी और पोषक तत्वों में मदद कर सकते हैं, क्षरण या कीटों को नियंत्रित कर सकते हैं, वायुमंडलीय गैसों को ठीक कर सकते हैं, या जलवायु को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र उत्पादन और सेवाओं को समर्थन प्रदान करते हैं जिसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकते हैं। इनमें मिट्टी की प्रजनन क्षमता, पौधों के पोलिनेटर्स, प्रेडेटर्स, अपशिष्टों का अपघटन, वायु और पानी का शुद्धिकरण, स्थिरीकरण और जलवायु में संयम, बाढ़ , सूखे और अन्य पर्यावरणीय आपदाओं में कमी शामिल है।

शोध से पता चलता है कि एक पारिस्थितिक तंत्र जितना अधिक विविध होगा, उतना ही यह पर्यावरणीय तनाव का सामना कर सकेगा और उतना ही अधिक उत्पादक होगा।

2. मनुष्यों के लिए आर्थिक लाभ

सभी मनुष्यों के लिए, जैव विविधता पहले दैनिक जीवन के लिए एक संसाधन है। इस तरह की ‘फसल विविधता’ को कृषि जैव विविधता भी कहा जाता है।

अधिकांश लोग खाद्य, फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उत्पादों के निर्माण के लिए संसाधनों के जलाशय के रूप में जैव विविधता को देखते हैं। इस प्रकार संसाधन की कमी जैव विविधता के क्षरण से संबंधित हो सकती है। कुछ वस्तुएं जैसे- खाद्य, चिकित्सा, कपड़ा उद्योग, पर्यटन आदि।

3. नैतिक कारण

जैव विविधता की भूमिका अन्य जीवित प्रजातियों, अधिकारों, कर्तव्यों और शिक्षा के साथ नैतिक दृष्टिकोण के साथ हमारे संबंधों का दर्पण होता है। यदि मनुष्य मानते हैं कि प्रजातियों को अस्तित्व का अधिकार है, तो वे स्वेच्छा से उनके विलुप्त होने का कारण नहीं बन सकते हैं। इसके अलावा, जैव विविधता कई संस्कृतियों की आध्यात्मिक विरासत का भी हिस्सा है।

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जैव विविधता मानव जीवन के हिस्सा जो प्रकृति है। जहां एक बीज का निर्माण से जुड़े तत्व शामिल एक प्रकार का ऊर्जा प्रकाश है। जल वाष्प के रूप में बादल बनकर उड़ता बारिश, बहता पानी समुद्र खारा है। हम ऑक्सीजन ग्रहण करते कार्बन डाइऑक्साइड हैं जो एक जीव के रूप में पर्याप्त संसाधन है। मैं जितना फायदेमंद चीजें और जीवों को जानता हूं उतना ही नुकसान दायक मेरे वह जीव भी परिस्थिति का तंत्र है। मेरे बारे में वह काम करते हैं एक जीव विज्ञान हुं। मैं पढ़ता हूं उन्हें जो एक बीज से रूपांतरण पौधा के रूप में बड़ा वृक्ष है। जो जीवित प्रणाली में मृत शरीर को जलाने के उपयोग में वह सुखा लकड़ी है। हम काट रहे हैं उन पेड़ों को जिनसे आयु काल है। मैं जानता हूं उन्हें जो हमारे तत्व निर्माण कार्य करते मनुष्य शरीर का निर्माण कार्य रक्त समूह वीर्य है।

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25 जुलाई को मनाया जायेगा संविधान हत्या दिवस – अमित शाह

आईएएस पूजा खेड़कर – जानिए पूरी कहानी, कीर स्टार्मर ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री बनने को तैयार, तस्वीरों में: विपक्ष के नेता और छाया प्रधानमंत्री के तौर पर राहुल गांधी के हालिया दौरे.

भारत में जैव विवधता के “हॉट-स्पॉट”

जैव विविधता क्या है ? जैव विविधता का सामान्य अर्थ है समस्त जीवों (पौधों एवं प्राणियों) की प्रजातियों में पाई जाने वाली विविधता | इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले आर.ऍफ़.डेस्मैन ने 1968 में किया था | जैव विविधता 3 प्रकार की होती है : आनुवंशिक,प्रजातीय एवं पारितंत्रिय | जबकि जैव-विविधता के “हॉट-स्पॉट” (HotSpot) की संकल्पना को ब्रिटेन के जीव-विज्ञानी नारमैन मेयरस (Norman Mayers) ने 1988 में प्रस्तुत किया था। नारमैन मेयरस ने हॉट-स्पॉट के सीमांकन का आधार निम्नलिखित हैं: 1. किसी प्रदेश में 1500 स्थानीय प्रजातियाँ पाई जाती हों जो विश्व की 300,000 जीव-जातियों का 0.5 % है, 2. किसी प्रदेश में कम से कम 70 % से अधिक मूल जैव-जातियाँ नष्ट हो चुकी हों , और 3. सागरीय हॉट-स्पॉट के संबंध में मूँगे की चट्टानों (Coral Reefs), मछलियों घोंघे (Snail) आदि को भी सम्मिलित किया गया है। अतः साधारण शब्दों में , जैव विविधता के हॉट-स्पॉट ऐसे स्थल हैं जो जैव विविधता की दृष्टि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और साथ ही साथ अत्यंत संवेदनशील भी हैं | विश्व के अधिकतर हॉट-स्पॉट ऊष्ण कटिबंध अथवा अर्ध-ऊष्ण किटबंध में पाये जाते हैं। इस लेख में आप जैव-विविधता से सम्बंधित विभिन्न परीक्षोपयोगी जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं |

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जैव विविधता क्यों महत्वपूर्ण है ?

किसी पारितंत्र में पाई जाने वाली प्रत्येक प्रजाति की अपनी -अपनी भूमिका होती है । प्रत्येक प्रजाति के अस्तित्व का महत्व होता है। प्रत्येक जीव न केवल अपनी क्रियाएं करता है ,बल्कि साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। सह-जीविता इसका एक उदाहरण है | दूसरा, पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। या दूसरे शब्दों में ,प्रजातियों के ह्रास से समूचे तंत्र के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा । अर्थात जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियाँ होती हैं , वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होता है । पर्यावरणीय महत्त्व के अलावा जैव-विविधता आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है । जैव-विविधता का एक महत्वपूर्ण भाग ‘फसलों की विविधता’ (Crop diversity) है, जिसे कृषि जैव-विविधता भी कहा जाता है। खाद्य फसलें, पशु, वन संसाधन, मत्स्य और औषधि- संसाधन (जिसकी एक सूचि नीचे तालिका में दी गई है) आदि कुछ ऐसे प्रमुख आर्थिक महत्त्व के उत्पाद हैं, जो मानव को जैव-विविधता के फलस्वरूप उपलब्ध होते हैं।

कुछ महत्वपूर्ण औषधियां जो हमें पौधों से प्राप्त होती हैं
दवा स्रोत पौधा
1.एट्रोपीन धतूरा (Belladonna)
2.ब्रोमीलेन अन्नानास
3.कैफीन चाय, कहवा
4.काफूर कर्पुर का पेड़ (Camphor tree)
5.कोकीन कोकुआ (Cocoa) (अनाल्जेसिक)
6.कोडीन अफीम का पोस्ता (अनाल्जेसिक)
7.मार्फीन अफीम का पोस्ता (अनाल्जेसिक)
8.कोल्चीसीन जंगली केसर (कैंसररोधी)
9.डिजिटाक्सीन आम फाक्सग्लव
10.डायसजेनीन जंगली रतालू (yams)
11.एल- डोपा वेल्वेट बीन
12.अर्गोटेमीन राई की काजल या अर्गट
13.ग्लेज़ियोबीन ओकोटिया ग्लैज़ियोबी
14.गोसीपोल कपास
15.एंडीसीन एन-आक्साइड हीलियोट्रापियम इंडिकम (कैंसररोधी)
16.मेंथाल पुदीना
17.मोनोक्रोटेलीन कोटोलेरिया सेसिलिफ्लोरा (कैंसररोधी)
18.पपाइन पपीता
19.पेनिसिलीन पेनिसिलियम फंगस (एंटी-बायोटिक)
20.क्वीनीन (कुनैन) पीला सिंकोना (मलेरियारोधी)
21.रेसरथीन भारतीय साँपबूटी
22.स्कोपोलेमीन थार्न एप्पल
23.टैक्सोल पैसिफिक यू
24.विजब्लैस्टाइन रोजी पेरिविकिल (कैंसररोधी)
25.विनक्रिस्टीन (विकारोज़िया) (सदाफली)

भारत की जैव विविधता

दुनिया के जैव-समृद्ध राष्ट्रों में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है और यहाँ पौधों व प्राणियों की व्यापक विविधता है जिनमें से अनेक प्रजातियाँ ऐसी हैं जो विश्व में कहीं और नहीं पाई जातीं। ऐसी प्रजातियों को स्थानिक (endemic) कहते हैं | भारत में स्तनपायीयों की 350 प्रजातियाँ हैं जो कि दुनिया भर के देशों में 8वीं सबसे बड़ी संख्या है | पक्षियों की 1200 प्रजातियाँ हैं (संसार में 8वाँ स्थान), सरीसृपों की 453 प्रजातियाँ हैं (संसार में 5वाँ स्थान) और पौधों की 45,000 प्रजातियाँ हैं (संसार में 15वाँ स्थान)- जिनमें से अधिकांश तो आवृत्तबीजी (angiosperms) हैं। इनमें 1022 प्रजातियों वाले फर्न और 1082 प्रजातियों वाले आर्किड की विशेष रूप से भारी विविधता भी शामिल है। 13000 तितलियों और बीटल्स समेत यहाँ कीड़े-मकोड़ों की 50,000 ज्ञात प्रजातियाँ हैं। अनुमान लगाया गया है कि अज्ञात प्रजातियों की संख्या इससे कहीं बहुत अधिक हो सकती है और इस सन्दर्भ में शोध जारी हैं । भारत के 18 % पौधे स्थानिक हैं और दुनिया में कहीं और पाए नहीं जाते। पौधों की प्रजातियों में फूल देनेवाले काफ़ी हद तक स्थानीय पौधे हैं; इनमें से लगभग 33% दुनिया में कहीं और पाए ही नहीं जाते। भारत के जल-थलचारी प्राणियों में 62 % इसी देश में पाए जाते हैं। छिपकलियों की 153 ज्ञात प्रजातियों में 50 % स्थानिक हैं। इसी प्रकार कीड़े -मकोड़ों, केचुओं और कई जलीय जीवों के विभिन्न समूहों में भी भारी स्थानीयता पाई जाती है।

भारत के जैव-भौगोलिक क्षेत्र (Biogeographic Zones)

भारत को जैव -भौगोलिक दृष्टि से निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया गया है :

1.पूर्वी हिमालय एवं लद्दाख का हिमालयी क्षेत्र ।

2.हिमालय की पर्वतमालाएँ तथा कश्मीर, हिमाचलप्रदेश, झारखंड, असम और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों की वादियाँ। 3.तराई की निम्नभूमि (lowland) जहाँ हिमालय से निकली नदियाँ मैदानों में प्रवेश करती हैं।

4.गंगा और ब्रह्मपुत्र के मैदान ।

5.राजस्थान का थार रेगिस्तान ।

6.दकन के पठार, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के अर्धशुष्क घास के मैदान।

7.भारत के पूर्वोत्तर राज्य

8.महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल का पश्चिमी घाट।

9.अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह।

10.पश्चिम और पूर्व की लंबी समुद्रतटीय पट्टियाँ जिनमें रेतीले तट, वन और मैनग्रोव हैं।

इनमें पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं |

1.पश्चिमी घाट (Western Ghats) : भारत के पश्चिमी घाट न केवल भारतीय उपमहाद्वीप बल्कि दुनिया भर के जैव विविधता के सभी मुख्य स्थलों में से एक हैं | यह दक्षिण भारत में लगभग 1600 किलोमीटर में विस्तृत एक पर्वत श्रृंखला है जिसका अधिकांश हिस्सा उष्णकटिबंधीय वर्षा वन के अंतर्गत आता है | तमिलनाडु के दक्षिणी छोर से शुरू होकर यह केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, एवं गुजरात तक फैली हुई है | पश्चिमी घाट की सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय महत्ता के कारण इसे 2012 में यूनेस्को (UNESCO) के रूस के सेंट पीटर्सबर्ग (St. Petersburg) में सम्पन्न सम्मलेन में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची (UNESCO World Heritage Sites) में शामिल कर लिया गया था। पश्चिमी घाट की पारिस्थितिको में विशेष एवं विचित्र प्रकार के पारितत्र (Ecosystems), जैविक एवं भौगोलिक प्रक्रियाएँ पाई जाती है। भारत के इस पर्वतीय प्रदेश में बहुत से स्थानीय (Endemic) पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तथा जीव-जंतु पाये जाते हैं। इनमें सिंह पुच्छी मकाक व निलगिरी टार का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है | पश्चिमी घाट गुजरात की तापी नदी के दक्षिणी किनारे से आरंभ होकर भारत की मुख्य भूमि के दक्षिणतम बिंदु तक विस्तृत है। पर्यावरणविदों का मानना है कि पश्चिमी घाट में 500 प्रकार के फूल-पौधे , 39 प्रकार के स्तनधारी (Mammals), 508 प्रकार के पक्षी तथा 179 प्रकार के उभयचर (Amphibians) पाये जाते हैं। पश्चिमी घाट ऊष्णकटिबंध तथा उपोष्णकटिबंध (Subtropical) की प्राकृतिक वनस्पति से ढके हुये हैं। यहीं वर्षावन भी पाए जाते हैं । यह क्षेत्र पारिस्थितिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। यही कारण है कि भारत सरकार ने इस पर्वतमाला में 2 जीवमंडल संरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves), 13 नेशनल पार्क तथा कई वन्यजीव अभ्यारण्य (Wildlife Sanctuaries) स्थापित किए हैं। इनमें अगसत्यमला संरक्षित जैवमंडल, नीलगिरि संरक्षित जैवमंडल,नेत्रावली वन्य अभयारण्य,नेय्यार वन्य अभयारण्य, साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान का नाम लिया जा सकता है |

2.पूर्वी हिमालय : इसके अन्तर्गत पूर्वी हिमालय के असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के क्षेत्र आते हैं । लगभग 7,50,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले इस हॉट-स्पॉट में वनस्पतियों की लगभग 10,000 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानिक हैं। इसके अलावा यहां स्तनधारी जीवों की भी 300 प्रजातियाँ निवास करती हैं जिनमे हिमालयी नहर, गोल्डन लंगूर, हुलोक गिब्बन, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ इत्यादि प्रमुख हैं ।

जैव विविधता के समक्ष संकट और इसके संरक्षण के विभिन्न क़ानूनी प्रयास

आज आवास विखंडन ,तथाकथित विकास के नाम पर संसाधनों के अति -दोहन ,जलवायु परिवर्तन ,आक्रामक प्रजातियों एवं सह-विलुप्तता इत्यादि के कारण जैव विविधता संकट में है | इस दिशा में दुनिया भर के देश प्रयासरत हैं | इस सन्दर्भ जागरुकता फ़ैलाने के लिए 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाया जाता है | भारत ने भी इस दिशा में कई कदम उठाए हैं | यहाँ देश के 3 सबसे महत्वपूर्ण कानून की संक्षिप्त चर्चा आवश्यक है |

1.पर्यावरण संरक्षण अधिनियम , 1982 (Environmental Protection Act, 1982) : पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1982 एक विशद कानून है जिसका उद्देश्य पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करना तथा उसको बेहतर बनाना है। यह कानून केंद्रीय सरकार को इस दिशा में कार्य करने का अधिकार देता है | इस कानून के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं :

(1) पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिये राष्ट्रीय सत्र पर योजनाएँ तैयार करना और उनको लागू करना।

(2) प्रदूषण के विभिन्न मापदंड तैयार करना।

(3) हानिकारक गैस उत्सर्जन तथा उद्योगों से निकाले जाने वाले जल इत्यादि के नियम तथा कानून तैयार करना।

(4) औद्योगिक क्षेत्रों (Industrial Areas) की सीमा निर्धारित करना।

(5) दुर्घटनाओं की रोक-थाम के लिये कार्य प्रणाली तैयार करना।

(6) खतरनाक अवशेषों को लाने-ले जाने की कार्यप्रणाली तैयार करना।

(7) उन सभी संसाधनों, कच्चे माल तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं का निरीक्षण एवं परोक्षण करना जिनसे प्रदूषण बढ़ने की संभावना हो।

(8) पर्यावरण प्रदूषण संबंधी शोध कार्य करना।

(9) किसी भी औद्योगिक इकाई में जाकर उसकी मशीनों इत्यादि का निरीक्षण करना।

(10) पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिये आचरण संहिता (Code of Conduct) तैयार करना।

(11) विभिन्न कार्यों के लिये अधिकारियों को नियुक्ति करना,

(12) यदि आवश्यक हो तो कारखाने को बंद करने के आदेश देना,

(13) निर्धारित सीमा से अधिक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन पर रोक लगाना,

(14) हानिकारक सामग्री (Hazardous) Material) को लाने ले जाने की नियमित कार्य प्रणाली को सुनिश्चित करना, (15) दूषित पदार्थों (Pollutants) के नमूने (Sample) एकत्रित करना और उनकी प्रयोगशालाओं में जाँच करना तथा;

(16) पर्यावरण प्रदूषण संबंधी कानून तथा नियम तैयार करना |

2.वन्य प्राणी अधिनियम (Wildlife Protection Act)- 1972 : वन्य प्राणियों के संरक्षण के उद्देश्य से 1972 में वन्य प्राणी अधिनियम बनाया गया जिसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं :

1. विशेष पेड़-पौधे को संरक्षण प्रदान करना।

2. जंगली पशु-पक्षियों के शिकार करने पर प्रतिबंध लगाना।.

3. नेशनल पार्क, अभ्यारण्य (Sanctuaries) तथा जैव-संरक्षण के लिये विशेष क्षेत्रों को घोषित करना।

4. नेशनल पार्क ,अभ्यारण्य इत्यादि का प्रबंधन करना।

5. केंद्रीय चिड़िया घर कमेटी का गठन करना।

6. शिक्षा एवं शोध कार्य के लिये तथा वन- पशु पक्षियों के शिकार के लिये लाइसेंस जारी करना।

7. शिक्षा एवं शोध कार्य के लिये किसी विशेष वृक्ष, पौधे को उखाड़ने अथवा तोड़ने के लिये लाइसेंस जारी करना।

8. वन्य पशु-पक्षियों तथा उनके उत्पाद के व्यापार के लिये लाइसेंस जारी करना।

9.पेड़ पौधों को उगाने के लिए लाइसेंस देना जिन पर आमतौर पर प्रतिबंध है ।

10. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण करना ।

11. इन नियमों के उल्लंघन करने वालों को दंडित करना ।

3.बायोडाइवर्सिटी एक्ट 2002 (Biodiversity Act, 2002) : भारत में जैव-विविधता एक्ट 2002 में पारित किया गया। इस एक्ट के द्वारा राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority- NBA) राज्य जैव विविधता प्राधिकरण तथा जैव-विविधता प्रबंधन समिति (Biodiversity Management Committees (BMCS) का गठन किया गया है। राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण का गठन 2003 में किया गया था। इस एक्ट के अनुसार सभी विदेशी संगठनों को जैव-विविधता के संसाधनों को प्राप्त करने अथवा उनका उपयोग करने के लिये राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण (NBA) की अनुमति लेना अनिवार्य है। यदि भारतीय मूल के व्यक्तियों को किसी जैव-विविधता संबंधित शोध कार्य की जानकारी किसी विदेशी नागरिक अथवा संगठन को देने से पहले एन बी ए (NBA) की अनुमति लेना अनिवार्य है। भारतीय औद्योगिक जगत को किसी भी जैव-विविधता संसाधन को उपयोग में इस्तेमाल करने से पहले स्टेट बाइओडाइवस्टी बोर्ड (S.B.B.) को सूचित करना अनिवार्य है। यदि एस. बी. बी. (S.B.B.) के अनुसार इस प्रकार के संसाधनों के उपयोग से एक्ट का उल्लंघन हो रहा है और जैविक विविधता संरक्षण में बाधा आ रही है तो उस पर रोक लगाई जा सकती है। हालाँकि भारतीय मूल के हकीम (Hakims) तथा वैद्य (Vaids) को जैव-संसाधनों के उपयोग की अनुमति दी गई है। इस प्रकार के शोध-कार्यों से अर्जित धन को नेशनल वाइओडाइवस्टी प्राधिकरण कोष में जमा कराना होगा। ऐसे धन को जैव-विविधता संरक्षण पर खर्च किया जाएगा ।

पश्चिमी घाट के संरक्षण के गठित कस्तूरीरंगन समिति एवं गाडगिल समिति

विकास कार्यों ,अवसंरचना निर्माण और विशेष तौर पर खनन जैसे कार्यों के कारण पश्चिमी घाट के पारितंत्र को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए सुझाव देने हेतु 2012 में केंद्र सरकार ने कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया | कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के 37 % (60,000 वर्ग की.मी.) को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Area- ESA) घोषित करने का प्रस्ताव दिया गया है। रिपोर्ट में खनन, उत्खनन, रेड कैटेगरी उद्योगों (Red Category Industries) की स्थापना और ताप विद्युत परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है। इससे पहले भी इस प्रयोजन से गाडगिल गठित की गई थी | गाडगिल समिति ने कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों और जीन संवर्धित बीजों के उपयोग पर रोक लगाने से लेकर पनबिजली परियोजनाओं को हतोत्साहित करने और वृक्षारोपण के बजाय प्राकृतिक वानिकी को प्रोत्साहन देने की सिफारिशें की थीं | इसके अलावा 20,000 वर्ग मीटर से अधिक बड़ी इमारतों के निर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही थी | गाडगिल समिति ने प्रस्तावित किया था कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ (ESA) के रूप में नामित किया जाए। लेकिन किसी भी सम्बन्धित राज्य ने गाडगिल समिति की सिफारिशों को मानने से इनकार कर दिया था |

अन्य महत्वपूर्ण लिंक :

speech on biodiversity in hindi

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विश्व जैव विविधता दिवस (22 मई) का इतिहास, महत्व, थीम और अवलोकन

विश्व जैव विविधता दिवस संक्षिप्त तथ्य.

विश्व जैव विविधता दिवस (World Biodiversity Day)
22 / मई
22 दिसंबर, 2000
अंतरराष्ट्रीय दिवस
संयुक्त राष्ट्र महासभा

विश्व जैव विविधता दिवस का संक्षिप्त विवरण

संपूर्ण विश्व में 22 मई को "अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस" मनाया जाता है।

विश्व जैव विविधता दिवस का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2000 को 22 मई को "अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस" के रूप में घोषित किया था। इसके पीछे यूएनओ का मुख्य उद्देश्य यह था की विश्व में सभी लोगो को जैव विविधता के प्रति सतर्क किया जाये जिससे विश्व की जैव विविधताओं को बनी रहे और उसका संरक्षण किया जा सके।

विश्व जैव विविधता दिवस विषय (Theme)

  • विश्व जैव विविधता दिवस 2022 की थीम: ""सभी जीवन के लिए एक साझा भविष्य का निर्माण" (Building a shared future for all life)
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2021 की थीम: ""हम समाधान का हिस्सा हैं #ForNature" (We"re part of the solution #ForNature)
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2020 की थीम: ""हमारे समाधान प्रकृति में हैं" (Our solutions are in nature)
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2019 की थीम: ""हमारी जैव विविधता, हमारा भोजन, हमारा स्वास्थ्य" (Our Biodiversity, Our Food, Our Health)
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2018 की थीम: "जैव विविधता के लिए 25 साल की कार्रवाई का जश्न (Celebrating 25 Years of Action for Biodiversity)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2017 की थीम: "जैव विविधता और सतत पर्यटन (Biodiversity and Sustainable Tourism)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2016 की थीम: " जैव - विविधता  को मुख्य धारा में लाना, लोगों एवं उनकी आजीविका को बनाए रखना (Mainstreaming Biodiversity; Sustaining People and their Livelihoods)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2015 की थीम: "निरंतर विकास के लिए जैव विविधता (Biodiversity for Sustainable Development)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2014 की थीम: "द्वीप जैव विविधता (Island Biodiversity)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2013 की थीम: "जल और जैव विविधता (Water and Biodiversity)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2012 की थीम: "समुद्री जैव विविधता (Marine Biodiversity)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2011 की थीम: "वन जैव विविधता (Forest Biodiversity)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2010 की थीम: "जैव विविधता, विकास और गरीबी उन्मूलन (Biodiversity, Development and Poverty Alleviation)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2009 की थीम: "आक्रामक विदेशी प्रजातियां (Invasive Alien Species)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2008 की थीम: "जैव विविधता और कृषि (Biodiversity and Agriculture)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2007 की थीम: "जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन (Biodiversity and Climate Change)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2006 की थीम: "ड्रायलैंड्स में जैव विविधता की रक्षा करें (Protect Biodiversity in Drylands)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2005 की थीम: "जैव विविधता: हमारी बदलती दुनिया के लिए जीवन बीमा (Biodiversity: Life Insurance for our Changing World)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2004 की थीम: "जैव विविधता: सभी के लिए खाद्य, जल और स्वास्थ्य (Biodiversity: Food, Water and Health for All)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2003 की थीम: "जैव विविधता और गरीबी उन्मूलन: सतत विकास के लिए चुनौतियां (Biodiversity and poverty alleviation - challenges for sustainable development)"
  • विश्व जैव विविधता दिवस 2002 की थीम: "जंगल जैव विविधता के लिए समर्पित (Dedicated to forest biodiversity)"

विश्व जैव विविधता दिवस के बारे में अन्य विवरण

जैव विविधता किसे कहते है.

जैव विविधता, किसी दिये गये पारिस्थितिकी तंत्र, बायोम, या एक पूरे ग्रह में जीवन के रूपों की विभिन्नता का परिमाण है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है। पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं।

जैव विविधता वाले देश

विश्व के समृद्धतम जैव विविधता वाले 17 देशों में भारत भी सम्मिलित है, जिनमें विश्व की लगभग 70 प्रतिशत जैव विविधता विद्यमान है। अन्य 16 देश हैं- ऑस्ट्रेलिया, कांगो, मेडागास्कर, दक्षिण अफ़्रीका, चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, पापुआ न्यू गिनी, फिलीपींस, ब्राज़ील, कोलम्बिया, इक्वेडोर, मेक्सिको, पेरू, अमेरिका और वेनेजुएला। संपूर्ण विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही भारत में है, लेकिन यहां विश्व के ज्ञात जीव जंतुओं का लगभग 5 प्रतिशत भाग निवास करता है।

"भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण" एवं "भारतीय प्राणी सर्वेक्षण" द्वारा किये गये सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में लगभग 49,000 वनस्पति प्रजातियाँ एवं 89,000 प्राणी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत विश्व में वनस्पति-विविधता के आधार पर दसवें, क्षेत्र सीमित प्रजातियों के आधार पर ग्यारहवें और फसलों के उद्भव तथा विविधता के आधार पर छठवें स्थान पर है।

जैव विविधता के प्रकार

जैव विविधता से प्रकृति में मौजूद जीवों और पारिस्थितिकीय तंत्र के अंतर्संबंधों की जानकारी मिलती है। जैव विविधता से जीव, प्रजाति एवं उपयोगी पारिस्थितिक तंत्र के बीच आपसी संबंध हमें कई महत्वपूर्ण उत्पाद देते हैं, क्योंकि जीन, प्रजातियों के घटक हैं, प्रजातियां पारिस्थितिक तंत्र की। जैव विविधता तीन प्रकार की होती है-

  • एक ही प्रजाति के जीवों में होने वाली विविधताओं को अनुवांशिक विविधता।
  • प्रजाति विविधता, जिसमें एक ही प्रजाति के जीव एक दूसरे से काफ़ी समानता रखते हैं।
  • पारिस्थितिकी विविधता, जो आवास एवं जैव समुदाओं के अंतर को प्रदर्शित करती है।

भारत की जैव विविधता

विश्व के बारह चिन्हित मेगा बायोडाइवर्सिटी केन्द्रों में से भारत एक है। विश्व के 18 चिन्हित बायोलाजिकल हाट स्पाट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। भारत सरकार ने देश भर में 18 बायोस्फीयर भंडार स्थापित किये हैं जो जीव जंतुओं के प्राकृतिक भू-भाग की रक्षा करते हैं और अकसर आर्थिक उपयोगों के लिए स्थापित बफर जोनों के साथ एक या ज्यादा राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य को संरक्षित रखने का काम करते हैं।

भारत में जैव विविधता से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारत में विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत भू-भाग है जिसके 7 से 8 प्रतिशत भू-भाग पर विश्व की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • प्रजातियों के समृद्धि के मामले में भारत स्तनधारियों में 7वें, पाक्षियों में 9वें और सरीसृप में 5वें स्थान पर है।
  • विश्व के 11 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 44 प्रतिशत भू-भाग पर फसलें बोई जाती हैं।
  • भारत के लगभग 23.39 प्रतिशत भू-भाग पर पेड़ और जंगल फैले हुए हैं।
  • भारत में जैव विविधता के 4 हॉटस्पॉट केंद्र हैं-(i) हिमालय, (ii) भारत-म्यांमार सीमा (iii) सुंडालैंड्स (Sundalands) और (iv) पश्चिमी घाट
  • एक जैव विविधता वाला हॉटस्पॉट ऐसा जैविक भौगोलिक क्षेत्र है जिसे मनुष्यों से खतरा रहता है।
  • भारत में जैवविविधता के संरक्षण के लिए जैवविविधता अधिनियम, 2002 एक संघीय कानून है।
  • जो परंपरागत जैविक संसाधनों और ज्ञान के उपयोग से होने वाले लाभों के समान वितरण तंत्र प्रदान करता है।
  • इस अधिनियम को लागू करने के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की स्थापना वर्ष 2003 में एक सांविधिक और स्वायत्त संस्था के रूप में हुई थी।
  • यह संस्था जैविक संसाधनों के साथ-साथ उनके सतत उपयोग से होने वाले लाभ की निष्पक्षता और समान बटवारे जैसे मुद्दों पर भारत सरकार के लिए सलाहकार और विनियामक की भूमिका निभाती है।
  • मरूभूमि राष्ट्रीय उद्यान भारत में जैवविविधता के संरक्षण और विकास के लिए एक अनूठा जीवमंडल रक्षित स्थान है।
  • यह राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले में स्थित है।
  • यह उद्यान थार रेगिस्तान के पारिस्थितिकी तंत्र का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

मई माह के महत्वपूर्ण दिवस की सूची - ( राष्ट्रीय दिवस एवं अंतराष्ट्रीय दिवस ):

तिथि दिवस का नाम - उत्सव का स्तर
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- राष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
- अंतरराष्ट्रीय दिवस
मई माह का दूसरा रविवार मईमातृ दिवस - अंतरराष्ट्रीय दिवस
मई माह का पहला मंगलवार मईविश्व अस्थमा दिवस - अंतरराष्ट्रीय दिवस

विश्व जैव विविधता दिवस प्रश्नोत्तर (FAQs):

विश्व जैव विविधता दिवस कब मनाया जाता है?

विश्व जैव विविधता दिवस प्रत्येक वर्ष 22 मई को मनाया जाता है।

क्या विश्व जैव विविधता दिवस एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है?

हाँ, विश्व जैव विविधता दिवस एक अंतरराष्ट्रीय दिवस है, जिसे पूरे विश्व हम प्रत्येक वर्ष 22 मई को मानते हैं।

विश्व जैव विविधता दिवस की शुरुआत कब की गई थी?

विश्व जैव विविधता दिवस की शुरुआत 22 दिसंबर, 2000 को की गई थी।

विश्व जैव विविधता दिवस प्रत्येक वर्ष किसके द्वारा मनाया जाता है?

विश्व जैव विविधता दिवस प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मनाया जाता है।

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जैव विविधता और पर्यावरण

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जैव-विविधता के संरक्षण हेतु बायोस्फीयर

  • 24 May 2022
  • 13 min read
  • सामान्य अध्ययन-III
  • पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

यह एडिटोरियल 20/05/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Pockets of hope, linking nature and humanity’’ लेख पर आधारित है। इसमें ‘वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व’ (WNBR) के महत्त्व और जैव-विविधता के संरक्षण के लिये बायोस्फीयर रिज़र्व की भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

जैव-विविधता (Biodiversity) पृथ्वी की एक अत्यंत प्रमुख विशेषता है। इसकी उपस्थिति के बिना पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व की कल्पना करना संभव नहीं है। ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये अंतर-सरकारी विज्ञान-नीति मंच’ (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services- IPBES) द्वारा वर्ष 2019 में ‘जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट’ (Global Assessment Report on Biodiversity and Ecosystem Services) जारी की गई।

  • इस रिपोर्ट का मुख्य लक्ष्य जैव-विविधता के क्षरण, जलवायु परिवर्तन, आक्रामक प्रजातियों, प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन, प्रदूषण और शहरीकरण जैसी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाना है।
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय और अंतर-सरकारी एजेंसी है जिसका उद्देश्य जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये विज्ञान-नीति अंतःक्रिया की वृद्धि करना है।
  • इसका मूल उद्देश्य जैव-विविधता संरक्षण (Biodiversity Conservation) और सतत् विकास (Sustainable Development) को बढ़ावा देना है।
  • IPBES में आधिकारिक तौर पर 137 सदस्य राष्ट्र हैं। IPBES की सदस्यता किसी भी ऐसे देश के लिये उपलब्ध है जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य हो।
  • हालाँकि IPBES संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध नहीं है। यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) से सचिवालय की सेवाएँ प्राप्त करता है।

‘ जैव - विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट ’

  • इस मूल्यांकन का व्यापक लक्ष्य जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में वर्तमान स्थिति और प्रवृत्तियों का आकलन करना है।
  • यह रिपोर्ट मानव कल्याण पर जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के प्रभावों के साथ-साथ ‘जैव-विविधता के लिये रणनीतिक योजना’ (Strategic Plan for Biodiversity) और ‘आईची जैव-विविधता लक्ष्य’ (Aichi Biodiversity Targets) जैसे उपचारात्मक उपायों की प्रभावकारिता का मूल्यांकन भी करती है।
  • रिपोर्ट पिछले पाँच दशकों के रुझानों की जाँच करती है और सतत् विकास एवं पर्यावरणीय प्रभावों के बीच के अंतर्संबंध पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

आईची जैव - विविधता लक्ष्य

  • रणनीतिक लक्ष्य A: सरकार और समाज के बीच जैव-विविधता को मुख्यधारा में लाकर जैव-विविधता के क्षरण के अंतर्निहित कारणों को संबोधित करना
  • रणनीतिक लक्ष्य B: जैव-विविधता पर प्रत्यक्ष दबाव को कम करना और सतत उपयोग को बढ़ावा देना
  • रणनीतिक लक्ष्य C: पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियों और आनुवंशिक विविधता की रक्षा करके जैव-विविधता की स्थिति में सुधार करना
  • रणनीतिक लक्ष्य D: जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं से सभी के लिये लाभ की वृद्धि करना
  • रणनीतिक लक्ष्य E: भागीदारी योजना, ज्ञान प्रबंधन और क्षमता निर्माण के माध्यम से कार्यान्वयन में वृद्धि करना।

पृथ्वी की वहन क्षमता पर दबाव के कारण

  • पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता में कई गुना वृद्धि हुई है। पारिस्थितिकी तंत्र की वहन क्षमता में वृद्धि के साथ पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की उपलब्धता में वृद्धि होगी।
  • पारिस्थितिक तंत्र सेवाएँ तभी लाभ प्रदान कर सकती हैं जब एक पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य और जैव-विविधता के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • जैव-विविधता के संरक्षण का वायु, जल और मृदा के प्रदूषण नियंत्रण उपायों से प्रत्यक्ष संबंध है।
  • उच्च गुणवत्तापूर्ण पेयजल, पर्याप्त आहार एवं स्वस्थ आवास की उपलब्धता तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब प्रकृति के संतुलन को प्रभावित किये बिना पारिस्थितिकी तंत्र की जैव-विविधता का संरक्षण कर पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बहाल रखा जाए।
  • यह हमारी ज़िम्मेदारी है और निश्चित रूप से हमारे हित में है कि हम पर्यावरण का सम्मान करें; यह सम्मान पर्यावरणीय, सांस्कृतिक या धार्मिक किसी भी दृष्टिकोण से प्रेरित हो सकता है।

बायोस्फीयर रिज़र्व पारितंत्र को यूनेस्को का समर्थन

  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization- UNESCO) ने सर्वोत्कृष्ट तंत्रों में से एक की स्थापना की है जिसे ‘वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व’ के रूप में जाना जाता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1971 में की गई थी।
  • बायोस्फीयर रिज़र्व मूल रूप से उन जगहों की सहकारिता और सह-अस्तित्व को बढ़ावा दे रहे हैं जहाँ मनुष्य प्रकृति के साथ सद्भाव में रहते हैं।
  • पहला बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 1977 में श्रीलंका में स्थापित किया गया था जिसे हुरुलु बायोस्फीयर रिज़र्व (Hurulu Biosphere Reserve) के रूप में जाना जाता है।
  • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व तीन राज्यों—तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में विस्तृत है।
  • वर्ष 2020 में पन्ना बायोस्फीयर रिज़र्व, मध्य प्रदेश को इस सूची में शामिल किया गया।
  • कंचनजंघा बायोस्फीयर रिज़र्व (Khangchendzonga Biosphere reserve) की स्थापना वर्ष 2018 में हुई। यह विश्व के कुछ सबसे उच्चतम पारिस्थितिक तंत्रों से समृद्ध है।
  • कंचनजंघा बायोस्फीयर रिज़र्व ऑर्किड की विभिन्न प्रजातियों और पादपों एवं जीवों की अन्य विभिन्न प्रजातियों को संपोषण देता है।
  • इन बायोस्फीयर रिज़र्व से जुड़ी प्रमुख गतिविधियों में फसल उत्पादन, पशुपालन, मत्स्यग्रहण, डेयरी उत्पादन, कुक्कुट पालन आदि शामिल हैं।
  • यूनेस्को बायोस्फीयर रिज़र्व के रूप में किसी स्थल को निर्दिष्ट किये जाने हेतु नामांकन राष्ट्रीय सरकार द्वारा किया जाता है, जिसे फिर यूनेस्को द्वारा अनुमोदित किया जाता है।

दबाव कम करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं ?

  • जैव-विविधता के संरक्षण के संबंध में विज्ञान-आधारित प्रबंधन योजनाओं पर यूनेस्को बायोस्फीयर रिज़र्व को प्राथमिकता से ध्यान देना चाहिये।
  • जैव-विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिये जैव-विविधता संरक्षण, स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु, पर्यावरण शिक्षा, जल संरक्षण एवं अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में वैज्ञानिक अनुसंधान और निगरानी आवश्यक है। इसका उद्देश्य परिवर्तनों का पता लगाना और जलवायु प्रत्यास्थता की वृद्धि के लिये समाधान खोजना है।
  • बांग्लादेश, भूटान और नेपाल यूनेस्को की प्राथमिकता सूची में हैं क्योंकि इन देशों में कोई भी बायोस्फीयर रिज़र्व मौजूद नहीं है। दृष्टिकोण यह यह है कि इनमें से प्रत्येक देश में कम से कम एक बायोस्फीयर रिज़र्व की स्थापना से आशा का संचार होगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस (International Day for Biological Diversity) जैव-विविधता संरक्षण की भावना को बढ़ावा देता है। इसमें पर्यावरण के प्रति सम्मान और इसके संरक्षण हेतु उत्तरदायित्व की भावना निहित है।
  • संवहनीय मानव जीवन एवं पर्यावरण संरक्षण के मूल्यांकन के साथ-साथ वनस्पतियों एवं जीवों की प्रजातियों के संरक्षण और पुनर्बहाली के लिये स्थानीय समाधान एवं सर्वोत्तम अभ्यासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न : ‘‘सतत विकास हेतु पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और बहाली के स्थानीय समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।’’ चर्चा कीजिये।

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अंतर्राष्ट्रीय जैविक विविधता दिवस: धरती की सुंदरता के लिये उसकी विविधता भी आवश्यक है.

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International Biodiversity Day Article in Hindi

डॉ. ए.पी.जे. अबुल कलाम (Dr. A.P.J. Abdul Kalam) ने कहा था कि ‘जैव विविधता से परिपूर्ण हमारी धरती सदैव रचनात्मकता का संदेश देती है और इस रचनात्मकता से मानव नई खोजों, आविष्कारों और अनुसंधानों द्वारा विकास के मार्ग पर बढ़ता जाता है। इस प्रकार धरती की सुंदर जैवविविधता का मानवीय विकास से गहरा सम्बन्ध है। अतः जैविविधता संरक्षण से मानव न केवल प्रकृति का सम्मान करना है वरन् वह स्वयं भी अपने भविष्य को संवारता है।’

-नवनीत कुमार गुप्ता

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12th notes in hindi

जैव विविधता और संरक्षण (Biodiversity and its Conservation) notes in hindi

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12th class biology Biodiversity and its Conservation notes in hindi जैव विविधता और संरक्षण

जैव विविधता क्या है परिभाषा व प्रकार Biodiversity Definition in hindi

जैव विविधता के प्रतिरूप , कारण , परितंत्र में महत्व Biodiversity patterns in hindi

रिवेट पोवर परिकल्पना Rivet popper hypothesis in hindi , जैव विविधता की क्षति

जैव विविधता की क्षति अथवा जाति विलोपन का कारण Biodiversity damage & causes

जैव विविधता का संरक्षण Conservation of Biodiversity in hindi

Concept of biodiversity; patterns of biodiversity in hindi ; importance of biodiversity; loss of biodiversity; biodiversity conservation hindi me; hotspots, endangered organisms, extinction, Red Data Book, biosphere reserves, national parks hindi , sanctuaries and Ramsar sites.

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जैव विविधता का संरक्षण क्या है | Biodiversity Conservation Meaning In Hindi

जैव विविधता का संरक्षण क्या है Biodiversity Conservation Meaning In Hindi : किसी भौतिक प्रदेश में जीव जन्तु, पेड़ पौधे तथा जैविक घटकों की संख्या से जैव विविधता (BIO Biodiversity) का जन्म होता है.कहा जाता है. भारत जैव विविधता की दृष्टि से दुनिया का सम्पन्न देश है.

जैव विविधता का संरक्षण क्या है Biodiversity Conservation Meaning In Hindi

जैव विविधता का संरक्षण क्या है | Biodiversity Conservation Meaning In Hindi

किसी भी प्राकृतिक प्रदेश में मिलने वाली जीव जन्तुओं तथा वनस्पति की विभिन्नता की बहुलता को जैव विविधता कहा जाता है. हमारा देश  बायोडायवर्सिटी की दृष्टि से समर्द्ध देश है.

विश्व में मिलने वाले कुल 15 लाख जैव विविधताओं में से 40 प्रतिशत भारत में पाई जाती है. भारत में अभी तक लगभग 81,000 जीव जन्तु तथा 45,000 वनस्पतियों को पहचाना जा चुका है.

आर्थिक दृष्टि से जीव जन्तु व वनस्पतियाँ बहुत ही उपयोगी है, जो  जैव विविधता का मुख्य आधार है.

जैव विविधता का संरक्षण

प्रकृति के निर्माण व उसको बनाये रखने में जैव विविधता की अहम भूमिका रहती है. प्रकृति में किसी भी प्रकार के जीव तथा वनस्पति का विनाश प्रकृति तथा पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकता है.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक प्रमुखत ब ड़े बाँधो का निर्माण, औद्योगीकरण, सघन खेती, बढ़ती आबादी हेतु आवास व भोजन की आवश्यकता से जैव विविधता का खूब विनाश हुआ है.

जीव जन्तु तथा वनस्पति पर्यावरण का संतुलन बनाए रखते है, जैव विविधता biodiversity  का विनाश ओजोन परत में छिद्र, हरित गृह प्रभाव के कारण वातावरण में गर्मी का बढ़ना इत्यादि पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती जा रही है.

इस हेतु प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन (IUCN) बना हुआ है. इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड में है. इस दिशा में विश्व प्रकृति निधि (WWF) द्वारा भी कार्य किया जा रहा है.

भारत में बायोडायवर्सिटी को सतत विकास की दृष्टि से बचाया जाना चाहिए, उनको संरक्षण प्रदान करना समय की आवश्यकता है. भारत में जैव विविधता संरक्षण  हेतु विभिन्न राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभयारण्य, जैव मंडलीय सुरक्षित क्षेत्र की स्थापना तथा बाघ परियोजनाएं आदि चल रही है.

इस हेतु देश के कुछ शोध संस्थान भी कार्य कर रहे है,   जिनमे प्रमुख है- भारतीय वन अनुसंधान देहरादून, भारतीय वनस्पति उद्यान कोलकाता, पारिस्थतिकी अनुसंधान संस्थान बैंगलोर, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान नागपुर आदि.

जैव विविधता क्या है (What is biodiversity)

बायोडायवर्सिटी शब्द पृथ्वी पर रहने वाली समस्त जैविक प्रजातियों को अपने में समाहित किये हुए है. इसमे समस्त प्रकार के स्तनधारी, पक्षी प्रजातियाँ, सरीसर्प, उभयचर, मछली प्रजातियाँ, कीडेमकोडे एवं अन्य गैर केशुरुकीय जीव, पेड़ पौधे, शैवाल कवक तथा प्रोटोजोआ, बैक्टीरिया, वायरस इत्यादि सूक्ष्म जीव सम्मिलित है.

संयुक्त राज्य अमेरिका में 1987 में प्रकाशित टेक्नालजी असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार जीव जन्तुओं में पाई जाने वाली विविधता, विषमता तथा पारिस्थतिकी जटिलता ही जैव विविधता कहलाती है.

बायोडायवर्सिटी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग एडवर्ड ओ विल्सन द्वारा 1986 में किया गया था. इन्हें जैव विविधता का जनक (Father of biodiversity) कहा जाता है.

जैव विविधता के स्तर (Biodiversity Levels And Types)

बायोडायवर्सिटी का संबंध जैव मंडल में प्रकृति की विविधता की मात्रा से है, इस विविधता को तीन स्तरों पर देखा जा सकता है.

  • एक प्रजाति के अंदर ही जीनों का अंतर अर्थात आनुवांशिक जैव विविधता (Genetic biodiversity)
  • एक समुदाय के अंदर प्रजातियों के अंदर की विविधता अर्थात प्रजातीय विविधता (Species biodiversity)
  • पौधे और प्राणियों से सुस्पष्ट समुदायों में किसी क्षेत्र की प्रजातियों का संगठन अर्थात परितंत्रीय विविधता (Ecological biodiversity)

विश्व की जैव विविधता (World Biodiversity And Major Hotspot In Hindi)

हमारी पृथ्वी पर जीवों की 50 से 300 लाख प्रजातियाँ पाई जाती है, इनमे से वैज्ञानिक 17 से 20 लाख प्रजातियों को ही पहचान पाए है, पृथ्वी पर पाई जाने वाली जैव विविधता समान रूप से वितरित नही है.

धुर्वो पर बायोडायवर्सिटी कम है . जैसे जैसे भू मध्य रेखा की ओर जाते है जैव विविधता बढ़ती है. उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है.

ब्राजील में जैव विविधता का स्तर विश्व में सर्वाधिक है, ब्राजील के बाद विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता भारत में पाई जाती है. विश्व में सर्वाधिक विविधता प्रवाल भित्तियाँ, नम प्रदेश, मेग्रोव पारिस्थतिकी तन्त्र एवं उष्ण कटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र में उपस्थित होती है.

भारत में जैव विविधता और हॉटस्पॉट (Biodiversity and hotspot in India)

भारत बायोडायवर्सिटी की दृष्टि से काफी समर्द्ध है तथा विश्व के 17 बड़े विविधता वाले देशों में से एक है. विश्व के बड़े 17 जैव विविधता वाले देशों में मेक्सिकों, कोलम्बिया, इक्वाडोर, कोंगों, इंडोनेशिया, पेरू, चीन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, मलेशिया, मेडागास्कर, पापुआ न्यू गिनी, फिलिपींस, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, वेनेजुएला तथा भारत .

इन 17 देशों में विश्व की लगभग 70 प्रतिशत बायोडायवर्सिटी पाई जाती है. विश्व प्रकृति संरक्षण संघ IUCN की रेड डाटा बुक के अनुसार विश्व में आज लगभग 4000 जन्तु प्रजातियाँ तथा 60 हजार वनस्पति प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर है.

भारत की संकटग्रस्त एवं लुप्तप्राय प्रजातियां (Endangered and Endangered Species in the INDIA)

भारतीय मगर, भारतीय सारस, बाघ, हॉर्न बिल्स, भारतीय गैंडा, स्लोथ भालू, गंगा डाल्फिन, भारतीय जंगली गधा, साइबेरियन क्रेन, सोंन कुत्ता, एशियाई शेर, पांडा, हरा समुद्री कछुआ, चिंकारा, सुनहरा लंगूर, हंगुल, हरी छिपकली, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण), ब्रो एंटलर्ड हिरण

जैव विविधता के हॉटस्पॉट (Biodiversity hotspots)

ऐसें क्षेत्र जहाँ जैव विविधता अत्यंत सघन रूप में होती है तथा वहां विलुप्ति की कगार पहुचने वाली दुर्लभ प्रजातियों की अधिकता होती है, बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट कहलाते है. इसकी अवधारणा सबसे पहले सन 1988 में ब्रिटिश पारिस्थितिकीविद नोर्मन मेयर्स ने दी थी.

वर्तमान में विश्व में ऐसें 25 क्षेत्र है. विश्व के कुछ बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट है- अटलाटिक वन, पूर्वी मलेशियाई द्वीप, दक्षिण पश्चिम चीन के पर्वत, मेडागास्कर के द्वीप समूह मध्य अमेरिका, कोलंबिया, चोको, मध्य चिली,पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट, श्रीलंका, इंडो वर्मा आदि.

भारत के बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट (Biodiversity hotspot of india)

दो  बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट  पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी घात पूर्ण रूप से भारतीय भूमि से सम्बन्धित है. जबकि इंडो बर्मा  बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट  में भी कुछ भारतीय क्षेत्र सम्मिलित है.

  • पूर्वी हिमालय बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट-  इसके अंतर्गत पूर्वी हिमालय का असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों का क्षेत्र आता है. हिमालय पर्वत श्रंखला असीम जैव विविधता से सम्पन्न है. इस क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ जीवों के नाम है- हिमालयी थार, पिग्मी होंग, उडन गिलहरी, हिम तेंदुआ, ताकिन, गांगेय डाल्फिन आदि.
  • पश्चिम घाट   बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट-  भारत के पश्चिम घाट विश्व का प्रमुख  बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट  है. इस क्षेत्र में एक लाख 60 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमे केरल राज्य शामिल है. यहाँ पाये जाने वाले मुख्य जीव है- मालाबार गंध बिलाव, एशियाई हाथी,मालाबार ग्रे हॉर्नबिल, निलगिरी थार मैकांक बंदर.
  • इंडो बर्मा  बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट-  यह उष्णकटिबंधीय पूर्वी एशिया में चीन, भारत, म्यांमार, वियतनाम, थाईलैंड, कम्बोडिया तथा मलेशिया के लगभग 23,73000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है.

बायोडायवर्सिटी के विलुप्त होने के कारण (Due to extinction of biodiversity)

  • प्राकृतिक आवासों की कमी
  • जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण प्रदूषण
  • प्राकृतिक संसाधनो का अनियंत्रित विदोहन
  • अंधविश्वास एवं अज्ञानता
  • कृषि व वानिकी में व्यवसायिक प्रवृति
  • विदेशी प्रजातियों का आक्रमण

बायोडायवर्सिटी का संरक्षण क्यों आवश्यक है

IUCN की जानकारी के अनुसार अब तक विश्व में कुल 15 लाख प्रजाति (मनुष्य, पेड़ पौधे, जीव जन्तु) का पता चल पाया है, जिसका 40 प्रतिशत निवास भारत में ही है. इससे अंदाज लगाया जा सकता है, विश्व की सभी जीवों में हर दूसरा भारत के किसी न कोने में पाया जाता है.

प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के साथ ही जैव विविधता द्वारा विभिन्न आर्थिक सहयोग भी मिलता है. अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार भारत में 81 हजार जीव जन्तु और तक़रीबन 45 हजार जाति के पेड़ पौधों का पता लगाया जा चूका है. कई पर्यावरणीय कारणों के चलते कुछ का अस्तित्व खतरे में है, जिन्हें IUCN की रेड डाटा बुक में सम्मिलित किया गया है.

प्रकृति के निर्माण व उसको बनाए रखने में जैव विविधता की अहम भूमिका रहती है. प्रकृति में किसी भी प्रकार के जीव अथवा वनस्पति का विनाश प्रकृति तथा पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकता है.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक प्रमुखतः हेतु आवास व भोजन की आवश्यकता आदि से बायोडायवर्सिटी का खूब विनाश हुआ है. जीव जन्तु व वनस्पतियाँ पर्यावरण संतुलन बनाए रखती है.

बायोडायवर्सिटी संरक्षण के उपाय

तेजी से लुप्त हो रहे प्राणियों की जाति एवं वनस्पति बड़े भौतिक परिवर्तन का संकेत देते है. बड़े बाँधो का निर्माण, औद्योगिकीकरण, सघन खेती, बढ़ती आबादी के लिए घरों के निर्माण के कारण भी बड़ी संख्या में वनों की कटाई तथा वन्य जीवों के आवास को बड़ी मात्रा में उजाड़ा जाता है.  इस तरह वनस्पति व जीवों का विनाश हमारे पर्यावरण के लिए खतरनाक हो सकता है.

भारत बायोडायवर्सिटी से समर्द्ध देश है, सरकार द्वरा भी लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के पर्यावरण संरक्षण एवं वन्य जीव संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जा रहे है.

अपने स्वार्थ के लिए जैव विविधता का विनाश मानव समुदाय को बहुत महंगा पड़ सकता है. इसके कुछ नतीजे हाल ही के वर्षों में देखने को मिले है.

पृथ्वी पर आने वाली पैराबैगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में छिद्र, हरित गृह प्रभाव के कारण वातावरण में गर्मी बढ़ना इत्यादि पर्यावरणीय मुशिबतों का सामना आज सारा संसार जार रहा है.

विश्व की बायोडायवर्सिटी संपदा को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संगठन (iucn) की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है.

भारत को अपनी विकास यात्रा के साथ साथ पर्यावरण को भी बचाए रखना है, राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव अभ्यारण्य, जैव मंडलीय सुरक्षित क्षेत्र की स्थापना तथा बाघ परियोजनाएं की स्थापना के द्वारा लुप्तप्राय प्राणियों को बचाया जाना नितांत आवश्यक है.

आज के समय की यह महती आवश्यकता है, कि हम अपने निजी स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनो का दोहन न करते हुए जैव विविधता के सरंक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाए. भारत सरकार द्वारा इस दिशा में कई महत्वपूर्ण प्रयास किये जा रहे है.

इस दिशा में कार्य करने वाली कुछ संस्थाओं में भारतीय वन अनुसंधान देहरादून, भारतीय वनस्पति उद्यान कोलकाता, पारिस्थितिकी अनुसंधान संस्थान बैगलोर, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियन्त्रिकी संस्थान नागपुर आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

जैव विविधता संरक्षण अधिनियम 2002

जैव विविधता के लिहाज से विश्व के अग्रणी देशों में भारत की गिनती की जाती हैं. भारत में लगभग 45000 पेड-पौधों व 81000 जानवरों की प्रजातियां पाई जाती है जो विश्व की लगभग 7.1 प्रतिशत वनस्पतियों तथा 6.5 प्रतिशत जीवों का भाग हैं.

वर्ष 2002 के बायोडायवर्सिटी संरक्षण अधिनियम के द्वारा सरकार ने अपने इस अभियान में गैर सरकारी संगठनों, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों तथा आम जनता को भी सम्मिलित किया गया हैं.

इस कानून के तहत सरकार सर्वप्रथम उन स्थानों पर ध्यान देगी जहाँ जैव विविधता को विशिष्ट खतरा हैं. साथ ही आधुनिक तकनीक तथा यंत्रों से वन्य जीवों तथा मानव के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के प्रयास होगे.

तथा आम जन को परम्परागत विधियों से बायोडायवर्सिटी की ओर प्रेरित करने हेतु उपयुक्त कदम उठाएं जाएगे.

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जैव विविधता पर निबंध,कविता व नारे Biodiversity Essay, Poem, Slogan in Hindi

Jaiv vividhata in hindi.

दोस्तों नमस्कार आज हम आपके लिए लाए हैं जैव विविधता पर हमारे द्वारा लिखित निबंध, कविता और नारे आप इन्हें जरूर पढ़ें तो चलिए पढ़ते हैं आज के इस आर्टिकल को।

Biodiversity Essay, Poem, Slogan in Hindi

जैव विविधता को हम जैविक विविधता भी कहते हैं जिससे तात्पर्य विभिन्न प्रकार के जीव जंतु, पेड़-पौधों का इस संसार में या किसी स्थान विशेष में एक साथ रहना है इस संसार में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, विभिन्न प्रकार के जीव जंतु, मनुष्य, पशु पक्षी आदि निवास करते हैं वास्तव में यह सभी धरती पर एक साथ रहकर अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं। जैव विविधता हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है आज हम देखें तो हमारे पर्यावरण में हमारे द्वारा फैलाए जा रहे है प्रदूषण की वजह से कई समस्याएं हैं इन समस्याओं की वजह से जैव विविधता को काफी नुकसान होता है हम सभी को जैवविविधता बनाए रखने के लिए काफी प्रयत्न करने की जरूरत है।

जैविक विविधता महत्वपूर्ण क्यों है

आज हम देखें तो हर एक मनुष्य, जीव जंतु एक दूसरे पर निर्भर है मनुष्य अपने भोजन के लिए विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों, फसलों एवं जीव जंतु पर निर्भर है यदि जैव विविधता नहीं होगी तो मनुष्य अपने भोजन की पूर्ति कैसे कर पाएगा.हर कोई कई अन्य पशु पक्षी एवं पेड़ पौधों आदि पर निर्भर रहता हैं अगर जैव विविधता खत्म हो जाए तो वास्तव में हमारे जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा इन सारे जीव जंतुओ का भी कोई अस्तित्व नहीं होगा. हम सभी को इसके महत्व को समझना चाहिए और पर्यावरण में फैले प्रदूषण को दूर करने का हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए।

किन प्रदूषणों से जैव विविधता को नुकसान होता है

दरअसल आज हम देखें तो इस आधुनिक युग में मनुष्य के क्रियाकलापों की वजह से हमारे पर्यावरण में कई तरह के प्रदूषण फैले हुए हैं जैसे कि वायु प्रदूषण. आज हम एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए वाहनों का उपयोग करते हैं जिस वजह से वाहनों से निकलने वाला हानिकारक धुआ पर्यावरण को प्रदूषित करता है जिससे मानव, पशु पक्षियों, पेड़ पौधों सभी को नुकसान होता है इसके अलावा जल प्रदूषण भी जैव विविधता को नुकसान पहुंचाता है .

दरअसल आज मनुष्य अपने कई क्रियाकलापों से एवं कई फैक्ट्रियों के हानिकारक पदार्थों से जल प्रदूषण कर रहा है जिस वजह से कई जलीय जीव जंतु, पेड़ पौधे, जानवर यहां तक कि मनुष्य के जीवन को भी काफी खतरा होता है हम सभी को जल प्रदूषण को रोकने की जरूरत है तभी हम जैव विविधता को नुकसान होने से बचा पाएंगे। हम सभी को चाहिए कि हम अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाएं क्योंकि पेड़ पौधे हमारे लिए, जीव जंतु के लिए, हमारे स्वच्छ वातावरण के लिए अति आवश्यक है यदि हम इस ओर विशेष ध्यान दें तो वास्तव में हम जैवविविधता बनाए रखेंगे और अपने अस्तित्व को बनाए रखेंगे।

poem on biodiversity in hindi

हम जैवविविधता बनाए रखें

पेड़ पौधों जन्तुओ का अस्तित्व बचाए रखें

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाए चले

जीवन में खुशहाल जीवन जीते चले

जल को प्रदूषित होने से बचाए चलें

वायु प्रदूषण को रोकने चलें

पेड़ पौधे हम लगाते चलें

हम जैव विविधता बनाए चलें

इस संदेश को आगे बढ़ाएं चलें

सभी के अस्तित्व को बचाए चलें

हम जेव विविधता बनाए रखें

पेड़ पौधों और जंतुओं का अस्तित्व बचाए रखें

slogan on biodiversity in hindi

  • जैव विविधता से जीवन है इसके बिना न जीवन है
  • पर्यावरण प्रदूषण को रोकने जाएं हम जैव विविधता को बचाते जाएं
  • इस प्रकृति में हम आए हैं सबका मिलजुल कर सहयोग करते जाएं हैं
  • जैव विविधता से जीवन बचाएं जीवन में कुछ कर दिखाएं
  • जैव विविधता महत्वपूर्ण है हर जीव जंतु वनस्पति के लिए महत्वपूर्ण है
  • जीव विविधता को बचाएं जीवन को बचाएं
  • पेड़ों के महत्व पर कविता व नारे Importance of trees poem, slogan in hindi
  • पेड़ बचाओ पर कविता Ped bachao kavita in hindi

दोस्तों आप हमे कमेंट्स के द्वारा बताये की Biodiversity Essay in Hindi आपको कैसा लगा.

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Bahut hi badhiya posts aapne share kiya hain sir Thanks.

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जैव विविधता की अवधारणा एवं प्रकार - Concept and Types of Biodiversity in Hindi

जैव विविधता की अवधारणा एवं प्रकार - concept and types of biodiversity.

पृथ्वी को हम जगत जननी के नाम से संबोधित करते है क्योकि पृथ्वी पर ही जीवन है | हमारा वैभवशाली जीवन प्रकृति की अनुपम देन है | हरे-भरे पेड़ पौधे विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु, हवा, पानी, मिट्टी, पहाड़, झरने, सागर, महासागर ये सब प्रकृति ऐसे उपहार है जो हमारे विकास के लिए आवश्यक है तथा हमारी आर्थिक समृद्धि के प्राकृतिक स्त्रोत है | इन जैविक और अजैविक तत्वों से मिलकर पर्यावरण का निर्माण होता है, प्रकृति में पाए जाने वाले पेड़-पौधे एवं जीव-जन्तुओ के आकार प्रकार तथा संरचना में विविधता पायी जाती है |

जैव विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जो हमें जीवन की सुरक्षा प्रदान करता है, जैव विविधता हजारो, लाखो एवं करोडो वर्षो से चले आ रहे विकास की दें है| इस पृथ्वी पर लगभग 20 लाख जैव प्रजातिया उपलब्ध है और इनमे से कोई भी ऐसा कोई भी जीव नही है जो प्राकृतिक रूप से बेकार हो | सभी जीवो की अपनी अलग-अलग भूमिका होती है जो प्रकृति को संतुलित बनाए रखने में अपना योगदान देती है | जैव विविधता का उत्पादकता संबंधी व्यावहारिक एवं सामाजिक दृष्टी से महत्वा निम्नलिखित तथ्यों से प्राप्त होता है |

  •  विभिन्न प्रकार के खाद्यान, विभिन्न प्रकार की सब्जिया, फल, जलाने की लकड़ी, घर तथा फर्नीचर हेतु विविध वृक्ष, मांस, चमडा, दूध, घी, मक्खन, अंडे इत्यादि जैव विविधता की ही देन है |
  • भारतीय वनों से प्राप्त विभिन्न दुर्लभ जड़ी-बूटियों का विश्व के अनेक देशो में मांग है सर्पगंधा एक ऐसा पौधा है जिससे हार्ट अटैक की अत्यंत प्रभावी दवा बनती है |
  • विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए कच्चा माल वनों से प्राप्त होता है जिससे छोटे उद्योग चलाये जाते है |
  • वनस्पतिया वायुमंडल की जहरीली गैस कार्बन डाई ऑक्साईड का अवशोषण कर ऑक्सीजन प्रदान करता है जिससे हम शरीर के अन्दर श्वसन क्रिया करते है |
  • प्राणी वनस्पतियों द्वारा उत्पादित भोजन को ग्रहण कर पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साईड छोड़ते है जिसका उपयोग पौधे होजान बनाने में करते है इस प्रकार वनस्पतियों और प्राणियों के बीच सहजीविता का सम्बन्ध है|

जैव विविधता अर्थात जीवो में व्याप्त विषमता, जटिलता और अंतर विभिन्न स्तरों पर हो सकती है | स्तर एक दुसरे से सम्बंधित होते है, किन्तु इन्हें पृथक से व्यक्त किया जा सकता है | जैव विविधता के निम्न प्रकार हो सकते है -

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(जैव विविधता की परिभाषा) Definition of Biodiversity in Hindi !!

  • Post author: Ankita Shukla
  • Post published: February 28, 2020
  • Post category: Gyan
  • Post comments: 0 Comments

जैव विविधता की परिभाषा | Definition of Biodiversity in Hindi !!

जैव विविधता जिसे अंग्रेजी में Biodiversity के नाम से भी जाना जाता है, यह दो शब्दों से मिलकर उत्पन्न हुआ है जैव + विविधता, जहां पर जैव शब्द का अर्थ पेड़-पौधे, मनुष्य, कीड़े-मकोड़े आदि और विविधता का अर्थ अंतर होता है. इसे यदि आसान शब्दों में समझाया जाये तो हम कह सकते हैं कि “जैव विविधता से अभिप्राय सजीवों में पाए जाने वाली विभिन्नताओं यानि अंतर से है”.

पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के पादप, सजीव और अन्य छोटे छोटे जीव पाए जाते हैं और इनमे जो विभिन्नताएं होती है, जैसे बैक्टीरिया, फंगस और पक्षियों में विभिन्नताएँ, कीड़ो में विभिन्नताएँ, रेप्टाइल में विभिन्नताएँ, जीव-जन्तुओ में विभिन्नताएँ, सजीवों में विभिन्नताएं आदि, ये सभी विभिन्नताएं ही जैव विविधता कहलाती है.

जैव विविधता के प्रकार ( Types Of Biodiversity )

जैव विविधता के मुख्य तीन भाग होते है।

  • आनुवांशिक जैव विविधता
  • प्रजातीय जैव विविधता
  • पारिस्थितिक जैव विविधता

आनुवंशिक जैव विविधता | Genetic Diversity !!

आनुवांशिक जैव विविधता को मुख्य रूप से जीन्स, गुणसूत्रों से सम्बंधित चीजों के लिए बाटा गया है गुणसूत्रों की संख्या और संरचना में परिवर्तन के कारण एक ही प्रकार के प्रजाति में परिवर्तन होता है जिसे हम आनुवांशिक जैव विविधता या Genetic diversity कहते है।

    2. प्रजातीय जैव विविधता | Ethnic Diversity !!

जब दो या उससे अधिक प्रजातियां किसी विशेष जगह या समय पर पायी जाती हैं तो उसे प्रजातीय जैव विविधता या ethnic diversity कहते हैं.

    3. पारिस्थितिक जैव विविधता | Ecological Diversity !!

किसी विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र के आधार पर अगर जीव में विभिन्नता के लक्षण पाए जाते हैं, तो उसे पारिस्थितिक जैव विविधता या ecological diversityकहते है।

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Ankita Shukla

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Reverie Sets A New Benchmark in Automated Speech Recognition ASR Accuracy for Indian Native Languages

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Bengaluru, India, Friday 19th July 2024– Reverie Language Technologies, a pioneer in language technology solutions specializing in Indian languages, announces a significant advancement in its Automated Speech Recognition (ASR) model accuracy, validated through the esteemed Kathbath dataset curated by AI4Bharat. Reverie benchmarked their ASR output with Google and Microsoft for Indian English, Hindi, Gujarati, Marathi, Tamil, Telugu, Bengali, Kannada, Punjabi, Malayalam, and Odia. The Kathbath dataset, renowned for its comprehensive and diverse speech data, comprises an impressive 1,684 hours of meticulously human-labeled speech. This dataset spans 12 Indian languages and is contributed by 1,218 individuals hailing from 203 districts across the country. Such extensive linguistic diversity and regional representation make the Kathbath dataset a gold standard for evaluating ASR systems in the Indian context. Soham Bhattacharya, API Product Manager at Reverie, commented on the achievement "The established accuracy of Reverie’s generic ASR model is an outcome of the hard work and innovation of Reverie’s voice R&D division. By refining the fundamental algorithms and language models along with training the models on a huge quantity of data, we have set a new benchmark in the industry and thereby maintained the quality of transcriptions for our clients." said Bhattacharya. With over 15 years of experience, Reverie continues to lead the industry by achieving superior accuracy in ASR, surpassing standards with its latest innovations tailored for diverse sectors such as Banking, Finance, Insurance, e-commerce, Automotive, and Government. Reverie’s Custom Model for Automated Speech Recognition With Reverie’s Custom Speech-to-Text solutions, clients can fine-tune speech recognition models to perfectly match their specific needs. For example, the phrase "Black shoe" may be expressed as "Kala Shoe” or as "Black Joota” reflecting regional linguistic nuances. ASR engineers work at creating multiple variations to encompass how individuals naturally search or speak, optimizing the model's effectiveness across different linguistic contexts. Reverie offers both online and offline models. The offline model is meticulously optimized to cater to a broad range of applications while efficiently managing memory resources. Reverie's models also ensure maximum data security and privacy standards while seamlessly integrating into apps, websites, and systems. Acknowledging the limitations of offline environments, the engineers strategically reduce the size of these models without sacrificing performance. This approach allows Reverie to support multiple use cases concurrently, providing accessible and responsive solutions for its clientele. The design ensures comprehensive functionality, even in settings where continuous internet connectivity may be unreliable. ASR Live Use Cases for e-commerce & Automobile Reverie's commitment to innovation can be validated by its collaboration with a global sporting goods retailer, which recently launched Multilingual Voice Search on its e-commerce platform. This initiative, supporting Indian English, Hindi and Tamil, has significantly enhanced customer engagement, handling over 4000 voice searches per day within its first week of launch, motivating the client to add three more Indian languages to the platform. Additionally working with the automotive sector, Reverie has revolutionized in-car voice assistants with a robust multilingual offline ASR model. Addressing the unique challenges of automotive environments, such as engine noise and multiple in-car passenger conversations, Reverie's solution ensures accurate and reliable performance. It allows users to control settings, access internet information, and perform calculations using simple voice commands. Some of the key features include automatic speech recognition, natural language understanding, and text-to-speech, complemented by an offline wake word system - ‘Hello Car’. Implemented in a prominent Indian automobile brand, this technology enhances convenience and safety, transforming the driving experience. About Reverie Reverie is India’s 1st AI-powered language technology platform that offers next-generation text, voice, and video localisation solutions. Reverie commits to creating language equality in the digital world and empowers government agencies and private enterprises to reach billions of people across the country in their native languages. Leveraging advanced technologies, such as Neural Machine Translation (NMT), Natural Language Understanding (NLU), and Machine Translation (ML), Reverie is ahead of the curve in enabling digital initiatives across India. For more information on Reverie’s ASR solutions and custom Model STT/ASR technology, visit Reverie. (Disclaimer : The above Press Release is provided by HT Syndication and PTI will not take any editorial responsibility of this content.). PTI PWR PWR

(This story has not been edited by THE WEEK and is auto-generated from PTI)

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  • Biodiversity Essay

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Essay on Biodiversity

Biodiversity is a term made up of two words - Bio meaning Life, and Diversity meaning Variety. The term biodiversity refers to the variety of life on Earth. Plants, animals, microbes, and fungi are all examples of living species on the planet.

Types of Biodiversity  

Genetic Biodiversity- Genetic diversity is the variation in genes and genotypes within a species, e.g., every human looks different from the other. 

Species Biodiversity- Species Diversity is the variety of species within a habitat or a region. It is the biodiversity observed within a community.

Ecosystem Biodiversity- Ecological biodiversity refers to the variations in the plant and animal species living together and connected by food chains and food webs.

Importance of Biodiversity 

Biodiversity is an integral part of cultural identity. Human cultures co-evolve with their environment and conservation is a priority for cultural identity. Biodiversity is used for Medicinal purposes.

Many plants and animals are used for medicinal purposes, like vitamins and painkillers. It contributes to climate stability. It helps in controlling the effects of climate change and managing greenhouse gases. 

Biodiversity provides more food resources. It supplies many vital ecosystems, such as creating and maintaining soil quality, controlling pests, and providing habitat for wildlife. Biodiversity has a relationship with Industry. Biological sources provide many Industrial materials including rubber, cotton, leather, food, paper, etc.

There are many economic benefits of Biodiversity. Biodiversity also helps in controlling pollution. Biodiversity helps in forming a healthy ecosystem. Biodiversity also acts as a source of recreation. Along with other factors, biodiversity helps in improving soil quality.

Long Essay on Biodiversity 

There are many economic benefits of Biodiversity. Biodiversity is a source of economic wealth for many regions of the world. Biodiversity facilitates Tourism and the Recreational industry. Natural Reserves and National Parks benefit a lot from it. Forest, wildlife, biosphere reserve, sanctuaries are prime spots for ecotourism, photography, painting, filmmaking, and literary works.

Biodiversity plays a vital role in the maintenance of the gaseous composition of the atmosphere, breakdown of waste material, and removal of pollutants.

Conservation of Biodiversity  

Biodiversity is very important for human existence as all life forms are interlinked with each other and one single disturbance can have multiple effects on another. If we fail to protect our biodiversity, we can endanger our plants, animals, and environment, as well as human life. Therefore, it is necessary to protect our biodiversity at all costs. Conservation of Biodiversity can be done by educating the people to adopt more environment-friendly methods and activities and develop a more harmonious and empathetic nature towards the environment. The involvement and cooperation of communities are very important. The process of continuous protection of Biodiversity is the need of the hour.

The Government of India, along with 155 other nations, has signed the convention of Biodiversity at the Earth Summit to protect it. According to the summit, efforts should be made in preserving endangered species. 

The preservation and proper management methods for wildlife should be made. Food crops, animals, and plants should be preserved. Usage of various food crops should be kept at a minimum. Every country must realize the importance of protecting the ecosystem and safeguarding the habitat. 

The Government of India has launched the Wild Life Protection Act 1972 to protect, preserve, and propagate a variety of species. The Government has also launched a scheme to protect national parks and sanctuaries. There are 12 countries - Mexico, Columbia, Peru, Brasil, Ecuador, Democratic Republic of Congo, Madagascar, India, China, Malaysia, Indonesia, and Australia, in which Mega Diversity Centres are located. These countries are tropical and they possess a large number of the world’s species.

Various hotspots have been made to protect the vegetation. There are various methods for conserving biodiversity. 

If biodiversity conservation is not done efficiently, each species would eventually become extinct due to a lack of appetite and hunger. This scenario has been a big issue for the last few decades, and many unique species have already become extinct. As a result of a lack of biodiversity protection, several species are still on the verge of extinction.

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FAQs on Biodiversity Essay

1. What are the three types of Biodiversity?

Biodiversity is referred to as the variability that exists between the living organisms from different sources of nature, such as terrestrial, marine, and other aquatic ecosystems. Biodiversity has three levels, which are genetic, species, and ecosystem diversity. This is also considered as the type of ecosystem.

2. What is Biodiversity and why is it important?

Biodiversity is responsible for boosting the productivity of the ecosystems in which every species, no matter how small, has an important role to play. For example, a greater variety of crops can be obtained from a plant species which is in large numbers. If species diversity is in a greater amount, then it ensures natural sustainability for all life forms.

3. What is the connection between Biodiversity and the Food Chain?

If a single species goes extinct from the food chain, it will have an impact on the species that survive on it, putting them on the verge of extinction.

4. How are human beings affecting biodiversity?

Pollution- Pollution not only affects human beings, but also affects our flora and fauna, and we should control the pollution to conserve our biodiversity.

Population- Population control is a must to maintain a balance in our ecological system. Humans contribute to pollution by bursting crackers and by not following all the traffic rules.

5. How does Deforestation affect biodiversity?

Deforestation- Trees are very important for survival. They help in balancing out the ecosystem. Deforestation leads to the destruction of habitat. Deforestation should be stopped to protect our animals and plants. Deforestation not only removes vegetation that is important for removing carbon dioxide from the atmosphere, but it also emits greenhouse gases.

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